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जानिए गणेश चतुर्थी शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत और कथा महत्व

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लेख सारिणी

गणेश चतुर्थी – Ganesh Chaturthi 

Ganesh Chaturthi Vrat – हर चन्द्र महीने में हिन्दू कैलेंडर में 2 चतुर्थी तिथी होती है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार गणेश चतुर्थी भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मनाया जाता है। मान्यता है कि गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को मध्याह्न काल में, सोमवार, स्वाति नक्षत्र एवं सिंह लग्न में हुआ था इसलिए यह चतुर्थी मुख्य गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी कहलाती है। यह कलंक चतुर्थी के नाम से भी प्रसिद्ध है और लोक परम्परानुसार इसे डण्डा चौथ भी कहा जाता है। यद्यपि विनायक चतुर्थी उपवास हर महीने किया जाता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विनायक चतुर्थी भाद्रपद के महीने में होती है |


इस दिन से दस दिनों तक गणेश पूजा की जाती हैं. इसका महत्व देश के महाराष्ट्र प्रांत में अधिक देखा जाता हैं. महाराष्ट्र में गणेश जी का एक विशेष स्थान होता हैं. वहाँ पुरे रीती रिवाजों के साथ गणेश जी की स्थापना की जाती हैं उनका पूजन किया जाता हैं. पूरा देश गणेश उत्सव मनाता हैं.

गणेश चतुर्थी की कथा – Ganesh Chaturthi Katha

Ganesh Chaturthi ki Kahani – कहा जाता है कि माता पार्वती ने अपने शरीर के मैल से भगवान गणेश का निर्माण किया था. एक बार माता पार्वती स्नान करने जा रही थी और उन्होंने गणेश को आदेश दिया जब तक वह स्नान करके न लौट आए तब वह दरवाजे पर पहरा दें, लेकिन तभी भगवान शिव वहां आ गए और गणेश ने उन्हें अंदर जाने से रोका, भगवान गणेश और शिव के बीच इस बात को लेकर काफी विवाद हुआ और क्रोध में आकर भगवान शिव ने उनका सिर काट दिया |

यह दृश्य देखकर माता पार्वती बेहद क्रोधित होती है जिसके बाद भगवान शिव माता पार्वती को वचन दिया कि वह गणेश को नया जीवन देंगे | इस घटना के बाद भगवान शिव ने अपने साथियों को एक सिर ढूंढने के लिए भेजा, उन लोगों ने एक हाथी का सिर लाकर उन्हें दिया, भगवान शिव ने वह हाथी का सिर गणेश के धड़ से जोड़कर उन्हें नया जीवन दिया जिसके बाद भगवान गणेश को गजानन कहकर पुकारा जाने लगा |

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व – Ganesh Chaturthi Importance

  • जीवन में सुख एवं शांति के लिए गणेश जी की पूजा की जाती हैं.
  • संतान प्राप्ति के लिए भी महिलायें गणेश चतुर्थी का व्रत करती हैं.
  • बच्चों एवम घर परिवार के सुख के लिए मातायें गणेश जी की उपासना करती हैं.
  • शादी जैसे कार्यों के लिए भी गणेश चतुर्थी का व्रत किया जाता हैं.
  • किसी भी पूजा के पूर्व गणेश जी का पूजन एवम आरती की जाती हैं. तब ही कोई भी पूजा सफल मानी जाती हैं.
  • गणेश चतुर्थी को संकटा चतुर्थी भी कहा जाता हैं. इसे करने से लोगो के संकट दूर होते हैं.


ऐसे मनाये गणेश चतुर्थी का त्योहार – Ganesh Chaturthi festival Celebration 

इसी दिन से श्रीगणेश के 10 दिवसीय गणेशोत्सव की शुरुवात होती है। इन दिनों हर कोई भगवान श्रीगणेश की मूर्ति घर-दुकान में स्थापित कर, उनकी पूजा-अर्चना करता है। भगवान श्री गणेश की मूर्ति की स्थापना करते वक़्त कुछ बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। यहां हम आपको कुछ ऐसी ही आवश्यक बातों के बारे में बता रहे है।

किस जगह कैसी मूर्ति रखना होगा शुभ

घर में भगवान गणेश की बैठी मुद्रा में और दुकान या ऑफिस में खड़े गणपति की मूर्ति या तस्वीर रखना बहुत ही शुभ माना जाता है।

मूर्ति रखते समय ध्यान रखें ये बात

घर या दुकान में गणेश मूर्ति रखते समय ध्यान रखें की उनके दोनों पैर ज़मीन का स्पर्श करते हुए हों। इससे कामों में स्थिरता और सफलता आती है।

ख़ास होती है सिंदूरी रंग की प्रतिमा

सर्व मंगल की कामना करने वालों को सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना करनी चाहिए। ऐसा करने से सभी मनोकामनाएं जल्दी पूरी होती है।

किस ओर हो श्रीगणेश की सूंड

श्रीगणेश की मूर्ति या चित्र में इस बात का ध्यान रखें की उनकी सूंड बाएं हाथ की और घुमी हुई हो। दाएं हाथ की और घुमी हुई सूंड वाले गणेश जी हठी होते हैं।

श्री गणेश के साथ जरूर हो ये दो चीज़ें

घर में श्री गणेश का चित्र लगाते समय ध्यान रखें कि चित्र में मोदक और चूहा अवश्य हो। इससे घर में बरकत रहती है।

मेन गेट पर इस तरह लगाएं श्रीगणेश की तस्वीर

घर के मेन गेट पर गणपति की दो मूर्ति या चित्र लगाने चाहिए। उन्हें ऐसे लगाएं कि दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे। ऐसा करने से सभी वास्तु दोष खत्म हो जाते है।

इस तरह कर सकते है वास्तुदोष का अंत

घर का जो हिस्सा वास्तु के अनुसार सही न हो, वहां घी मिश्रित सिंदूर से श्रीगणेश स्वरुप स्वास्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होने लगता है।

सुख-शांति के लिए घर लाए सफ़ेद मूर्ति

घर या दुकान में सुख-शांति, समृद्धि की इच्छा रखने वालों को सफ़ेद रंग के विनायक की मूर्ति या तस्वीर लगानी चाहिए।

गणेश चतुर्थी व्रत पूजा विधि – Ganesh Chaturthi Puja Vidhi 

  • सबसे पहले एक ईशान कोण में स्वच्छ जगह पर रंगोली डाली जाती हैं, जिसे चौक पुरना कहते हैं.
  • उसके उपर पाटा अथवा चौकी रख कर उस पर लाल अथवा पीला कपड़ा बिछाते हैं.
  • उस कपड़े पर केले के पत्ते को रख कर उस पर मूर्ति की स्थापना की जाती हैं.
  • इसके साथ एक पान पर सवा रूपये रख पूजा की सुपारी रखी जाती हैं.
  • कलश भी रखा जाता हैं एक लोटे पर नारियल को रख कर उस लौटे के मुख कर लाल धागा बांधा जाता हैं. यह कलश पुरे दस दिन तक ऐसे ही रखा जाता हैं. दसवे दिन इस पर रखे नारियल को फोड़ कर प्रशाद खाया जाता हैं.
  • सबसे पहले कलश की पूजा की जाती हैं जिसमे जल, कुमकुम, चावल चढ़ा कर पुष्प अर्पित किये जाते हैं.
  • कलश के बाद गणेश देवता की पूजा की जाती हैं. उन्हें भी जल चढ़ाकर वस्त्र पहनाए जाते हैं फिर कुमकुम एवम चावल चढ़ाकर पुष्प समर्पित किये जाते हैं.
  • गणेश जी को मुख्य रूप से दूबा चढ़ायी जाती हैं.
  • इसके बाद भोग लगाया जाता हैं. गणेश जी को मोदक प्रिय होते हैं.
  • फिर सभी परिवार जनो के साथ आरती की जाती हैं. इसके बाद प्रसाद वितरित किया जाता हैं.

प्रसाद और भोग मे क्या प्रिय है गणेश जी को 

भगवान गणेश खाने के बेहद शौकीन थे, उन्हें कई तरह की मिठाईयां जैसे मोदक, गुड़ और नारियल जैसी चीज़े प्रसाद या भोग में चढ़ाई जाती हैं. गणेश जी को मोदक काफी पंसद थे जिन्हें चावल के आटे, गुड़ और नारियल से बनाया जाता है. . इस पूजा में गणपति को 21 लड्डुओं का भोग लगाने का विधान है.

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गणेश चतुर्थी विशेष – Ganesh Chaturthi Special 

1. मान्यता है की इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए वरना कलंक का भागी होना पड़ता है। अगर भूल से चन्द्र दर्शन हो जाए तो इस दोष के निवारण के लिए नीचे लिखे मन्त्र का 28, 54 या 108 बार जाप करें। श्रीमद्भागवत के दसवें स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ करने से भी चन्द्र दर्शन का दोष समाप्त हो जाता है।

चन्द्र दर्शन दोष निवारण मन्त्र:

सिंहःप्रसेनमवधीत् , सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव, ह्येष स्यमन्तकः।।

2. ध्यान रहे कि तुलसी के पत्ते (तुलसी पत्र) गणेश पूजा में इस्तेमाल नहीं हों। तुलसी को छोड़कर बाकी सब पत्र-पुष्प गणेश जी को प्रिय हैं।
3. गणेश पूजन में गणेश जी की एक परिक्रमा करने का विधान है। मतान्तर से गणेश जी की तीन परिक्रमा भी की जाती है।

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