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मार्गशीर्ष पूर्णिमा – जानिए तारीख, शुभ मुहूर्त, व्रत नियम और पूजा विधि

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मार्गशीर्ष पूर्णिमा – Margashirsha Purnima

मार्गशीर्ष पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। इस दिन भगवान शिव और चंद्रदेव की अराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूर्णिमा के दिन भगवान सत्यनारायण की कथा और पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा के दिन स्नान, दान और ध्यान का भी विशेष महत्व होता है।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के पावन पर्व पर गंगा स्नान समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. हरिद्वार समेत अनेक स्थानों पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और पापों से मुक्त होते हैं. पूर्णिमा के स्नान पर पुण्य की कामना से स्नान का बहुत महत्व होता है इस अवसर पर किए गए दान का अमोघ फल प्राप्त होता है, यह एक बहुत पवित्र अवसर माना जाता है जो सभी संकटों को दूर करके मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा महत्व – Margashirsha Purnima Importance

मार्गशीर्ष का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है. मार्गशीर्ष माह में पूरे महीने प्रात:काल समय में भजन कीर्तन हुआ करते हैं, भक्तों की मंडलियां सुबह के समय भजन व भक्ती गीत गाते हुए निकलती हैं. इस माह में श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारम्भ किया था. मार्गशीर्ष में नदी स्नान के लिए तुलसी की जड़ की मिट्टी व तुलसी के पत्तों से स्नान करना चाहिए, स्नान के समय नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है.

जब यह पूर्णिमा ‘उदयातिथि’ के रूप में सूर्योदय से विद्यमान हो, उस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन दान-पुण्य करने से वह बत्तीस गुना फल प्राप्त होता है अत: इसी कारण मार्गशीर्ष पूर्णिमा को बत्तीसी पूनम भी कहा जाता है.

मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत मुहूर्त

  • 29 दिसंबर 2020 की सुबह 07 बजकर 55 मिनट पर पूर्णिमा तिथ का आरम्भ
  • 30 दिसंबर की रात 08 बजकर 59 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी

मार्गशीर्ष पूर्णिमा पूजा विधि – Margashirsha Purnima

  • सुबह उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान का ध्यान लगाएं और व्रत का संकल्प लें।
  • इसके बाद ॐ नमोः नारायण कहकर, श्री हरि का आह्वान करें।
  • इसके बाद भगवान को वस्त्र, पुष्प आदि अर्पित करें।
  • पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और हवन के लिए अग्नि जलाएं।
  • इसके बाद हवन में घी और बूरा आदि की आहुति दें।
  • हवन समाप्त होने पर भगवान का ध्यान लगाएं।
  • मार्गशीर्ष की पूर्णिमा को चन्द्रमा की पूजा अवश्य की जानी चाहिए, क्योंकि इसी दिन चन्द्रमा को अमृत से सिंचित किया गया था.
  • इस दिन कन्या और परिवार की अन्य स्त्रियों को वस्त्र प्रदान करने चाहिए.

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