सूर्य-पुत्र शनि मकर और कुम्भ राशि के स्वामी हैं । मेष राशि मंदगामी शनि देव की नीच व् तुला उच्च राशि है । कुम्भ लग्न कुंडली में मंदगामी शनि बारहवें और पहले भाव के स्वामी हैं । अतः शनि देव इस लग्न कुंडली में एक योग कारक गृह हैं । यदि शनि देव शुभ स्थित हों तो इस लग्न कुंडली के जातक को नीलम रत्न धारण करवाया जा सकता है । ग्रह बलाबल में सुदृढ़ होने पर अधिक शुभ या अधिक अशुभ फल प्रदान करते हैं । इसके विपरीत यदि ग्रह बलाबल में कमजोर हों तो कम शुभ या कम अशुभ फल प्रदान करते हैं । इस प्रकार कारक ग्रह का बलाबल में सुदृढ़ होना और शुभ स्थित होना उत्तम जानना चाहिए और मारक गृह का बलाबल में कमजोर होना उत्तम जानें । कुंडली के उचित विश्लेषण के बाद ही उपाय संबंधी निर्णय लिया जाता है की उक्त ग्रह को रत्न से बलवान करना है , दान से ग्रह का प्रभाव कम करना है , कुछ तत्वों के जल प्रवाह से ग्रह को शांत करना है या की मंत्र साधना से उक्त ग्रह का आशीर्वाद प्राप्त करके रक्षा प्राप्त करनी है । मंत्र साधना सभी के लिए लाभदायक होती है । आज हम कुम्भ लग्न कुंडली के १२ भावों में शनि देव के शुभाशुभ प्रभाव को जान्ने का प्रयास करेंगे ….
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कुम्भ लग्न – प्रथम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani in pratham bhav me :
लग्न में शनि देव के आने से ससा नाम का पंचमहापुरुष योग निर्मित होता है और जातक धन , कुटुंब का सहयोग पाता है , प्रतिष्ठित होता है । जातक मेहनती होता है , वैवाहिक जीवन खुशियों भरा रहता है , साझेदारी के काम से मुनाफा मिलता है। प्रोफेशन में उन्नति होती है । यदि षड्बल में भी शनि बलवान हों तो ऐसा जातक ठेकेदारी के काम में बहुत उन्नति करता है ।
कुम्भ लग्न – द्वितीय भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani dwitiya bhav me :
ऐसे जातक को धन , परिवार कुटुंब का भरपूर साथ मिलता है । जातक की वाणी उग्र होती है । माता से लगाव होता है । मकान, वाहन , भूमि का सुख प्राप्त करता है । रुकावटें दूर होती हैं , बड़े भाई बहनों का साथ मिलता है । शनि की महादशा / अन्तर्दशा में जातक के विदेश में सेटल होने का योग बनता है ।
कुम्भ लग्न – तृतीय भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani tritiya bhav me :
मेष राशि शनि देव की नीच राशि है । छोटे भाई बहन से क्लेश रहता है ।जातक का भाग्य बहुत परिश्रम के बाद भी उसका साथ बहुत काम ही देता है । जातक बात बात में उत्तेजित हो जाता है , संतान प्राप्ति में विलम्ब होता है , पेट में कोई रोग होता है , अचानक हानि होती है , संतान से कष्ट प्राप्त होता है । पिता से मन मुटाव रहता है , जीवन में अधिक मेहनत के चलते जातक कभी कभी नास्तिक भी देखा गया है , फिजूल खर्च व् विदेश यात्रा होती रहती है जिससे जातक कोई विशेष लाभान्वित नहीं होता है ।
कुम्भ लग्न – चतुर्थ भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani chaturth bhav me :
जातक का माता से बहुत स्नेह रहता है । भूमि , मकान , वाहन के सुख में उन्नति होती है । काम काज की स्थिति बेहतर होती है । प्रतियोगिता में जीत होती है , नौकरी में शनि देव की कृपा से उन्नति होती है , बिज़नेस हो तो सभी सुख सुविधाओं में वृद्धि होती है । जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहने का योग बनता है ।
कुम्भ लग्न – पंचम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani pncham bhav me :
प्रेम विवाह में कामयाबी मिलती है । पुत्री का योग बनता है । अचानक लाभ की स्थिति बनती है । जातक की याददाश्त बहुत उम्दा होती जाती है । पत्नी , पार्टनर्स से संबंध मधुर रहते हैं । बड़े भाई बहन से अच्छी निभती है , लाभ प्राप्त होता है , धन में वृद्धि होती है , कुटुंब जनों का पूर्ण सहयोग मिलता है । वाणी उग्र हो जाती है । जातक के पेट में जल्दी प्रॉब्लम नहीं आती है । कुटुंबजनों को भी अचानक लाभ की संभावना बनती है ।
कुम्भ लग्न – षष्टम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani shashtm bhav me :
जातक का स्वास्थ्य खराब रह सकता है । किसी कुटुंबजन के बीमार होने का योग बनता है । बहुत मेहनत करने पर भी परिणाम नकारात्मक रहते हैं । लोन वापसी का रास्ता नहीं दिखता , फिजूल व्यय , हर काम में रुकावट आती है , कोर्ट केस , हॉस्पिटल में व्यय होता है , बहुत परिश्रम के बाद भी शुभ परिणाम की कमी रहती है । कोर्ट केस में बहुत लम्बा समय लगने के बाद भी जीत निश्चित नहीं होती है । छोटे भाई बहन के परेशान रहने का योग बनता है ।
कुम्भ लग्न – सप्तम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani saptam bhav me :
जातक का स्वास्थ्य उत्तम रहता है , भार्या थोड़ी उग्र स्वभाव की व् अलग कास्ट की भी हो सकती है , वैवाहिक जीवन में खुशियां आती हैं व् साझेदारों से लाभ मिलता है , दैनिक आय में उन्नति होती है । जातक पितृ भक्त , धार्मिक होता है , पिता का सहयोग मिलता है , भाग्य साथ देता है , मकान ,वाहन , सम्पत्ति के सुख में वृद्धि होती है व् माता के साथ जातक का विशेष लगाव रहता है ।
कुम्भ लग्न – अष्टम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani ashtam bhav me :
जातक का स्वास्थ्य खराब रह सकता है । हर काम में रुकावट आती है , टेंशन बनी रहती है । वाणी बहुत खराब होती है , परिवार , कुटुंब साथ नहीं देता है । काम काज ठप हो जाता है । संतान को/से कष्ट मिलता है , अचानक हानि होती है , जातक को भूलने की बीमारी हो सकती है । शनि की महादशा में किसी कुटुंबजन को व् स्वयं जातक को बहुत परेशानियां झेलनी पड़ती हैं ।
कुम्भ लग्न – नवम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani nvm bhav me :
ऐसा जातक धर्म को मानता है , जीवन साथी , पिता से बनती है , भाग्य जातक का साथ देता है । जातक बहुत परिश्रमी होता है , विदेश यात्राएं करने वाला होता है , बड़े भाई बहन से निभती है , प्रतियोगिता में परिश्रम से जीत होती है। कोर्ट केस में जीत होती है । शत्रुओं का नाश होता है ।
कुम्भ लग्न – दशम भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani dasham bhav me :
शनि की महादशा में जातक का काम काज बहुत उम्दा अवस्था में आ जाता है । विदेश सेटलमेंट का योग बनता है , विदेश से लाभान्वित काम ही होंगे। भूमि , मकान , वाहन के सुख में वृद्धि होती है । सातवें भाव सम्बन्धी सभी लाभ प्राप्त होते हैं , दाम्पत्य सुख , दैनिक आय में उन्नति होती है , पार्टनरशिप से लाभ प्राप्त होगा । व्यय बना रहता है । प्रोफेशन में बदलाव आ सकता है या थोड़ा बदलाव होने का योग भी बनता है ।
कुम्भ लग्न – एकादश भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani ekaadash bhav me :
स्वास्थ्य उत्तम रहता है , पुत्री प्राप्ति का योग बनता है, यादाश्त अच्छी होती है , संकल्प शक्ति मजबूत होती है। रुकावट दूर होती है । जातक खूब धन अर्जित करता है और आयु भी लम्बी होती है ।
कुम्भ लग्न – द्वादश भाव में शनि – Kumbh Lagan – Shani dwadash bhav me :
जातक का स्वास्थ्य खराब रहने का योग बनता है । घुटने या घुटने से निचले भाग में प्रॉब्लम आ सकती है । शनि की महादशा में विदेश सेटलमेंट का योग बनता है , काम काज ठप हो जाता है , कोर्ट केस चलता है , फिजूल खर्च होते है । परिवार का साथ नहीं मिलता , वाणी बहुत खराब होती है , कुटुंब के सहयोग में कमी आ जाती है । प्रतियोगिता में हार होती है , जातक नास्तिक होता है , पिता से रुष्ट रहता है । प्रोफेशनल लाइफ में बहुत परेशानी झेलनी पड़ती है । काम काज ठप होने के कगार पर आ जाता है ।
शनि देव के लिए उपाय / रत्न ( Shani remedies / stones in Kumbh lagna kundli ) :
शनि के फलों में बलाबल के अनुसार कमी या वृद्धि जाननी चाहिए । मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में धारण नहीं किया जाता है । इस लग्न कुंडली में शनि एक कारक गृह हैं । अतः नीलम रत्न धारण किया जा सकता । यदि शनि ३,६,८,१२ भाव में अस्त हों तो भी नीलम रत्न धारण कर सकते हैं ।
यदि शनि देव कुंडली के मारक गृह हैं या कारक होकर ३,६,८,१२ भाव या अपनी नीच राशि मेष में स्थित हों और ( कारक होकर अस्त न हों ) या लग्नेश के शत्रु हों और उनकी दशा महादशा / अन्तर्दशा चल रही है तो कोई रत्न धारण करने के बजाये किसी जरूतमंद को काले रंग की गर्म स्लेक्स दान करें , या गर्म जुराब या गर्म कम्बल दिया जा सकता है । चींटीओं को काले तिल खिलाएं । ताया जी से सम्बन्ध मधुर रखें , किसी गरीब या फोर्थ क्लास इम्प्लॉई को कभी दुखी न करें हो सके तो किसी तरह से रिलीफ पंहुचने की कोशिश करें । किसी की ज़मीन न हड़पें , वरना खुद भगवान् भी आपको नहीं बचा सकता है , यदि ऐसा किया हो तो समय रहते माफ़ी मांगकर वापिस करें । किसी बुजुर्ग को लाठी भेंट करें , जामुन का पेड़ लगाएं । यदि समस्या अधिक हो तो किसी बीमार को दवाई उपलब्ध करवाएं । अपने आपको चुस्त रखें , किसी का दिल न दुखाएं । शनि वार का व्रत अवश्य रखें । नित्य संध्या वेला में काले आसान पर शनि देव के मंत्र का जाप करें । शनि देव निसंदेह आप पर कृपा करेंगे ।