आपके भीतर यदि ग्रहों को समझने की लालसा है और आप ग्रहों के गुण तत्वों , आचार – व्यवहार की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो आपके लिए इनसे सम्बंधित कहानियों को जरूर पढ़ना , समझना और जानना बहुत आवश्यक हो जाता है । ये कथाएं निसंदेह आपके ज्योतिषीय ज्ञान के लिए वृद्धिकारक होंगी और आपके लिए सहायक सिद्ध होंगी । प्राचीन काल से चली आ रही इन कहानियों में प्रत्येक गृह से सम्बंधित बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध हैं । इनकी सहायता से हमें ग्रहों को बारीकी से समझने में मदद मिलती है और भविष्य कथन और स्पष्ट व् सटीक हो पाता है । ग्रहों की इस श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए आज हम बुद्ध देवता से सम्बंधित कहानियां जानेंगे …
Table of Contents
बुद्ध देवता Buddh Devta :
ग्रहों से सम्बंधित कहानियों में हमें जानकारी प्राप्त होती है की बुद्ध देव बहुत ही सुन्दर , आकर्षक और बुद्धिमान व्यक्तित्व के स्वामी हैं । इनको हरा रंग प्रिय है , सप्ताह के तीसरे वार यानि बुद्ध वार पर इनका स्वामित्व है और पन्ना इनका प्रिय रत्न है और पीतल प्रिय धातु । ऐसी मान्यता है की इनकी दिशा उत्तर है , शरद ऋतु इन्हें प्रिय है और ये एक पृथ्वी तत्व गृह हैं । इसके साथ ही अश्लेषा, ज्येष्ठ और रेवती नक्षत्र पर इनका स्वामित्व माना गया है । लेखन व् यात्राएं बुद्ध देव के अधीन हैं और साथ ही ये व्यापार व् विश्लेषण क्षमता के स्वामी भी कहे गए हैं । ये मिथुन व् कन्या राशि के स्वामी हैं और कन्या राशि में १५ डिग्री तक उच्च् व् मीन राशि में १५ डिग्री तक नीच के माने जाते हैं । सूर्य देव व् शुक्र देव इनके मित्र गृह हैं साथ ही राहु केतु व् शनि देव से भी इनकी खूब निभती है व् चंद्र मंगल से इनकी शत्रुता कही गयी है । कुछ ज्योतिषविदों का मत है की इनकी सूर्य , शुक्र , शनि व् राहु – केतु से मित्रता है परन्तु यदि क्रूर गृह कुंडली के मारक गृह हों तो ये उनके फलों में वृद्धिकारक हो जाते हैं और चंद्र को कहीं इनकी माता तो कहीं पिता कहा गया है । यहां हम इतना ही कहेंगे की आप स्वयं स्टडी करें और अपने अनुभव के आधार पर तय करें की क्या होना चाहिए । हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं ।
बुद्ध देवता की कहानी Buddh Devta Story:
बुध देवता बुद्धि के कारक व् गंधर्वों का प्रणेता कहे गए हैं । बुद्धि (यहां बुद्धि का आशय ज्ञान से है ) स्वामी बृहस्पति को माना जाता है तो गंधर्व विशेषज्ञ कहा जाता है चंद्रमा को । जानने योग्य है की बुध में ये दोनों गुण कहाँ से आये ? इससे सम्बंधित एक बहुत ही रोमांचक कथा प्रचलित है । आइये जानते हैं की क्या कहती है बुद्ध देवता की कहानी ….
वृहस्पति देव को देवगुरु कहा गया है । देवगुरु होने से बृहस्पति चन्द्र देव के भी गुरु हुए । कथा कहती है की देवगुरु की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंंदरता पर मोहित हो गयीं व् उनसे प्रेम करने लगी। वे इतना आगे निकल गयीं कि बृहस्पति को उन्होंने छोड़ ही दिया। यहां तक कि जब बृहस्पति देव ने उन्हें वापिस बुलाया तो उसने वापस आने से मना कर दिया । इससे बृहस्पति देव क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया। इस युद्ध में दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने चंद्रमा का साथ दिया और देवताओं ने वृहस्पति देव का ।
ऐसी मान्यता है कि तारा कि कामना से हुए इस युद्ध को तारकाम्यम कहा गया । यह युद्ध इतना विशाल व् भयंकर हुआ कि सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा भी चिंता में पड़ गए । उन्हें आभास हो गया कि इस प्रकार तो पूरी सृष्टि ही समाप्त हो जाएगी । सो उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा। अब तारा ने एक बहुत ही सुन्दर बालक को जन्म दिया । यह बालक इतना आकर्षक था कि चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसकी ओर मोहित हो गए और इसे अपना बताने लगे । परन्तु तारा चुप ही रही। बुद्ध देव माता की चुप्पी से बहुत अशांत हुए व क्रोधित होकर स्वयं बुध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुद्ध को चन्द्रमा का पुत्र बताया । इस प्रकार चन्द्रमा को बुध के पिता और तारा को इनकी माता कहा गया । क्यूंकि इनकी बुद्धि बड़ी गम्भीर व् तीक्ष्ण थी इसलिए ब्रह्माजी ने इनका नाम बुध रखा । चन्द्रमा के पुत्र होने व्इ देवगुरु के लालन पालन के कारण इनमे दोनों के ही गन पाए जाते हैं और यही वजह है कि बुध को गंधर्व विद्या का प्रणेता व् बुद्धि का कारक माना जाता है।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार चंद्र ने तारा के सौंदर्य से मोहित होकर उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा जिसे तारा ने ठुकरा दिया । इससे चंद्र के अहंकार को चोट पहुंची और क्रोधित होकर चन्द्रमा ने बलपूर्वक उनका बलात्कार किया । इस बलात्कार से तारा गर्भवती हुईं और उन्होंने बुद्ध को जन्म दिया ।
एक अन्य कथा के अनुसार गुरु कि पत्नी तारा पर मोहित होकर चन्द्रमा ने उनका अपहरण किया । इनसे बुद्ध का जन्म हुआ और जब चण्द्रमा ने बुद्ध को अपना पुत्र घोषित कर उसका जातकर्म संस्कार करना चाहा तो गुरु क्रोधित हो गए । बुद्ध कि सुंदरता व् तेज इतना अधिक था कि गुरु इन्हे अपना पुत्र मानने के लिए तैयार थे , लेकिन चन्द्रमा को ये कतई स्वीकार न था । सो दोनों में युद्ध हुआ और ब्रह्मा जी के हस्तक्षेप के बाद तारा ने बुद्ध को चन्द्रमा का पुत्र स्वीकार किया । अब चन्द्रमा ने नामसंस्कार किया और इस बालक को बुद्ध नाम दिया । इस बालक का पालन पोषण चन्द्रमा कि पत्नी रोहिणी ने किया । यही कारण है कि बुद्ध को रौहिणेय भी कहा जाता है ।