मिथुन लग्न वाले जातको के गुण
मिथुन लग्न वाले जातक स्वभाव से साहसी एवं पराक्रमी होते हैं। इस राशि पर बुध का प्रभाव होने से आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति होते हैं। इस लग्न में जन्म लेने के कारण आप दयालु, बुद्धिमान और वाक्पटु होंगे तथा कलात्मक कार्यों की तरफ आपका ध्यान होगा। आपकी प्रतिभा दिन-प्रतिदिन निखरती ही जाती है और सभी आपके काम से प्रभावित रहते हैं। इस राशि का वायु तत्व होने से आपका मस्तिष्क सदा चलायमान रहता है। आप नित नई योजनाओ को बनाने में व्यस्त रहते हैं एवं आप कल्पनाओ की दुनिया में भी खोये रह सकते हैं।
बुध को सभी ग्रहों में राजकुमार की उपाधि प्रदान की गई है। इसलिए बुध का प्रभाव होने से आप सदा स्वयं को जवाँ एवं ऊर्जावान मानेगें। आपको गीत, संगीत, नृत्य व कला में रुचि हो सकती है। आपको लेखन आदि कामों में भी दिलचस्पी हो सकती है। आप हास्यरस प्रेमी व मनोविनोद में रुचि रखने वाले व्यक्ति होते हैं। आप अधिक समय तक गंभीर बने नही रह सकते हैं। आपको हंसी मजाक करना अच्छा लगता है। आप खुले विचारों वाले और तार्किक होंगे तथा अपनी बुद्धिमानी एवं कूटनितियों से अपने विरोधियों को पराजित करेंगे।
आप मानवीय हृदय वाले, दूसरों के बारे में सोचने वाले, क्षमाशील तथा न्यायप्रिय होंगे। विनम्रता और भाषणकला में दक्षता भी आपके गुण होंगे। आपमें ज्ञान और सूचनाओं की जानकारी प्राप्त करने की जिज्ञासा होगी और नये तकनीकी विकास में आपकी रूचि होगी। आप खोजी प्रवृति वाले होंगे और चीजों को उनकी गहराई में जाकर पता करेंगे। शिक्षा एवं बौद्धिक कार्यों में आपकी संलग्नता आपको प्रगति के मार्ग पर ले जायेगी। इन सभी गुणों के होने के बावजूद आप धैर्यवान नहीं हो सकते हैं और परिणाम की प्राप्ति में शीघ्रता कर सकते हैं। आपका दिमाग स्थिर नहीं होगा और समय-समय पर आपके इरादे बदलते रहेंगे।
विषयसूची
मिथुन लग्न वाले जातको के गुणमिथुन लग्न में ग्रहों के प्रभावमिथुन लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में मंगल ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में बुध ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में शनि ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में राहु ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में केतु ग्रह का प्रभावमिथुन लग्न में ग्रहों की स्तिथिमिथुन लग्न में कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)मिथुन लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)मिथुन लग्न में सम ग्रहमिथुन लग्न लग्न में ग्रहों का फलमिथुन लग्न में बुध ग्रह का फलमिथुन लग्न में चंद्र ग्रह का फलमिथुन लग्न में सूर्य ग्रह का फलमिथुन लग्न में शुक्र ग्रह का फलमिथुन लग्न में मंगल ग्रह का फलमिथुन लग्न में बृहस्पति ग्रह का फलमिथुन लग्न में शनि ग्रह का फलमिथुन लग्न में राहु ग्रह का फलमिथुन लग्न में केतु ग्रह का फलमिथुन लग्न में धनयोगमिथुन लग्न में रत्न मिथुन लग्न में पन्ना रत्नमिथुन लग्न में हीरा रत्नमिथुन लग्न में नीलम रत्न
मिथुन लग्न में ग्रहों के प्रभाव
मिथुन लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव
मिथुन लग्न की कुंडली में मन का स्वामी चंद्र द्वितीय यानि धन भाव का स्वामी होता है। द्वितियेश होकर यह जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे संदर्भों का प्रतिनिधि होता है। मिथुन लग्न के जातकों के मन को पूर्ण तौर पर संतुष्ट करने वाले ये सारे संदर्भ ही होते है, यदि जन्मकुंडली या दशाकाल में चंद्र बलवान और शुभ हो तो जातक को इन संदर्भों के द्वारा संपूर्ण संतुष्टि मिलती है। पाप प्रभाव गत या कमजोर चंद्र के होने से वर्णित विषयों में न्यूनता एवम असंतुष्टि प्राप्त होती है।
मिथुन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव
समस्त जगत में प्रकाश बिखेरने वाला सूर्य तृतीय भाव का अधिपति होता है नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी यश पताका फ़हराने के लिये मिथुन लग्न के जातक उपरोक्त संदर्भों के प्रचार प्रसार एवम मजबूत बनाने में प्रयास रत रहते हैं। जन्मकुंडली या दशाकाल में सूर्य के बलवान और शुभ प्रभाव में रहने पर इन्हें इन विषयों का शुभ फ़ल प्राप्त होता है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव गत सूर्य के कमजोर रहने पर उपरोक्त संदर्भों में इन्हें हानि उठानी पडती है।
मिथुन लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव
मंगल षष्ठ और एकादश भाव का स्वामी होता है।
षष्ठेश होने के नाते यह रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी और एकादशेश होने के नाते यह लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी जैसे संदर्भों का स्वामी होता है। मंगल का बलवान और शुभ प्रभावगत होना उपरोक्त विषयों में मिथुन लग्न के जातकों को शुभ फ़लदायक होता है एवम निर्बल एवम पाप प्रभावगत मंगल अशुभ फ़लदायी होता है।
मिथुन लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव
शुक्र पंचम और द्वादश भाव का स्वामी होता है।
पंचमेष होने के नाते बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार जैसे विषयों और द्वादशेश होने के कारण निद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, और व्यर्थ भ्रमण जैसे विषयों का प्रतिनिधि ग्रह होता है। जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में अगर शुक्र बलवान और शुभ प्रभाव में हो तो अति शुभ फ़ल प्रदान करता है। अगर कमजोर और पाप प्रभावगत हो तो इन फ़लों में अशुभ फ़ल ही मिलते हैं।
मिथुन लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव
मिथुन लग्न में बुध प्रथम भाव का स्वामी होकर लग्नेश होता है जो कि रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकॄति और संपूर्ण व्यक्तित्व जैसे अति महत्व पूर्ण विषयों का प्रतिनिधि होता है। बलवान बुध की स्थिति इन विषयों में अति शुभ फ़ल प्रदान करती है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव गत बुध होने से इन संदर्भों मे अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
मिथुन लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव
मिथुन लग्न में बृहस्पति सप्तम भाव का स्वामी हो कर लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मॄत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार, अग्निकांड जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है। शुभ और बलवान वृहस्पति इन विषयों में अति शुभ फ़ल देता है जबकि कमजोर और पाप प्रभाव गत गुरू इन फ़लों में अशुभता देता है।
मिथुन लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव
मिथुन लग्न में शनि अष्टम और नवम भाव का स्वामी होता है अष्टमेश होने से यह व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख एवम नवमेष होने से यह धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल जैसे विषयों का प्रतिनिधित्व करता है। बलवान और शुभ प्रभाव वाला शनि बहुत शुभ फ़ल प्रदान करता है जबकि कमजोर या पाप प्रभाव गत शनि उपरोक्त वर्णित विषयों में अशुभ फ़ल प्रदान करता है।
मिथुन लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव
राहु इस लग्न में चतुर्थ भाव का स्वामी होकर माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह जैसे विषयों का प्रतिनिधि ग्रह होता है। शुभ प्रभाव गत और बलवान राहु इन विषयों में अति शुभ फ़ल प्रदान करता है जबकि कमजोर एवम पाप प्रभाव वाला राहु अशुभ फ़लों का दाता होता है।
मिथुन लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव
केतु को मिथुन लग्न में दशम भाव का स्वामित्व मिलता है और दशमेश होने की वजह से यह राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति जैसे विषयों का प्रतिनिधि होता है। अगर यह केतु बलवान हो कर शुभ प्रभाव गत हो तो इन विषयों के अति शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मिथुन लग्न में ग्रहों की स्तिथि
मिथुन लग्न में कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)
शुक्र देव 5, 12, भाव का स्वामी बुध देव 1, 4, भाव का स्वामी शनि देव 8, 9, भाव का स्वामी
मिथुन लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)
चन्द्र देव 2, भाव का स्वामी मंगल देव 6, 11, भाव का स्वामी सूर्य देवता 3, भाव का स्वामी
मिथुन लग्न में सम ग्रह
बृहस्पति 7, 10, भाव का स्वामी
मिथुन लग्न लग्न में ग्रहों का फल
मिथुन लग्न में बुध ग्रह का फल
मिथुन लग्न में बुध देवता पहले और चौथे भावों के स्वामी होने के कारण योग कारक ग्रह माने जाते हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और 11वें भावों में बुध देवता अपनी दशा -अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देतें हैं। तीसरे, छठें, आठवें, दसवें (नीच राशि) और 12वें भाव में यदि बुध देवता उदय अवस्था में पड़ें हो तो अशुभ फल देंगे। उनका दान और पाठ करके उनकी अशुभता दूर की जाती है। इस लग्न कुंडली में यदि बुध देवता किसी भी भाव में सूर्य के साथ बैठकर अस्त हो जाते हैं तो उनका रत्न पन्ना पहनकर बुध देवता के बल को बढ़ाया जाता है।
मिथुन लग्न में चंद्र ग्रह का फल
चंद्र देवता मिथुन लग्न में दूसरे भाव के स्वामी है और लग्नेष बुध का अति शत्रु है। अष्टम से अष्टम नियम के अनुसार चन्द्रमा इस कुंडली का अतिमारक ग्रह बन गए हैं। इस लग्न कुंडली का मारक ग्रह होने के कारण कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र देवता बैठें हों तो वह अपनी दशा – अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार अशुभ फल देंगे। चंद्र देवता का रत्न मोती इस लग्न कुंडली वाले जातक को कभी भी डालना नहीं चाहिए। चंद्र देवता का दान और पाठ करके उनकी अशुभता कम की जाती है।
मिथुन लग्न में सूर्य ग्रह का फल
मिथुन लग्न में सूर्य देवता लग्नेश के मित्र हैं परन्तु तीसरे भाव के स्वामी होने के कारण वह इस कुंडली के मारक ग्रह बन जाते हैं। इस कुंडली में सूर्य देवता मारक ग्रह होने के कारण कहीं भी स्थित हैं परन्तु वह अशुभ फल ही देंगे। अपनी क्षमता के अनुसार ही अशुभ फल देंगे। सूर्य देवता की दशा अन्तरा में उनका दान और पाठ करके सूर्य देव की अशुभता कम की जाती है। मिथुन लग्न में सूर्य देवता का रत्न माणिक कभी भी नहीं पहना जाता है। सूर्य को जल देकर उनके मारकत्व को कम किया जाता है।
मिथुन लग्न में शुक्र ग्रह का फल
शुक्र देवता इस लग्न कुंडली में पांचवें और 12वें भाव के स्वामी हैं। तुला राशि जो शुक्र देव की मूल त्रिकोण राशि है वह कुंडली के मूल त्रिकोण भावों में आती है। लग्नेश बुध के शुक्र देवता के अति मित्र हैं। इस कारण शुक्रदेव इस लग्न कुंडली के अति योग कारक ग्रह माने जाते हैं। पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में शुक्र देवता अपनी दशा – अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार अच्छा फल देंगे। कुंडली के तीसरे, चौथे, छठे, आठवें, और 12वें भाव में शुक्र देवता यदि उदय अवस्था में स्थित हैं तो वें कुंडली के मारक ग्रह बन जाते हैं। उनका दान और पाठ करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है। कुंडली के किसी भी भाव में शुक्र देवता यदि सूर्य के साथ बैठकर अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो उनका रत्न हीरा और ओपल पहनकर शुक्रदेव का बल बढ़ाया जाता है। छठे, आठवें और 12वें भाव में शुक्र देवता विपरीत राजयोग में तब आते हैं जब लग्नेश बुध देवता बलवान होंगे। विपरीत राज़ योग में आने पर शुक्र देवता शुभ फल देंगे। उनके मारकेत्व में कमी आएगी।
मिथुन लग्न में मंगल ग्रह का फल
मंगल देव इस लग्न कुंडली में छठें और ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश बुध के अति शत्रु होने के कारण मंगल देवता कुंडली के अति मारक ग्रह माने जाते हैं। मंगल देवता इस लग्न कुंडली में सभी भावों में अपनी दशा अन्तरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देंगे परन्तु छठें, आठवें और बारहवें भाव में यदि मंगल देव विराजमान हो और बुध देवता बलि हों तथा शुभ हो तो मंगल विपरीत राजयोग में आने पर शुभ फल देने की क्षमता रखते हैं। मंगल देवता का रत्न मूंगा इस कुंडली में कभी भी नहीं पहना जाता है क्योँकि मंगल देव इस कुंडली के रोगेश हैं। मंगल देवता का दान और पाठ करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।
मिथुन लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल
बृहस्पति देवता इस लग्न कुंडली में सातवें और दसवें भाव के स्वामी हैं। अपनी स्थिति के अनुसार गुरुदेव अच्छा या बुरा फल देते हैं। तीसरे, छठें, आठवें, और बारहवें भाव में बृहस्पति देवता को केन्द्राधिपति दोष लग जाता है और वह दूषित हो जातें है। अपनी दशा – अन्तरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं। बृहस्पति देव की अशुभता को बृहस्पति के दान और पाठ करके दूर किया जाता है। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में यदि बृहस्पति देवता विराजमान है तो वह अपनी दशा अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देंगे। कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति देवता यदि सूर्य देव के साथ बैठकर अस्त अवस्था में आ जाते हैं तो उनका रत्न पुखराज पहनकर बल बढ़ाया जाता है।
मिथुन लग्न में शनि ग्रह का फल
शनि देव इस कुंडली में आठवें और नौवें भाव के स्वामी हैं। कुम्भ जो शनि देव की मूल त्रिकोण राशि है वह इस कुंडली के मूल त्रिकोण भावों में आती है। शनि देव लग्नेश बुध के अति मित्र हैं। इन कारणों से शनि देव इस लग्न कुंडली में योग कारक हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें भाव में शनिदेव अपनी दशा अन्तरा में अपनी योग्यतानुसार शुभ फल देते हैं। तीसरे, छठें, आठवें, 11वें (नीच राशि) और 12वें भाव में यदि शनि देव उदय अवस्था में हैं तो वह मारक बन जातें हैं। छठें, आठवें, और बारहवें भावों में यदि शनि देव विपरीत राज़ योग में आकर शुभ फल देने की क्षमता भी रखतें हैं परन्तु इसके लिए लग्नेश बुध का शुभ और बलवान होना अति अनिवार्य हैं। कुंडली के किसी भी भाव में यदि शनि देव सूर्य देवता के साथ बैठकर अस्त अवस्था में आ जाते हैं उनका रत्न नीलम पहन कर बल बढ़ाया जाता है। शनि देव का मारकेत्व उनका दान व पाठ करके दूर किया जाता है।
मिथुन लग्न में राहु ग्रह का फल
राहु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती है। वह अपनी मित्र राशि में शुभ भाव में बैठकर शुभ फलदायक होतें हैं। इस कुंडली में पहले, चौथे, पांचवें, नौवें भावों में राहु देवता शुभ फल देंगे क्योँकि यह उनकी मित्र राशि है। दूसरे, तीसरे, छठें (अशुभ भाव), सातवें, आठवें (अशुभ भाव), दसवें, 11वें और 12वें (अशुभ भाव) में राहु देवता मारक बन जाते हैं क्योँकि यह उनकी शत्रु राशि है। राहु देवता का रत्न गोमेद किसी भी जातक को नहीं पहनना चाहिए। राहु के मारकेत्व को उनका दान और पाठ करके दूर किया जाता है।
मिथुन लग्न में केतु ग्रह का फल
केतु देवता की भी अपनी कोई राशि नहीं होती। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में बैठकर शुभ फल देते हैं। चौथे, पांचव, सातवें (उच्च राशि ), नौवें भाव में केतु देवता अपनी दशा-अन्तरा में शुभ फल देते हैं। पहले (नीच राशि ), दूसरे, तीसरे, छठे, आठवें, दसवें, 11वें और 12वें भाव में केतु देवता मारक बन जाते हैं। उनका पाठ और दान करके केतु के मारकेत्व को कम किया जाता है। केतु का रत्न लहसुनिया किसी भी जातक को नहीं पहनना चाहिए। पहला भाव में केतु देवता नीच राशि में आकर मारक बन जातें हैं अपितु वह उनकी मित्र राशि है।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
मिथुन लग्न में धनयोग
मिथुन लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए धनप्रदाता ग्रह चंद्रमा है। धनेश चंद्र की शुभाशुभ स्थिति से, धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति से एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। मिथुन लग्न में लग्नेश बुध, पंचमेश शुक्र एवं भाग्येश शनि की अनुकूल स्थितियां मिथुन लग्न वालों के लिए धन, ऐश्वर्य एवं वैभव को बढ़ाने में पूर्णरूप से सहायक सिद्ध होती हैं। वैसे मिथुन लग्न के लिए मंगल, गुरु, शनि और सूर्य अशुभ है। अकेला शुक्र शुभ है। चंद्रमा मारक होते हुए भी मारक का काम नहीं करेगा, रवि निष्फल होता है।
शुभ युति :- बुध + शुक्र
अशुभ युति :- मंगल + बुध
राजयोग कारक :- बुध, शुक्र, चन्द्र
मिथुन लग्न में चंद्रमा कर्क या वृष राशि का हो तो जातक बहुत धनवान होता है। मिथुन लग्न में चंद्रमा शनि के घर कुंभ राशि में हो तथा शनि चंद्रमा के घर कर्क राशि में हो, तो जातक अपने भाग्य के बल पर खूब धन कमाता है एवं लक्ष्मीवान बनता है। मिथुन लग्न में पंचम स्थान में शुक्र हो, लाभ स्थान में मंगल हो तो व्यक्ति बहुत सारी भू-संपत्ति का स्वामी होता हुआ प्रतिष्ठित एवं धनवान होता है। मिथुन लग्न में लग्नागत बुध हो, बुध के साथ शनि या शुक्र हो तो व्यक्ति शहर का प्रतिष्ठित धनवान होता है। मिथुन लग्न में शनि कुंभ या तुला राशि का हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति धन के मामले में भाग्यशाली कहलाता है। मिथुन लग्न में चंद्रमा मेष राशि में तथा मंगल कर्क राशि में परस्पर राशि परिवर्तन करके बैठे हो तो जातक महाभाग्यशाली होता है, एवं जीवन में अत्यधिक धन-अर्जित करता है। मिथुन लग्न में बृहस्पति यदि केंद्र त्रिकोण में हो तथा चंद्रमा स्वगृही होकर धन स्थान में मंगल के साथ या मंगल के सामने स्थित हो, तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है एवं अपार धन कमाता है। मिथुन लग्न में लग्नस्थ बुध, गुरु या शनि से युत या दृष्ट हो तो जातक महाधनी होता है। मिथुन लग्न में स्वराशि का शुक्र पंचम भाव में हो, शनि लाभ स्थान में हो तो जातक बहुत लक्ष्मीवान होता है। मिथुन लग्न में बुध मेष राशि में हो तथा मंगल लग्न में हो तो जातक शत्रुओं का नाश करते हुए स्वअर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है। मिथुन लग्न में लग्नेश बुध, धनेश चंद्र, भाग्येश शनि तथा लाभेश मंगल अपनी-अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो जातक करोड़पति होता है। मिथुन लग्न में चतुर्थ भाव में राहु, शुक्र, मंगल और शनि की युति हो तो जातक अरबपति होता है। मिथुन लग्न में चंद्रमा स्वगृही हो तो व्यक्ति को पैतृक धन प्राप्त होता है। मिथुन लग्न में बुध सप्तम भाव में हो तथा द्वादश भाव का स्वामी शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो जातक को ससुराल से धन प्राप्त होता है। मिथुन लग्न में गुरु, शनि व मंगल लग्न में स्थित हो तो जमीदारी योग होता है। दिन का जन्म हो मिथुन लग्न में चंद्रमा मित्र के नवांश में हो तो ऐसे जातक का जीवन धनसुख से युक्त व्यतीत होता है। मिथुन लग्न में गुरु चंद्र की युति कर्क राशि में हो तो गजकेसरी योग होता है। इससे जातक विवेकी, सद्गुणी, नम्र तथा धनी होता है। मिथुन लग्न में सुखेश बुध, लाभेश मंगल नवम भाव में शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास धन की प्राप्ति होती है।
मिथुन लग्न में रत्न
रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।
लग्न के अनुसार मिथुन लग्न मैं जातक पन्ना, हीरा, और नीलम रत्न धारण कर सकते है। लग्न के अनुसार मिथुन लग्न मैं जातक को मोती, माणिक, मूंगा, और पुखराज रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
मिथुन लग्न में पन्ना रत्न
पन्ना धारण करने से पहले – पन्ने की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में पन्ना धारण करें – पन्ने की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए। पन्ना कब धारण करें – पन्ने को बुधवार के दिन, बुध के होरे में, बुधपुष्य नक्षत्र को, या बुध के नक्षत्र अश्लेषा नक्षत्र, ज्येष्ठ नक्षत्र, और रेवती नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में पन्ना धारण करें – सोना में या पंचधातु में पन्नाधारण कर सकते है। पन्ना धारण करने का मंत्र – ॐ बुं बुधाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे पन्ना धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड पन्ना खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मिथुन लग्न में हीरा रत्न
हीरा धारण करने से पहले – हीरे की अंगूठी या लॉकेट को दूध, शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में हीरा धारण करें – हीरे की अंगूठी को मघ्यमा या कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए। हीरा कब धारण करें – हीरा को शुक्रवार के दिन, शुक्र के होरे में, शुक्रपुष्य नक्षत्र में, या शुक्र के नक्षत्र भरणी नक्षत्र, पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में हीरा धारण करें – चांदी, प्लैटिनम या सोने मे हीरा रत्न धारण कर सकते है। हीरा धारण करने का मंत्र – ॐ शुं शुक्राय नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे हीरा धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड हीरा खरीदने के लिए संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
मिथुन लग्न में नीलम रत्न
नीलम धारण करने से पहले – नीलम की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर करें एवं पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में नीलम धारण करें – नीलम की अंगूठी को मघ्यमा उंगली में धारण करना चाहिए। नीलम कब धारण करें – शनिवार के दिन, शनिपुष्य नक्षत्र को, शनि के होरे में, या शनि के नक्षत्र पुष्य नक्षत्र,अनुराधा नक्षत्र, और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में नीलम धारण कर सकते है। कौनसे धातु में नीलम धारण करें – चांदी, लोहे, प्लैटिनम या सोने में नीलम धारण कर सकते है। नीलम धारण करने का मंत्र – ॐ शं शनिश्चराय नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे नीलम धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड नीलम खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
अन्य लग्न की जानकारी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें
अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें, नवग्रह के रत्न, रुद्राक्ष, रत्न की जानकारी और कई अन्य जानकारी के लिए। आप हमसे Facebook और Instagram पर भी जुड़ सकते है
नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Your Astrology Guru पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।