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बद्रीनाथ धाम का इतिहास History of Badrinath Dham

बद्रीनाथ……..हिन्दू जीवनशैली का अभिन्न अंग है बद्रीनाथ । चार धामों में से एक धाम है बद्रीनाथ । भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास की एक ऐतहासिक धरोहर है बद्रीनाथ । भारतीय राज्य उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित बद्रीनाथ अथवा बद्रीनारायण मन्दिर हिन्दू आस्था के एक प्रतीक के रूप में जाना जाता है । समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पवित्रतम मंदिर में भगवान् विष्णु की स्वयं प्रकट मुर्ति एक शालिग्राम शिला के रूप में स्थापित है । यधपि हमारे कुछ प्राचीन ग्रंथों से प्रमाण प्राप्त होते हैं कि यह मंदिर शुरू में एक बौद्ध मठ रहा है और आदी गुरु शंकराचार्य जब 8वीं शताब्दी के आसपास इस स्थान पर आये तब एक हिंदू मंदिर में बदल गया । मंदिर वास्तुकला और उज्ज्वल रंग एक बौद्ध मठ के समान आवश्य दीखते भी हैं और इस प्रकार के दावों में सच्चाई भी जान पड़ती है । ( ज्योतिषहिन्दीडॉटइन ऐसा कोई दावा नहीं करती है ) ।


भगवान् बद्रीनाथ से सम्बंधित कथाओं में देश काल परिस्थिति के अनुसार या अन्य अज्ञात कारणों से मतभेद आवश्य हैं परन्तु सभी की सभी हैं बहुत रोचक व् आनंद प्रदायक । मंदिर का इतिहास बद्रीनाथ धाम से संबंधित अनेक पौराणिक कथाओं का समर्थन करता है।

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बद्रीनाथ……..हिन्दू जीवनशैली का अभिन्न अंग है बद्रीनाथ । चार धामों में से एक धाम है बद्रीनाथ । भारतवर्ष के गौरवशाली इतिहास की एक ऐतिहासिक धरोहर है बद्रीनाथ । समुद्र तल से 3133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस पवित्रतम मंदिर में भगवान् विष्णु की स्वयं प्रकट मुर्ति एक शालिग्राम शिला के रूप में स्थापित है ।

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भगवान् बदरीनाथ से सम्बंधित कथाओं में देश काल परिस्थिति के अनुसार या अन्य अज्ञात कारणों से मतभेद आवश्य हैं परन्तु सभी की सभी हैं बहुत रोचक व् आनंद प्रदायक । मंदिर का इतिहास बद्रीनाथ धाम से संबंधित अनेक पौराणिक कथाओं का समर्थन करता है।

एक प्रचलित कथा के अनुसार इस जगह पर स्वयं भगवान विष्णु ने कठोर तप किया है । भगवान् विष्णु गहन ध्यान में थे और मौसम खराब होता चला जा रहा था किन्तु विष्णु को इसका आभास तक न था । तब उनकी पत्नी, देवी लक्ष्मी ने यह जानकार की भगवान् की तपस्या में विघ्न न आये बद्री के पेड़ का आकार ग्रहण कर लिया और कठोर मौसम से उन्हें बचाने के लिए उन्हें अपनी शाखाओं से ढँक लिया।

भगवान विष्णु उनकी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए और वहां का नाम बद्रिकाश्रम के रूप में रखा गया । बद्रीनाथ के रूप में विष्णु को मंदिर में ध्यानपूर्वक मुद्रा में बैठे चित्रित किया गया है।

बद्रीनाथ धाम से सम्बंधित एक और कथा कहती है कि धर्म के दो पुत्र थे । नर और नारायण । नर और नारायण अपना आश्रम स्थापित करना चाहते थे और विशाल हिमालय पर्वतों के बीच कुछ सौहार्दपूर्ण स्थान से धार्मिक ज्ञान के विस्तार के लिए इच्छुक थे । नर और नारायण दो आधुनिक हिमालय पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिन्हें पौराणिक नामों से सुशोभित किया गया है ।

बहरहाल ! जब वे अपने आश्रम के लिए एक उपयुक्त जगह की तलाश का कर रहे थे तो इनका ध्यान पंच बद्री के अन्य चार स्थलों पर गया । इन्हें ब्रिधा बद्री, ध्यान बद्री, योग बद्री और भविष्य बद्री नामों से पुकारा जाता है । अंत में अलकनंदा नदी के पीछे गर्म और ठंडे वसंत का आभास हुआ और इसे बद्री विशाल का नाम दिया गया । कहा जाता है इस प्रकार बद्रीनाथ धाम अस्तित्व में आया ।

एक और कहानी यह कहती है कि आदि गुरू शंकराचार्य ने तत्कालीन परमार शासक राजा कनकपाल की सहायता से क्षेत्र के बौद्धों को बाहर निकाला ।

बदलती परिस्थितियों में समय के साथ साथ कई बार यह मंदिर क्षतिग्रस्त हुआ । और कई बार इसका पुनर्निर्मित किया गया । 17वी सदी में गृहवाल के राजाओं द्वारा मंदिर का विस्तार किया गया । 1803 में एक महान हिमालयी भूकंप की वजह से मंदिर का भारी नुकसान हुआ । ऐसे समय में जयपुर के राजा द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया पुनः किया गया ।

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