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इस दीपावली पर अपने गहनों को चमका कर बदले अपना भाग्य

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देवी धूमावती, माँ कालरात्रि के अलावा सभी देवियों को, अप्सराओं, रानी-महारानियों को, वर्तमान में कोरपोरेट जगत की सेलिब्रिटी, अभिनेत्रियों से लेकर सम्पन्न प्राचीनकाल की परिवार की गृहणियों को स्वर्ण तथा रत्नाभूषणों से सज्जित देखा है। वह आभूषण, वह जेवरात, वह गहने जो स्त्री के चेहरे के रूप, देह के सौन्दर्य में आकर्षक, मुग्धा वृद्धि करते हों, उसे खरीदना, पहनना, इतराना, सज्जित होना कौनसी स्त्री नहीं चाहेगी? पर क्या आप जानती हैं कि इन आभूषणों, जेवरातों, गहनों के धातुओं, रत्नों का संबंध ग्रहों से भी हैं?

दीपावली पर्व, देवी लक्ष्मी, श्रीगणेश, देवी सरस्वती की पूजा, द्रव्य पूजा में रखने से पूर्व तथा अन्य विशेष अवसरों पर इनकी सफाई नहीं की, चमकाया नहीं तो इनसे संबंधित ग्रह भी नाराज हो सकते हैं, शायद कभी इतने कि इनकी धारक स्त्रियों को माफ भी ना करें ? भले ही यह अविश्वसनीय लगे पर जो सच है उस से इनकार नहीं किया जा सकता, पर यह सच है कि गहनों का संबंध ग्रहों से भी है। यानी ये सब जिन धातुओं, रत्नों से बने है उन पर ग्रहों का स्वामित्व है।

ज्योतिष शास्त्रानुसार स्वर्ण, पीतल का सूर्य से, स्वर्ण, तांबे का मंगल से, चांदी का चन्द्रमा से, बुध का पन्ना, जवाहरात सें, बृहस्पति का स्वर्ण, पुखराज से, शुक्र का हीरा, स्वर्ण मणि, रजत, आभूषणों से स्वामित्व का संबंध है।

लोहे पर शनि का स्वामित्व सर्वविदित है। इन्हीं धातुओं से विभिन्न आभूषणों, गहनों का निर्माण होता है। ये अलग-अलग प्रकार रूपों, नामों से शरीर पर सिर से लेकर गर्दन, हाथ, वक्षस्थल, पावों तक धारित किये जाते हैं। ये इतने कलात्मक, नक्कासीदार, जड़ाऊ चमकदार होते हैं कि देखने वाला अपनी आंखों की पलकें तक झपकाना भूल जाएं।

इनकी इससे अधिक विशेषता क्या होगी कि आद्याशक्ति देवी नौ दुर्गा तथा दशमहाविद्याओं के रूपों में सिर्फ देवी धूमावती, देवी कालरात्रि को छोड़कर सभी देवियों, देवी लक्ष्मी, देवी सरस्वती तक की देहों पर विविध आभूषण, स्वर्ण मुकुट तक धारित देखे जा सकते हैं तो देवाधिदेव श्री शिव को छोड़कर सभी देव, वृद्धरूप जगत्पिता श्री ब्रह्मा तक भी आभूषणों, गहनों से सज्जित दर्शन से शायद ही कोई अनभिज्ञ होगा।

यहां तक कि कई देवी-देवों चाहे वह श्री विष्णु हों या देवी लक्ष्मी, देवराज इन्द्र हों या कुबेर आदि को चित्रों में इन्हें मोती, हीरे, पन्ने, माणिक आदि से जड़ें आभूषणों को पहने देखा होगा। आज के धनाढय परिवारों में कई अवसरों पर ऐसे आभूषणों की झलक देखी जा सकती है।

अग्निपुराण के रत्न परीक्षा प्रकरण में बहुत से रत्नों के नाम आते हैं- यथा व्रज, मरकत, पद्मराग, मुक्ता, महानील, इन्द्रनील, वैदूर्य, गन्धशस्य, चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त, स्फटिक, पुलक, कर्केतन, पुष्पराग, ज्योतीरस, राजपट्ट, राजमय, सैगन्धिक, गंज्ज, शंख, गोमेद, रूधिराक्ष, भल्लातक, धूली, तुथक, सीस, पील, प्रवाल, गिरिवज्र, भुजंगमणि, वजमणि, टिट्टिम, पिण्ड, भ्रामर, उत्पल नौ ग्रहों में शुक्र का कहना है कि वज्र (हीरा), मोती, मूंगा, गोमेद, इन्द्रनील, वैदूर्य, पुखराज, पाचि, मणिक्य- ये नौ महारत्न हैं। इनमें लाल वर्ण का इन्द्रगोप के समान कान्ति वाला माणिक्य सूर्य को प्रिय है तथा लाल, पीला, सफेद, श्याम कान्तिवाला मोती चन्द्रमा को प्रिय है

इसी प्रकार पीलापन लिये लाल मूंगा मंगल को प्रिय है तथा मोर या चाष के पंखों के समान वर्ण का पाचि बुध को प्रिय है। सोने की झलक वाला पुखराज बृहस्पति को प्रिय है तथा तारों के समान कान्ति वाला वज्र शुक्र को प्यारा है। शनैश्वर को सजल मेघ के समान कान्ति वाला इन्द्रनील प्रिय है। किंचिंत् लाल, पीली कान्ति वला गोमेद राहु को तथा बिलाव के नेत्रों के समान कान्ति वाला तथा लकीर वाला वैदूर्य केतु को प्रिय है।

भारत को आज ‘सोने की चिड़िया‘ कहे, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि श्री राम के राज्य अयोध्या, आस-पास के प्रत्येक साधारण से साधारण प्रजा के सभी सोने के मकानों के दरवाजों पर हीरे जड़े हुए थे। महर्षि वाल्मीकि ने अयोध्या का वर्णन करते हुए लिखा भी है कि वह सब प्रकार के रत्नों से भरी-पूरी जड़ी विमानाकार गृहों से सुशोभित थी

वर्तमान में लौटे, स्वर्ण, चांदी से निर्मित गहनों की बात करें तो गले में चैन, हार, मालाएं, नाक में नथ, कान में बाली, कर्णफूल, कमर में कन्दौरा, पायजेब, चूड़ियां, कंगन, अंगुठियां, पकड़ा बिछड़ी, हंसली, जूड़े, झुमकी आदि सोने-चांदी या कृत्रिम धातुओं से बने जेवर आमतौर पर महिलाएं पहनती हैं। पुरूष प्रायः गले में चैन, अंगूठियां कड़े आदि पहनते हैं। रखड़ी या बोरला माथे के बीच पहना जाता है। यह कुंदन, मीना व मोतियों से सजा होता है। माथा-पट्टी, झेला, शीशफूल, सिर मांग भी यहां प्रचलित है। वही तिमानिया या आड़ नेकलेस राजपूत दुल्हनें पहनती हैं। इसे चैकर नेकलेस भी कहते हैं।

थोड़ा पीछे देखें तो जानेंगे कि नवविवाहित वधु को उनके मायके तथा ससुराल से बीसियों तोले सोने के जेवरात चढ़ाए जाते थे। अनेक छोटे-बड़े जेवरों के साथ भारी-भरकम झूमर टीका, रानी हार, कंगन, बड़ी-सी नथनी। वहीं नथनी जिसे पहनकर उन्हें लगता कि उनकी छोटी-सी नाक पर किसी ने पहाड़ का टुकड़ा लटका दिया हो।

यहां तक कि उनके गरारों शरारों तथा डुपट्टों में लगी बेल-बाकड़ियों में भी चांदी-सोने के तार का इस्तेमाल किया जाता था। विदा होकर ससुराल आई तो वहां भी मुंह दिखाई में कई तोले सोने के जेवर मिले तथा साथ मिली इन्हें संभालकर रखने की सास की सीख । यह भी समझाया कि ब्याहता का गला, हाथ खाली रहना अच्छा नहीं माना जाता। यह सिर्फ श्रृंगार की चीज नहीं हम भारतीय महिलाओं के लिए स्त्री धन है।

सच ही तो है किसी भी घर पर नजर डालें, बुरे वक्त में हमेशा इस स्त्री धन ने ही परिवार को मुसीबत से निकाला है। पहले गहने, रत्नाभूषण बनाने के पूर्व ज्योतिषी से निर्माण का शुभ समय देखकर, राशि के अनुसार, उसके अनुकूल ये सब बनाये जाते थे। इन्हें साफ, स्वच्छ रखा जाता था ताकि उसे पहनने में शरीर रोग मुक्त स्वस्थ रहें। इन्हें दीपावली पर देवी महालक्ष्मी की पूजा के समय तो इनकी सफाई की जाती, चमकाया जाता था। लेकिन अब कई संख्या में ऐसी महिलाएं, परिवार हैं जिन्होंने कभी इस ओर ध्यान दिया ही नहीं कि हमारे जेवरातों में कितना मैल जमता जा रहा है।

महिलाएं घर-गृहस्थी के काम करती हैं। ऐसे में आटा गूंथने से लगाकर अन्य कामों को करने में अंगूठियों, चूड़ियों आदि में मैल जम जाता है। जल्दबाजी में सफाई से साबुन भी लगा रह जाना स्वाभाविक है। इसी तरह नियमित देखभाल के अभाव में पुरूष हो या महिलाएं, इनके जेवरों में गन्दगी जमा हो जाती आभूषण, गहने धन हैं जिसका देवी लक्ष्मी का सीधा संबंध हैं क्योंकि वह धन-सम्पदा की स्वामिनी हैं तो इनके धातु, रत्नों से सभी नौ ग्रहों का संबंध है।

यह सच प्रत्यक्ष अनुभूत है कि सफाई के अभाव में आभूषणों आदि पर जमा गंदगी में महीन कीटाणु पड़ जाते हैं जो इनके सम्पर्क में आने वाली त्वचा पर संक्रमण शुरू कर देते हैं। इसका अन्दाजा हमें तब चलता है जब संक्रमण का जोर बढ़ने लगता है, सफेद धब्बे या अन्य चिह्न दिखाई देने लगते हैं। कई बार चर्म के संक्रमण से त्वचा खराब हो जाती है। खुजली के साथ लाल-लाल दाने या चकते निकल आते हैं, जिससे एग्जिमा तथा अन्य त्वचा रोग भी पैदा हो जाते हैं। कई बार लम्बे समय तक पहनने वाले जेवरों से चमड़ी पर काले धब्बे पड़ जाते हैं अथवा त्वचा गल जाती है। इन स्थानों पर गौर से परीक्षण करवाया जाएं तो सूक्ष्म कीटाणुओं का संक्रमण भी देखा जा सकता है।

ऐसे में यह प्रश्न अनौचित्य नहीं हो सकता कि दीपावली पर परम्परागत रूप में देवी महालक्ष्मी, श्री गणेश, देवी सरस्वती की पूजा के समय इनके सामने भेंट रूप में ऐसे मेले, अस्वच्छ आभूषण रखकर इनकी कृपा कैसे प्राप्त कर सकते हैं? जब पूजा, प्रार्थना, वंदना के पूर्व नहा धोकर, स्वच्छ वस्त्र पहनकर तैयार होना अनिवार्य हे, जब देवी-देव के समक्ष भेंट रूप में नैवेद्य, फल आदि ताजे, शुद्ध भोग योग्य रखते हैं, जब दीपावली पर देवी महालक्ष्मी आदि के समक्ष पूजा काल में घर का पूरा धन-चांदी के सिक्के, रुपये भेंट रूप में रखते हैं तो इनके साथ ऐसे अस्वच्छ गहने-आभूषण रखना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं माना जा सकता।

अगर इस बारे में लापरवाही बरती गई, इसे अनदेखा किया गया तो इससे न केवल देवी-देवों को अप्रिय लगेगा बल्कि ग्रह ‘‘भी कुपित होंगे जिसके दुष्प्रभाव से देर सवेर इन्हें चोरी, लूट, , डकैती, छल-बल से गंवाना पड़ सकता है तो कभी असली से नकली तक में बदले जा सकते हैं।

सम्भव है कि अभाव, कर्ज, कष्टजनक स्थितियों में इन्हें बेचने, अपने से दूर करने की नौबत भी आ जाए। यह न भूलें कि देवी लक्ष्मी धन की दात्री देवी हैं, रूपये-पैसे, सोना-चांदी, जवाहरात, सम्पदा, वैभव इन्हीं की कृपा से उपलब्ध होता है तो आवश्यक है कि दीपोत्सव के पूर्व, यहां तक कि किसी विवाह, उत्सव, समारोह, करवाचैथ जैसे व्रत के भी पूर्व क्यों न सभी जेवरों को निकालकर गरम पानी में वाशिंग पाउडर मिलाकर ब्रश से रगड़कर साफ कर लें। इसके अलावा चांदी के जेवरों को साफ करने के लिए अरीठा का प्रयोग करना सबसे सस्ता तथा उत्तम है। इससे साफ करने से कितना भी पुराना जेवर हो वो नये की तरह चमकने लगता है।

फिर ऐसी चमकती आभा वाले स्वच्छ, गंदगी, रोगजनक कीटाणुओं से मुक्त गहने आभूषणों को देखकर देवी लक्ष्मी, श्री गणेश, देवी सरस्वती, कुबेर प्रसन्न न हों, साधक पूजा में उद्यत स्त्री-पुरूष की देह के प्रत्येक अंगों के स्वामी ग्रहों की दृष्टि भी अनुकूल, शुभ न हो यह कैसे सम्भव है। इस संबंध में ऋषियों, ज्योतिष शास्त्र के विद्वानों का मत गलत नहीं हो सकता। यहां तक डाक्टर, वैद्य, हकीम, चिकित्सा स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान-विज्ञान भी इसे प्राथमिकता से अनिवार्य मानता है। गहनों को धारण करने के साथ इनकी नियमित सार-संभाल पर ध्यान दिया जाएं तो ये तन के सौन्दर्य को बहुगुणित करने के साथ ही एक्यूप्रेशर का लाभ भी दे सकते हैं।

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