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श्री शनि वज्र पंजर कवच – शनि जनित सभी कष्टों से मुक्ति देने वाला कवच

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श्री शनि वज्र पंजर कवच – Shani Vajra Panjar Kavach Hindi PDF

अशुभ शनि की दशा/अन्तर्दशा के समय यदि शनि की ढैय्या अथवा साढ़ेसाती का प्रकोप भी आरंभ हो जाता है तब जातक को अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ जाता है. मानसिक तथा शारीरिक कष्टों का तांता सा लग जाता है. विविध प्रकार की आनिष्टकारी परिस्थितियाँ घेर सकती हैं अथवा मृत्युतुल्य कष्ट भी आ सकता है. हर कार्य में अड़चन अथवा बाधाओं का सामना हो जाता है.

शनि यदि जन्म कुंडली में परेशानी देने वाला सिद्ध हो रहा है तब उसके निदान के लिए कुछ जप तथा पाठ शास्त्रों में उल्लेखित हैं, जिनमें से एक “श्रीशनि वज्रपंजर कवच” है. इस कवच का पाठ करने से जातक सभी प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता है और स्वस्थ तथा खुशहाल जीवन की ओर अग्रसर रहता है. जन्म कुंडली में शनि ग्रह कितना ही पीड़ादायक अथवा पापाक्रांत क्यों ना हो लेकिन इस कवच का पाठ करने से जीवन में चारों ओर सुख शांति रहती है और जातक हर्षोल्लास से जीवन व्यतीत करता है.

शनि वज्र पंजर कवच – Shani Vajra Panjar Kavach

विनियोगः ।
ॐ अस्य श्रीशनैश्चरवज्रपञ्जर कवचस्य कश्यप ऋषिः,
अनुष्टुप् छन्दः, श्री शनैश्चर देवता,
श्रीशनैश्चर प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः ॥
ऋष्यादि न्यासः ।
श्रीकश्यप ऋषयेनमः शिरसि ।
अनुष्टुप् छन्दसे नमः मुखे ।
श्रीशनैश्चर देवतायै नमः हृदि ।
श्रीशनैश्चरप्रीत्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ॥
ध्यानम् ।
नीलाम्बरो नीलवपुः किरीटी गृध्रस्थितस्त्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुजः सूर्यसुतः प्रसन्नः सदा मम स्याद् वरदः प्रशान्तः ॥ १॥
ब्रह्मा उवाच ॥
शृणुध्वमृषयः सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ॥ २॥
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ॥ ३॥
ॐ श्रीशनैश्चरः पातु भालं मे सूर्यनन्दनः ।
नेत्रे छायात्मजः पातु पातु कणौं यमानुजः ॥ ४॥
नासां वैवस्वतः पातु मुखं मे भास्करः सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठं भुजौ पातु महाभुजः ॥ ५॥
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु-शुभप्रदः ।
वक्षः पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्तथा ॥ ६॥
नाभिं ग्रहपतिः पातु मन्दः पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममान्तकः पातु यमो जानुयुगं तथा ॥ ७॥
पादौ मन्दगतिः पातु सर्वांगं पातु पिप्पलः ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दनः ॥ ८॥
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य यः ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवति सूर्यजः ॥ ९॥
व्यय-जन्म-द्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोऽपि वा ।
कलत्रस्थो गतो वाऽपि सुप्रीतस्तु सदा शनिः ॥ १०॥
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥ ११॥
इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा ।
द्वादशाऽष्टमजन्मस्थदोषान्नाशयते सदा ।
जन्मलग्नस्थितान् दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥ १२॥
॥ इति श्री ब्रह्माण्डपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनिवज्रपंजरकवचम् सम्पूर्णम् ॥

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