अमरनाथ – Amarnath
अमरनाथ यात्रा भारत के चार प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक है, और श्रद्धालुओं का झुंड हर साल दक्षिण कश्मीर हिमालय से होकर श्री अमरनाथ जी की पवित्र गुफा तीर्थ तक पहुंचता है। मंदिर को जुलाई से अगस्त के महीने में केवल ग्रीष्मकाल के दौरान भक्तों के लिए खोला जाता है। लोग लिंगम के आकार में बनने वाली भगवान शिव की बर्फ की प्रतिमा को देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं। भारत में हिंदू धर्म के लोग इस धार्मिक यात्रा को अपने जीवन के प्रमुख कार्यों में से एक मानते हैं जो उन्हें स्वर्ग का रास्ता दिखा सकता है। हर वर्ष यात्रा 2 महीने के लिए होती है। प्रति दिन 1500 तीर्थयात्रियों को अनुमति दी जाती है और उनकी आयु 14 से 74 वर्ष की होनी चाहिए।
अमरनाथ कहाँ है – Amarnath Location
अमरनाथ हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। यह जम्मू – कश्मीर राज्य के श्रीनगर शहर के उत्तर – पूर्व में 135 सहस्त्र मीटर दूर समुद्र तल से 3888 मीटर (13,500 फुट) की ऊंचाई पर स्थित है। बर्फ से प्राकृतिक रूप से बनने वाले भगवान शिव के लिंगम की पवित्र झलक छोटी अवधि के लिए केवल जुलाई से अगस्त तक ही होती है। दर्शन करते समय दृश्य बिल्कुल अविश्वसनीय होता है। गुफा के ऊपर से, पानी धीरे-धीरे नीचे गिरता है जो बर्फ बनाने के लिए जमा होता है, जो एक ठोस आधार बनाने के बाद शिव लिंगम का आकार लेना शुरू कर देता है और यह पूर्णिमा पर पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है।
अमरनाथ का इतिहास – Amarnath History
अमरनाथ नाम के दो खंड होते हैं जिनमें ‘अमर’ का अर्थ अमर और ‘नाथ’ का अर्थ है प्रभु। इसी गुफा में माता पार्वती को भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी, भगवान शिव के हिरण की चमड़ी के नीचे एक कबूतर का एक अंडा छिपा था, जो इस घटना का एक असंगत साक्षी था और जब अंडा टूट गया, तो उसमें से दो कबूतर निकले। जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अमरता प्राप्त की थी और यदि आज भी श्रद्धालुओं को वह कबूतरों का जोड़ा दिखाई दे जाता, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं, तो उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।
कुछ विद्वानों का मत है कि भगवान शंकर जब पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा था। ये तमाम स्थल अब भी अमरनाथ यात्रा में आते हैं।
अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था। कहानी में कहा गया है कि जब उसका झुंड गुफा के अंदर भटक गया और उसने उसमें प्रवेश किया, तो एक ऋषि ने उसे अंगारों का एक थैला दिया, जो घर आने पर सोने के सिक्कों में बदल गया। बाद में जब वह ऋषि को धन्यवाद देने के लिए गुफाओं की तरफ दौड़ा, तो ऋषि का पता नहीं चला और उन्होंने वहां बर्फ के लिंग के दर्शन हुए और एक बार फिर तीर्थयात्रियों को दर्शन लाभ के लिए इसे दुनिया के सामने प्रकट किया।आज भी चौथाई चढ़ावा उस मुसलमान गडरिए के वंशजों को मिलता है। आश्चर्य की बात यह है कि अमरनाथ गुफा एक नहीं है। अमरावती नदी के पथ पर आगे बढ़ते समय और भी कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। वे सभी बर्फ से ढकी हैं।
अमरनाथ गुफा – Amarnath Gufa
यह गुफा लगभग 150 फीट क्षेत्र में फैली है और गुफा 11 मीटर ऊंची है तथा इसमें हज़ारों श्रद्धालु समा सकते हैं। प्रकृति का अद्भुत वैभव अमरनाथ गुफा, भगवान शिव के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। पुराण के अनुसार काशी में दर्शन से दस गुना, प्रयाग से सौ गुना और नैमिषारण्य से हजार गुना पुण्य देने वाले श्री बाबा अमरनाथ के दर्शन हैं। अमरनाथ को तीर्थों का तीर्थ कहा जाता है। एक पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान शिव ने पार्वती को अमरत्व का रहस्य (जीवन और मृत्यु के रहस्य) बताने के लिए इस गुफा को चुना था। मृत्यु को जीतने वाले मृत्युंजय शिव अमर हैं, इसलिए ‘अमरेश्वर’ भी कहलाते हैं। जनसाधारण ‘अमरेश्वर’ को ही अमरनाथ कहकर पुकारते हैं।
शिवलिंग – Amarnath Shivling
यहाँ की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ़ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इस ‘स्वयंभू हिमानी शिवलिंग’ भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहाँ आते हैं। गुफा की परिधि लगभग डेढ़ सौ फुट है और इसमें ऊपर से बर्फ़ के पानी की बूंदे जगह – जगह टपकती रहती है। यही पर एक ऐसी जगह है, जिसमें टपकने वाली हिम बूंदों से लगभग 12-18 फुट लंबा शिवलिंग बनता है। यह बूंदे इतनी ठंडी होती है कि नीचे गिरते ही बर्फ़ का रूप लेकर ठोस हो जाती है। चन्द्रमा के घटने – बढ़ने के साथ – साथ इस बर्फ़ का आकार भी घटता – बढ़ता रहता है। श्रावण पूर्णिमा को यह अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक धीरे – धीरे छोटा होता जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ़ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ़ ही होती है जो हाथ में लेते ही भुरभुरा जाए। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड है।
गुफा में अमरकुंड का जल प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है। गुफा में टपकता बूंद-बूंद जल भक्तों के लिए शिव का आशीर्वाद होता है। इस हिम शिवलिंग को लेकर हर एक के मन में जिज्ञासावश प्रश्र उठता है कि आखिर इतनी ऊंचाई पर स्थित गुफा में इतना ऊंचा बर्फ़ का शिवलिंग कैसे बनता है। जिन प्राकृतिक स्थितियों में इस शिवलिंग का निर्माण होता है वह विज्ञान के तथ्यों से विपरीत है। यही बात सबसे ज़्यादा अचंभित करती है। विज्ञान के अनुसार बर्फ़ को जमने के लिए क़रीब शून्य डिग्री तापमान जरुरी है।
किंतु अमरनाथ यात्रा हर साल जून – जुलाई में शुरू होती है। तब इतना कम तापमान संभव नहीं होता। इस बारे में विज्ञान के तर्क है कि अमरनाथ गुफा के आसपास और उसकी दीवारों में मौजूद दरारे या छोटे-छोटे छिद्रों में से शीतल हवा की आवाज़ाही होती है। इससे गुफा में और उसके आस-पास बर्फ़ जमकर लिंग का आकार ले लेती है। किंतु इस तथ्य की कोई पुष्टि नहीं हुई है।बर्फ़ से बनी शिवलिंग को लेकर एक मान्यता यह भी है कि इसकी ऊंचाई चंद्रमा की कलाओं के साथ घटती – बढ़ती है।
अमरनाथ यात्रा – Amarnath Yatra
अमर नाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलमान और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुँचें, यहाँ से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। पहलगाम से जानेवाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। बलटाल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल १४ किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। इस मार्ग से जाने वाले लोग अपने जोखिम पर यात्रा करते है। रास्ते में किसी अनहोनी के लिए भारत सरकार जिम्मेदारी नहीं लेती है।
अमरनाथ जाने का मार्ग – Amarnath Route
amarnath yatra route map
पहलगाम से अमरनाथ – Amarnath Pahalgam
पहलगाम जम्मू से ३१५ किलोमीटर की दूरी पर है। यह विख्यात पर्यटन स्थल भी है और यहाँ का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। पहलगाम तक जाने के लिए जम्मू-कश्मीर पर्यटन केंद्र से सरकारी बस उपलब्ध रहती है। पहलगाम में गैर सरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। तीर्थयात्रियों की पैदल यात्रा यहीं से आरंभ होती है।
पहलगाम के बाद पहला पड़ाव चंदनबाड़ी है, जो पहलगाम से आठ किलोमीटर की दूरी पर है। पहली रात तीर्थयात्री यहीं बिताते हैं। यहाँ रात्रि निवास के लिए कैंप लगाए जाते हैं। इसके ठीक दूसरे दिन पिस्सु घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सु घाटी पर देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई जिसमें राक्षसों की हार हुई। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यह यात्रा ज्यादा कठिन नहीं है। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ का यह पुल सलामत रहता है।
चंदनबाड़ी से १४ किलोमीटर दूर शेषनाग में अगला पड़ाव है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और खतरनाक है। यहीं पर पिस्सू घाटी के दर्शन होते हैं। अमरनाथ यात्रा में पिस्सू घाटी काफी जोखिम भरा स्थल है। पिस्सू घाटी समुद्रतल से ११,१२० फुट की ऊँचाई पर है। यात्री शेषनाग पहुँच कर ताजादम होते हैं। यहाँ पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इस झील में झांककर यह भ्रम हो उठता है कि कहीं आसमान तो इस झील में नहीं उतर आया। यह झील करीब डेढ़ किलोमीटर लम्बाई में फैली है। किंवदंतियों के मुताबिक शेषनाग झील में शेषनाग का वास है और चौबीस घंटों के अंदर शेषनाग एक बार झील के बाहर दर्शन देते हैं, लेकिन यह दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होते हैं। तीर्थयात्री यहाँ रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
शेषनाग से पंचतरणी आठ मील के फासले पर है। मार्ग में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे को पार करना पड़ता हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊँचाई क्रमश: १३,५०० फुट व १४,५०० फुट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी तक का सारा रास्ता उतराई का है। यहाँ पांच छोटी-छोटी सरिताएँ बहने के कारण ही इस स्थल का नाम पंचतरणी पड़ा है। यह स्थान चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊँचाई की वजह से ठंड भी ज्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहाँ सुरक्षा के इंतजाम करने पड़ते हैं।
अमरनाथ की गुफा यहाँ से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती हैं और रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नजदीक पहुँच कर पड़ाव डाल रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग तक वापस पहुँच जाते हैं। यह रास्ता काफी कठिन है, लेकिन अमरनाथ की पवित्र गुफा में पहुँचते ही सफर की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
बलटाल से अमरनाथ – Amarnath Baltal
जम्मू से बलटाल की दूरी ४०० किलोमीटर है। जम्मू से उधमपुर के रास्ते बलटाल के लिए जम्मू कश्मीर पर्यटक स्वागत केंद्र की बसें आसानी से मिल जाती हैं। बलटाल कैंप से तीर्थयात्री एक दिन में अमरनाथ गुफा की यात्रा कर वापस कैंप लौट सकते हैं।
अमरनाथ दर्शन का समय – Amarnath Darshan Time
All days of the week
4:00 AM – 11:00 PM
अमरनाथ मंदिर की गुफा जुलाई-अगस्त (व्यास पूर्णिमा से श्रावण पूर्णिमा) के महीने में लोगों के लिए खुली रहती है।
अमरनाथ दर्शन – Amarnath Darshan
कैसे पहुंचें अमरनाथ – How To Reach Amarnath
अमरनाथ से निकटतम हवाई अड्डा – Nearest Airport To Amarnath
अमरनाथ का निकटतम हवाई अड्डा श्रीनगर हवाई अड्डा है। यात्रा पहलगाम से शुरू होती है जो हवाई अड्डे से 2 घंटे की दुरी पर है। पहलगाम के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू तवी रेलवे स्टेशन बना हुआ है। वहां से आप हेलीकॉप्टर से, पैदल या टट्टू की सवारी से अमरनाथ पहुंच सकते हैं।
अमरनाथ यात्रा हेलीकॉप्टर से – Amarnath Yatra by Helicopter
हेलीकाप्टर यात्रा, अमरनाथ दर्शन को कठिन यात्रा से आसान बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। टिकट्स लेकर तीर्थयात्रियों को एक हेलीकॉप्टर प्रदान हैं जो बालटाल से रवाना किया जाते है। हेलीकॉप्टर उन्हें पंचतरणी ले जाता है, जहां से भक्तों को पवित्र गुफा तक पहुंचने के लिए 6 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। एक बार पहुंचने के बाद, देवी को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनका आशीर्वाद लें। वापसी की यात्रा पर, श्रद्धालु वापस पंचतरणी जाते हैं और वहां से बालटाल लौटने के लिए हेलीकॉप्टर पर सवार होते हैं। बालटाल से,आपको सोनमर्ग ले जाते हैं, जहां आप प्रकृति के कुछ बेहतरीन चमत्कार देख सकते हैं। अंत में, आपको श्रीनगर छोड़ देते है।
अमरनाथ हेलीकॉप्टर टिकट की कीमत – Amarnath Helicopter Tickets Price
यदि आप नेलांगरथ से पंचतरणी तक बुक करते हैं तो हेलीकॉप्टर की कीमत एक तरफ के लिए लगभग 1800 और दोनों तरफ के लिए लगभग 3600 है। यदि आप पहलगाम से लेते हैं तो हेलीकॉप्टर की कीमत 3100प्रति यात्री से पंचतरणी तक प्रति यात्री एक तरफ है, यदि आप दोनों तरफ लेते हैं तो rs 6200 प्रति यात्री है।
अमरनाथ से निकटतम रेलवे स्टेशन – Nearest Railway Station To Amarnath
अमरनाथ के लिए कोई सीधी ट्रेन नहीं हैं। निकटतम स्टेशन जम्मू है, जो अमरनाथ से 178 किलोमीटर की दूरी पर है। जम्मू से, कोई भी बालटाल या पहलगाम तक पहुंचने के लिए कैब किराए पर ले सकता है। बालटाल से, अमरनाथ पहुंचने के लिए 1-2 दिन का ट्रेक (15 किमी) है और पहलगाम मार्ग अपेक्षाकृत लंबा है और लगभग 3-5 दिन (36-48 किमी) का समय लगता है।
अमरनाथ यात्रा सड़क मार्ग से – Amarnath Yatra by Road
अमरनाथ बहुत विश्वासघाती इलाके में है, इसलिए यह सड़क मार्ग से बहुत अच्छी तरह से जुड़ा हुआ नहीं है। कोई जम्मू जा सकता है और फिर श्रीनगर और फिर बालटाल या पहलगाम तक जाने के लिए सड़क मार्ग से जाना पड़ता है। बालटाल अमरनाथ के रास्ते में सबसे छोटा ट्रेक है, लेकिन थोड़ा मुश्किल है। पहलगाम ट्रेक अपेक्षाकृत अधिक सुरक्षित है।
अमरनाथ यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय है – Best Time To Visit Amarnath
अमरनाथ जाने का सबसे अच्छा समय मई से सितंबर के बीच है। गर्मियों के दौरान, मौसम काफी अच्छा होता है। इस समय 9-34 डिग्री के बीच है, और अमरनाथ के आसपास हरियाली का आनंद लेने के लिए यह समय अच्छा रहता है।