वर्तनाम समय में गणेश उत्सव से सभी भली भाती परिचित है। दस दिनों तक मनाये जाने वाले इस उत्सव का आरम्भ गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन होता है।
महाराष्ट्र में भगवान गणेश और गणेश चतुर्थी से प्रारम्भ होने वाले उत्सव का विशेष महत्त्व है। अतः यहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने घर में यथा संभव गणपति स्थापना अवश्य करता है।
अपितु सम्पूर्ण नौ दिनों तक विधिवत न हो पाने की स्थिति में एक से नौ दिनों में जितने दिन संभव हो घर में स्थापित करते है।
यदपि घर में स्थापित करने पर विसर्जन का समय अलग अलग होने पर भी सभी की स्थापना गणेश चतुर्थी को ही की जाती है।
एक अन्य महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है, कि दिगंबर जैन समुदाय के सबसे पवित्र पर्युषण पर्व का आरंभ भी गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) के दिन से होता है, और गणेश उत्सव की तरह चौदस को संपन्न होता है।
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History of Ganesh Chaturthi | इतिहास
गणेश चतुर्थी जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदू त्योहार है। जो भगवान श्री गणेश के अपनी मां देवी पार्वती के साथ कैलाश पर्वत से पृथ्वी पर आने के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।
हालांकि यह अज्ञात है कि गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को पहली बार कब या कैसे मनाया गया था।
लेकिन प्रारम्भिक ज्ञात स्रोतों के आधार पर यह त्योहार सार्वजनिक रूप से पुणे में शिवाजी महाराज के युग 1630 -1690 के समय से मनाया जाता रहा है।
18 वीं शताब्दी में पेशवा शासक गणेश के भक्त थे, और भाद्रपद के महीने के दौरान अपनी राजधानी पुणे में एक सार्वजनिक गणेश उत्सव मनाना इन्होने शुरू किया।
ब्रिटिश राज की शुरुआत के बाद गणेश उत्सव ने राज्य का संरक्षण खो दिया।
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक लोकमान्य तिलक द्वारा इसके पुनरुद्धार तक महाराष्ट्र में एक निजी पारिवारिक उत्सव बनकर रह गया।
पहले इस त्यौहार को निजी तौर पर घरों में ही मनाया जाता था। सार्वजनिक रूप से मनाने की प्रथा की शुरुआत श्री बाल गंगाधर तिलक द्वारा गणेश भगवान की मूर्तियों की स्थापना के साथ किया गया था।
उन्हें इसके आरम्भ करता के रूप में माना जाता है। विस्तृत गणेश पंडालों की शुरुआत पुणे में वर्ष 1893 से पुनः प्रारंभ हुई मानी जाती है।
उनका उद्देश्य इस उत्सव के माध्यम से लोगो को स्वतंत्रता आंदोलन के लिए संगठित और जाग्रत करना था।
चूकि इस उत्सव का शुभारम्भ भारत के महाराष्ट्र प्रांत के पुणे शहर से हुआ था। इस कारण कई वर्षों तक यह उत्सव इसी स्थान तक सीमित रहा।
धीरे -धीरे जहां गणपति में विश्वास करने वाले लोग बसते गए। इसका विस्तार पूरे भारत वर्ष ही नहीं विश्व के अलग अलग देशों में भी होने लगा।
हिन्दू धर्म शास्त्रों में कई जगह इस उत्सव में भगवान की पूजा के लिए व्रत और अलग अलग मंत्र जाप का भी उल्लेख किया जाता है।
गणेश पंडाल से भक्तों के समुदाय को वितरित की जाने वाली प्रसाद स्वरूप में मोदक जैसी मिठाइयां शामिल होती हैं, क्योंकि इसे भगवान गणेश का पसंदीदा मिष्ठान माना जाता है।
Ganesh Chaturthi and Hindu belief | हिन्दू धर्म में स्थान और मान्यता
प्राचीन वैदिक ग्रंथों जैसे गृह सूत्र और उसके बाद प्राचीन संस्कृत ग्रंथों जैसे वाजसनेयी संहिता, याज्ञवल्क्य स्मृति और महाभारत में गणपति को गणेश्वर और विनायक के रूप में वर्णित किया गया है।
गणपति या गणेश भगवान के स्वरूप का पहला लिखित उल्लेख हमको ऋग्वेद में मिलता है। यह उल्लेख आपको ऋग्वेद में दो बार किया गया है।
इन दोनों श्लोकों में गणपति की भूमिका “द्रष्टाओं के बीच द्रष्टा, बुजुर्गों के बीच भोजन में माप से परे और आह्वान के स्वामी होने” के रूप में की गयी है।
जबकि मंडल 10 में श्लोक में कहा गया है, कि गणपति के बिना “पास या दूर कुछ भी नहीं है, और इनके बिना संसार कुछ नहीं ” ।
कई ग्रंथों में गणेश भगवान मध्ययुगीन पुराणों में “सफलता के देवता, बाधा निवारक” के रूप में प्रकट होते हैं। स्कंद पुराण, नारद पुराण और ब्रह्म वैवर्त पुराण, जैसे प्राचीन ग्रन्थ विशेष रूप से, उनकी बहुत प्रशंसा करते हैं।
कई बार शाब्दिक व्याख्याओं से परे, पुरातात्विक और पुरालेख संबंधी साक्ष्य दर्शाते हैं, कि भगवान गणेश काफी समय पहले से लोकप्रिय थे।
8 वीं शताब्दी से पहले भी वह लोगों के लिए पूजनीय थे। उनकी कई छवियां 7 वीं शताब्दी या उससे पहले की भी देखी गयी हैं।
उदाहरण के लिए हिंदू, बौद्ध और जैन मंदिरों की नक्काशी, जैसे कि एलोरा गुफाएं जो कि 5वीं और 8वीं शताब्दी के बीच की हैं, जिनमे गणेश को प्रमुख हिंदू देवता के रूप में अन्य देवी देवताओं के साथ श्रद्धापूर्वक विराजमान दिखाया गया है।
भारतीय समाज में प्रत्येक शुभ कार्य के शुभारंभ से पहले भगवान गणेश की पूजा अर्चना करने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है।
Ganesh Chaturthi Celebration | उत्सव की प्रक्रिया
गणेश चतुर्थी हिंदू धर्म में समृद्धि और ज्ञान के देवता, हाथी के सिर वाले देवता भगवान् गणेश के आने के नौ दिवसीय उत्सव के रूप में मनाते है, जो भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है।
यह त्यौहार 10 दिनों का उत्सव होता है जिसे घरों, मंदिरों और अस्थायी रूप से बने मंच या पंडालों में भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति की स्थापना द्वारा शुरू किया जाता है।
हर साल यह त्योहार पंडालों और स्थानीय समुदायों के माध्यम से बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
यदि आप स्थानीय उत्सवों का हिस्सा नहीं बन पा रहे हैं, तो आप अपने घर में भी भगवान गणेश की स्थापना करके और विधि -विधान से पूजा अर्चना करके ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
इस त्योहार का उत्सव एक महीने पहले शुरू हो जाता है, जब भगवान गणेश की मूर्तियां मंदिरों, घरों और पंडालों के लिए कई आकारों में बनाई जाना शुरू हो जाती हैं।
आप नियत मुहूर्त में अपने घर गणेश जी की मिट्टी की मूर्ति लाकर सुबह और शाम पूजा करने के लिए विधि पूर्वक अनुष्ठान शुरू कर सकते हैं।
मूर्ति को घर लाने से पहले आमतौर पर पूरे घर की सफाई की जाती है। पूरा परिवार भगवान के स्वागत के लिए इकट्ठा होता है। फिर दूर्वा, फूल, मोदक और करंजी का प्रसाद चढ़ाकर भगवान् गणेश की मूर्ति की पूजा की जाती है।
Ganesh Chaturthi Rituals | पूजन की विधि
भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति को एक ऊँचे आसन पर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करते है।
मूर्ति को स्थापित करने से पहले और एक बार स्थापित होने के बाद भगवान गणेश से संबंधित प्रार्थना और मंत्रों का जाप किया जाता है।
एक बार मूर्ति स्थापित हो जाने के बाद,भगवान के चरण पवित्र जल से धोए जाते हैं, मूर्ति को पंचामृत द्वारा स्नान कराकर के साथ जल अर्पित किया जाता है।
तत्पश्चात पांच फूल गणेश जी के चरणों में रखें और उसके बाद पद्य समर्पण करें। इसके बाद सिंदूर, नैवेद्यम, चंदन, दूर्वा, माला इत्यादि भी भगवान को समर्पित किये जाते हैं।
यदि आप चाहें तो पूजा विधि के लिए आप घर पर किसी पंडित को बुलाकर मंत्रों का जाप कर सकते हैं, और गणेश चतुर्थी की पूजा के सोलह अनुष्ठान कर सकते हैं।
Shri Ganesh Arti | भगवान गणेश की आरती
भगवान गणेश की आरती गणेश चतुर्थी के पूजन के चरणों में से सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। आप निम्नलिखित आरती गाकर भगवान की की पूजा और सम्मान कर सकते हैं।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा;
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा;
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी;
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी;
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा;
अंधे को आंख देत, कोढ़िन को काया,बांझन को पुत्र देता, निदान को माया;
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा;.
पान चढ़े, फूल चढ़े, और चढ़े मेवा;
लड्डूओं का भोग लगे, संत करें सेवा;
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।”
Ganpati Bhog, Prasad | गणपति का प्रसाद और भोग
ऐसा माना जाता है, कि भगवान गणेश को लड्डू और मोदक बहुत पसंद होते है, जो कि चावल या गेहूं के आटे से बने गुड़ और नारियल के भरावन से भरी एक मीठी पकौड़ी के समान मिष्ठान होता है ।
इस पावन पर्व के उपलक्ष पर विभिन्न प्रकार के मोदक बनाकर भगवान गणेश को प्रसाद के रूप में चढ़ाए जाते हैं। भगवान गणेश को भोग के रूप में मोदक, लड्डू सहित लगभग 21 प्रकार की मिठाइयां अर्पित की जाती हैं।
जो पूजन विधि संपन्न होने पर सभी भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित की जाती हैं।
नौ दिनों तक यह प्रक्रिया सुबह और शाम को दोहराई जाती है। महाराष्ट्र में तो लोग नए वस्त्रों से सज धज कर इस त्यौहार को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते है।
Ganpati Visarjan | गणपति विसर्जन
नौ दिनों तक चलने वाले इस पावन उत्सव का समापन दस वे दिन गणपति विसर्जन के साथ होता है। उत्सव के अंतिम दिन गणेश जी की मूर्ति को समूह या परिवार द्वारा ले जाकर पवित्र नदी या जल स्रोत में विसर्जित किया जाता है।
जितने पूजन संस्कारों के साथ भगवान के आगमन और स्थापना का कार्यक्रम गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) को किया जाता है। उतने ही सम्मान और विधि-विधान से गणेश प्रतिमा का विसर्जन भी किया जाता है।
इस दौरान हर एक भक्त की आँखों में अपने प्रिय भगवान् से बिछड़ने का दुःख होता है, और उनसे अगले वर्ष फिर से आने की कामना होती है। इस दौरान भक्त निम्नलिखित आरती का गान करते है।
आवाहनं न जन्मी ना जन्मी तवार्चनम।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व गणेश्वर॥
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम।
तस्मात् कारुण्य भावना रक्षस्व विघ्नेश्वर।
गतं पापं गतं दुःखं गतं दारिद्रय मेवा चा।
अगत सुख सम्पति पुण्यच्छा तवा दर्शन: मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर।
यत् पूजितम् माया देवा परिपूर्णं तदस्तु मे॥
यदक्षरपद भ्राष्टम मातरहिनाम चा यादभवेत।
तत्सर्वं क्षम्यतां देवा प्रसाद परमेश्वर:
मूर्ति के विसर्जन के बाद सभी भक्त अपने घरों को लौट जाते है, और उत्सव की मधुर यादों को अपने ह्रदय में समाहित कर लेते हैं।
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