लहसुनिया को केतु ग्रह का रत्न माना जाता है। इसे वैदूर्य मणि, सूत्र मणि, केतु रत्न, कैट्स आई, विडालाक्ष के नाम से भी जाना जाता है। इस रत्न का रंग हल्का पीला होता है। यह रत्न दिखने में थोड़ा-सा बिल्ली की आंख जैसा भी प्रतीत होता है।
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लहसुनिया के तथ्य
मान्यता है कि लहसुनिया धारण करने से केतु ग्रह के बुरे प्रभाव खत्म हो जाते हैं। ज्योतिषी इस रत्न को बेहद अहम मानते हैं। माना जाता है कि गुणयुक्त लहसुनिया अपने स्वामी को परम सौभाग्य से संपन्न बनाती है और दोषयुक्त मणि अपने स्वामी को दोषों से संयुक्त कर देती है। इसलिए इसे पहनने से पूर्व इसकी परीक्षा अवश्य करनी चाहिए।
लहसुनिया के ज्योतिषीय फायदे
माना जाता है कि लहसुनिया धारण करने से दुख:-दरिद्रता समाप्त हो जाता है। यह रत्न भूत बाधा तथा काले जादू से दूर रखने में सहायक माना जाता है। ज्योतिषी मानते हैं कि लहसुनिया के धारण करने से रात में बुरे सपने परेशान नहीं करते हैं। स्वास्थ्य में लहसुनिया का लाभ)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार लहसुनिया को धारण करने से शारीरिक दुर्बलता खत्म होती है और आंखों की रोशनी बढ़ती है। माना जाता है कि यह रत्न दमे के रोगियों के लिए अत्याधिक लाभकारी होता है। कई रत्न ज्योतिषी श्वास नली में सूजन की परेशानी होने पर लहसुनिया धारण करने की सलाह देते हैं।
कैसे करें लहसुनिया धारण
सोने या चांदी की अंगूठी में लहसुनिया जड़ाकर सोमवार के दिन धारण करना चाहिए। चूंकि यह एक बेहद प्रभावशाली रत्न होता है इसलिए इसे धारण करने से पहले ज्योतिषी से सलाह परामर्श कर लेना चाहिए।
लहसुनिया का उपरत्न
लहसुनिया के स्थान पर कैट्स आई क्वार्ट्ज़ (Cats Eye Quartz) तथा एलेग्जण्ड्राइट धारण किया जा सकता है।
लहसुनिया केतु का रत्न है जो कि बेहद चमकीला होता है। अपनी विशेष बनावट के कारण इसे अंग्रेजी में ‘कैट्स आई’ कहा जाता है। ये सफेद, काला, पीला और हरा चार रंगों में पाया जाता है जिनमें से प्रत्येक में धारियां होती हैं।
लहसुनिया रत्न की प्राकृतिक उपलब्धता:
यह रत्न भी दूसरे रत्नों की तरह खान से निकाला जाता है। इसकी खाने भारत, चीन, श्रीलंका, ब्राजील और म्यांमार में मिलता है। ऐसा माना जाता है कि म्यांमार में पाया जाने वाला लहसुनिया सबसे अच्छी क्वालिटी का होता है।
विज्ञान और लहसुनिया:
यह बेरिलियम का एल्युमिनेट है। इसी कारण यह अंधेरे में बिल्ली की आंख जैसा चमकता है। इसका घनत्व 3.78 होता है और कठोरता 8.50 होती है।
ज्योतिष और लहसुनिया रत्न:
जन्मकुंडली में केतु दूषित हो, दुर्बल हो या अस्त हो तो लहसुनिया पहनना लाभकारी होता है। कुंडली में निम्न बातें हो तो लहसुनिया पहना जा सकता है।
कुंडली में दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, नवें और दसवें भाव में यदि केतु उपस्थित हो तो लहसुनिया पहनना लाभकारी सिद्ध होता है।कुंडली के किसी भी भाव में अगर मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ में केतु हो तो लहसुनिया अवश्य पहनना चाहिए। केतु सूर्य के साथ हो या सूर्य से दृष्ट हो तो भी लहसुनिया धारण करना फायदेमंद होता है। कुंडली में केतु शुभ भावों का स्वामी हो और उस भाव से छठे या आठवें स्थान पर बैठा हो तो भी लहसुनिया पहना जाता है। कुंडली में केतु पांचवे भाव के स्वामी के साथ हो या भाग्येश के साथ हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। कुंडली में केतु धनेश, भाग्येश या चौथे भाव के स्वामी के साथ हो या उनके द्वारा देखा जा रहा हो तो भी लहसुनिया पहनना चाहिए। केतु की महादशा और अंतरदशा में भी लहसुनिया धारण करना अत्यंत फलदायक होता है। केतु से संबंधित वस्तुओं और इससे संबंधित स्थानों में उन्नति के लिए भी लहसुनिया धारण करें। केतु अगर शुभ ग्रहों के साथ हो तो भी लहसुनिया धारण किया जाता है। भूत-प्रेत आदि से बहुत ज्यादा डर हो तो भी लहसुनिया पहन कर ऐसे डर को दूर किया जा सकता है। केतु से होने वाली जन्मदोष निवृत्ति के लिए भी लहसुनिया पहनना लाभदायक होता है।
लहसुनिया रत्न के गुण:
ये अपने आकार से ज्यादा वजन का लगता है। चमकदार और चिकना होता है साथ ही लंबी-लंबी सफेद धारियां होती हैं। अंधेरे में भी यह बिल्ली की आंख की तरह चमकता है। यह केतु का रत्न होता है और पहनने पर यह केतु से संबंधित दोष खत्म कर देता है।
लहसुनिया रत्न का प्रयोग
शनिवार को चांदी की अंगूठी में लहसुनियां लगवाकर ऊं कें केतवे नम: मंत्र 17000बार जप करना चाहिए। इस प्रकार लहसुनिया को जागृत कर उसे धारण करना चाहिए। इसे आधी रात को बीच की अंगुली में धारण करना चाहिए।
लहसुनिया रत्न के विकल्प
यदि लहसुनिया खरीदने में कोई असमर्थ हो तो संगी, गोदंत और गोदंती उसके उपरत्न हैं जिन्हें इसके स्थान पर धारण किया जा सकता है। इसके अलावा दरियाई लहसुनिया अर्थात टाइगर्स आई भी इसके स्थान पर धारण किया जा सकता है।
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