ज्योतिषहिन्दीडॉटइन के नियमित पाठकों को शिवरात्रि की शुभकामनाएं । योगी आदिनाथ सभी को अपना स्नेहशीर्वाद प्रदान करें । ज्योतिष आर्टिकल्स की श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम आपसे सांझा करने जा रहे हैं क्या होता है पाया (पाद) ? ज्योतिष में इसका क्या महत्व है और इसे किस प्रकार से देखा जाता है ?
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पाया विचार Paya consideration :
पाया विचार दो प्रकार से किया जाता है :
१) चन्द्रमा के आधार पर Paya consideration on the basis of Moon
२) नक्षत्र के आधार पर Paya consideration on the basis of Nakshtra
जानते हैं चन्द्रमा की स्थिति से किस प्रकार पाया निर्धारण किया जाता है Paya consideration on the basis of Moon :
यदि लग्न कुंडली में पहले छठे अथवा ग्यारहवें भाव में चन्द्रमा हो तो कहा जाता है की जातक सोने के पाए में जन्मा है ।
यदि दुसरे पांचवें या नवें भाव में चंद्र हो तो रजत पाद (पाया) बनता है । जिस किसी जातक का चांदी का पाया होगा वह अत्यंत भाग्यशाली होगा । इसे सर्वोत्तम कहा गया है । ऐसे जातक पर माँ लक्ष्मी की अत्यंत कृपा मानी जाती है । ऐसे जातक के जन्म लेते ही परिवार फलने फूलने लगता है । घर परिवार में सुख समृद्धि आती है ।
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यदि जन्म लग्न से तीसरे सातवें अथवा दसवें भाव में चन्द्रमा हो तो यह ताम्र पाद या ताम्बे का पाया बनता है ।
इसी प्रकार यदि जन्मलग्न से चन्द्रमा चौथे आठवें और बारहवें भाव में हो तो लोहे का पाया बना हुआ कहा जाएगा ।
ये तो हुआ चंद्र के आधार पर पाया निर्धारण । अब हम जानने का प्रयास करेंगे की नक्षत्र के आधार पर किस प्रकार पाया निर्धारण किया जाता है Paya consideration on the basis of Nakshtra :
जब किसी जातक का जन्म आर्द्रा से लेकर स्वाति तक के नक्षत्रों में से किसी एक में हुआ हो तो ऐसे जातक को चांदी के पाए में जन्मा कहा जाएगा । राहु के प्रथम से दुसरे नक्षत्र तक दस नक्षत्र होते हैं इनमे से किसी में भी जातक का जन्म हुआ हो तो जातक भाग्यशाली होता है और रजत पाए में जन्मा कहा जाता है ।
विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल में जन्मे जातक को लौह पाद की संज्ञा दी जाती है । स्वाति के आगे के चार नक्षत्र लौह पाद के कहे जाते हैं ।
किसी जातक का जन्म मूल के आगे के सात नक्षत्रों यानि पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद में से किसी एक में हुआ हो तो इसे ताम्र पाद की संज्ञा दी जाती है ।
इसी प्रकार यदि जातक का जन्म रेवती, अश्विनी, भरनी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा में से किसी नक्षत्र में हुआ है तो इसे स्वर्ण पाद की संज्ञा दी जाती है ।
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नक्षत्रो और जन्मलग्न से चन्द्रमा की स्थिति देखने पर अलग अलग विचार होता है और इसके बाद पाद या पाए का विचार किया जाता है । इनमे चांदी और ताम्बे का पाया उत्तम कहा गया है ।
ताम्बे के पाए में जन्मा जातक भी शुभ कहा गया है । अगर श्रेष्ठता की दृष्टि से देखा जाये तो ताम्बे का पाया दुसरे नंबर पर आता है ।
श्रेष्ठता की दृष्टि से देखने पर सोने का पाया तीसरे स्थान पर आता है । सोने के पाए में जन्मे जातक को उतना भाग्यशाली नहीं समझा जाता है । जातक को धन तो प्राप्त हो भी जाता है परन्तु किसी न किसी कारण से जातक सुखी नहीं रह पाता है ।
लोहे के पाए को शुभ नहीं कहा जाता है । श्रेष्ठता की दृष्टि से लोहा चौथे या अंतिम स्थान पर आता है । इस पाए के अंतर्गत जन्मे जातक को जीवन में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । ऐसा कहा जाता है ऐसे जातक की जन्मपत्री में यदि बहुत शुभ योग भी बनते हों तो वे भी अपना पूर्ण असर नहीं दिखा पाते । लोहे के पाए में जन्मे जातक के जीवन में अधिकतर कष्ट ही रहते हैं ।
पाया विचार करते समय ध्यान देने योग्य होता है की यदि चंद्र व् नक्षत्र दोनों में से कोई एक पाया भी शुभ है तो गृह सम स्थिति में आ जाते हैं । परन्तु यदि दोनों स्थितियों में पाया अशुभ ही है तो स्थिति दुखद हो जाती है । शुभ गृह व् शुभ योग होने पर भी जातक को शुभ परिणाम नहीं मिलते हैं ।
यदि लग्न व् नक्षत्र विचार दोनों से ही शुभ पाए आते हों जैसे रजत या ताम्र पाए तो सभी शुभ योगों के पूर्ण फल प्राप्त होते हैं । ऐसी स्थिति में अशुभ योग के फलों में भी कमी आती देखि गयी है । जातक के अधिक गृह अशुभ या नीच अवस्था में होने पर भी ऐसे जातक को यथेष्ट फलों की प्राप्ति होती है ।
ज्योतिष में पाया विचार का अपना विशेष महत्व है और फलकथन में इसकी उपयोगिता अपना विशेष स्थान रखती है । आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं । अपना स्नेह इसी प्रकार हमारे साथ बनाये रखें । आज का लेख यहीं समाप्त करता हूँ । सभी का मंगल हो ।