लेख सारिणी
होलाष्टक – Holashtak
होलाष्टक (Holashtak) शब्द होली (Holi Festival) और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है. जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन. इसी दिन से होली उत्सव (holi festival of colours) के साथ-साथ होलिका दहन (Holika Dahan) की तैयारियां भी शुरू हो जाती है. होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहता है. अष्टमी तिथि से शुरू होने कारण भी इसे होलाष्टक कहा जाता है. दूसरे शब्दों में हम भी कह सकते हैं कि हमें होली आने की पूर्व सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है.
होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों का अच्छा फल नहीं मिल पाता है. होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगाजल आदि से लिपाई की जाती थी. साथ ही वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था . जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है.होलाष्टक एक दिन का पर्व ना होकर जबकि आठ दिन का पर्व है.
उग्र रहते हैं ग्रह जिसे होती है हानि
होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र स्वभाव में रहते हैं. इन ग्रहों के उग्र होने के कारण मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है जिसके कारण कई बार उससे गलत निर्णय भी हो जाते हैं. जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है.
जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए. मानव मस्तिष्क पूर्णिमा से 8 दिन पहले कहीं न कहीं क्षीण, दुखद, अवसाद पूर्ण, आशंकित और निर्बल हो जाता है. ये अष्ट ग्रह, दैनिक कार्यकलापों पर विपरीत प्रभाव डालते हैं. भारतीय मुहूर्त विज्ञान और ज्योतिष शास्त्रानुसार प्रत्येक कार्य शुभ मुहूर्तों का शोधन करके करना चाहिए. यदि कोई भी कार्य शुभ मुहूर्त में किया जाता है तो वह उत्तम फल प्रदान करता है. इस धर्म धुरी से भारतीय भूमि में प्रत्येक कार्य को सुसंस्कृत समय में किया जाता है, अर्थात् ऐसा समय जो उस कार्य की पूर्णता के लिए उपयुक्त हो.
प्रत्येक कार्य की दृष्टि से उसके शुभ समय का निर्धारण किया गया है. जैसे गर्भाधान, विवाह, नामकरण, चूड़ाकरन, विद्यारंभ, गृह प्रवेश व निर्माण, गृह शांति, हवन यज्ञ कर्म आदि कार्यों का सही और उपयुक्त समय निश्चित किया गया है. इस प्रकार होलाष्टक को ज्योतिष की दृष्टि से अशुभ माना गया है जिसमें विवाह, गर्भाधान, गृह प्रवेश, निर्माण आदि शुभ कार्य वर्जित हैं.
यह भी जरूर पढ़े :
- रुद्राक्ष की सम्पूर्ण जानकारी : रुद्राक्ष के मंत्र, आध्यात्मिक लाभ और असली रुद्राक्ष की पहचान तथा सकारात्मक प्रभाव
- राजयोग मैडिटेशन की संपुर्ण जानकरी ऑडियो सहित
इसलिए होली के पूर्व इन आठ दिनों को माना जाता है अशुभ
मान्यता है कि भक्त प्रह्लाद की अनन्य नारायण भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकश्यप ने होली से पहले के आठ दिनों में प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के जघन्य कष्ट दिए थे. तभी से भक्ति पर प्रहार के इन आठ दिनों को हिंदू धर्म में अशुभ माना गया है.
इस समय विशेष रूप से विवाह, नए भवन निर्माण व नए कार्यों को आरंभ नहीं करना चाहिए. ऐसा ज्योतिष शास्त्र का कथन है. अर्थात् इन दिनों में किए गए कार्यों से कष्ट, अनेक पीड़ाओं की आशंका रहती है और विवाह आदि संबंध विच्छेद और कलह होते हैं.
धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन वस्त्र, अनाज और अपने इच्छानुसार धन का दान करना चाहिए.