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पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा और पूजा विधि की सम्पूर्ण जानकारी

पापमोचिनी एकादशी – Papmochani Ekadashi 

पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) पापों को नष्ट करने वाली एकादशी है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि पापमोचनी एकादशी व्रत (Papmochani Ekadashi Vrat) करने से व्रती के समस्त प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भक्तों को बड़े से बड़े यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। पापमोचिनी एकादशी का व्रत करने से सहस्त्र अर्थात् हजार गायों के दान का फल मिलता है। ब्रह्म ह्त्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं। इस एकादशी तिथि का बड़ा ही धार्मिक महत्व है और पौराणिक शास्त्रों में इसका वर्णन मिलता है।


पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा – Papmochani Ekadashi Vrat Katha

व्रत कथा के अनुसार चित्ररथ नामक वन में मेधावी ऋषि कठोर तप में लीन थे। उनके तप व पुण्यों के प्रभाव से देवराज इन्द्र चिंतित हो गए और उन्होंने ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु मंजुघोषा नामक अप्सरा को पृथ्वी पर भेजा। तप में विलीन मेधावी ऋषि ने जब अप्सरा को देखा तो वह उस पर मन्त्रमुग्ध हो गए और अपनी तपस्या छोड़ कर मंजुघोषा के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत करने लगे।

कुछ वर्षो के पश्चात मंजुघोषा ने ऋषि से वापस स्वर्ग जाने की बात कही। तब ऋषि बोध हुआ कि वे शिव भक्ति के मार्ग से हट गए और उन्हें स्वयं पर ग्लानि होने लगी। इसका एकमात्र कारण अप्सरा को मानकर मेधावी ऋषि ने मंजुधोषा को पिशाचिनी होने का शाप दिया। इस बात से मंजुघोषा को बहुत दुःख हुआ और उसने ऋषि से शाप-मुक्ति के लिए प्रार्थना करी।

क्रोध शांत होने पर ऋषि ने मंजुघोषा को पापमोचिनी एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने के लिए कहा। चूँकि मेधावी ऋषि ने भी शिव भक्ति को बीच राह में छोड़कर पाप कर दिया था, उन्होंने भी अप्सरा के साथ इस व्रत को विधि-विधान से किया और अपने पाप से मुक्त हुए।


पापमोचनी एकादशी व्रत विधि – Papmochani Ekadashi Vrat Vidhi

1. पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है।

2. व्रत दशमी तिथि से शुरु हो जाता है। उस दिन एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान श्री विष्णु की प्रार्थना करें।

3. एकादशी के दिन प्रातः काल स्नान करके व्रत का संकल्प करें। संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित विष्णु जी की पूजा करें।

4. पूजा के बाद भगवान के सामने बैठकर व्रत की कथा का पाठ करें और सुनें। इस दौरान ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जप निरंतर करते रहें।

5. एकादशी के दिन जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है, इसलिए रात को जागरण कर भजन कीर्तन करें।

6. द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें और व्रत खोल लें।

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