पुरातन समय में तत्व ज्ञान की महत्ता अधिक होने से ऋषि मुनि गण लाभ स्थान (ग्यारहवें भाव) को अधिक महत्व नहीं दिया करते थे वरन इस भाव को भगवत प्राप्ति में एक बड़ी बाधा के रूप में देखा जाता था । अतः इसे बाधक भाव कहा जाता था । किन्तु आज का युग अर्थ युग है । धन की उपयोगिता सर्वविदित है । अर्थयुग में ग्यारहवें भाव को अत्यंत महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है । किसी भी शुभ फल या इच्छापूत्री की जानकारी बिना लाभ भाव के अन्वेषण के असंभव है ।
Eleventh house ग्यारहवां भाव : सभी मित्रों को भली प्रकार विदित है की समाज में भली प्रकार जीने के लिए धन, मकान, वाहन , प्रसिद्धि , मान सम्मान व् प्रतिष्ठा का होना कितना आवश्यक है । छठे भाव में की गयी मेहनत व् दसवें भाव में किये गए कर्मों के शुभाशुभ फल का विचार ग्यारहवें भाव से किया जाता है । यदि ग्याहरहवाँ भाव बलवान है तो असेंडेंट को अपने प्रयासों में पूर्ण सफल होने के योग बनते हैं । लाभ में अधिकता या कमी भावेशों की स्थिति, युति, कारकत्व मारकत्व आदि पर निर्भर करती है । कुंडली के बारहवें भाव को हस्पताल, मृत्यु शैया, व्यय स्थान कहा जाता है तो ग्यारहवां भाव कुंडली के बारहवें का बारहवां भाव होने की वजह से बारहवें भाव के अशुभ फलों में कमी लाता है । बारहवें से रोग का विचार किया जाता है ग्यारहवें से रोगमुक्ति का । यदि बारहवां व्यय भाव है तो ग्यारहवां आय भाव है । किसी वस्तु या व्यक्ति का खो जाना बारहवें से तो उक्त वास्तु या व्यक्ति का मिलना ग्यारहवें से देखा जाता है । यदि कुंडली का बारहवां भाव जीवन में दुःख लाता है तो ग्यारहवां सुख सुविधा प्रदायक है । किसी भी घटना के घटित होना या न होना ग्यारहवें भाव से ही परखा जाता है । सभी संभावित प्राप्तियां, बडी उम्र के दोस्त, सभी प्रकार के लाभ, इच्छापूर्ति, फॉलोवर्स, दोस्त, शुभ चिन्तक की जानकारी प्राप्त करने हेतु ग्यारहवें भाव का भली प्रकार निरिक्षण आवश्यक होता है ।
Other Prospects of Eleventh house ग्यारहवें भाव से सम्बंधित अन्य पक्ष : जन्म कुंडली के ग्यारहवें भाव को लाभ स्थान या आय भाव के रूप में जाना जाता है । यहाँ से जातक के बड़े भाई बहन, माता के ससुराल, संतान के दाम्पत्य जीवन व् दैनिक आय – पार्टनरशिप, असेंडेंट के ससुराल से या गुप्त रास्ते से धन प्राप्ति, पिता के छोटे भाई बहन, राज्य या सत्ता पक्ष से लाभ सम्मान प्रतिष्ठा, या मकान भूमि वाहन की खरीद फरोख्त से लाभ का विचार किया जाता है । पुरातन समय में इस भाव का उतना अधिक महत्व नहीं समझा जाता था लेकिन आज भौतिक सुख साधनो की महत्ता अधिक है सो यह कुंडली का सर्वथा शुभ स्थान माना जाता है । मान्यता है की लग्न कुंडली के इस भाव में भले ही कोई भी गृह स्थित हो सवर्था शुभ फल ही प्रदान करता है । इस भाव में जो भी गृह आएगा वह आपको लाभ अवश्य देगा । इसलिए इस भाव को लाभ स्थान कहा जाता है । किसी भी कार्य की सिद्धि या इच्छा पूर्ती की गणना के लिए इस भाव का विचार किया जाता है । शरीर के अंगों में असेंडेंट के बाएं कान और घुटने से लेकर पैर के पिछले हिस्से तक की जानकारी भी इस भाव से प्राप्त की जा सकती है । साथ ही असेंडेंट की संगत या मित्रता इस भाव से देखी जाती है ।