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हनुमान बाहुक
Hanuman Bahuk Lyrics In Hindi
सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बाल-बरन तनु |
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ||
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव |
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ||
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित सन्तत निकट |
गुन-गनत, नमत, सुमिरत, जपत समन सकल-संकट-विकट ||१||
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन-तेज-घन |
उर बिसाल भुज-दंड चंड नख-बज्र बज्र-तन ||
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन |
कपिस केस, करकस लँगूर, खल-दल बल भानन ||
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट |
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहिं आवत निकट ||२||
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झूलना
पंचमुख-छमुख-भृगु मुख्य भट असुर सुर, सर्व-सरि-समर समरत्थ सूरो |
बाँकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ||
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह, जासुबल, बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झूरो |
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ||३||
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन-अनुमानि सिसु-केलि कियो फेरफार सो |
पाछिले पगनि गम गगन मगन-मन, क्रम को न भ्रम, कपि बालक बिहार सो ||
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरि हर बिधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खभार सो|
बल कैंधौं बीर-रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि को सार सो ||४||
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि कुरुराज दल हल बल भो |
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ||
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलँग फलाँग हूँतें घाटि नभतल भो |
नाई-नाई माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ||५||
गो-पद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निसंक परपुर गलबल भो |
द्रोन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर, कंदुक-ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ||
संकट समाज असमंजस भो रामराज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो |
साहसी समत्थ तुलसी को नाह जाकी बाँह, लोकपाल पालन को फिर थिर थल भो ||६||
कमठ की पीठि जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो |
जातुधान-दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बास तिमि तोमनि को थल भो ||
कुम्भकरन-रावन पयोद-नाद-ईंधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो |
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो ||७||
दूत रामराय को, सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो |
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन, लखन प्रिय प्रान सो ||
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो |
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ||८||
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को |
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु, सेवक-सरोरुह सुखद भानु भोर को ||
लोक-परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को |
राम को दुलारो दास बामदेव को निवास, नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोर को ||९||
महाबल-सीम महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को |
कुलिस-कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना-कलित मन धारमिक धीर को ||
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को |
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ||१०||
रचिबे को बिधि जैसे, पालिबे को हरि, हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो |
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु, पोषिबे को हिम-भानु भो ||
खल-दुःख दोषिबे को, जन-परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक सुदान भो |
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो ||११||
सेवक स्योकाई जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को |
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को ||
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को |
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक को ||१२||
सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी |
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ||
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की |
बालक-ज्यों पालिहैं कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की ||१३||
करुनानिधान, बलबुद्धि के निधान मोद-महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ |
बामदेव-रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ ||
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक-बेद-बिधि के बिदूष हनुमान हौ |
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ ||१४||
मन को अगम, तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे हैं |
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं |
बीर बरजोर, घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं |
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे हैं ||१५||
सवैया
जान सिरोमनि हौ हनुमान सदा जन के मन बास तिहारो |
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो ||
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो |
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार ह्वैं हों मन तौ हिय हारो ||१६||
तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले |
तेरे निवाजे गरीब निवाज बिराजत बैरिन के उर साले ||
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै मकरी के से जाले |
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ||१७||
सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से |
तैं रनि-केहरि केहरि के बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से ||
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से |
बानर बाज ! बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा-से ||१८||
अच्छ-विमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो |
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो ||
राम-प्रताप-हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर-दुलारो |
पाप-तें साप-तें ताप तिहूँ-तें सदा तुलसी कहँ सो रखवारो ||१९||
घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ जन, मन अनुमानि बलि, बोल न बिसारिये |
सेवा-जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिये ||
अपराधी जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये |
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये ||२०||
बालक बिलोकि, बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिये |
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिये ||
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिये |
केसरी किसोर, रनरोर, बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिये ||२१||
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिये |
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ||
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये |
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिये ||२२||
राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये |
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे, जीव-जामवंत को भरोसो तेरो भारिये ||
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम-पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिये |
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह-पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिये ||२३||
लोक-परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये |
कर्म, काल, लोकपाल, अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ||
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये |
बात तरुमूल बाँहुसूल कपिकच्छु-बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये ||२४||
करम-कराल-कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बकभगिनी काहू तें कहा डरैगी |
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी ||
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सबको गुनी के पाले परैगी |
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ||२५||
भालकी कि कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप ताप छल छाँह की |
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की ||
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की |
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की ||२६||
सिंहिका सँहारि बल, सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है |
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है ||
तोरि जमकातरि मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है |
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ||२७||
तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र-रबि-राहु की |
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै आरति न काहु की ||
साम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु की |
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की ||२८||
टूकनि को घर-घर डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है |
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो है ||
इतनो परेखो सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है |
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है ||२९||
आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है |
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है ||
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है |
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है ||३०||
दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को |
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को ||
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को |
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ||३१||
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं |
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम, राम दूत की रजाइ माथे मानि लेत हैं ||
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं |
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं ||३२||
तेरे बल बानर जिताये रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-घर के |
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ||
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के |
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ||३३||
पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये |
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिये ||
अँबु तू हौं अँबुचर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये |
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ||३४||
घेरि लियो रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है |
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनाई है ||
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ाई है |
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ||३५||
सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई सुसाँई सदा अनुकूलो |
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो ||
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत आरत आनँद भूलो |
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो ||३६||
घनाक्षरी
काल की करालता करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे |
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ||
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे |
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ||३७||
पाँय पीर पेट पीर बाँह पीर मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है |
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ||
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है |
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ||३८||
बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं |
राम नाम जगजाप कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं ||
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं |
तुलसी सँभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाइ बानवान हैं ||३९||
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं |
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ||
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं |
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ||४०||
असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को |
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को ||
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को |
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ||४१||
जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को |
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को ||
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को |
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ||४२||
सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै |
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै ||
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै |
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै ||४३||
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिये |
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ||
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये |
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिये ||४४||
पढ़ें – Jhanda Bajrang Bali Ka
Album: Hanuman Bahuk
Language: Hindi
Produced By: Sudhakar Sharma
Music: Sudhakar Sharma
Lyrics: Goswami Tulsidas Ji
Singer: Nitin Mukesh & Ghanshyam Aacharya