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शिव पुराण की कथा | Shiv Puran Ki Katha
जैसा कि आप लोग जानते हैं कि सती ने शिवजी से झूठ बोला था कि उन्होंने सीता का वेश धारण करके राम की परीक्षा नहीं ली है। परंतु शिव जी तो अंतर्यामी है उनको पता चल गया कि सती जी झूठ बोल रही हैं। जिसके बाद शिव जी ने मन ही मन माँ सती जी को त्याग दिया था और उसके उपरांत बाद में जब दक्ष यज्ञ कर रहे थे। तो उस में शिव जी को नहीं बुलाया। तब सती जी ने अपने पति का अपमान समझते हुए अपने आप को योगअग्नि में जला दिया।
कुछ लोग इस कथा को ऐसा समझते हैं कि माँ सती को जो भ्रम हुआ था, वह वाकई उनको भ्रम हुआ था, ऐसा कुछ लोग मानते हैं। और कुछ लोग यह भी मानते हैं कि शिव जी के मन में वाकई सती को त्यागने की बात आई थी। क्योंकि यह बात तुलसीदास जी ने लिखी है।
तो जो लोग ऐसा मानते हैं उनके लिए सच्चाई उनके सोच से परे है। वास्तविकता यह है कि शिव जी ने जब शिव पार्वती का विवाह हो गया था। तो एक दिन शिवजी से माँ पार्वती जी शिव जी से कहती हैं कि –
जौं मो पर प्रसन्न सुखरासी। जानिअ सत्य मोहि निज दासी॥
तौ प्रभु हरहु मोर अग्याना। कहि रघुनाथ कथा बिधि नाना॥
भावार्थ :- हे सुख की राशि ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं और सचमुच मुझे अपनी दासी जानते हैं, तो हे प्रभो! आप श्री रघुनाथजी की नाना प्रकार की कथा कहकर मेरा अज्ञान दूर कीजिये।
जौं नृप तनय त ब्रह्म किमि नारि बिरहँ मति भोरि।
देखि चरित महिमा सुनत भ्रमति बुद्धि अति मोरि॥
भावार्थ :- यदि वे राजपुत्र हैं तो ब्रह्म कैसे? (और यदि ब्रह्म हैं तो) स्त्री के विरह में उनकी मति बावली कैसे हो गई? इधर उनके ऐसे चरित्र देखकर और उधर उनकी महिमा सुनकर मेरी बुद्धि अत्यन्त चकरा रही है?
तब शिव जी ने कहा –
पूँछेहु रघुपति कथा प्रसंगा। सकल लोक जग पावनि गंगा॥
तुम्ह रघुबीर चरन अनुरागी। कीन्हिहु प्रस्न जगत हित लागी॥
भावार्थ :- जो तुमने श्री रघुनाथजी की कथा का प्रसंग पूछा है, जो कथा समस्त लोकों के लिए जगत को पवित्र करने वाली गंगाजी के समान है। तुमने जगत के कल्याण के लिए ही प्रश्न पूछे हो। तुम श्री रघुनाथजी के चरणों में प्रेम रखने वाली हो।
राम कृपा तें पारबति सपनेहुँ तव मन माहिं।
सोक मोह संदेह भ्रम मम बिचार कछु नाहिं॥
भावार्थ :- हे पार्वती! मेरे विचार में तो श्री रामजी की कृपा से तुम्हारे मन में स्वप्न में भी शोक, मोह, संदेह और भ्रम कुछ भी नहीं है।
जैसा कि आपने पढ़ा, जो तुलसीदास जी ने लिखा है और जो शिव जी पार्वती जी से कह रहे हैं कि तुमने जगत कल्याण के लिए यह प्रश्न पूछा है। और फिर वह बाद में यह कहते हैं कि हे पार्वती मेरे विचार से तो तुम शोक, मोह, संदेह और भ्रम से रहित हो। इसका मतलब सती (पार्वती) को भ्रम नहीं हुआ था। माँ सती लीला कर रही थी।
माँ सती साधारण स्त्री है। वो भगवती है, उनको कभी भी मोह, संदेह और भ्रम हो ही नहीं सकता। सती (पार्वती) जी ने जो राम की परीक्षा जगत कल्याण के लिए किया था। जिससे भविष्य में किसी को यह संदेह न हो की राम कोई साधारण व्यक्ति है। इसलिए सती (पार्वती) जी राम की परीक्षा ली जिससे हम लोग को यह विश्वाश हो जाये की राम भगवान है।
तो आप ऐसा मत सोचिएगा कि पार्वती जी को भ्रम हो गया था वह अज्ञानी स्त्री है। ऐसा बात कभी अपने मन में मत लाइयेगा। सती जी लीला कर रही थी। तो लीला में भगवान बहुत कुछ करते हैं, जो कुछ होता है वह एक दिन घटित अवश्य हुआ है यह बात सत्य है। लेकिन जो भगवान कर रहे हैं, कभी तो अज्ञानी बनकर कुछ करते हैं, तो कभी ज्ञानी बन कर कुछ करते हैं। आप कभी यह मत सोचिएगा कि भगवान को वाकई में नहीं मालूम है कोई बात। ऐसा कभी मत सोचिएगा कि राम को नहीं मालूम है कि सीता कहां है, तो उन्होंने वानरों की मदद से सीता जी को ढूंढा। राम को सब मालूम है लेकिन वह लीला कर रहे हैं। तो लीला में जैसा उनका जो स्वरुप होता है। उस अनुसार वो लीला करते है।