Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

धनु लग्न की संपूर्ण जानकारी

ज्योतिष, लग्न

धनु लग्न वाले जातक के गुण

धनु लग्न में जन्म लेने वाले जातक लम्बे कद के एवं गठीली देह युक्त होते हैं। शारीरिक गठन सुंदर और सजीला होता है। गोल और आकर्षक चेहरा, श्याम-पीत केश, पैनी और खिलती हुई आंखें तथा सम्मोहक मुस्कुराहट इनकी विशेषता होती है। धनु लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्ति अधिकांशतः दार्शनिक विचार के होते हैं। ईश्वर में उनकी दृढ़ आस्था रहती है। आत्मा, परमात्मा, जीव, हंस, ब्रह्म, माया आदि विषयों पर यह सहजता से ही चिंतन करते हैं या आस्था रखते हैं। ऐसे व्यक्ति मित्रों के काम आने वाले, राजा के समीप रहने वाले, ज्ञानवान, अनेक कलाओं के ज्ञाता, सत्य का पालन करने वाले, बुद्धिमान एवं श्रेष्ठ स्वभाव वाले होते हैं।

धनु लग्न में जन्म लेने वाले जातक पेशे से राजनीतिज्ञ, बैंकर, व्यवसायी, अच्छे सलाहकार, वकील, प्रोफेसर, अध्यापक, संन्यासी अथवा उच्चकोटि के उपदेशक होते हैं। अपने भाषण में ये अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा व क्षमता लगा देते हैं। यदि ऐसे जातक सैनिक बनें तो युद्ध में पीठ नहीं दिखाते। दीन दुखियों की सहायता के लिए ये सदैव तत्पर रहते हैं। दूसरों को व्यर्थ सताने वालो का ये खुलकर विरोध करते हैं, यहां तक की उसे दंडित करने से भी नहीं चूकते। आत्मविश्वासी होने के कारण ये सदैव सीधे तनकर चलते हैं। झूंठे आडम्बरों बनावट एवं दिखावट से ऐसे जातक कोसों दूर होते हैं। प्रायः लोग इन्हें समझने में भूल कर जाते हैं।

धनु लग्न में जन्म लेने वाले जातक न्याय प्रिय, निःस्वार्थ भाव से सबके कार्य करने वाले, मेधावी, स्वाभिमानी, धनवान, उदार हृदय वाले, शान्ति प्रिय एवं अनेक भाषाओं को समझने वाले होते हैं। स्वदिष्ट भोजन पदार्थों से यथा संभव दूर ही रहने की चेष्टा करते हैं। ऐसे व्यक्ति सहज ही दूसरों पर विश्वास कर लेते हैं परंतु दूसरे लोग उनकी इस सादगी का अनुचित लाभ उठाते हैं। ऐसे व्यक्ति परिश्रमी भी होते हैं, अतः आर्थिक संतुलन बिगड़ने नहीं देते। समय के पाबंद होते हैं। समय पर कार्य करना इनका स्वभाव होता है। समय की कद्र करते हैं और चाहते हैं कि दूसरे भी समय का पूरा ध्यान रखें।

अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

विषयसूची

धनु लग्न वाले जातक के गुणधनु लग्न में ग्रहों के प्रभावधनु लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभावधनु लग्न में शनि ग्रह का प्रभावधनु लग्न में मंगल ग्रह का प्रभावधनु लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभावधनु लग्न में बुध ग्रह का प्रभावधनु लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभावधनु लग्न में सूर्यग्रह का प्रभावधनु लग्न में राहु ग्रह का प्रभावधनु लग्न में केतु ग्रह का प्रभावधनु लग्न में ग्रहों की स्तिथिधनु लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)धनु लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)धनु लग्न में सम ग्रहधनु लग्न में ग्रहों का फलधनु लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल धनु लग्न में शनि ग्रह का फलधनु लग्न में मंगल ग्रह का फल  धनु लग्न में शुक्र ग्रह का फल धनु लग्न में बुध ग्रह का फल धनु लग्न में चंद्र ग्रह का फल धनु लग्न में सूर्य ग्रह का फलधनु लग्न में राहु ग्रह का फलधनु लग्न में केतु ग्रह का फलधनु लग्न में धनयोगधनु लग्न में रत्नधनु लग्न में पुखराज रत्नधनु लग्न में मूंगा रत्नधनु लग्न में माणिक रत्न

धनु लग्न में ग्रहों के प्रभाव

धनु लग्न में बृहस्पति ग्रह का प्रभाव

धनु लग्न में बृहस्पति देवता पहले और चौथे भाव के स्वामी हैं। लग्नेश एवं चतुर्थेश होने के कारण बृहस्पति कुंडली के सबसे योगकारक ग्रह माने जाते हैं। पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में विराजमान बृहस्पति देवता अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। दूसरे (नीच राशि), तीसरे, छठें, आठवें और बारहवें भाव में स्थित बृहस्पति देव यदि उदय अवस्था में है तो वह अशुभ फल देंगे क्योँकि इन भावों में वह अपनी योग्यकारकता खो देंगे। कुंडली के किसी भी भाव में अस्त पड़ें बृहस्पति देवता का रत्न पुखराज पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है।

धनु लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव

शनि देवता इस लग्न कुंडली में दूसरे और तीसरे भावों के स्वामी हैं। लग्नेश बृहस्पति के विरोधी दल के होने का कारण उन्हे कुंडली का मारक ग्रह माना जाता है। इस लग्न कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें शनि देव अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को कष्ट ही देते हैं। उनका रत्न नीलम धनु लग्न वाले जातक को कभी भी नहीं पहनना चाहिए। शनि का पाठ और दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।

धनु लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव

मंगल देवता इस लग्न कुंडली में पांचवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं। पंचमेश होने के कारण मंगल कुंडली के अति योगकारक ग्रह माने जाते हैं। कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें मंगल देवता अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी बलाबल अनुसार शुभ फल देते हैं। तीसरे, छठें, आठवे और बारहवें भाव में यदि मंगल देव अपनी उदय अवस्था में हैं तो अपनी योग कारकता खोकर वह अशुभ फल देतें हैं। किसी भी भाव में अस्त पड़ें मंगल देव का रत्न मूंगा पहन कर उनके बल को बढ़ाया जाता है।

धनु लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव

धनु लग्न कुंडली में शुक्र देवता छठे और एकादश भाव के मालिक हैं। वह लग्नेश बृहस्पति देवता के विरोधी दल के भी हैं। इसलिए शुक्र देव कुंडली के मारक ग्रह माने जाते हैं। किसी भी भाव में स्थित शुक्र देवता अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को अशुभ फल ही देते हैं। परन्तु छठें, आठवें और बारहवें में शुक्र देवता विपरीत राजयोग में हैं तो वह शुभ फलदायक भी बन जाते हैं इसके लिए बृहस्पति देवता का शुभ और बलि होना अनिवार्य है।

धनु लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव

बुध देवता इस लग्न कुंडली में सातवें और दसवें भाव के मालिक हैं। लग्नेश बृहस्पति से उनका सम का रिश्ता है। कुंडली में बुध देवता अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा दोनों ही फल देते हैं। पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें बुध देवता की जब दशा-अंतर्दशा चलती है तो वह अपनी क्षमता अनुसार जातक को शुभ फल देतें हैं। तीसरे, चौथे (नीच राशि), छठें, आठवें और बारहवें भाव में पड़ें बुध देवता अपनी कारकता खोकर अशुभ फल देतें हैं। किसी भी भाव में अस्त बुध देवता का रत्न पन्ना पहनकर उसका बल बढ़ाया जाता है।

धनु लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव

धनु लग्न कुंडली में चंद्र देवता आठवें भाव के मालिक हैं। अशुभ भावों के मालिक होने के कारण चंद्र देवता को कुंडली का अतिमारक ग्रह माना जाता है। कुंडली के किसी भी भाव में पड़े चंद्र देवता की जब दशा-अंतर्दशा चलती है तो वह जातक के लिए कष्टकारी होती है। छठे और आठवें में स्थित चंद्र देवता विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देते हैं परन्तु इसके लिए लग्नेश बृहस्पति का शुभ और बलि होना अनिवार्य है। इस लग्न कुंडली में चन्द्रमा का रत्न मोती किसी भी जातक को नहीं पहनना चाहिए।

धनु लग्न में सूर्यग्रह का प्रभाव

सूर्य देवता इस लग्न कुंडली में नौवें भाव के स्वामी हैं। भाग्येश होने के कारण वह कुंडली के अति योगकरक ग्रह माने जाते हैं। पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें व दसवें भाव में स्थित सूर्य देवता अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। तीसरे, छठें, आठवें, और बारहवें भाव में पड़ें सूर्य देवता अपनी योगकारकता खो देते हैं और अपनी दशा-अंतर्दशा में अशुभ फल देते हैं। इस लग्न में सूर्य देवता का रत्न माणिक पहनकर उसकी शुभता को बढ़ाया जाता है।

धनु लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव

राहु दशम भाव का स्वामी होकर धनु लग्न में जातक के राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपति इत्यादि विषयक प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में राहु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

धनु लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव

केतु चतुर्थ भाव का स्वामी होकर जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह इत्यादि विषयों का प्रतिनिधि होता है। जातक की जन्‍मकुंडली या अपने दशाकाल में केतु के बलवान एवं शुभ प्रभाव में रहने से जातक को उपरोक्त विषयों में शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं जबकि कमजोर एवम अशुभ प्रभाव में रहने से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

धनु लग्न में ग्रहों की स्तिथि

धनु लग्न में योग कारक ग्रह (शुभ-मित्र ग्रह)

सूर्य 9 (भाव का स्वामी) मंगल देव 5, 12 (भाव का स्वामी) बृहस्पति 1, भाव 4 (भाव का स्वामी) बुध देव 7, भाव 10 (भाव का स्वामी)

धनु लग्न में मारक ग्रह (शत्रु ग्रह)

शनि देव 2, 3 (भाव का स्वामी) चन्द्रमा 8 (भाव का स्वामी) शुक्र देव 6, 11 (भाव का स्वामी)

धनु लग्न में सम ग्रह

बुध देव 7, भाव 10 (भाव का स्वामी)

धनु लग्न में ग्रहों का फल

धनु लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल

धनु लग्न में बृहस्पति देवता पहले और चौथे भाव के स्वामी हैं। उनकी मूल त्रिकोण राशि धनु लग्न भाव में आती है। इसलिए वह कुंडली के सबसे योगकारक ग्रह माने जाते हैं। पहले, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में विराजमान बृहस्पति देवता अपनी दशा -अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देते हैं। दूसरे ( नीच राशि), तीसरे, छठें, आठवें और बारहवें वें भाव में स्थित बृहस्पति देव यदि उदय अवस्था में है तो वह अशुभ फल देंगे क्योँकि इन भावों में वह अपनी योग्यकारकता खो देंगे। कुंडली के किसी भी भाव में अस्त पड़ें बृहस्पति देवता का रत्न पुखराज पहन कर उनका बल बढ़ाया जाता है। अशुभ भावों में पड़ें उदय बृहस्पति देवता का पाठ और दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।

 धनु लग्न में शनि ग्रह का फल

शनि देवता इस लग्न कुंडली में दूसरे और तीसरे भावों के स्वामी हैं। लग्नेश बृहस्पति के विरोधी दल के होने का कारण उन्हे कुंडली का मारक ग्रह माना जाता है। अष्टम थ्योरी के अनुसार भी वह मारक ग्रह बन जाते हैं। इस लग्न कुंडली के किसी भी भाव में पड़ें शनि देव अपनी दशा-अंतरा में अपनी क्षमतानुसार जातक को कष्ट ही देते हैं। उनका रत्न नीलम धनु लग्न वाले जातक को कभी भी नहीं पहनना चाहिए। शनि का पाठ और दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।

धनु लग्न में मंगल ग्रह का फल

मंगल देवता इस लग्न कुंडली में पांचवें और बारहवें भाव के स्वामी हैं। उनकी मूल त्रिकोण राशि मेष कुंडली के मूल त्रिकोण पंचम भाव में आती है। इसलिए वह कुंडली के अति योग कारक ग्रह माने जाते हैं। कुंडली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवे, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें मंगल देवता अपनी दशा- अंतरा में अपनी बलाबल अनुसार शुभ फल देते हैं। तीसरे, छठें, आठवे और बारहवें भाव में यदि मंगल देव अपनी उदय अवस्था में हैं तो अपनी योग कारकता खोकर वह अशुभ फल देतें हैं। किसी भी भाव में अस्त पड़ें मंगल देव का रत्न मूंगा पहन कर उनके बल को बढ़ाया जाता है। छठवें और बारहवें भाव में पड़ें मंगल देव विपरीत राज़ योग की स्थिति में आकर शुभ फल देते हैं। परन्तु इसके लिए बृहस्पति देवता का बलि और शुभ होना अनिवार्य है। आठवें भाव में वह अपनी नीच राशि में होने के कारण विपरीत राजयोग में नहीं आते। अशुभ पड़ें मंगल का पाठ व दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।

  धनु लग्न में शुक्र ग्रह का फल

धनु लग्न कुंडली में शुक्र देवता छठे और एकादश भाव के मालिक हैं। वह लग्नेश बृहस्पति देवता के विरोधी दल के भी हैं। इसलिए शुक्र देव कुंडली के अति मारक ग्रह माने जाते हैं। किसी भी भाव में स्थित शुक्र देवता अपनी दशा अंतरा में अपनी क्षमतानुसार जातक को अशुभ फल ही देते हैं। परन्तु छठें, आठवें और में शुक्र देवता विपरीत राजयोग में हैं तो वह शुभ फलदायक भी बन जाते हैं इसके लिए बृहस्पति देवता का शुभ और बलि होना अनिवार्य है। धनु लग्न में शुक्र देवता बारहवें का रत्न हीरा कभी नहीं पहना जाता क्योँकि वह कुंडली में रोगेश और मारक ग्रह है। शुक्र देवता के मारकेत्व को हमेशा उनका पाठ व दान करके दूर किया जाता है।

 धनु लग्न में बुध ग्रह का फल

बुध देवता इस लग्न कुंडली में सातवें और दसवें भाव के मालिक हैं। लग्नेश बृहस्पति से उनका सम का रिश्ता है। कुंडली में बुध देवता अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा दोनों ही फल देते हैं। पहले, दूसरे, पांचवें, सातवें, नौवें,दसवें और ग्यारहवें वें भाव में पड़ें बुध देवता की जब दशा -अंतर दशा चलती है तो वह अपनी क्षमता अनुसार जातक को शुभ फल देतें हैं। तीसरे, चौथे (नीच राशि), छठें, आठवें और बारहवें भाव में पड़ें बुध देवता को केन्द्राधिपति का दोष लग जाता है और वह अपनी कारकता खोकर अशुभ फल देतें हैं। किसी भी भाव में अस्त बुध देवता का रत्न पन्ना पहनकर उसका बल बढ़ाया जाता है। तीसरे, चौथे, छठें, आठ वें व बारहवें में उदय अवस्था के बुध का पाठ व दान करके उनकी अशुभता दूर की जाती है।

 धनु लग्न में चंद्र ग्रह का फल

धनु लग्न कुंडली में चंद्र देवता आठवें भाव के मालिक हैं। अशुभ भावों के मालिक होने के कारण ही उसे कुंडली का अति मारक ग्रह माना जाता है। कुंडली के किसी भी भाव में पड़े चंद्र देवता की जब दशा व अंतर -दशा चलती है तो वह जातक के लिए कष्टकारी होती है। छठे और आठवें में स्थित चंद्र देवता विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देते हैं परन्तु इसके लिए लग्नेश बृहस्पति का शुभ और बलि होना अनिवार्य है। बारहवें भाव में चंद्र देवता अपनी नीच राशि के कारण विपरीत राजयोग में नहीं आते। इस लग्न कुंडली में चन्द्रमा का रत्न मोती किसी भी जातक को नहीं पहनना चाहिए। हमेशा चंद्र देवता का पाठ व दान करके उनके मारकेत्व को कम किया जाता है।

 धनु लग्न में सूर्य ग्रह का फल

सूर्य देवता इस लग्न कुंडली में नौवें भाव के स्वामी हैं। भाग्येश होने के कारण वह कुंडली के अति योग करक ग्रह माने जाते हैं। पहले, दूसरे,चौथे,पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें भाव में स्थित सूर्य देवता अपनी दशा – अंतरा में अपनी क्षमतानुसार शुभ फल देंगे। तीसरे,छठें, आठवें, ग्यारहवें नीच राशि) और बारहवें, भाव में पड़ें सूर्य देवता अपनी योगकारकता खो देते हैं और अपनी दशा – अंतरा में अशुभ फल देते हैं। शुभ भावों में पड़ें सूर्य देवता का रत्न माणिक पहन कर उसकी शुभता को बढ़ाया जाता है। अशुभ पड़े सूर्य देव का जल देकर और पाठ करके उसकी अशुभता को दूर की जाती है।

धनु लग्न में राहु ग्रह का फल

राहु देवता की अपनी कोई राशि नहीं होती है वह अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में फल देतें है। कुंडली के दूसरे, सातवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में पड़ें राहुदेव की जब दशा -अंतरा चलती है तो वह अपनी क्षमता अनुसार जातक को शुभ फल देतें है। पहले (नीच राशि), तीसरे, पांचवे, छठें, आठवें, नवम और बारहवें भाव में पड़ें राहु देव अपनी दशा अंतर दशा में अशुभ फल देते हैं। राहु क। रत्न गोमेद कभी भी नही पहनना चाहिए। राहु का पाठ और दान करके उनकी अशुभता कम की जाती है।

धनु लग्न में केतु ग्रह का फल

केतु देवता अपनी मित्र राशि और शुभ भाव में ही शुभ फल देते हैं। क्योँकि उनकी अपनी कोई राशि नहीं होती है। पहले (उच्च राशि ), दूसरे, दसवें और ग्यारहवें में केतु देवता अपनी दशा अंतरा में शुभ फलदायक होते हैं। तीसरे, चौथे, पांचवे, छठे, सातवें (नीच राशि ), आठवें, नवम और द्वादश भाव में केतु देवता अपनी दशा -अंतर्दशा में अपनी क्षमतानुसार जातक को कष्ट देतें हैं इन भावों में यह अशुभ होते हैं। केतु का रत्न लहसुनिया कभी भी नहीं पहना जाता। अशुभ केतु का पाठ करके उनकी अशुभता को कम किया जाता है।

धनु लग्न में धनयोग

धनु लग्न में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के लिए धनप्रदाता ग्रह शनि है। धनेश शनि की शुभाशुभ स्थिति से, धन स्थान से संबंध स्थापित करने वालों ग्रहों की स्थिति से एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों के दृष्टि संबंध से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अतिरिक्त लग्नेश बृहस्पति, भाग्येश सूर्य एवं लाभेश शुक्र की अनुकूल स्थितियां धनु लग्न वाले जातकों के लिए धन व ऐश्वर्य को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती हैं। वैसे धनु लग्न के लिए शुक्र षष्टेश होने से अशुभ होता है। बुध व सूर्य शुभ होते हैं, शनि मारकेश होते हुए भी मारक नहीं होता। सप्तमेश होने से चन्द्र सहमारकेश होता है, पंचमेश मंगल शुभ फलदायक है।

शुभ युति :- गुरु + मंगल

अशुभ युति :- गुरु + शुक्र

राजयोग कारक :- बुध, सूर्य व गुरु

धनु लग्न में सूर्य सिंह या मेष राशि का हो तो जातक अल्प प्रयत्न से बहुत धन कमाता है। धनु लग्न में शनि मकर, कुंभ या तुला राशि में हो तो जातक धनपति होता है। भाग्यलक्ष्मी उसका जीवन भर पीछा नहीं छोड़ती। धनु लग्न में शनि सूर्य के घर में एवं सूर्य शनि के घर में स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो जातक महाभाग्यशाली होता है। धनु लग्न में शनि मिथुन या कन्या राशि में हो तथा बुध मकर या कुंभ राशि में परस्पर स्थान परिवर्तन योग कर के बैठे हो तो जातक भाग्यशाली होता है। ऐसा व्यक्ति जीवन में बहुत धन कमाता है। धनु लग्न में बृहस्पति लग्न में हो बुध एवं शनि अपनी-अपनी स्वराशि में हो तो ऐसा व्यक्ति धनवानों में अग्रगण्य होता है, तथा लक्ष्मी जी हमेशा उसके साथ चलती है। धनु लग्न में बृहस्पति लग्न में बुध एवं मंगल से युत या दृष्ट हो तो जातक महाधनवान होता है। धनु लग्न में पंचम भाव में स्वगृही मंगल हो तथा लाभ स्थान में स्वगृही शुक्र हो तो जातक महालक्ष्मीवान बनता है। धनु लग्न में बुध यदि केंद्र-त्रिकोण में हो तथा शनि स्वगृही हो तो जातक कीचड़ में कमल की तरह खेलता है, अर्थात निम्न परिवार में जन्म लेकर भी वह अपने पुरुषार्थ के बल पर करोड़पति बन जाता है। धनु लग्न में बृहस्पति, चंद्र एवं मंगल की युति हो तो “महालक्ष्मी योग” बनता है। ऐसा जातक प्रबल पराक्रमी, अतिधनवान एवं ऐश्वर्यवान होता है। धनु लग्न में बृहस्पति, बुध एवं मंगल से युत हो तो महालक्ष्मी योग बनता है। ऐसा जातक अपने बुद्धिबल से शत्रुओं को परास्त करता हुआ महाधनवान एवं प्रतापी बनता है। धनु लग्न में बृहस्पति तुला राशि में हो तथा लाभेश शुक्र लग्न में हो तो ऐसा जातक स्वअर्जित धनलक्ष्मी को भोगता है एवं जीवन में बहुत धनवान बनता है। धनु लग्न में लग्नेश गुरु, धनेश शनि, भाग्येश सूर्य तथा लाभेश शुक्र अपनी-अपनी उच्च या स्वराशि में स्थित हो तो जातक करोड़पति होता है। धनु लग्न में दशम भाव में राहु, शुक्र, शनि और मंगल की युति हो तो जातक अरबपति होता है। धनु लग्न में धनेश शनि यदि आठवें भाव में हो तथा सूर्य लग्न को देखता हो तो जातक को जमीन में गड़े हुए धन की प्राप्ति होती है अथवा लॉटरी से रुपया मिल सकता है। धनु लग्न में सुखेश बृहस्पति व लाभेश शुक्र यदि नवम भाव में मंगल से दृष्ट हो तो जातक को अचानक धन की प्राप्ति होती है। धनु लग्न में चंद्रमा और बृहस्पति की युति यदि मकर, मीन, मेष राशि राशि में हो तो इस प्रकार के गजकेसरी योग के कारण जातक को उत्तम धन एवं यश की प्राप्ति होती है। धनु लग्न में धनेश शनि अष्टम भाव में एवं अष्टमेश चंद्र धन स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठते हो तो ऐसा जातक गलत तरीके जैसे जुआ, सट्टा आदि से धन कमाता है। धनु लग्न में बुध और सूर्य की युति यदि पंचम भाव में हो तो जातक बहुत धनवान बनता है।

अपनी जन्म कुंडली से जाने 110 वर्ष की कुंडली, आपके 15 वर्ष का वर्षफल, ज्योतिष्य रत्न परामर्श, ग्रह दोष और उपाय, लग्न की संपूर्ण जानकारी, लाल किताब कुंडली के उपाय, और कई अन्य जानकारी, अपनी जन्म कुंडली बनाने के लिए यहां क्लिक करें सैंपल कुंडली देखने के लिए यहाँ क्लिक करें।

धनु लग्न में रत्न

रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।

लग्न के अनुसार धनु लग्न मैं जातक पुखराज, मूंगा, और माणिक्य रत्न धारण कर सकते है। लग्न के अनुसार धनु लग्न मैं जातक को नीलम, हीरा, मोती, और पन्ना रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।

धनु लग्न में पुखराज रत्न

Yellow Sapphire - 4.48 Carat - GFE07043 - Image 3 Natural Lab Certified Yellow Sapphire – Pukhraj

पुखराज धारण करने से पहले – पुखराज की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में पुखराज धारण करें – पुखराज की अंगूठी को तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए। पुखराज कब धारण करें – पुखराज को गुरुवार के दिन, गुरु के होरे में, गुरुपुष्य नक्षत्र को, या गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में पुखराज धारण करें – सोने में या पंचधातु में पुखराज रत्न धारण कर सकते है। पुखराज धारण करने का मंत्रॐ बृ बृहस्पतये नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे पुखराज धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड पुखराज खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

धनु लग्न में मूंगा रत्न

Red Coral - 11.94 Carat - GFE04022 - Image 3 Natural Lab Certified Red Coral – Moonga

मूंगा धारण करने से पहले – मूंगे की अंगूठी या लॉकेट को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान कराकर मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में मूंगा धारण करें – मूंगे की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। मूंगा कब धारण करें – मूंगा को मंगलवार के दिन, मंगल के होरे में, मंगलपुष्य नक्षत्र को या मंगल के नक्षत्र मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र या धनिष्ठा नक्षत्र में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में मूंगा धारण करें – मूंगा रत्न तांबा, पंचधातु या सोने मे धारण कर सकते है। मूंगा धारण करने का मंत्रॐ भौं भौमाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे मूंगा धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड मूंगा खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

धनु लग्न में माणिक रत्न

Ruby - 3.22 Carat - GFE01104 - Image 4 Natural Lab Certified Ruby – Manik

माणिक धारण करने से पहले – माणिक की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए। कौनसी उंगली में माणिक धारण करें – माणिक की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए। माणिक कब धारण करें – माणिक को रविवार के दिन, रवि के होरे में, पुष्यनक्षत्र को, या सूर्य के नक्षत्र मघा नक्षत्र, पूर्वा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, पुष्यनक्षत्र को में धारण कर सकते है। कौनसे धातु में माणिक धारण करें – तांबे, पंचधातु या सोने में माणिक धारण कर सकते है। माणिक धारण करने का मंत्रॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। ध्यान रखे माणिक धारण करते समय राहुकाल ना हो। नेचुरल और सर्टिफाइड माणिक खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

अन्य लग्न की जानकारी पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

अगर आपको यह लेख पसंद आया है, तो हमारे YouTube चैनल को सब्सक्राइब करें, नवग्रह के रत्न, रुद्राक्ष, रत्न की जानकारी और कई अन्य जानकारी के लिए। आप हमसे Facebook और Instagram पर भी जुड़ सकते है

नवग्रह के नग, नेचरल रुद्राक्ष की जानकारी के लिए आप हमारी साइट Your Astrology Guru पर जा सकते हैं। सभी प्रकार के नवग्रह के नग – हिरा, माणिक, पन्ना, पुखराज, नीलम, मोती, लहसुनिया, गोमेद मिलते है। 1 से 14 मुखी नेचरल रुद्राक्ष मिलते है। सभी प्रकार के नवग्रह के नग और रुद्राक्ष बाजार से आधी दरों पर उपलब्ध है। सभी प्रकार के रत्न और रुद्राक्ष सर्टिफिकेट के साथ बेचे जाते हैं। रत्न और रुद्राक्ष की जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00