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अकालमृत्यु और असाध्य रोगों से मुक्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र जप

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महामृत्युंजय मंत्र जाप क्यों ?

धर्मग्रंन्थों में भगवान शिव कों प्रसन्न करने, अकालमृत्यु से बचने तथा असाध्य रोगों से मुक्त होने के लिए भगवान शिव केे महामृत्युंजय मंत्र के जप का उल्लेख किया गया हैं। इस जप के प्रभाव से व्यक्ति मौत के मुंह में जाने से भी बच जाता हैं। यदि मारक ग्रह दशाओं के लगने से पहले महामृत्युंजय मंत्र का जप कर या करा लिया जाए अथवा महामृत्यंजय यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा करवाकर उसे अपने पास रख लिया जाए, तो भावी दुर्घटना टल जाती है।

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यदि वह घटित होेती भी है, तो भी जानलेवा सिद्ध कभी नहीं होती। व्यक्ति की मृत्यु या अकालमृत्यु निश्चित ही टल जाती है। यदि रोग घातक हो और उसके लिए मृत्यु अवश्यंभावी हो, तो ये प्रयोग करने से लाभ होता है और रोगी को जीवनकाल मिल जाता है।

विद्वान ज्योतिषी जन्मकुुुंडली देखकर अनिष्टकारी ग्रहों से निबटने के लिए, दुर्घटना टालने के लिए, आयुवर्धन के लिए एवं अकालमृत्यु के योग या रोग के योग को टालने के लिए महामृत्युंजय मंत्र के सवा लाख, पांच लाख या ग्यारह लाख जप करने का परामर्श देेते है। यदि किसी कारणवश व्यक्ति स्वयं या उसके घर में कोई भी जप करने में समर्थ न हो, तो यह कार्य, किसी प्रकांड पंडित से भी करवाया जा सकता हैं।

‘’ पद्य पुराण’’ में महर्षि मार्कण्डेय कृत महाममृत्युंजय मंत्र एवं स्तोत्र का वर्णन है। उसके अनुसार मुनि मृकंडु संतानहीन थे। एक समय उन्होंने भगवान शिव की कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने मृकंडु से कहा, ‘‘ हे मुनि, तुमने मेरी घोर तपस्या की है, एक हजार रूद्राभिषेक किए हैं, इसमें मैं अत्यंत प्रसन्न हूं। बताओं, तुम मुझसे क्या चाहते हो ? ’’

मुनि मृकंडु ने दोनो हाथ जोड़कर विनती की, ‘‘भगवान मैं निःसंतान हु, मेंरे कोई पुत्र नहीं है। मुझे पुत्र प्रदान कीजिए।’’

भगवान शिव बोले, ‘‘हे मुनि, यदि तुम्हें योग्य, संस्कारी और तेजस्वी बालक चाहिए, तो उसकी आयु केवल सोलह वर्ष होगी। यदि अयोग्य तथा संस्कारहीन बालक चाहिए, तो उसकी आयु एक सौ वर्ष होगी। तुम कैसा बालक चाहते हो ?’’

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मुनि मुकंडु ने सुयोग्य पुत्र की कामना की।


भगवान शिव ‘‘ तथास्तु’’ कहकर लोप हो गए। उनकी कृपा से मुनि मृकंडु के यहां अत्यन्त सुंदर तथा तेजस्वी बालक उत्पन्न हुआ, जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गयां। वह बालक प्रारंभ से ही भगवान शिव का परम भक्त था। बाल्यावस्था में ही बालक मार्कण्डेय ने संस्कृत के अनेक श्लोकों की रचनाप कर डाली। इसी बालक ने महामृत्यृंजय मंत्र एवं स्तोत्र की रचना भी की।

सोलह वर्ष की आयु पूर्ण होने पर यमराज के दूत बालक के प्राण हरने आए। यमराज के दूतों को देख बालक ने स्नेह के वशीभूत होकर शिवलिंग को कसकर पकड लिया। और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगा। जैसे ही यमराज के दूत उसके प्राण लेने के लिए आगे बढें, वैसे ही शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट हुए और उन्होंने क्रोध से यमराज के दूतो को देखा। तब यमराज के दूत भयभीत होकर बालक मार्कण्डेय की अमर होने का वरदान देकर चले गएं। तभी से महामृत्युंजय मंत्र का महत्त्व देवता, असुर और मनुष्यों को ज्ञात हुआं।

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महामृत्युंजय मंत्र के समान महामृत्युंजय यंत्र भी प्रभावी और शुभफलदायी है। जब किसी व्यक्ति को अकारण मृत्यु-भय सताने लगें या निद्रा में भयभीत का देने वाले स्वप्न आने लगे, तो इस यंत्र को अपने सिरहाने रखकर सोने से लाभ होता है। यदि लंबी यात्रा पर जाना पड़ जाए और इस यात्रा में भय अथवा किसी प्रकार की आशंका हो, तो यंत्र को अपने साथ रख लेना चाहिए।

यदि व्यक्ति स्वयं अथवा कोई इष्ट मित्र या संबंधी रोगग्रस्त हो और स्वास्थ्य लााभ न कर पा रहा हो तो इस यंत्र को रोगी के सिरहाने रखकर शीघ्र स्वस्थ हो जाने की कामना करनी चाहिए। यंत्र के प्रभाव से औषधियां भी प्रभावशाली होकर रोगी को लाभ पहुुंचाती हैं। महामृत्युंजय मंत्र इस प्रकार है –

ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारूकमिव बंधनानमृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।

यह मंत्र सभी संकटों का निवारण शीघ्र ही कर देेता है।

Written by

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