लेख सारिणी
कामदा एकादशी की संपूर्ण व्रत विधि और कथा – Kamada Ekadashi Vrat Katha
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी मनाई जाती है। भगवान विष्णु की अराधना करने वालों के लिए इससे उत्तम कोई व्रत नहीं है। इस व्रत को बहुत ही फलदायी कहा गया है। इसी कारण इस एकादशी को फलदा एकादशी भी कहा जाता है। कहते हैं इस दिन इस व्रत में विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से हजारों वर्षों की तपस्या जितना पुण्य मिलता है। मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
कामदा एकादशी महत्व – Kamada Ekadashi Importance
इस एकादशी को पाप नष्ट करने वाली एकादशी माना गया है. पुराणों में कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने वालों और कथा सुनने से हर कामना पूर्ण होती है. जाने-अनजाने में किया पाप नाश होता है. व्रत करने वाले को मृत्यु के बाद स्वर्ग प्राप्त होता है. कामदा एकादशी के दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन व्रत-पूजन करने से अधूरी मनोकामनाएं विष्णु भगवान पूरी करते है. अगर आपका पति या बच्चा बुरी आदतों का शिकार हो तो भी कामदा एकादशी का व्रत रख सकते हैं.
कामदा एकादशी व्रत विधि – Kamada Ekadashi Vrat Vidhi
- एकादशी को निर्जला व्रत करना होता है.
- सुबह स्नान करके सफ़ेद पवित्र वस्त्र पहनें और विष्णु देव की पूजा करें.
- विष्णु देव को पीले गेंदे के फूल, आम या खरबूजा, तिल, दूध और पेड़ा चढ़ाएं.
- ॐ नमो भगवते वासुदेवाये का जाप करें.
- मंदिर के पुजारी को भोजन करवाकर दक्षिणा दें.
कामदा एकादशी की व्रत कथा – Kamada Ekadashi Vrat Katha
कहा जाता है कि पुण्डरीक नामक नागों का एक राज्य था. यह राज्य बहुत वैभवशाली और संपन्न था. इस राज्य में अप्सराएं, गन्धर्व और किन्नर रहा करते थे. वहां ललिता नाम की एक अतिसुन्दर अपसरा भी रहती थी. उसका पति ललित भी वहीं रहता था. ललित नाग दरबार में गाना गाता था और अपना नृत्य दिखाकर सबका मनोरंजन करता था. इनका आपस में बहुत प्रेम था
दोनों एक दूसरे की नज़रों में बने रहना चाहते थे. राजा पुण्डरीक ने एक बार ललित को गाना गाने और नृत्य करने का आदेश दिया. ललित नृत्य करते हुए और गाना गाते हुए अपनी अपसरा पत्नी ललिता को याद करने लगा, जिससे उसके नृत्य और गाने में भूल हो गई. सभा में एक कर्कोटक नाम के नाग देवता उपस्थित थे, जिन्होंने पुण्डरीक नामक नाग राजा को ललित की गलती के बारे में बता दिया था. इस बात से राजा पुण्डरीक ने नाराज होकर ललित को राक्षस बन जाने का श्राप दे दिया.
इसके बाद ललित एक अयंत बुरा दिखने वाला राक्षस बन गया. उसकी अप्सरा पत्नी ललिता बहुत दुखी हुई. ललिता अपने पति की मुक्ति के लिए उपाय ढूंढने लगी. तब एक मुनि ने ललिता को कामदा एकादशी व्रत रखने की सलाह दी. ललिता ने मुनि के आश्रम में एकादशी व्रत का पालन किया और इस व्रत का पूण्य लाभ अपने पति को दे दिया. व्रत की शक्ति से ललित को अपने राक्षस रूप से मुक्ति मिल गई और वह फिर से एक सुंदर गायक गन्धर्व बन गया.