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Kundalini Chalisa | श्री कुण्डलिनी चालीसा
सिर सहस्त्रदल कौ कमल , अमल सुधाकर ज्योति |
ताकि कनिका मध्य में , सिंहासन छवि होति ||
शांत भाव आनंदमय , सम चित विगत विकार |
शशि रवि अगिन त्रिनेत्रयुत , पावन सुरसरिधार ||
सोहे अंक बिलासनी, अरुण बरन सौ रूप |
दक्षिण भुज गल माल शिव, बाएं कमल अनूप ||
धवल वसन सित आभरण, उज्जवल मुक्ता माल |
सोहत शरदाभा सुखद , गुरु शिव रूप कृपाल ||
एक हाथ मुद्रा अभय , दूजे में वरदान |
तीजे कर पुस्तक लसै , चौथे निर्मल ज्ञान ||
श्री गुरु पद नख सों , सवित सुधा की धार |
तन को धोबत सकल मल , मन कौ हरत विकार ||
जय सिद्धेश्वर रूप गुरु, जय विद्या अवतार |
जय मनिमय गुरु पादुका, जयति दया – विस्तार ||
अकथ त्रिकोण कुंडकुल कैसो | जपाकुसुम गुड़हर रंग जैसो ||
भुजगिन सरसिज तंतु तनी सी | दामिनी कोटि प्रभा रमणी सी ||
अरुण बरन हिम किरण सुहानी | कुण्डलिनी सुर नर मुनि मानी ||
ज्योतिर्लिंग लिपट सुख सोई | अधोमुखी तन मन सुधि खोई ||
कुंडली सार्ध्द त्रिवलायाकारा | सत रज तम गुण प्रकृति अधारा ||
अखिल सृष्टि की कारण रूपा | संविदमय चित शक्ति अनूपा ||
रवि शशि कोटि रुचिर रंग रांची | शब्द – जननी शिव भामिनी साँची ||
हठ लय राजयोग साधनें | आगम निगम पुराण बखानें ||
काटी जनम जीवन फल जागें | गुरु सिद्धेश्वर उर अनुरागें ||
माया मिटै अविधा नासै | कांत भाव रस मधुर बिलासै ||
हुं हुंकार मंत्र की एनी | निद्रा तजि जागहु रस देनी ||
आनंद ज्ञान अमृत रस दीजै | विषय –वासना तम हर लीजै ||
सुषमन गली भली सौदामिनी | पति के महल चली कुल भामिनी ||
छत्तीसन की बनी हवेली | छः मंजिल बारी अलबेली ||
मूलाधार चतुर्दल सोहै | व श ष स बीजाक्षर जग मोहै ||
अवनि सुगंधि गजानन देवा | करत साकिनी की सुर सेवा ||
ब ल बीजन जल-महल बनायौ | स्वाधिष्ठान सरस सुख पायौ ||
काकिनि अम्बा तहां निवासै | चतुरानन रवि अयुत प्रकासै ||
नाभि कमल मणि पूरक सोहै | ड फ बीजाक्षर दशबल मोहै ||
नील रूप लाकिनि को भावै | प्रलयागिनी तहं पाप जरावै ||
ह्रदय चक्र द्वादस – दल बारौ | परसि मंत्र क ठ वायु विहारौ ||
हंस युगल तहं अजपा जापै | राकिनी अनहद नाद अलापै ||
कंठ व्योम में सबद रचायौ | षोडश नित्या कौ मन भायौ ||
चक्र विशुद्ध चन्द्र छवि छाजै | हर – गौरी डाकिनी विराजै ||
भ्रूविच गिरी कैलाश सुहावै | योगिन मन मानस लहरावै ||
ह – क्ष बीज कौ ठौर ठिकानौ | आगम आज्ञा चक्र बखानौ ||
द्विदल कमल हाकिनी विराजै | शिव चिद अम्ब संग सुख साजै ||
ता ऊपर चिंतामणि आँगन | कल्प वल्लरी कुञ्ज सुहावन ||
कुण्डलिनी षट्चक्रन भेदै | विधि हरि रुद्र ग्रन्थि को छेदै ||
ब्रह्मशिरा में धावै कैसे | सुरसरि सिंधु प्रवाहै तैसे ||
प्रबल प्रवाह छ्त्तीसन भेंटे | निज में सब विस्तार समेटै ||
पृथिवी रस , रस तेज समावै | तेज वायु तिमि नभहीं बिलावै ||
नभ हंकार बुद्धि मन मेलै | मानस प्रकृति जीव में हेलै ||
जीव नियति पुनि काल में, काल कला मिल जाहिं||
तत्व अविद्धा में घुरै, माया विधा माहीं ||
विधा ईश सदाशिव पावै | शक्ति परम शिव के मन भावै ||
चक्र एक में एक मिलावै | यन्त्र राज श्री चक्र बनावै ||
कुण्डलिनी कर कौर छत्तीसी | सहस रहस रस रास थालिकौ |
पिय की सेज सहसदल बारी | अक्ष कलिन सौं सखिन सम्हारी ||
रास रचै पिय संग रंग राती | परम पीयूष पियै मदमाती ||
भर भर चसक सुधा बरसावै | मन प्रानन निज रूप बनावै ||
छिन आरोह छीनक अवरोहै | ताडिता आत्म प्रभा मुद मोहै ||
प्रणत जनन सौभाग्य सम्हारै | कोटि अनन्त ब्रम्हांड विहारै ||
गुरु कृपाल जापै ढरै , अम्ब होयं अनुकूल ||
पावै परम रहस्य यह , आत्म शक्ति कौ मूल ||
यह विधा संकेतिनी , साधन सिद्धि अनूप ||
आप आपमें पावही , पूर्ण काम शिव रूप ||