वृश्चिक लग्न वाले जातक के गुण
वृश्चिक लग्न का जातक परिश्रम एवं लगन के द्वारा अपने कार्यों को पूरा करते हुए जीवन में सफलता अर्जित करता है। विभिन्न विषयों में रूचि होने के कारण अनेको विषयों का ज्ञाता होता है। ऐसे जातक की गणना परिवार एवं अपने कुल में श्रेष्ठ एवं विद्वानों में होती है। मित्रों एवं भाई बहनों के प्रिय वृश्चिक लग्न के जातक महत्वाकाक्षी होते हैं। आत्मशक्ति की इनमे प्रधानता रहती है तथा जीवन में अधिक से अधिक धन संचय की इच्छा सदैव रहती है। इनका व्यक्तित्व या तो डरावना या आकर्षक लगता है।
वृश्चिक लग्न का जातक रहस्यमयी होता है। आपका स्वाभाव कुछ बिगड़ैल, झगडे में तत्पर तथा शीघ्र ही क्रोधित हो जाने वाला होगा। ऐसे जातक बहुत सतर्क परन्तु झगड़ालू किस्म के होंगे। विवाद में आप पक्ष विपक्ष की बात तथा अपनी हानि का भी विचार नहीं कर दृढ़ता व संलग्नता पूर्वक झगडे में लग जायेंगें। आप सच्ची बात को स्पष्ट रूप से कहने वाले अर्थात काने को काना कहने में आपको तनिक भी हिचकिचाहट नहीं होगी। हठी होने के कारण आप अपने बुजुर्गों तथा गुरुजनों से भी विवाद कर बैठेगें। कुसंयम तथा अपनी बुरी आदतों के कारण आप अपने स्वास्थ को बिगाड़ लेंगें।
वृश्चिक लग्न के जातक शारीरिक रूप से संवेदनशील, सम्मोहित और तीव्र होते हैं, और दूसरों के साथ बातचीत करते समय सतर्क रहते हैं। यह सहजता उन्हें दूसरों की क्षमताओं, कमजोरियों, पीड़ा और झूठ को देखने में सक्षम बनाती है। ये अनुमान लगाने में भी काफी चतुर होते हैं। छिपे हुए अर्थों को बाहर निकालते हैं, और किसी को भी चौंका सकते हैं। वृश्चिक लग्न के जातक स्वभाव से कर्मठ एवं साहसी होते हैं। बहुत तेज़ बुद्धि तथा दृढ इच्छाशक्ति के कारण जीवन में आई अनेक कठिनाइयों को आप चुप-चाप धैर्य से पार कर लेते हैं तथा अपनी गति को बिना रोके मंजिल तक अवश्य पहुँचते हैं।
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विषयसूची
वृश्चिक लग्न वाले जातक के गुणवृश्चिक लग्न में ग्रहों के प्रभाववृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का प्रभाववृश्चिक लग्न में ग्रहों की स्तिथिवृश्चिक लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)वृश्चिक लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)वृश्चिक लग्न में सम ग्रहवृश्चिक लग्न में ग्रहों का फलवृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का फलवृश्चिक लग्न में धन योगवृश्चिक लग्न में रत्नवृश्चिक लग्न में मूंगा रत्नवृश्चिक लग्न में पुखराज रत्नवृश्चिक लग्न में मोती रत्नवृश्चिक लग्न में माणिक रत्न
वृश्चिक लग्न में ग्रहों के प्रभाव
वृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में मंगल लग्नेश तथा रोगेश है। लग्न भाव का स्वामी होने के कारण यह कुंडली के सबसे पहला कारक ग्रह माना जाता है। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव में पड़ा मंगल अपनी क्षमतानुसार अपनी दशा-अंतर्दशा में शुभ फल देता है। तीसरे, छठें, आठवें, नौवें (नीच राशि) तथा बारहवें भाव में यदि मंगल पड़ा हो तो वह अपने अंश मात्र के बलाबल अनुसार अशुभ फल देगा क्योँकि यहाँ वह गलत भाव में पड़ा होने के कारण अपनी योग्य कारकता खो देता है। इस लग्न कुंडली में यदि मंगल किसी भी भाव में अस्त या दुर्बल अवस्था में हो तो मंगल देवता का रत्न मूंगा धारण किया जाता है। यदि मंगल उदय अवस्था में गलत भाव में पड़ा हो तो उसका दान और पाठ करके उसकी अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में बृहस्पति देवता दूसरे तथा पांचवे भाव के स्वामी हैं। दो अच्छे घरों के स्वामी तथा लग्नेश मंगल मित्र होने के कारण बृहस्पति देव इस कुंडली में अति योगकारक ग्रह माने जाते हैं। यदि बृहस्पति देव लग्न पहले भाव में, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें या ग्यारहवें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुशार शुभ फल देते हैं। यदि बृहस्पति देव तीसरे (नीच राशि), छठें, आठवें तथा बारहवें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल देंगे। यदि बृहस्पति देव इस लग्न कुंडली में किसी भी भाव में अस्त अवस्था में हो तो बृहस्पति का रत्न पुखराज धारण किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में शनि देवता तीसरे तथा चौथे भाव के स्वामी हैं और कुंडली के सम ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें तथा ग्यारहवें भाव में स्थित हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में शुभ फल अपनी क्षमतानुसार देते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि देव यदि तीसरे, छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हों तो अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते है। इस लग्न कुंडली में शनि देव का रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। यदि शनि देव अशुभ हों तो उनका पाठ-पूजन एवं दान करके अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में शुक्र देवता सातवें तथा बारहवें भाव के स्वामी हैं। मारक स्थान के स्वामी होने के कारण शुक्र देव इस कुंडली के मारक ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शुक्र देवता मारक होने के कारण अपनी दशा-अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल ही देंगे। मारक ग्रह होने के कारण शुक्र ग्रह का रत्न इस कुंडली के जातक को कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। शुक्र ग्रह के दान – पाठ पूजन करके इस ग्रह की अशुभता को कम करना चाहिए।
वृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में बुध आठवें तथा ग्यारहवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल से अति शत्रुता होने के कारण बुध देव इस कुंडली के मारक ग्रह बन जाते हैं। इस लग्न कुंडली के मारक ग्रह होने के कारण बुध देवता सदैव अशुभ फल देंगे। इस लग्न कुंडली में बुध ग्रह का रत्न पन्ना कभी भी नहीं पहनना चाहिए। बुध देवता का पाठ-पूजन व दान करके इनकी अशुभता को दूर किया जाता है। यदि बुध देवता छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हो तो यह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल भी देते हैं पर इसके लिए लग्नेश मंगल का बलि और शुभ होना अति अनिवार्य है।
वृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में चंद्रमा नौवें भाव के स्वामी हैं। भाग्येश होने एवं लग्नेश मंगल के मित्र होने के कारण चंद्र देव अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। चंद्र देव यदि पहले (नीच), तीसरे, छठें, आठवें तथा बारहवें भाव में पड़ें हों तो चंद्र देव अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देंगे। यदि चंद्र देव किसी भाव में अस्त अवस्था में हों तो इनका रत्न मोती धारण किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव
वृश्चिक लग्न कुंडली में सूर्य देव दसवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल के मित्र ग्रह होने के कारण सूर्य देव इस कुंडली में अति योगकारक ग्रह माने जातें हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें हों तो अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव यदि तीसरे, छठें, आठवें या बारहवें भाव में पड़ें हों तो सूर्य देव अपनी क्षमता नुसार अशुभ फल देंगे। सूर्य देव यद शुभ फल देने वाले हों तो इनका रत्न माणिक धारण किया जाता है। सूर्य देव यदि अशुभ भावों में पड़ें हों तो इनका पाठ -पूजन तथा दान करके सूर्य देव की अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव
एकादश भाव का अधिपति होकर जातक के लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
वृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव
पंचम भाव का स्वामी होकर जातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।
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वृश्चिक लग्न में ग्रहों की स्तिथि
वृश्चिक लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)
सूर्य 10 (भाव का स्वामी) मंगल देव 1, 6 (भाव का स्वामी) बृहस्पति 2, भाव 5 (भाव का स्वामी) चन्द्रमा 9 (भाव का स्वामी)
वृश्चिक लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)
शुक्र देव 7, 12 (भाव का स्वामी) बुध देव 8, भाव 11 (भाव का स्वामी)
वृश्चिक लग्न में सम ग्रह
शनि देव 3, 4 (भाव का स्वामी)
वृश्चिक लग्न में ग्रहों का फल
वृश्चिक लग्न में मंगल ग्रह का फल
वृश्चिक लग्न कुंडली में मंगल लग्नेश (पहले भाव के स्वामी ) तथा रोगेश (छठें भाव के स्वामी है। लग्न भाव का स्वामी होने के कारण यह कुंडली के सबसे पहला कारक ग्रह माना जाता है। तीसरे, छठें, आठवें,नौवें (नीच राशि ) तथा 12वें भाव में यदि मंगल पड़ा हो तो वह अपने अंश मात्र के बलाबल अनुसार अशुभ फल देगा क्योँकि यहाँ वह गलत भाव में पड़ा होने के कारण अपनी योग्य कारकता खो देता है। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें,सातवें, दसवें तथा 11वें भाव में पड़ा मंगल अपनी क्षमतानुसार अपनी दशा -अंतर्दशा में शुभ फल देता है। इस लग्न कुंडली में यदि मंगल किसी भी भाव में सूर्य के साथ 17 से कम अंश के अंतर में अस्त हो तो मंगल देवता का रत्न मूंगा धारण किया जाता है। यदि मंगल उदय अवस्था में गलत भाव में पड़ा हो तो उसका दान और पाठ करके उसकी अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में बृहस्पति देवता दूसरे तथा पांचवे भाव के स्वामी हैं। दो अच्छे घरों के स्वामी तथा लग्नेश मंगल मित्र होने के कारण बृहस्पति देव इस कुंडली में अति योग कारक ग्रह माने जाते हैं। यदि बृहस्पति देव लग्न पहले भाव में, दूसरे, चौथे, पांचवें,सातवें,नौवें दसवें या 11 वें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा -अंतरा में अपनी क्षमतानुशार शुभ फल देते हैं। यदि बृहस्पति देव तीसरे (नीच राशि ), छठें, आठवें तथा 12 वें भाव में पड़े हों तो अपनी दशा -अंतरा में सदैव अशुभ फल देंगे। यदि बृहस्पति देव इस लग्न कुंडली में किसी भी भाव में अस्त अवस्था में हो तो बृहस्पति का रत्न पुखराज धारण किया जाता है। यदि बृहस्पति उदय अवस्था में गलत भाव में पड़ा हो तो बृहस्पति देव का दान करके एवम पाठ – पूजन करके इनके मारकेत्व को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में शनि ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में शनि देवता तीसरे तथा चौथे भाव के स्वामी हैं और कुंडली के सम ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें,सातवें,नौवें, दसवें तथा 11वें भाव में स्थित हों तो अपनी दशा -अंतर्दशा में शुभ फल अपनी क्षमतानुसार देते हैं। इस लग्न कुंडली में शनि देव यदि तीसरे,छठें,आठवें या 12वें भाव में पड़ें हों तो अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते है। इस लग्न कुंडली में शनि देव का रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। यदि शनि देव अशुभ हों तो उनका पाठ- पूजन एवं दान करके अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में शुक्र ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में शुक्र देवता सातवें तथा 12वें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल के विरोधी दल से सम्बंधित होने के कारण शुक्र देव इस कुंडली के मारक ग्रह माने जाते हैं। इस लग्न कुंडली में शुक्र देवता मारक होने के कारण अपनी दशा – अंतर्दशा में सदैव अशुभ फल ही देंगे। मारक ग्रह होने के कारण शुक्र ग्रह का रत्न इस कुंडली के जातक को कभी भी धारण नहीं करना चाहिए। शुक्र ग्रह के दान -पाठ पूजन करके इस ग्रह की अशुभता को कम करना चाहिए। यदि शुक्र देवता, छठें, आठवें या 12वें भाव में पड़ें हों तो लग्नेश मंगल बलि एवं शुभ हो तो यह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल भी देते हैं।
वृश्चिक लग्न में बुध ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में बुध आठवें तथा 11वें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल से अति शत्रुता होने के कारण बुध देव इस कुंडली के मारक ग्रह बन जाते हैं। इस लग्न कुंडली के मारक ग्रह होने के कारण बुध देवता सदैव अशुभ फल देंगे। इस लग्न कुंडली में बुध ग्रह का रत्न पन्ना कभी भी नहीं पहनना चाहिए। बुध देवता का पाठ – पूजन व दान करके इनकी अशुभता को दूर किया जाता है। यदि बुध देवता छठें, आठवें या 12वें भाव में पड़ें हो तो यह विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल भी देते हैं पर इसके लिए लग्नेश मंगल का बलि और शुभ होना अति अनिवार्य है।
वृश्चिक लग्न में चंद्र ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में चंद्र देव नौवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल के मित्र होने के कारण चंद्र देव अपनी दशा अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। चंद्र देव यदि पहले (नीच), तीसरे, छठें, आठवें तथा 12वें भाव में पड़ें हों तो चंद्र देव अपनी क्षमतानुशार अशुभ फल देंगे। यदि चंद्र देव किसी भाव में अस्त अवस्था में हों तो इनका रत्न मोती धारण किया जाता है। चंद्र देव यदि अशुभ फल देने वाले हों तो इनका पाठ -पूजन करके एवं दान करके इनकी अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में सूर्य ग्रह का फल
इस लग्न कुंडली में सूर्य देव दसवें भाव के स्वामी हैं। लग्नेश मंगल के मित्र ग्रह होने के कारण सूर्य देव इस कुंडली में अति योग कारक ग्रह माने जातें हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और 11वें भाव में पड़ें हों तो अपनी दशा -अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। इस लग्न कुंडली में सूर्य देव यदि तीसरे, छठें, आठवें या 12वें भाव में पड़ें हों तो सूर्य देव अपनी क्षमता नुसार अशुभ फल देंगे। सूर्य देव यद शुभ फल देने वाले हों तो इनका रत्न माणिक धारण किया जाता है। सूर्य देव यदि अशुभ भावों में पड़ें हों तो इनका पाठ -पूजन तथा दान करके सूर्य देव की अशुभता को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में राहु ग्रह का फल
राहु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती है। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देतें हैं। इस लग्न कुंडली में राहु देव चौथे, सातवें और एकादश भाव में अपनी दशा – अन्तरा में शुभ फल देते हैं। पहले (नीच राशि), दूसरे (नीच राशि), तीसरे, पांचवें, छठें, आठवें, नौवें, दसवें तथा 12,वें भाव में राहु देवता दशा -अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देंगे। राहु देवता की रत्न गोमेद कभी भी किसी जातक को नहीं पहनना चाहिए बल्कि अशुभ राहुदेव का पाठ एवम दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।
वृश्चिक लग्न में केतु ग्रह का फल
राहु देवता की तरह केतु देवता की भी अपनी राशि नहीं होती। वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देते हैं। पहले (उच्च राशि), दूसरे (उच्च राशि), चौथे और एकादश भाव में केतु देवता अपनी दशा अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। तीसरे, पांचवे, छठें, सातवें (नीच राशि), आठवें (नीच राशि), नवम, दसम और 12वें भाव में केतु अपनी दशा अंतर्दशा में कष्ट ही देते हैं। केतु देवता का रत्न लहसुनिया कभी भी किसी जातक को नहीं पहनना चाहिए।अपितु उनका पाठ और दान करके केतु देवता का मारकेत्व कम किया जाता है।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
वृश्चिक लग्न में धन योग
वृश्चिक लग्न में जन्म लेने वाली जातकों के लिए धनप्रदाता ग्रह बृहस्पति है। धनेश बृहस्पति की शुभाशुभ स्थिति से धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रहों की स्थिति से एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति आय के स्रोत एवं चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त लग्नेश मंगल, भाग्येश चंद्र तथा लाभेश बुध की अनुकूल स्थितियां भी वृश्चिक लग्न वाले जातकों की धन एवं ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। वैसे वृश्चिक लग्न के लिए बुध, मंगल, शनि अशुभ होते हैं। गुरु शुभ फलदाई होता है एवं सूर्य, चंद्र राजयोग कारक होते हैं। गुरु मारकेश होते हुए भी मारक नहीं होता।
शुभ युति :- चन्द्र + मंगल
अशुभ युति :- मंगल + बुध
राजयोग कारक :- सूर्य, चन्द्र, गुरु व मंगल
वृश्चिक लग्न में बृहस्पति कर्क, धनु या मीन राशि में हो तो व्यक्ति धनाध्यक्ष होता है। ऐसे जातक के ऊपर लक्ष्मीजी की कृपा पूरे जीवन बनी रहती है। वृश्चिक लग्न में चंद्रमा कर्क राशि या वृष राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। ऐसा व्यक्ति धन के मामले में भाग्यशाली होता है। वृश्चिक लग्न में मंगल, शनि, शुक्र और बुध इन चार ग्रहों की युति हो तो जातक महाधनी होता है। वृश्चिक लग्न में पंचम में स्वगृही बृहस्पति हो, लाभ स्थान में चंद्रमा मंगल के साथ हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। ऐसा जातक महाधनवान होता है। वृश्चिक लग्न में पंचम स्थान में बृहस्पति तथा लाभ स्थान में स्वगृही बुध तो जातक अति धनाढ्य होता है। ऐसा जातक अपने शत्रुओं का नाश करते हुए अखंड राज्य-लक्ष्मी को भोगता है। वृश्चिक लग्न में मंगल कन्या राशि में हो एवं लाभेश बुध लग्न में हो तो जातक स्व-अर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है एवं बहुत धनवान बनता है। वृश्चिक लग्न में सूर्य यदि केंद्र-त्रिकोण में हो तथा गुरु स्वगृही हो तो ऐसा जातक कीचड़ में कमल की तरह खिलता है, अर्थात निम्न वर्ग में जन्म लेकर भी वह धीरे-धीरे अपने पुरुषार्थ के बल पर करोड़पति बन जाता है। वृश्चिक लग्न में लग्नेश मंगल, धनेश गुरु, भाग्येश चन्द्र एवं लाभेश बुध यदि अपनी-अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित हो तो जातक करोड़पति होता है। वृश्चिक लग्न में लग्न भाव में मंगल, बुध, शुक्र एवं शनि की युति हो तो जातक महाधनवान होता है। वृश्चिक लग्न में लाभ स्थान में राहु, शुक्र, शनि एवं मंगल की युति हो तो जातक अरबपति होता है। वृश्चिक लग्न में बृहस्पति यदि कन्या राशि में हो तथा बुध धनु या मीन राशि में परस्पर स्थान परिवर्तन योग करके बैठे हो तो जातक महाभाग्यशाली होता है, एवं जीवन में खूब धन कमाता है। वृश्चिक लग्न में धनेश बृहस्पति आठवें हो परंतु सूर्य लग्न को देखता हो तो ऐसे जातक को भूमि में गड़े हुए धन की प्राप्ति होती है, या लाटरी से रुपया मिल सकता है। वृश्चिक लग्न में यदि चंद्रमा तीसरे, छठवें, दसवें या ग्यारहवें स्थान में हो एवं शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऐसा जातक युवावस्था में ही लखपति बन जाता है। वृश्चिक लग्न में शनि व बोध नवम भाव में हो एवं मंगल से दृष्ट हो तो ऐसे जातक को अनायास ही धन की प्राप्ति होती है। वृश्चिक लग्न में धनेश गुरु अष्टम में अष्टमेश बुध धन स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके जैसे- जुआ, सट्टा आदि से धन कमाता है। वृश्चिक लग्न में गुरु यदि लग्न में हो बुध केंद्रस्थ हो तथा नवमेश या एकादशेश से युक्त हो तो जातक बहुत धनवान होता है।
अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें। सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।
वृश्चिक लग्न में रत्न
रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।
लग्न के अनुसार वृश्चिक लग्न मैं जातक मूंगा, पुखराज, मोती, और माणिक रत्न धारण कर सकते है। लग्न के अनुसार वृश्चिक लग्न मैं जातक को नीलम, हीरा, और पन्ना रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।
वृश्चिक लग्न में मूंगा रत्न
मूंगा धारण करने से पहले – मूंगे की अंगूठी या लॉकेट को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान कराकर मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में मूंगा धारण करें – मूंगे की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। मूंगा कब धारण करें – मूंगा को मंगलवार के दिन, मंगल के होरे में, मंगलपुष्य नक्षत्र को या मंगल के नक्षत्र मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र या धनिष्ठा नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में मूंगा धारण करें – मूंगा रत्न तांबा, पंचधातु या सोने मे धारण कर सकते है। मूंगा धारण करने का मंत्र – ॐ भौं भौमाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे मूंगा धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड मूंगा खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
वृश्चिक लग्न में पुखराज रत्न
पुखराज धारण करने से पहले – पुखराज की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में पुखराज धारण करें – पुखराज की अंगूठी को तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए। पुखराज कब धारण करें – पुखराज को गुरुवार के दिन, गुरु के होरे में, गुरुपुष्य नक्षत्र को, या गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में पुखराज धारण करें – सोने में या पंचधातु में पुखराज रत्न धारण कर सकते है। पुखराज धारण करने का मंत्र – ॐ बृ बृहस्पतये नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे पुखराज धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड पुखराज खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
वृश्चिक लग्न में मोती रत्न
मोती धारण करने से पहले – मोती की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में मोती धारण करें – मोती की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए। मोती कब धारण करें – मोती को सोमवार के दिन, चंद्र के होरे में, चंद्रपुष्य नक्षत्र में, या चंद्र के नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में मोती धारण करें – चांदी में मोती रत्न धारण कर सकते है। मोती धारण करने का मंत्र – ॐ चं चन्द्राय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे मोती धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड मोती खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
वृश्चिक लग्न में माणिक रत्न
माणिक धारण करने से पहले – माणिक की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में माणिक धारण करें – माणिक की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। माणिक कब धारण करें – माणिक को रविवार के दिन, रवि के होरे में, पुष्यनक्षत्र को, या सूर्य के नक्षत्र मघा नक्षत्र, पूर्वा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, पुष्यनक्षत्र को में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में माणिक धारण करें – तांबे, पंचधातु या सोने में माणिक धारण कर सकते है। माणिक धारण करने का मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे माणिक धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड माणिक खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।
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