यह एक अत्तयंत प्रभावशाली रत्न होता है कहते है की यदि नीलम किसी भी व्यक्ति को रास आ जाए तो वारे न्यारे कर देता है , लेकिन आखिर इस तथ्य की पीछे क्या सिद्धांत है। क्या वाक्य में नीलम धारण करने से वारे न्यारे हो सकते है और यदि हाँ तो कैसे ?
दरअसल नीलम शनि गृह का रत्न है इसलिए शनि गृह सम्बंधित सभी विशेषताए इसमें विद्यमान होती है, वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का सम्बन्ध श्रम और मेहनत से होता है, ऐसा कहना बिलकुल गलत होगा की शनि किसी जातक को बैठे बिठाए शोहरत दे देता है बल्कि जो जातक आलसी होता है उसे शनि का रत्न नीलम कभी भी रास नहीं आता यह रत्न तो मेहनती जातको के लिए है जो अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी हासिल करते है!
यदि आप आलसी है तो आपका नीलम धारण करना व्यर्थ होगा क्योकि शनि के द्वारा कामयाबी तभी मिलती है जब जातक अत्यंत मेहनती होता है! यदि आप मेहनत करने से नहीं कतराते तो आप नीलम धारण कर सकते है और शनि देव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते है!
लेकिन नीलम धारण करने से पहले कुंडली का निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है क्योकि मेरे अनुभव से केवल 5 से 10 प्रतिशत जातको को ही नीलम रत्न रास आता है।
मेरे अनुभव से यह कहना भी ठीक नहीं होगा की नीलम धारण करने के कुछ क्षणों में शुभ या अशुभ प्रभाव दे देता है क्योकि शनि एक अत्यंत धीमा गृह है यह लगभग 3.5 वर्ष तक एक ही राशि में भ्रमण करता है और 12 राशियों का चक्कर पूरा करने में इसे लगभग 30 वर्ष लगते है और किसी जातक के पूर्ण जीवन में अत्यधिक केवल 3 बार सभी राशियों का भ्रमण करता है जो की सभी ग्रहों की अपेक्षा सबसे कम है।
अब आप स्वयं ही बताये की इतनी धीमी गति से चलने वाला गृह , कुछ क्षणों में कैसे प्रभाव दे सकता है! बेहतरीन नीलम जम्मू और कश्मीर की खानों में पाया जाता है जो आज के दौर में लगभग मिलना नामुमकिन है और यदि मिल भी जाये तो उसकी कीमत अदा करना हर किसी के बस की बात नहीं है! श्री लंका का नीलम भी बेहतरीन होता है और यह आसानी से उपलब्ध हो जाता है लेकिन यह भी एक महंगा रत्न होता है।
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नीलम धारण करने की विधि
यदि आप नीलम धारण करना चाहते है तो 3 से 6 कैरेट के नीलम रत्न को स्वर्ण या पाच धातु की अंगूठी में लगवाये! और किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम शनि वार को सूर्य उदय के पश्चात अंगूठी की प्राण प्रतिष्ठा करे! इसके लिए अंगूठी को सबसे पहले गंगा जल, दूध, केसर और शहद के घोल में 15 से 20 मिनट तक दाल के रखे, फिर नहाने के पश्चात किसी भी मंदिर में शनि देव के नाम 5 अगरबत्ती जलाये, अब अंगूठी को घोल से निलाल कर गंगा जल से धो ले, अंगूठी को धोने के पश्चात उसे 11 बारी:-
ॐ शं शानिश्चार्ये नम: का जाप करते हुए अगरबत्ती के उपर से घुमाये, तत्पश्चात अंगूठी को शिव के चरणों में रख दे और प्रार्थना करे हे शनि देव में आपका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आपका प्रतिनिधि रत्न धारण कर रहा हूँ किरपा करके मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करे! फिर अंगूठी को शिव जी के चरणों के स्पर्श करे और मध्यमा ऊँगली में धारण करे!
शनि ग्रह का रत्न नीलम, जिसे अंग्रेजी में ‘ब्लू सेफायर’ कहते हैं वास्तव में उसी श्रेणी का रत्न है जिसमें माणिक रत्न आता है। ज्योतिष विज्ञान में इसे कुरूंदम समूह का रत्न कहते हैं। इस समूह में लाल रत्न को माणिक तथा दूसरे सभी को नीलम कहते हैं। इसलिए नीलम सफेद, हरे, बैंगनी, नीले आदि रंगों में प्राप्त होता है। सबसे अच्छा नीलम नीले रंग का होता है जैसे आसमानी, गहरा नीला, चमकीला नीला आदि।
नीलम रत्न की प्राकृतिक उपलब्धता
माणिक, हीरा, पन्ना और पुखराज की तरह नीलम रत्न भी मिनरल डिपोजीशन से बना है। अत: यह भी बड़ी-बड़ी खानों से निकाला जाता है। सबसे अच्छा नीलम भारत में पाया जाता है। भारत के अलावा आस्ट्रेलिया, अमेरिका, अफ्रीका, म्यांमार और श्रीलंका में भी नीलम की खानें पाई जाती हैं।
विज्ञान और नीलम
माणिक्य और नीलम की वैज्ञानिक संरचना बिल्कुल एक जैसी है। वैज्ञानिक भाषा में कहें तो माणिक्य की तरह ही नीलम भी एक एल्युमीनियम ऑक्साइड है। एल्युमीनियम ऑक्साइड में आइरन, टाइटेनियम, क्रोमियम, कॉपर और मैग्नीशियम की शुद्धियां मिली होती हैं जिससे इनमें नीला,पीला, बैंगनी, नारंगी और हरा रंग आता है। इन्हें ही नीलम कहा जाता है। इसमें ही अगर क्रोमियम हो तो यह क्रिस्टल को लाल रंग देता है जिसे रूबी या माणिक्य कहते हैं।
नीलम रत्न के गुण:
यह नीले रंग का होता है और शनि का रत्न कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि मोर के पंख जैसे रंग वाला नीलम सबसे अच्छा माना जाता है। यह बहुत चमकीला और चिकना होता है। इससे आर-पार देखा जा सकता है। यह बेहद प्रभावशाली रत्न होता है तथा सभी रत्नों में सबसे जल्दी अपना प्रभाव दिखाता है।
ज्योतिष और नीलम रत्न
नीलम शनि का रत्न है और अपना असर बहुत तीव्रता से दिखाता है इसलिए नीलम कभी भी बिना ज्योतिषी की सलाह के नहीं पहनना चाहिए। नीलम रत्न को पहनने के लिए कुंडली में निम्न योग होने आवश्यक हैं।
मेष, वृष, तुला एवं वृश्चिक लग्न वाले अगर नीलम को धारण करते हैं तो उनका भाग्योदय होता है। चौथे, पांचवे, दसवें और ग्यारवें भाव में शनि हो तो नीलम जरूर पहनना चाहिए।शनि छठें और आठवें भाव के स्वामी के साथ बैठा हो या स्वयं ही छठे और आठवें भाव में हो तो भी नीलम रत्न धारण करना चाहिए। शनि मकर और कुम्भ राशि का स्वामी है।
इनमें से दोनों राशियां अगर शुभ भावों में बैठी हों तो नीलम धारण करना चाहिए लेकिन अगर दोनों में से कोई भी राशि अशुभ भाव में हो तो नीलम नहीं पहनना चाहिए।शनि की साढेसाती में नीलम धारण करना लाभ देता है।शनि की दशा अंतरदशा में भी नीलम धारण करना लाभदायक होता है।शनि की सूर्य से युति हो, वह सूर्य की राशि में हो या उससे दृष्ट हो तो भी नीलम पहनना चाहिए।कुंडली में शनि मेष राशि में स्थित हो तो भी नीलम पहनना चाहिए।
कुंडली में शनि वक्री, अस्तगत या दुर्बल अथवा नीच का हो तो भी नीलम धारण करके लाभ होता है। जिसकी कुंडली में शनि प्रमुख हो और प्रमुख स्थान में हो उन्हें भी नीलम धारण करना चाहिए।क्रूर काम करने वालों के लिए नीलम हमेशा उपयोगी होता है।
नीलम रत्न का प्रयोग:
नीलम को शनिवार के दिन पंचधातु या स्टील की अंगूठी में जड़वाकर सूर्यास्त से दो घंटे पहले ही बीच की अंगुली में धारण करना चाहिए। यह याद रखे कि अंगूठी में नीलम कम से कम चार रत्ती का होना चाहिए। इस नीलम को ऊं शं शनैश्चराय नम: के 23 हजार बार जाप के बाद जागृत करके पहनना चाहिए।
नीलम रत्न का विकल्प:
नीलम न खरीद पाने और अच्छा नीलम यदि न उपलब्ध हो पा रहा हो तो नीलम के स्थान पर लीलिया और जामुनिया धारण किया जा सकता है। इसके अलावा जिरकॉन, कटैला, लाजवर्द, नीला तामड़ा, नीला स्पाइनेल या पारदर्शी नीला तुरमली पहना जा सकता है।
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