Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

क्यों होती है गणेश पूजन एवं गणेश स्तुति सर्वप्रथम

क्यों होती है गणेश पूजन एवं स्तुति सर्वप्रथम ?

वक्रतुण्ड़ महाकाय सुर्यकोटि सपप्रभः।
निर्विघ्नं कुरू में सर्वकार्येषु सर्वदा।।

हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा करने का विधान है। इसका कारण है कि गणेशजी रिद्धि – सिद्धि के स्वामी है। इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना आदि से कामनाओं की पूर्ति होती है व विघ्रों का विनाश होता है। इन्हें गणपति-गणनायक की पदवी प्राप्त हैं। गणेशजी शीघ्र प्रसन्न होन वाले बुद्धि के अधिष्ठाता और साक्षात प्रणव रूप गणेश जी विद्या और बुद्वि के देवता है और विघ्र विनाशक कहे गए है, इसीलिए सभी शुभ  कार्यों में गणेंश पूजन का विधान बनाया गया है।


यह भी जरूर पढ़े – क्यों है श्री गणेश समस्त गणों यानी इंद्रियों के अधिपति और जाने गणेश चतुर्थी…

शुभ कार्यों में गणेशजी की पूजा क्यों होती है ?

शिव पुराण के अनुसार एक बार सभी देवता भगवान् शिव के पास यह समस्या लेकर पहुंचे कि प्रथम पूज्य किसे माना जाए ? किस देवता को यह सम्मान प्राप्त हों ? सोच-विचार करने के बाद भगवान शिव ने कहा कि जो भी पहले पृथ्वी की तीन बार परिक्रमा करके कैलाश मानसरोवर लौटेगा, वहीं अग्र पूजा के योग्य होगा और उसे ही देवताओं का अग्रणी माना जाएगा। चूँकि गणेशजी का वाहन चूहा अत्यंत धीमी गति से चलने वाला था, इसलिए अपनी बुद्वि चातुर्य के कारण उन्होंने अपने पिता शिव और माता पार्वती के ही तीन परिक्रमा पूर्ण की और हाथ जोड़कर खडें हो गए।

यह भी जरूर पढ़े – शिव पुराण – Shiv Puran Katha in Hindi

शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि तुमसे बढ़कर संसार मे इतना कोई चतुर नहीं हैं। माता-पिता की तीन परिक्रमा से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य तुम्हें मिल गया है, जो पृथ्वी की परिक्रमा से भी बडा़ है। इसलिए मनुष्य कार्य के  शुभारंभ में पहले तुम्हारा पूजन करेगा, उसे कोई बाधा नही आएगी। बस, तभी से किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा की जाती है।

यह भी जरूर पढ़े –

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपरिचय की स्थिति में गणेंश जी द्वारा की गई अवज्ञा से क्षुब्ध होकर उनका सिर त्रिशुल से काट दिया था। बाद में पार्वती के क्षोभ को देखकर उन्होंने एक हाथी के बच्चें का सिर गणेशजी को लगाकर उन्हें जीवित कर दिया। तभी से गणेशजी गजानन रूप से प्रचलित है। उपासनादि में गणेश जी का वहीं गजानन रूप प्रचलित है।

तांत्रिक-संप्रदाय तो गणेशजी के लिए न्योछार है। गणेश-उपासकों  की संख्या लाखों में है और शैवों-शाक्तों की भांति गाणपत्य-संप्रदाय के रूप् में अपनी अस्मिता का शिखर उठाए आज भी गणेश-महिमा का प्रमाण प्रस्तुत कर रही है। वैसे गणेश जी सभी वर्गों के लिए समान रूप से पूज्य है और अपने भक्तों पर वे कृपा करते है। कम से कम आर्य -संस्कृति के प्रत्येक कार्य में गणेश जी की पूजा सर्वप्रथम की जाती हैं।

यह भी जरूर पढ़े – गणेश सहस्त्र नाम

विघ्नों को नष्ट करके कार्य में सफलता और कल्याण प्रदान करने की सर्वाधिक क्षमता गणेश जी में ही है। आस्था और भक्तिपूर्वक मंत्र, यंत्र, तंत्र में से किसी भी प्रकार की साधना करके गणेशजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है और यह तो निश्चित है ही कि जिस पर उनकी कृपा-दृष्टि हो जाएगी, वह सभी आपदाओं से मुक्त होकर सुखमय जीवन का अधिकारी हो जाएगा।

गणेश स्तुति क्यों ?

श्री गणेश स्तुति की महिमा का उल्लेंख ‘नारदपुराण’ में इस प्रकार किया गया है कि यदि कोई साधक प्रतिदिन केवल गणेश स्तुति का पाठ करता रहें, तो उसे बहुत लाभ होता है। गणेश स्तुति के नियमित पाठ से विद्या के इच्छूक को विद्या, धन के इच्छूक को धन, पुत्र के इच्छुक को पुत्र, विजय के इच्छूक को विजय और मोक्ष के इच्छुक कों मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

नित्य निष्ठापूर्वक श्री गणेशजी की स्तुति का पाठ करने वाला व्यक्ति छह मास तक लगातार भक्ति के साथ यह साधना करे तो उसे उपरोक्त लाभ अवश्य ही प्राप्त होते है। यदि एक वर्ष की अवधि तक ऐसी साधना की जाए, तो सिद्वियां प्राप्त होती है। गणेशजी की किसी भी स्तुति का पाठ करने वाले मनुष्यों के मार्ग की समस्त भौतिक बाधाएं दूर हो जाती हैं तथा वह आध्यात्मिकता के क्षेत्र मे भी सिद्वि प्राप्त करता है।

गजबदन गणेश जी का वाहन मूषक क्यों ?

गजबदन का अर्थ है भारी भरकम शरीर वाला। गणेशजी का शरीर भी भारी भरकम है। उन्हें  लम्बोदर भी कहा गया हैं, लम्बोदर यानी लम्ब-उदर अर्थात् बडे पेट वाला। वे बुद्वि के देवता है। जबकि चूहा तर्क का प्रतीक है। इसी प्रकार गौ-माता सात्विकता की प्रतीक हैं, सिंह रजोगुण और शक्ति का प्रतीक है। इसी कारण माता वैष्णों देवी का वाहन सिंह है, क्योंकि वे शक्ति है। चूहा तर्क का प्रतीक है। अहर्निश काट-छांट करना, अच्छी-भली वस्तुओं को कुतर डालना चूहे का स्वभाव है। अब तर्क को बुद्वि से ही काटा जा सकता  है। तर्क पर बुद्वि का अंकुश होना चाहिए,  इसीलिए गणेश का वाहन मूषक है।

यह भी जरूर पढ़े – गणेशजी की पौराणिक कथा

चतुर्थी को ही गणेश व्रत क्यों ?

ज्योतिष शास्त्र में जैसे-सूर्य आदि वारों का सूर्यादि ग्रहों के पिण्डों के साथ विशेष संबंध स्थिर किया गया है और इस आशय से उक्त वारों के नाम भी वैसे रखे गए है। इसी प्रकार प्रतिपदा आदि पंद्रह तिथियों का भी भगवान की अंगीभूत किसी न किसी दैवी शक्ति के साथ विशेष संबंध है, यह तिथियों के अधिष्ठाता के रूप में प्रकट किया गया है।

यथा-तिथीशा वह्निकौ गौरी गणशो हिर्गुहो रविः।
बसुदुर्गान्तको विश्वे हरिः कामः शिवः शशीः।।

1.अग्नि 2.ब्रह्मा 3.गौरी 4.गणेश 5.सर्प 6.कार्तिकेय 7.सूर्य 8.वसु 9.दुर्गा 10.काल 11.विश्वेदेवा 12.विष्णु 13.कामदेव 14.शिव 15. चन्द्रमा (अमावस्या के लिए)

उपरोक्त प्रमाण से ये सिद्व है कि चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता भगवान का सर्वविघ्र हरण करने वाला गणेश नामक संगुन विग्रह हैं । जिसका सीधा अर्थ यह है कि चतुर्थी तिथि को चन्द्र और सूर्य का अन्तर उस कक्षा पर अवस्थित होता है, जिस दिन मानव स्वभावतः कुछ ऐसे कृत्य कर सकता है जो आगे चलकर उसके जीवन उदेश्य में बाधा के रूप में आगें आएं। ऐसी स्थिति में उन संभावित बाधाओं की रोकथाम के लिए चतुर्थी के दिन व्रत-पूजन आदि धर्म-कृत्यों के द्वारा विघ्र-विनाशक भगवान गणेश की उपासना करनी चाहिए, जिससे इस दिन अंतःकरण अधिक संयत रहे और वैसा अवसर न आए।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00