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जानें क्यों मनाई जाती है बछ बारस, क्या है महत्व और पूजा विधि

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बछ बारस व्रत, पूजा विधि और कथा – Bach Baras Vrat, Puja Vidhi aur Katha

Bach Baras ki Kahani – Bach Baras प्रतिवर्ष जन्माष्टमी के चार दिन पश्चात भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी के दिन मनाया जाता है इसलिए इस गोवत्स द्वादशी भी कहते है (Bach Baras Mahatava) भगवान कृष्ण के गाय और बछड़ो से बड़ा प्रेम था इसलिए इस त्यौहार को मनाया जाता है और ऐसा माना जाता है की बछ बारस के दिन गाय और बछड़ो की पूजा (Bach Baras Pooja Vidhi) करने से भगवान कृष्ण सहित गाय में निवास करने वाले सैकड़ो देवताओ का आशीर्वाद मिलता है जिससे घर में खुशहाली और सम्पन्नता आती है|

इस दिन चाकू से कटी हुई वस्तु का, सुई का और गाय के दूध से बने उत्पादों का उपयोग नहीं किया जाता है। गेहूं का भी उपयोग नहीं किया जाता है, इसके स्थान पर बाजरा या मक्का से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग होता है।

बछ बारस देश के कई हिस्सों में मनाई जाती है। इसे मनाने के तरीके भी अलग—अलग है। लेकिन, एक बात सामान्य है वह है कि इस दिन गाय और उसके बछड़े की पूजा की जाती है। घर में मोठ, बाजरा, चौला, मूंग आदि को भिगोया जाता है और इस अंकुरित अनाज से पूजा होती है। गाय और बछड़े की पूजा के बाद कहानी सुनी जाती है।

बछ बारस महत्व – Bach Baras Mahatava

भारतीय धार्मिक पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने की बात कहीं गई है. पूज्यनीय गौमाता हमारी ऐसी मां है, जिसकी बराबरी न कोई देवी-देवता कर सकता है और न कोई तीर्थ. गौमाता के दर्शन मात्र से ऐसा पुण्य प्राप्त होता है, जो बड़े-बड़े यज्ञ, दान आदि कर्मों से भी नहीं प्राप्त हो सकता.

ऐसी मान्यता है कि सभी देवी-देवताओं एवं पितरों को एक साथ खुश करना है तो गौभक्ति-गौसेवा से बढ़कर कोई अनुष्ठान नहीं है. गौ माता को बस एक ग्रास खिला दो, तो वह सभी देवी-देवताओं तक अपने आप ही पहुंच जाता है.

भविष्य पुराण के अनुसार गौमाता कि पृष्ठदेश में ब्रह्म का वास है, गले में विष्णु का, मुख में रुद्र का, मध्य में समस्त देवताओं और रोमकूपों में महर्षिगण, पूंछ में अनंत नाग, खूरों में समस्त पर्वत, गौमूत्र में गंगादि नदियां, गौमय में लक्ष्मी और नेत्रों में सूर्य-चन्द्र विराजित हैं. इसीलिए बछ बारस या गोवत्स द्वादशी के दिन महिलाएं अपने बेटे की सलामती, लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए यह पर्व मनाती है.

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बछ बारस व्रत विधि – Bach Baras Vrat Vidhi

  • यह निराहार व्रत है. इसमें गाय और बछड़े की चंदन अक्षत, धूप, दीप नैवैद्य आदि से विधिवत पूजा की जाती हैं.
  • पूजा में धान या चावल का इस्तेमाल गलती से भी ना करें. पूजन के लिए आप काकून के चावल का इस्तेमाल कर सकते हैं.
  • व्रत करने वाली महिलाएं गोवत्स द्वादशी के दिन गेहूं, चावल आदि जैसे अनाज नहीं खा सकतीं. साथ में उनका दूध या दूध से बनी चीजें खाना भी वर्जित होता है.
  • यह व्रत कार्तिक, माघ व वैशाख और श्रावण महीनों की कृष्ण द्वादशी को होता है. कार्तिक में वत्स वंश की पूजा का विधान है. इस दिन के लिए मूंग, मोठ तथा बाजरा अंकुरित करके मध्यान्ह के समय बछड़े को सजाने का विशेष विधान है.
  • व्रत करने वाले व्यक्ति को भी इस दिन उक्त अन्न ही खाने पड़ते हैं.

पूजन की सामग्री और पूजा की विधि – Bach Baras Pooja Vidhi 

पूजा के लिए भैंस का दूध और दही , भीगा हुआ चना और मोठ ले | मोठ-बाजरे में घी और चीनी मिलाये | गाय के रोली का टीका लगाकर चावल के स्थान पर बाजरा लगाये | बायने के लिए एक कटोरी में भीगा हुआ चना , मोठ ,बाजरा और रुपया रखे | इस दिन बछड़े वाले गाय की पूजा की जाती है यदि गाय की पूजा नही कर सकते तो एक पाटे पर मिटटी से बछबारस बनाते है और उसके बीच में एक गोल मिटटी की बावडी बनाते है | फिर उसको थोडा दूध दही से भर देते है | फिर सब चीजे चढाकर पूजा करते है | इसके बाद रोली ,दक्षिण चढाते है |स्वयम को तिलक निकालते है | हाथ में मोठ और बाजरे के दाने को लेकर कहानी सुनाते है | Bach Baras बछबारस के चित्र की पूजा भी की जा सकती है | यह पूजा गोधुली बेला में की जाती है, जब सूर्य देवता पूरी तरह ना निकले हों.

बछ बारस की कहानी – Bach Baras ki Kahani

कई साल पुरानी बात है। पहले एक साहूकार था। इसके सात बेटे और कई पोते थे। साहूकार ने गांव में एक जोहड़ बनया लेकिन, उसमें कई साल तक पानी नहीं आया। वह चिन्ता में रहने लगा। उसने गांव के पंडित जी से इसका उपाय पूछा तो पंडितजी ने बताया कि बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देने के बाद यह जोहड़ भर जाएगा। साहूकार ने एक दिन अपनी बड़ी बहु को पीहर भेज दिया और पीछे से बड़े पोते की बलि दे दी। तभी गरजन के साथ बारिश हुई और जोहड़ में पानी आ गया।

इसके बाद बछ बारस आई तो लोग खुशी मनाते हुए जोहड़ पर पहुंचे और वहां पूजा करने लगे। साहूकार भी वहां जाते समय दासी से बोला कि गेहूंला न तो रांद लिए और धातुला न उछैल दिए। यानि गेहूं को पकाकर ले आना। दासी पूरी बात नहीं समझ पाई उसने गेहूंला नाम गाय के बछड़े को पका लिया। दूसरी तरफ साहूकार गाजै—बाजै के साथ जोहड़ पर पूजन करने के लिए पहुंच गया। साहूकार का बड़ा बेटा और बहू भी पूजा के लिए जोहड़ पर आ गए। पूछा के बाद बच्चे वहां खेलने लगे तो जोहड़ में से उसका वह पोता जिसकी बलि दी थी गोबर में लिपटा हुआ बाहर निकला और बोला मंै भी खेलूंगा। सास—बहू एक दूसरे को देखने लगी। सास ने बहु को पोते की बलि देने वाली सारी बात बताई। बछ बारस माता ने उनका पौता लौटा दिया।

खुशी—खुशी वे घर लौटे तो उन्हें बछड़े को काटकर पकाने की बात का पता चला। साहूकार और उसका परिवार दासी पर गुस्सा हुआ। उसने कहा कि एक पाप से उन्हें मुक्ति मिली है और तूने दूसरा पाप चढ़ा दिया। दु:खी साहूकार ने पक्के हुए बछड़े को मिट्टी में गाड़ दिया। शाम को गाये चर कर आई तो गाय अपने बछड़े को तलाशने लगी। गाय उसी स्थान पर पहुंच गई जहां बछड़े को गाड़ा था। वह उस जगह को खोदने लगी। तभी बछड़ा मिट्टी और गोबर में लिपटा हुआ बाहर निकल आया। तभी साहूकार को बताया कि बछड़ा आ गया है। उसने देखा कि बछड़ा अपनी माँ का दूध पीता हुआ उसकी तरफ आ रहा था। साहूकार ने गांव में ढिंढोरा पिटवाया कि बेटे के लिए बछ बारस मनाई जाएगी।

बछ बारस की पौराणिक कहानी – Bach Baras ki Katha

बछ बारस के संबंध में एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है। इसके मुताबिक प्राचीन समय में भारत में सुवर्णपुर नामक एक नगर था। वहां देवदानी नाम का राजा राज्य करता था। उसके पास एक गाय और एक भैंस थी। राजा के सीता और गीता नाम की दो रानियां थी। सीता को भैंस से बड़ा ही लगाव था और वह उसे अपनी सखी मानकर प्रेम करती थी। दूसरी रानी गीता गाय से सखी-सहेली के समान और बछड़े से पुत्र समान प्यार और व्यवहार करती थी। यह देखकर भैंस ने एक दिन रानी सीता से कहा- गाय-बछडा़ होने पर गीता रानी मुझसे ईष्र्या करती है। सीता ने कहा- ने अपनी भैंस को इस समस्या से निजात दिलाने का वादा किया।

सीता ने उसी दिन गाय के बछड़े को काट कर गेहूं के ढेर में दबा दिया। इस घटना के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं चलता। किंतु जब राजा भोजन करने बैठा तभी मांस और रक्त की वर्षा होने लगी। महल में चारों ओर रक्त तथा मांस दिखाई देने लगा। राजा की भोजन की थाली में भी मल-मूत्र आदि की बास आने लगी। यह सब देखकर राजा को बहुत चिंता हुई। तभी आकाशवाणी हुई- हे राजा! तेरी रानी ने गाय के बछड़े को काटकर गेहूं में दबा दिया है। इसी कारण यह सब हो रहा है। कल ‘गोवत्स द्वादशी’ है। इसलिए कल अपनी भैंस को नगर से बाहर निकाल कर गाय तथा बछड़े की पूजा करना। गाय का दूध तथा कटे फलों का भोजन में त्याग करना इससे आपकी रानी द्वारा किया गया पाप नष्ट हो जाएगा और बछडा़ भी जिंदा हो जाएगा। तभी से गोवत्स द्वादशी के दिन गाय-बछड़े की पूजा करने का महत्व माना गया है तथा गाय और बछड़ों की सेवा की जाती है।

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