Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

अग्नि पुराण – Agni Puran

Uncategorized

अग्नि पुराण – Agni Puran In Hindi

अग्नि पुराण ज्ञान का विशाल भण्डार है। स्वयं अग्निदेव ने इसे महर्षि वसिष्ठ को सुनाते हुए कहा था –

आग्नेये हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्या: प्रदर्शिता:

अर्थात ‘अग्नि पुराण’ में सभी विद्याओं का वर्णन है। आकार में लघु होते हुए भी विद्याओं के प्रकाशन की दृष्टि से यह पुराणअपना विशिष्ट महत्त्व रखता है। इस पुराण में तीन सौ तिरासी (383) अध्याय हैं। गीता, अध्यात्म रामायण, महाभारत, हरिवंश पुराण आदि का परिचय इस पुराण में है। परा-अपरा विद्याओं का वर्णन भी इसमें प्राप्त होता है। मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएं भी इसमें दी गई हैं।

सृष्टि-वर्णन, सन्ध्या, स्नान, पूजा विधि, होम विधि, मुद्राओं के लक्षण, दीक्षा और अभिषेक विधि, निर्वाण-दीक्षा के संस्कार, देवालय निर्माण कला, शिलान्यास विधि, देव प्रतिमाओं के लक्षण, लिंग लक्षण तथा विग्रह प्राण-प्रतिष्ठा की विधि, वास्तु पूजा विधि, तत्त्व दीक्षा, खगोल शास्त्र, तीर्थ माहात्म्य, श्राद्ध कल्प, ज्योतिष शास्त्र, संग्राम विजय, वशीकरण विद्या, औषधि ज्ञान, वर्णाश्रम धर्म, मास व्रत, दान माहात्म्य राजधर्म, विविध स्वप्न वर्णन, शकुन-अपशकुन, रत्न परीक्षा, धनुर्वेद शिक्षा, व्यवहार कुशलता, उत्पात शान्ति विधि, अश्व चिकित्सा, सिद्धि मन्त्र, विविध काव्य लक्षण, व्याकरण और रस-अलंकार आदि के लक्षण, योग, ब्रह्मज्ञान, स्वर्ग-नरक वर्णन, अर्थ शास्त्र, न्याय, मीमांसा, सूर्य वंश तथा सोम वंश आदि का वर्णन इस पुराण में किया गया है।

वैष्णवों की पूजा-पद्धति और प्रतिमा आदि के लक्षणों का सांगोपांग वर्णन इस पुराण में वर्णित है। शिव और शक्ति की पूजा का पूरा विधान इसमें बताया गया है। वेदान्त के सभी विषयों को उत्तम रिति से इसमें समझा गया है। इसके अलावा जीवन के लिए उपयोगी सभी विधाओं की जानकारी इस पुराण में मिल जाती है।

अग्निदेव के मुख से कहे जाने के कारण ही इस पुराण का नाम ‘अग्नि पुराण’ पड़ा है। यह एक प्राचीन पुराण है। इसमें शिव, विष्णु और सूर्य की उपासना का वर्णन निष्पक्ष भाव से किया गया है। यही इसकी प्राचीनता को दर्शाता है। क्योंकि बाद में शैव और वैष्णव मतावलम्बियों में काफ़ी विरोध उत्पन्न हो गया था, जिसके कारण उनकी पूजा-अर्चना में उनका वर्चस्व बहुत-चढ़ाकर दिखाया जाने लगा था। एक-दूसरे के मतों की निन्दा की जाने लगी थी जबकि ‘अग्नि पुराण’ में इस प्रकार की कोई निन्दा उपलब्ध नहीं होती।

तीर्थों के वर्णन में शंकराचार्य द्वारा स्थापित चारों मठों- Badrinath Temple, Jagannath TempleDwarkapuri Temple  और Rameshwaram Temple  का उल्लेख इसमें नहीं है। इसके अलावा काशी के वर्णन में विश्वनाथ तथा दशाश्वमेघ घाट का वर्णन भी इसमें नहीं हैं यही बात इसकी प्राचीनता को दर्शाती है।

अग्नि पुराण विषय-सामग्री

विषय-सामग्री की दृष्टि से ‘अग्नि पुराण’ को भारतीय जीवन का विश्वकोश कहा जा सकता है पुराणों के पांचों लक्षणों- सर्ग, प्रतिसर्ग, राजवंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित आदि का वर्णन भी इस पुराण में प्राप्त होता है। किन्तु इसे यहाँ संक्षेप रूप में दिया गया है। इस पुराण का शेष कलेवर दैनिक जीवन की उपयोगी शिक्षाओं से ओतप्रोत है।

‘अग्नि पुराण’ में शरीर और आत्मा के स्वरूप को अलग-अलग समझाया गया है। इन्द्रियों को यंत्र मात्र माना गया है और देह के अंगों को आत्मा नहीं माना गया है। पुराणकार’ आत्मा’ को हृदय में स्थित मानता है। ब्रह्म से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जल और जल से भूमि होती है। इसके बाद सूक्ष्म शरीर और फिर स्थूल शरीर होता है।

‘अग्नि पुराण’ ज्ञान मार्ग को ही सत्य स्वीकार करता है। उसका कहना है कि ज्ञान से ही ‘ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है, कर्मकाण्ड से नहीं। ब्रह्म की परम ज्योति है जो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से भिन्न है। जरा, मरण, शोक, मोह, भूख-प्यास तथा स्वप्न-सुषुप्ति आदि से रहित है।

इस पुराण में ‘भगवान’ का प्रयोग लॉर्ड विष्णु  के लिए किया गया है। क्योंकि उसमें ‘भ’ से भर्त्ता के गुण विद्यमान हैं और ‘ग’ से गमन अर्थात प्रगति अथवा सृजनकर्त्ता का बोध होता है। विष्णु को सृष्टि का पालनकर्त्ता और श्रीवृद्धि का देवता माना गया है। ‘भग’ का पूरा अर्थ ऐश्वर्य, श्री, वीर्य, शक्ति, ज्ञान, वैराग्य और यश होता है जो कि विष्णु में निहित है। ‘वान’ का प्रयोग प्रत्यय के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ धारण करने वाला अथवा चलाने वाला होता है। अर्थात जो सृजनकर्ता पालन करता हो, श्रीवृद्धि करने वाला हो, यश और ऐश्वर्य देने वाला हो; वह ‘भगवान’ है। विष्णु में ये सभी गुण विद्यमान हैं।

‘अग्नि पुराण’ ने मन की गति को ब्रह्म में लीन होना ही योग माना है। जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्मा और परमात्मा का संयोग ही होना चाहिए। इसी प्रकार वर्णाश्रम धर्म की व्याख्या भी इस पुराण में बहुत अच्छी तरह की गई है। ब्रह्मचारी को हिंसा और निन्दा से दूर रहना चाहिए। गृहस्थाश्रम के सहारे ही अन्य तीन आश्रम अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। इसलिए गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। वर्ण की दृष्टि से किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। वर्ण कर्म से बने हैं, जन्म से नहीं।

अग्नि पुराण में समता की भावना

इस पुराण में देव पूजा में समता की भावना धारण करने पर बल दिया गया है और अपराध का प्रायश्चित्त सच्चे मन से करने पर ज़ोर दिया गया है। स्त्रियों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाते हुए पुराणकार कहता है-

नष्टे मृते प्रव्रजिते क्लीवे च पतिते पतौ।
पंचत्स्वापस्तु नारीणां पतिरन्यों विधीयते ॥

  • अर्थात पति के नष्ट हो जाने पर, मर जाने पर, संन्यास ग्रहण कर लेने पर, नपुंसक होने पर अथवा पतित होने पर इन पांच अवस्थाओं में स्त्री को दूसरा पति कर लेना चाहिए।
  • इसी प्रकार यदि किसी स्त्री के साथ कोई व्यक्ति बलात्कार कर बैठता है तो उस स्त्री को अगले रजोदर्शन तक त्याज्य मानना चाहिए। रजस्वला हो जाने के उपरान्त वह पुन: शुद्ध हो जाती है। ऐसा मानकर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए।
  • राजधर्म की व्याख्या करते हुए पुराणकार कहता है कि राजा को प्रजा की रक्षा उसी प्रकार करनी चाहिए, जिस प्रकार कोई गर्भिणी-स्त्री अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की करती है।
  • चिकित्सा शास्त्र की व्याख्या में पुराण कहता है कि समस्त रोग अत्यधिक भोजन ग्रहण करने से होते हैं या बिलकुल भी भोजन न करने से। इसलिए सदैव सन्तुलित आहार लेना चाहिए। अधिकांशत: जड़ी-बूटियों द्वारा ही इसमें रोगों के शमन का उपचार बताया गया है।

यह भी जरूर पढ़े 

‘अग्नि पुराण’ में भूगोल सम्बन्धी ज्ञान, व्रत-उपवास-तीर्थों का ज्ञान, दान-दक्षिणा आदि का महत्त्व, वास्तु-शास्त्र और ज्योतिष आदि का वर्णन अन्य पुराणों की ही भांति है। वस्तुत: तत्कालीन समाज की आवश्यकताओं के अनुसार ही इसमें नित्य जीवन की उपयोगी जानकारी दी गई है।

इस पुराण में व्रतों का काफ़ी विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है। व्रतों की सूची तिथि, वार, मास, ऋतु आदि के अनुसार अलग-अलग बनाई गई है। पुराणकार ने व्रतों को जीवन के विकास का पथ माना है। अन्य पुराणों में व्रतों को दान-दक्षिणा का साधना-मात्र मानकर मोह द्वारा उत्पन्न आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बताया गया है। लेकिन ‘अग्नि पुराण’ में व्रतों को जीवन के उत्थान के लिए संकल्प का स्परूप माना गया है। साथ ही व्रत-उपवास के समय जीवन में अत्यन्त सादगी और धार्मिक आचार-विचार का पालन करने पर भी बल दिया गया है।

‘अग्नि पुराण’ में स्वप्न विचार और शकुन-अपशकुन पर भी विचार किया गया है। पुरुष और स्त्री के लक्षणों की चर्चा इस पुराण का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंश है। सर्पों के बारे में भी विस्तृत जानकारी इस पुराण में उपलब्ध होती है। मन्त्र शक्ति का महत्त्व भी इसमें स्वीकार किया गया है।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00