Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

गणेश गीता – जब श्री गणेश ने दिया राजा वरेण्य को गीता का ज्ञान | Ganesh Gita – Jab Shri Ganesh Ne Diya Raja Varenya Ko Gita Ka Gyan

Ganesh Geeta –  गणेश गीता

भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में गीता उपदेश दिया था, यह बात तो सब जानते हैं लेकिन विघ्न विनाशक गणपति ने भी गीता का उपदेश दिया था, ये कम लोगों को पता है।

श्रीकृष्ण गीता और गणेश गीता में लगभग सारे विषय समान हैं। बस दोनों में उपदेश देने की मन: स्थिति में अंतर है। भगवत गीता का उपदेश कुरुक्षेत्र के मैदान में, मोह और अपना कर्तव्य भूल चुके अर्जुन को दिया गया था। लेकिन गणेश गीता में विघ्नविनाशक गणपति, यह उपदेश युद्ध के बाद , राजा वरेण्य को देते हैं। दोनों ही गीता में गीता सुनने वाले श्रोताओं अर्जुन और राजा वरेण्य की स्थिति और परिस्थिति में अंतर है।

भगवत गीता के पहले अध्याय अर्जुन विषाद योग से यह बात स्पष्ट होती है कि अर्जुन मोह के कारण मूढ़ावस्था में चले गये थे। लेकिन राजा वरेण्य मुमुक्षु स्थिति में थे। वह अपने धर्म और कर्तव्य को जानते थे।

देवराज इंद्र समेत सारे देवी देवता, सिंदूरा दैत्य के अत्याचार से परेशान थे। जब ब्रह्मा जी से सिंदूरा से मुक्ति का उपाय पूछा गया तो उन्होने गणपति के पास जाने को कहा। सभी देवताओं ने गणपति से प्रार्थना की कि वह दैत्य सिंदूरा के अत्याचार से मुक्ति दिलायें। देवताओं और ऋषियों की आराधना से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उन्होंने मां जगदंबा के घर गजानन रुप में अवतार लिया। इधर राजा वरेण्य की पत्नी पुष्पिका के घर भी एक बालक ने जन्म लिया। लेकिन प्रसव की पीड़ा से रानी मूर्छित हो गईं और उनके पुत्र को राक्षसी उठा ले गई। ठीक इसी समय भगवान शिव के गणों ने गजानन को रानी पुष्पिका के पास पहुंचा दिया। क्योंकि गणपति भगवान ने कभी राजा वरेण्य की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वह उनके यहां पुत्र रूप में जन्म लेंगे।

लेकिन जब रानी पुष्पिका की मूर्छा टूटी तो वो चतुर्भुज गजमुख गणपति के इस रूप को देखकर डर गईं। राजा वरेण्य के पास यह सूचना पहुंचाई गई कि ऐसा बालक पैदा होना राज्य के लिये अशुभ होगा। बस राजा वरेण्य ने उस बालक यानि गणपति को जंगल में छोड़ दिया। जंगल में इस शिशु के शरीर पर मिले शुभ लक्षणों को देखकर महर्षि पराशर उस बालक को आश्रम लाये।

यहीं पर पत्नी वत्सला और पराशर ऋषि ने गणपति का पालन पोषण किया। बाद में राजा वरेण्य को यह पता चला कि जिस बालक को उन्होने जंगल में छोड़ा था, वह कोई और नहीं बल्कि गणपति हैं।

अपनी इसी गलती से हुए पश्चाताप के कारण वह भगवान गणपति से प्रार्थना करते हैं कि मैं अज्ञान के कारण आपके स्वरूप को पहचान नहीं सका इसलिये मुझे क्षमा करें। करुणामूर्ति गजानन पिता वरेण्य की प्रार्थना सुनकर बहुत प्रसन्न हुये और उन्होंने राजा को कृपापूर्वक अपने पूर्वजन्म के वरदान का स्मरण कराया|

भगवान् गजानन पिता वरेण्य से अपने स्वधाम-यात्रा की आज्ञा माँगी| स्वधाम-गमन की बात सुनकर राजा वरेण्य व्याकुल हो उठे अश्रुपूर्ण नेत्र और अत्यंत दीनता से प्रार्थना करते हुए बोले- ‘कृपामय! मेरा अज्ञान दूरकर मुझे मुक्ति का मार्ग प्रदान करे|’

राजा वरेण्य की दीनता से प्रसन्न होकर भगवान् गजानन ने उन्हें ज्ञानोपदेश प्रदान किया| यही अमृतोपदेश गणेश-गीता के नाम से विख्यात है|

गणेश गीता की मुख्य बातें

  • श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों में 700 श्लोक हैं, जबकि ‘गणेशगीता’ के 11 अध्यायों में 414 श्लोक हैं।
  • ‘सांख्यसारार्थ’ नामक प्रथम अध्याय में गणपति ने योग का उपदेश दिया और राजा वरेण्य को शांति का मार्ग बतलाया।
  • ‘कर्मयोग’ नामक दूसरे अध्याय में गणेशजी ने राजा को कर्म के मर्म का उपदेश दिया।
  • ‘विज्ञानयोग’ नामक तीसरे अध्याय में भगवान गणेश ने वरेण्य को अपने अवतार-धारण करने का रहस्य बताया।
  • गणेशगीता के ‘वैधसंन्यासयोग’ नाम वाले चौथे अध्याय में योगाभ्यास तथा प्राणायाम से संबंधित अनेक महत्वपूर्ण बातें बतलाई गई हैं।
  • ‘योगवृत्तिप्रशंसनयोग’ नामक पांचवें अध्याय में योगाभ्यास के अनुकूल-प्रतिकूल देश-काल-पात्र की चर्चा की गई है।
  • ‘बुद्धियोग’ नाम के छठे अध्याय में श्रीगजानन कहते हैं, ‘अपने किसी सत्कर्म के प्रभाव से ही मनुष्य में मुझे (ईश्वर को) जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। जिसका जैसा भाव होता है, उसके अनुरूप ही मैं उसकी इच्छा पूर्ण करता हूं। अंतकाल में मेरी (भगवान को पाने की) इच्छा करने वाला मुझमें ही लीन हो जाता है। मेरे तत्व को समझने वाले भक्तों का योग-क्षेम मैं स्वयं वहन करता हूं।’
  • ‘उपासनायोग’ नामक सातवें अध्याय में भक्तियोग का वर्णन है।
  • ‘विश्वरूपदर्शनयोग’ नाम के आठवें अध्याय में भगवान गणेश ने राजा वरेण्य को अपने विराट रूप का दर्शन कराया।
  • नौवें अध्याय में क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ का ज्ञान तथा सत्व, रज, तम-तीनों गुणों का परिचय दिया गया है।
  • ‘उपदेशयोग’ नामक दसवें अध्याय में दैवी, आसुरी और राक्षसी-तीनों प्रकार की प्रकृतियों के लक्षण बतलाए गए हैं। इस अध्याय में गजानन कहते हैं-‘काम, क्रोध, लोभ और दंभ- ये चार नरकों के महाद्वार हैं, अत: इन्हें त्याग देना चाहिए तथा दैवी प्रकृति को अपनाकर मोक्ष पाने का यत्न करना चाहिए।
  • ‘त्रिविधवस्तुविवेक-निरूपणयोग’ नामक अंतिम ग्यारहवें अध्याय में कायिक, वाचिक तथा मानसिक भेद से तप के तीन प्रकार बताए गए हैं।

श्रीमद्भगवत गीता और गणेश गीता

श्रीमद्भगवद्गीता और गणेशगीता का आरंभ भिन्न-भिन्न स्थितियों में हुआ था, उसी तरह इन दोनों गीताओं को सुनने के परिणाम भी अलग-अलग हुए। अर्जुन अपने क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने के लिए तैयार हो गया, जबकि राजा वरेण्य राजगद्दी त्यागकर वन में चले गए। वहां उन्होंने गणेशगीता में कथित योग का आश्रय लेकर मोक्ष पा लिया। गणेशगीता में लिखा है, ‘जिस प्रकार जल जल में मिलने पर जल ही हो जाता है, उसी तरह श्रीगणेश का चिंतन करते हुए राजा वरेण्य भी ब्रह्मालीन हो गए।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00