भारतीय अंक शास्त्र के अनुसार एक से नौ तक कें अंक नौ ग्रहो के प्रतीक हैं। 1 अंक उस ईश्वर का जो दिखाई तो त्रिदेवों के रूप में देता है। लेकिन वास्तव में वह है एक ही, उसका शून्य(0) प्रतीक है निर्गुण निराकार ब्रह्म का नाम-रूप का । भेद कार्य-भेद से हैं। अंक 8 में पूरी प्रकृति समाहित है। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-
भूमिरापोनलोवायुः खं मनोबुद्धि रेव च।
टहंकार इतीयं मे भिन्नाप्रकृतिरष्टधा।।
अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बु़िद्ध और अहंकार-यह मेरी 8 प्रकार की प्रकृति है। माला में 108 मनके रखने का एक रहस्य यह है कि 108 के जप से जीव सांसारिक वस्तुओ की प्राप्ति, ईश्वर के दर्शन और ब्रह्म तत्व की अनुभूति – जो चाहे कर सकता हैं। मनुष्य की सांसो की संख्या के आधार पर भी 108 दानों की ही माला स्वीकृत की गई है।
मनुष्य की सांसो की संख्या के आधार पर भी 108 दानों की ही माला स्वीकृत की गई है। 24 घण्टों की अवधि में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। यदि 12 घंटे रात्रि के निकाल दिए जाएं तो शेष 12 घंटे ईशवंदना के लिए बचते है। इसका अर्थ है कि 10800 सांसो का उपयोग अपने इष्टदेव के स्मरण के लिए करना चाहिए। लेकिन इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता है।
इसलिए इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष 108 सांस मे ही ईश वंदना पर्याप्त मानी गई हैं। दूसरी मान्यता के अनुसार ज्योतिष शास्त्र इन्हें 12 राशियों और 9 ग्रहो से जोडता है। 12 राशियो और 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है। अर्थात् 108 अंक संपूर्ण जगत् की गति का प्रतिनिधित्व करता है।
चौथी मान्यता भारतीयो ऋषियों द्धारा 27 नक्षत्रो की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते है। अतः गुणनफल की संख्या 108 आती है। जो परम पवित्र मानी जाती है। इसीलिए माला में 108 अंकों का प्रयोग किया जाता हैं।
एक अन्य मान्यता के अनुसार एक वर्ष में सूर्य 2,16,000 कलाएं बदतला है। सूर्य हर 6 महीने में उत्तरायण और दक्षिणायण रहता है। इस प्रकार 6 महीनें में सूर्य की कुल कलाएं 10800 होती है। अंतिम तीन शून्य हटाने पर 108 संख्या बचती है, इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की एक-एक कला के प्रतीक हैं।