सूर्य कवच – Surya Kavach
सूर्य कवच के फायदे – (Surya Kavach in hindi) एक पौराणिक स्तोत्र है जो भगवान सूर्य की महिमा को गाता है और उन्हें स्तुति करता है। सूर्य कवच को सम्पूर्ण भक्ति और श्रद्धा के साथ पढ़ा जाता है जिससे भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त होती है और उनके आशीर्वाद से भक्त को सुरक्षा, समृद्धि, स्वास्थ्य और सफलता की प्राप्ति होती है।
त्रैलोक्य मंगल सूर्य कवच | Surya Kavach in Hindi
सूर्य कवच के श्लोक और मंत्र विभिन्न पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में उपलब्ध होते हैं। यह कवच संस्कृत भाषा में होता है और विशेष उच्चारण की जरूरत होती है। सूर्य कवच को प्रतिदिन नियमित रूप से पाठ करने से भगवान सूर्य की कृपा मिलती है और जीवन में समृद्धि और सफलता की प्राप्ति होती है।
सूर्य कवच स्तोत्र | Surya Kavach Stotra
अथ् विनियोग :
ॐ अस्य श्री सूर्य-कवचस्य ब्रह्मा ऋषि:, अनुष्टप् छन्दः, श्री सूर्यो देवता: । आरोग्य च विजय प्राप्त्यर्थं, अहम्, पुत्रो श्री, पौत्रो श्री, गोत्रे जन्मौ, श्रीसूर्य-कवच-पाठे विनियोगः।
अर्थ एवं विधान :
(अपने शुद्ध दाएँ हाथ में आचमनी में जल भरकर लें, बाएँ हाथ से दायीं भुजा को स्पर्श करते हुए निम्न प्रकार से विनियोग करें )
“इस श्री सूर्य कवच के ऋषि ब्रह्मा हैं, छन्द अनुष्टुप् है एवं श्री सूर्य देवता हैं । आरोग्य एवम् विजय की प्राप्ति हेतु मैं – पुत्र श्री – पौत्र श्री –गोत्र में जन्मा हुआ~ श्री सूर्य -कवच के पाठ के निमित्त स्वयं को नियोजित करता हूँ ”
ऐसा कहकर आचमनी के जल को~ हाथ को सीधा अर्थात् ऊपर की ओर रखते हुए ही~तीन बार थोड़ा-थोड़ा करके पृथ्वी पर छोड़ दें । उसके बाद निम्नलिखित श्री सूर्य कवच का अपने अभीष्ट अंगों को स्पर्श करते हुए जाप करें ।
श्री सूर्य कवचं : Shree Surya Kavach
श्रीसूर्यध्यानम्
रक्तांबुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपं भजामि।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जैः
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम्॥
श्री सूर्यप्रणामः
जपाकुसुमसङ्काशं काश्यपेयं महाद्युतिम्।
ध्वान्तारिं सर्वपापघ्नं प्रणतोऽस्मि दिवाकरम् ॥
। याज्ञवल्क्य उवाच ।
श्रुणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम् ।
शरीरारोग्यदं दिव्यं सर्व सौभाग्यदायकम् ॥ १॥
याज्ञवल्क्य जी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।
दैदिप्यमानं मुकुटं स्फ़ुरन्मकरकुण्डलम् ।
ध्यात्वा सहस्रकिरणं स्तोत्रमेतदुदीरयेत्॥२ ॥
चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।
शिरो मे भास्करः पातु ललाटे मेSमितद्दुतिः ।
नेत्रे दिनमणिः पातु श्रवणे वासरेश्वरः ॥३ ॥
मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।
घ्राणं धर्म धृणिः पातु वदनं वेदवाहनः ।
जिह्वां मे मानदः पातु कंठं मे सुरवंदितः ॥ ४ ॥
मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।
स्कंधौ प्रभाकरं पातु वक्षः पातु जनप्रियः ।
पातु पादौ द्वादशात्मा सर्वागं सकलेश्वरः ॥५ ॥
जो अपने स्कंध (भूजा) से प्रकाशित होते हैं, वह सूर्य भगवान मेरे स्कंध को सुरक्षित रखें। जो अपने वक्ष (छाती) से लोगों को प्रिय होते हैं, वह सूर्य भगवान मेरी छाती को सुरक्षित रखें। जो अपने द्वादश (दो बाहुओं) से विश्व में व्याप्त होते हैं, वह सूर्य भगवान मेरे पाँवों को सुरक्षित रखें। जो सर्वत्र सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर हैं, वह सूर्य भगवान मुझे सम्पूर्ण शरीर में सुरक्षित रखें।
सूर्यरक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्जपत्रके ।
दधाति यः करे तस्य वशगाः सर्वसिद्धयः ॥६ ॥
सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।
सुस्नातो यो जपेत्सम्यक् योSधीते स्वस्थ मानसः ।
स रोगमुक्तो दीर्घायुः सुखं पुष्टिं च विंदति ॥ ७ ॥
स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है। वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।