कुम्भ लग्न की कुंडली में गुरु ग्यारहवें और दुसरे भाव के स्वामी हैं । दोनों वृहस्पति देव के कारक भाव हैं इस वजह से इस लग्न कुंडली में गुरु एक योगकारक गृह बनते हैं । वहीँ राहु अपनी मित्र राशि में शुभ फलप्रदायक होते हैं और शत्रु राशि में अशुभ । राहु के मित्र राशिस्थ होने पर सम्बंधित भाव के स्वामी की स्थिति देखना भी अनिवार्य है, यानी जिस भाव में राहु हैं उस भाव के मालिक कहीं छह, आठ अथवा बारहवें भाव में तो स्थित नहीं है, या किसी अन्य वजह से कमजोर तो नहीं है । यदि ऐसा है तो राहु की दशाओं में शुभ परिणाम प्राप्त नहीं होते । आइये विस्तार से जानते हैं गुरु व् राहु की युति से किन भावों में बनता है गुरुचण्डाल योग, किस गृह की की जायेगी शांति….
Table of Contents
कुम्भ लग्न की कुंडली में प्रथम भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in first house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
प्रथम भाव में राहुगुरु की युति होने पर किसी भी गृह से सम्बंधित उपाय नहीं करवाया जाएगा । दोनों ही ग्रहों की दशाओं में जातक को अत्यंत शुभ फल प्राप्त होते हैं, प्रेम विवाह का योग बनता है, व्यापार में लाभ होता है, विदेश यात्राओं से उन्नति होती है, भाग्य उन्नत होता है, दैनिक आय में दिनोदिन बढ़ौतरी होती है, लाइफ व् बिज़नेस पार्टनर्स के साथ सम्बन्ध मधुर रहते हैं ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में द्वितीय भाव में गुरुचण्डाल योग Gajkesari yoga in second house in Aquarius/Kumbh kundli :
दुसरे भाव में राहु अपनी शत्रु राशि मीन में आकर अपनी दशाओं में अशुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हैं । वहीँ गुरु स्वराशिस्थ होकर शुभ फलदायक हैं । दुसरे भाव से सम्बंधित होने पर राहु की दशाएं कष्टकारी होती हैं इसलिए राहु की शांति अनिवार्य है ।
Also Read: कुम्भ लग्न की कुंडली में बुद्धादित्य योग – Budhaditya yoga Consideration in Aquarius/Kumbh
कुम्भ लग्न की कुंडली में तृतीय भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in third house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
तृतीय भाव में अपनी शत्रु राशि मेष में स्थित होने पर राहु अशुभ फलदायक होते हैं जिस वजह से राहु की शांति अनिवार्य है । राहु की दशाओं में जातक की व्यर्थ की भागदौड़ लगी रहती है, परिश्रम बहुत अधिक होता है और लाभ अति अल्प मात्रा में प्राप्त हो पाता है । गुरु की दशाएं परिश्रम व् लम्बी यात्राओं में वृद्धिकारक होती हैं, साथ ही परिश्रम का उचित फल भी प्रदान करती हैं ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in fourth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
वृष राशि में राहु उच्च के माने जाते हैं । यदि शुक्र किसी शुभ भाव में स्थित हुए तो राहु की दशाएं बहुत शुभफलदायक होती हैं । इसी प्रकार गुरु भी योगकारक होकर शुभ भावस्थ हुए हैं । चौथे भाव में स्थित होने पर अपनी दशाओं में बहुत शुभ फल प्रदान करते हैं । इस भाव में राहु गुरु की युति होने पर किसी भी गृह की शांति नहीं करवाई जायेगी ।
Also Read: कुम्भ लग्न की कुंडली में पंचमहापुरुष योग – Panchmahapurush yoga Consideration in Aquarius/Kumbh
कुम्भ लग्न की कुंडली में पंचम भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in fifth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
मिथुन राशि में राहु उच्च अवस्था में आ जाते हैं और अपनी दशाओं में शुभ फल प्रदान करते हैं । गुरु की दशाओं में भी जातक को अत्यंत शुभ फल प्राप्त होते हैं । राहु गुरु की दशाओं में अचानक लाभ, पुत्र प्राप्ति, बड़े भाई बहन से लाभ, उच्च शिक्षा प्राप्ति व् स्वास्थ्य उत्तम रहने के योग बनते हैं ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में छठे भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in sixth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
राहु अपनी शत्रु राशि में आये हैं और गुरु अपनी उच्च राशि में । छठे भाव में आने पर दोनों की दशाएं अशुभता में वृद्धिकारक होती हैं । इस भाव में स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अवश्य करवानी पड़ती है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में सातवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in seventh house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
सप्तम भाव में राहु अपनी अति शत्रु राशि सिंह में है । राहु दशाएं अशुभ फलदायक होंगी । वहीँ गुरु अपनी मित्र राशि में विराजमान होकर शुभ फलों में वृद्धिकारक होते हैं । सप्तम भाव में गुरुराहु की युति होने पर राहु की शांति अनिवार्य है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में आठवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in eighth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
आठवाँ भाव त्रिक भाव में से एक होता है, शुभ नहीं कहा जाता है । आठवाँ भाव वैसे ही भौतिक दृष्टि से शुभ नहीं कहा गया है । गुरु व् राहु भी इस भाव में अशुभता में ही वृद्धिकारक होते हैं । यहाँ स्थित होने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति करवाई जाती है । यदि बुद्ध विपरीत राजयोग बनाते हों तो राहु की दशाएं शुभ फलों में वृद्धिकारक हो सकती हैं । ऐसे में कुंडलीका उचित विश्लेषण करवाकर राहु से सम्बंधित कोई निर्णय लें ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में नौवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in ninth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
नवम भाव में स्थित होने पर गुरु व् राहु दोनों की दशाएं शुभ फलदायक रहती हैं । परिश्रम का लाभ अवश्य प्राप्त होता है, विदेश यात्राएं होती हैं, स्वास्थ्य उत्तम रहता है, अचानक लाभ के योग बनते हैं, पुत्र संतान प्राप्त होती है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में दसवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in tenth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
दशम भाव में राहु अपनी नीच राशि वृश्चिक में आकर अशुभ फल प्रदान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं । वहीँ गुरु मित्र राशि में आये हैं, शुभफलदायक होते हैं । इस भाव से सम्बंधित होने पर राहु की शांति करवाई जाती है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में ग्यारहवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in eleventh house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
धनु राशि भी राहु की नीच राशि मानी जाती है । इस वजह से ग्यारहवें भाव में आने पर राहु की शांति करवाई जानी चाहिए । स्वराशिस्थ गुरु अपनी दशाओं में जातक को बहुत अधिक धनवान बना सकते हैं यदि समय रहते राहु देवता से सम्बंधित उपाय करवा लिया जाए । यदि राहु को शांत नहीं करवाया जाए तो गुरु के शुभ फलों में भी कमी आती है ।
कुम्भ लग्न की कुंडली में बारहवें भाव में गुरुचण्डाल योग Guruchandal yoga in twelth house in Aquarius/Kumbh lgna kundli :
बारहवां भाव त्रिक भावों में से एक होता है, शुभ नहीं माना जाता है । दोनों ग्रहों की दशाओं में व्यर्थ का व्यय लगा ही रहता है । कोर्ट केस में धन व्यय होने के योग बनते हैं । इस भाव में आने पर राहु व् गुरु दोनों की शांति अति आवश्यक है ।
( YourAstrologyGuru.Com ) पर विज़िट करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।