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गंधमादन पर्वत – कलयुग में जहा हनुमान जी स्वयं विराजते है

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गंधमादन पर्वत – Gandhmadan Parvat

श्री हनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि – ‘चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।

इस चौपाई में साफ संकेत है कि हनुमान जी ऐसे देवता है, जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहेंगे। हनुमानजी से जुड़ी यही विलक्षण और अद्भुत बात उनके प्रति आस्था और श्रद्धा गहरी करती है।

यत्रयत्र रघुनाथ कीर्तन तत्र कृत मस्तकान्जलि।

वाष्प वारि परिपूर्ण लोचनं मारुतिं नमत राक्षसान्तक॥

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अर्थात: कलियुग में जहां-जहां भगवान श्रीराम की कथा-कीर्तन इत्यादि होते हैं, वहां हनुमानजी गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं। सीताजी के वचनों के अनुसार- अजरअमर गुन निधि सुत होऊ।। करहु बहुत रघुनायक छोऊ॥

तुलसीदास जी द्वारा रचित राम चरित्र मानस में लिखते हैं कलियुग में भी हनुमान जी जीवंत रहेंगे और उनकी कृपा से ही उन्हें श्रीराम और लक्ष्मण जी के साक्षात दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इन्हें सीताराम जी से आशीर्वाद स्वरूप अजर अमर होने का वर भी प्राप्त है।

हिंदु शास्त्रों के में भी आता है कि

  अश्वत्थामा बलिर व्यासः हनुमंथरः विभीषणः।

कृबा परशुराम सप्तैतेय चिरंजीविनः।।

अर्थात सात ऐसे चिरंजीवी महापुरूष हैं जो सदा के लिए अजर-अमर हैं और इनके नाम को सच्चे दिल से याद करने मात्र से भाग्य और आयु में वृद्धि होती है।

जब श्रीराम भूलोक से बैकुण्ठ को चले गए तो हनुमान जी ने अपना निवास पवित्र और ईश्वरीय कृपा से युक्त स्थान गंधमादन पर्वत को बनाया और आज भी वह वहीं निवास करते हैं। इस बात की पुष्टि श्रीमद् भगावत् पुराण में भी की गई है। भगवान हनुमान जी ने इसी पवित्र स्थल को अपना निवास बनाया और कहते हैं कि समय-समय पर हनुमान जी यहाँ से नीचे भी आते हैं और अपने प्यारे भक्तों को दर्शन भी देते हैं।

हनुमान चालीसा में तुलसीदास जी बताते हैं कि तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै”,

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अर्थात जो भी व्यक्ति भगवान श्री हनुमान को याद करता है, इनका भजन करता है वह भगवान श्री राम को तो प्राप्त करता ही है साथ में उस व्यक्ति के जन्म-जन्म के दुःख भी खत्म हो जाते हैं।

पुराणों के अनुसार गंधमादन पर्वत भगवान शिव के निवास कैलाश पर्वत के उत्तर में अवस्थित है। इस पर्वत पर महर्षि कश्यप ने तप किया था। हनुमान जी के अतिरिक्त यहां गंधर्व, किन्नरों, अप्सराओं और सिद्घ ऋषियों का भी निवास है। माना जाता है की इस पहाड़ की चोटी पर किसी वाहन द्वारा जाना असंभव है। सदियों पूर्व यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था लेकिन वर्तमान में यह क्षेत्र तिब्बत की सीमा में है।

कहाँ है  गंधमादन पर्वत ?

हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। पुराणों में जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

गंधमादन पर्वत का उल्लेख कई पौराणिक हिन्दू धर्मग्रंथों में हुआ है। महाभारत की पुरा-कथाओं में भी गंधमादन पर्वत का वर्णन प्रमुखता से आता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि यहाँ देवता रमण करते हैं। पर्वतों में श्रेष्ठ इस पर्वत पर कश्यप ऋषि ने भी तपस्या की थी। गंधमादन पर्वत के शिखर पर किसी भी वाहन से नहीं पहुँचा जा सकता। यहाँ पापी आत्मा नहीं पहुँच पाती। पापियों को विषैले सरीसृप, कीड़े-मकौड़े डस लेते हैं।

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  • अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पाण्डव गंधमादन के पास पहुँचे थे।
  • कुबेर के राजप्रासाद में गंधमादन की उपस्थिति देखी जाती है।
  • इंद्र लोक में जाते समय अर्जुन को हिमवंत और गंधमादन को पार करते दिखाया गया है।
  • गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गन्धर्व, अप्सराएँ और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहाँ निर्भीक विचरण करते हैं।
  • इसी पर्वत पर भीमसेन और श्रीराम के भक्त हनुमान का मिलन हुआ था।
  • भीमसेन ने यहाँ क्रोधवश्वत को पराजित किया था।
  • हिमवत पर गंधमादन के पास वृषपर्वन का आश्रम स्थित था।
  • यहाँ नित्य सिद्ध, चारण, विद्याधर, किन्नर आदि परिभ्रमण करते दृष्टिगोचर होते हैं।
  • मार्कण्डेय ऋषि ने नारायण के उदर में गंधमादन के दर्शन किए थे।

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  • स्वर्ण नगरी लंका को खो देने पर कुबेर ने गंधमादन पर ही निवास किया था।
  • गंधमादन शिखर पर गुह्यों के स्वामी, कुबेर, राक्षस और अप्सराएँ आनन्द पूर्वक रहते हैं।
  • गंधमादन के पास कई छोटी स्वर्ण, मणि, मोतियों सी चमकती पर्वत मालाएँ हैं।
  • माना जाता है कि इस पर्वत पर मानव जीवन की अवधि 11,000 वर्ष है।
  • यहाँ आदमी सर्वानंद प्राप्त करता है, स्त्रियाँ कमलवत् लावण्यमयी हैं।
  • गंधमादन पर देवता और ऋषिगण आदि पितामह ब्रह्मा की साधना में साधनारत रहते हैं।
  • यह देव पर्वत शिखर अमृत और अक्षय आनन्द अनुभूति का महास्त्रोत है।

कैसे पहुंचे गंधमादन पर्वत ?

यहाँ जाने के तीन प्रमुख रास्ते बतायें जाते हैं। नेपाल के रास्ते मानसरोवर से आगे और दूसरा भूटान की पहाड़ियों से आगे और तीसरा अरुणाचल के रास्ते चीन होते हुए। गंधमादन पर्वत पर इन तीन रास्तों से पहुंचा जा सकता है. गौरतलब है कि एक गंधमादन पर्वत उड़ीसा में भी बताया जाता है लेकिन हम उस पर्वत की बात नहीं कर रहे हैं।

यदि आप भी यहाँ जाने की सोच रहे हैं तो ध्यान रखें कि यह स्थान बहुत अधिक सुरक्षित भी नहीं है।  कुछ संतजन बताते हैं कि यहाँ जाने के लिए व्यक्ति को छल, कपट और सभी पापों से मुक्त होना पड़ता है।

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