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इन शास्त्रोक्त और पौराणिक दिनचर्या एवं कर्तव्य से बनेंगे दीर्घायु और ऐश्वर्य युक्त जीवन के भोगी

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दीर्घायु और ऐश्वर्य प्राप्ति कैसे हो

हिन्दू संस्कृति अत्यंत विलक्षण है, इसके सभी सिद्धांत पूर्णतः वैज्ञानिक और मानवमात्र की लौकिक तथा पारलौकिक उन्नति करने वाले है | जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य जिन जिन वस्तुओ एवं व्यक्तियों के संपर्क में आता है, और जो-जो क्रियाये करता है, उन सबको हमारे ऋषि मुनियो ने बड़े वैज्ञानिक ढंग से मर्यादित और सुसंस्कृत किया है | इस पोस्ट में हम आपको विष्णु पुराण, मनुस्मृति, मत्स्य पुराण, पद्म पुराण, महाभारत, ब्रह्मपुराण और मार्कण्डेय पुराण मे लिखित दैनिक कार्यो और व्यवहार में आने वाले कर्तव्य को आपसे साझा कर रहे है, उम्मीद है आप भी इसे अपने जीवन में उतारेंगे और अपने परिवार और समाज के लिए एक सुखद और सुसंस्कृत दीर्घायु जीवन यापन की पुनः नीव रखेंगे ।

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ये नियम करे आत्मसात

1. दो घटी अर्थात् अड्तालीस मिनट का एक मुहूर्त होता है । पन्द्रह मुहूर्त का एक दिन और पन्द्रह मुहूर्त की एक रात होती है । सूर्योदय से तीन मुहूर्त का ‘ प्रात: काल ‘, फिर तीन मुहूर्त का ‘ संगवकाल ‘, फिर तीन मुहूर्त का मध्याह्काल’, फिर तीन मुहूर्त का ‘ अपराह्वकाल ‘ और उसके बाद तीन मुहूर्त का ‘ सायाह्काल ‘ होता है ।

2. मनुष्य को चाहिये कि वह स्नान आदि से शुद्ध होकर पूर्वाह्न में देवता- सम्बन्धी कार्य (दान आदि), मध्याह्म में मनुष्य-सम्बन्धी कार्य और अपराह्म में पितर-सम्बन्धी कार्य करे । असमय में किया हुआ दान राक्षसों का भाग माना गया है । ( पूर्वाह्न देवताओं का, मध्याह्. मनुष्यों का, अपराहं पितरों का और सौयाह्. (शाम का ) राक्षसों का समय माना गया है )

3. ऋषियों ने प्रतिदिन सन्ध्योपासन करने से ही दीर्घ आयु प्राप्त की थी। इसलिये सदा मौन रहकर द्विजमात्र को प्रतिदिन तीन समय सन्ध्या करनी चाहिये । प्रात:काल की सन्ध्या ताराओं के रहते-रहते, मध्याह्म की सन्ध्या सूर्य के मध्य-आकाश में रहने पर और सायंकाल की सन्ध्या सूर्य के पश्चिम दिशा में चले जाने पर करनी चाहिये ।

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4. मल-मूत्र का त्याग, दातुन, स्नान, श्रृंगार, बाल सँवारना, अंजन लगाना, दर्पण में मुख देखना और देवताओं का पूजन, ये सब कार्य पूर्वाह्नमं “करने चाहिये।

5. दोनों सन्ध्याओं तथा मध्याह के समय शयन, अध्ययन, स्नान, उबटन लगाना, भोजन और यात्रा नहीं करनी चाहिये ।

6. दोनों सन्ध्याओं के समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है।

7. रात में दही खाना, दिन में तथा दोनों सन्ध्याओं के समय सौना और रजस्वला स्त्री के साथ समागम करना, ये नरक की प्राप्ति के कारण हैं।

8. दोपहर में, आधी रात में और दोनों सन्ध्याओं में चौराहे पर नहीं रहना चाहिये।

9. अत्यन्त सबेरे, अधिक साँझ हो जाने पर और ठीक मध्याह् के समय कहीं बाहर नहीं जाना चाहिये ।

10. दोपहर के समय, दोनों सन्ध्याओं के समय और आर्द्रा नक्षत्र में दीर्घायु की कामना रखने वाले अथवा अशुद्ध मनुष्यों को श्मशान में नहीं जाना चाहिये।

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11. सन्ध्याकाल (सायंकाल) में भोजन, स्त्री संग, निद्रा तथा स्वाध्याय, इन चार कर्मों को नहीं करना चाहिये । इनके मुख्य कारण यह है कि भोजन करने से व्याधि होती है, स्त्री संग करने से क्रूर सन्तान उत्पन्न होती है, निद्रा से लक्ष्मी का हास होता है और स्वाध्याय से आयु का नाश होता है।

12. भोजन, शयन, यात्रा; स्त्रीसग, अध्ययन किसी विषय का चिन्तन, मद्यका विक्रय (शराब बेचना), भबके से अर्क खींचना, कोई वस्तु देना या लेना, ये कार्य सन्ध्या के समय नहीं करने चाहिये ।

13. चौराहा, चैत्यवृक्ष, श्मशान, उपवन, दुष्टा स्त्री का साथ, देवमन्दिर, सूना घर तथा जंगल, इनका देर रात में सर्वदा त्याग करना चाहिये । सूने घर, जंगल और श्मशान में तो दिन में भी निवास नहीं करना चाहिये।

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14. रात्रि में पेड़ के नीचे नहीं रहना चाहिये ।

15. अमावस्या के दिन जो वृक्ष, लता आदि को काटता है या उनका एक पत्ता भी तोड़ता है, उसे ब्रह्महत्या का पाप लगता है।

16. संक्रान्ति, ग्रहण, पूर्णिमा, अमावस्या आदि पर्वकाल प्राप्त होने पर जो मनुष्य वृक्ष, तृण और ओषधियों का भेदन-छेदन करता है, उसे ब्रह्महत्या लगती है ।

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