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16 संस्कारों में चौथा संस्कार – जातकर्म संस्कार

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जातकर्म संस्कार – Jatakarma Sanskar

हिंदू धर्म के 16 संस्कारों पर आधारित लेखों की श्रृंखला में हम अभी तक आपको पहले तीन संस्कारों के बारे में बता चुके हैं। पहले के तीनों संस्कार गर्भाधान से लेकर गर्भावस्था तक शिशु में संस्कारों का संचार करने व गर्भ को सुरक्षित व स्वस्थ रखने के लिये किये जाते हैं। इन तीनों संस्कारों के नाम हैं गर्भाधान जो गर्भधारण के समय किया जाता है इसके पश्चात पुंसवन संस्कार किया जाता है जो कि गर्भ धारण के तीसरे माह में किया जाता है।

तीसरा संस्कार सीमंतोन्नयन है जो कि चौथे, छठे या आठवें महीने में किया जाता है। आमतौर पर इसे आठवें महीने में ही किया जाता है। जैसे ही शिशु का जन्म होता है तो उस समय भी एक संस्कार किया जाता है इस संस्कार को कहा जाता है जातकर्म संस्कार। आइये जानते हैं हिंदू धर्म में किये जाने वाले चतुर्थ संस्कार जातकर्म के बारे में।

जातकर्म संस्कार का महत्व – Jatakarma Sanskar

जब जातक का जन्म होता है तो जातकर्म संस्कार किया जाता है इस बारे में कहा भी गया है कि “जाते जातक्रिया भवेत्”। गर्भस्थ बालक के जन्म के समय जो भी कर्म किये जाते हैं उन्हें जातकर्म कहा जाता है। इनमें बच्चे को स्नान कराना, मुख आदि साफ करना, मधु व घी चटाना, स्तनपान, आयुप्यकरण आदि कर्म किये जाते हैं। क्योंकि जातक के जन्म लेते ही घर में सूतक माना जाता है इस कारण इन कर्मों को संस्कार का रूप दिया जाता है। मान्यता है कि इस संस्कार से माता के गर्भ में रस पान संबंधी दोष, सुवर्ण वातदोष, मूत्र दोष, रक्त दोष आदि दूर हो जाते हैं व जातक मे धावी व बलशाली बनता है।

जातकर्म संस्कार की विधि – Jatakarma Sanskar Vidhi

इस संस्कार में जातक के जन्म लेते ही कई प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं। सर्वप्रथम सोने की श्लाका से विषम मात्रा में घी और शहद को विषम मात्रा में मिलाकर उसे शिशु को चटाया जाता है। मान्यता है कि यह नवजात शिशु के लिये एक प्रकार कि औषधि का काम भी करता है। शिशु के जन्म लेने पर पिता को अपने कुल देवता व घर के बड़े बुजूर्गों को नमस्कार करने के पश्चात ही पुत्र का मुख देखना चाहिये। इसके तुंरत बाद किसी नदी या तालाब या किसी पवित्र धार्मिक स्थल पर उत्तर दिशा में मुख कर स्नान करना चाहिये। मान्यता यह भी है कि यदि शिशु का जन्म मूल-ज्येष्ठा या फिर किसी अन्य अशुभ मुहूर्त में हुआ हो तो पिता को शिशु का मुख देखे बिना ही स्नान करना चाहिये।

जातकर्म संस्कार के दौरान की जाने वाली क्रियाएं – Jatakarma Sanskar Rituals

स्नान

शिशु के जन्म के पश्चात बच्चे के शरीर पर उबटन लगाया जाता है। उबटन में चने का बारीक आटा यानि बेसन की बजाय मसूर या मूंग का बारीक आटा सही रहता है। इसके पश्चात शिशु का स्नान किया जाता है।

मुख साफ करना

मान्यता है कि गर्भ में शिसु श्वास नहीं लेता और न ही मुख खुला होता है। प्राकृतिक रूप से ये बंद रहते हैं और इनमें कफ भरी होती है। लेकिन जैसे ही शिशु का जन्म होता है तो कफ को निकाल कर मुख साफ करना बहुत आवश्यक होता है। इसके लिये मुख को ऊंगली से साफ कर शिशु को वमन कराया जाता है ताकि कफ बाहर निकले इसके लिये सैंधव नमक बढ़िया माना जाता है। इसे घी में मिलाकर दिया जाता है।

तालु में तेल या घी लगाना

तालु की मज़बूती के लिये नवजात क तालु पर घी या तेल लगाया जाता है। मान्यता है कि जिस तरह कमल के पत्ते पर पानी नहीं ठहरता उसी प्रकार स्वर्ण खाने वाले को विष प्रभावित नहीं करता। अर्थात संस्कार से शिशु की बुद्धि, स्मृति, आयु, वीर्य, नेत्रों की रोशनी या कहें कुल मिलाकर शिशु को संपूर्ण पोषण मिलता है व शिशु सुकुमार होता है।

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