Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

मार्कण्डेय पुराण – Markandeya Purana

Uncategorized

मार्कण्डेय पुराण Pdf – Markandeya Purana

मार्कण्डेय पुराण आकार में छोटा है। इसके एक सौ सैंतीस अध्यायों में लगभग नौ हज़ार हैं। मार्कण्डेय ऋषि द्वारा इसके कथन से इसका नाम ‘मार्कण्डेय पुराण’ पड़ा। यह पुराण वस्तुत: दुर्गा चरित्र एवं के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त सम्प्रदाय का पुराण कहा जाता है।

Puran के सभी लक्षणों को यह अपने भीतर समेटे हुए है। इसमें ऋषि ने मानव कल्याण हेतु सभी तरह के नैतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक और भौतिक विषयों का प्रतिपादन किया है। इस पुराण में भारतवर्ष का विस्तृत स्वरूप उसके प्राकृतिक वैभव और सौन्दर्य के साथ प्रकट किया गया है।

गृहस्थ-धर्म की उपयोगिता 

इस पुराण में धनोपार्जन के उपायों का वर्णन ‘पद्मिनी विद्या‘ द्वारा प्रस्तुत है। साथ ही राष्ट्रहित में धन-त्याग की प्रेरणा भी दी गई है। आयुर्वेद के सिद्धान्तों के अनुसार शरीर-विज्ञान का सुन्दर विवेचन भी इसमें है। ‘मन्त्र विद्या‘ के प्रसंग में पत्नी को वश में करने के उपाय भी बताए गए हैं। ‘गृहस्थ-धर्म‘ की उपयोगिता, पितरों और अतिथियों के प्रति कर्त्तव्यों का निर्वाह, विवाह के नियमों का विवेचन, स्वस्थ एवं सभ्य नागरिक बनने के उपाय, सदाचार का महत्त्व, सत्संग की महिमा, कर्त्तव्य परायणता, त्याग तथा पुरुषार्थ पर विशेष महत्त्व इस पुराण में दिया गया है।

निष्काम कर्म 

‘मार्कण्डेय पुराण’ में संन्यास के बजाय गृहस्थ जीवन में निष्काम कर्म पर विशेष बल दिया गया है। मनुष्यों को सन्मार्ग पर चलाने के लिए नरक का भय और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों का सहारा लिया गया है। करुणा से प्रेरित कर्म को पूजा-पाठ और जप-तप से श्रेष्ठ बताया गया है। ईश्वर प्राप्ति के लिए अपने भीतर ओंकार (ॐ) की साधना पर ज़ोर दिया गया है। यद्यपि इस पुराण में ‘योग साधना’ और उससे प्राप्त होने वाली अष्ट सिद्धियों का भी वर्णन किया गया है, किन्तु ‘मोक्ष’ के लिए आत्मत्याग और आत्मदर्शन को आवश्यक माना गया है। संयम द्वारा इन्द्रियों को वश में करने की अनिवार्यता बताई गई है। विविध कथाओं  और उपाख्यानों द्वारा तप का महत्त्व भी प्रतिपादित किया गया है।

समान रूप से आदर 

इस पुराण में किसी Hindu Devi Devta को अलग से विशेष महत्त्व नहीं दिया गया है।Bhagwan BrahmaBhagwan Vishnu Bhagwan Shiv , Surya Dev, AgniDurgaSarswati Devi आदि सभी का समान रूप से आदर किया गया है। सूर्य की स्तुति करते हुए वैदिकों की पराविद्या, ब्रह्मवादियों की शाश्वत ज्योति, जैनियों का कैवल्य, बौद्धों की बोधावगति, सांख्यों का दर्शन ज्ञान, योगियों का प्राकाम्य, धर्मशास्त्रियों की स्मृति और योगाचार का विज्ञान आदि सभी को सूर्य भगवान के विभिन्न रूपों में स्वीकार किया गया है।

‘मार्कण्डेय पुराण’ में मदालसा के कथानक द्वारा जहां ब्राह्मण धर्म का उल्लेख किया गया है, वहीं अनेक राजाओं के आख्यानों द्वारा क्षत्रिय राजाओं के साहस, कर्त्तव्य परायणता तथा राजधर्म का सुन्दर विवेचन भी दिया गया है। पुराणकार कहता है कि जो राजा प्रजा की रक्षा नहीं कर सकता, वह नरकगामी होता है। मद्यपान के दोषों को बलराम के प्रसंग द्वारा और क्रोध तथा अहंकार के दुष्परिणामों पर वसिष्ठ एवं विश्वामित्र के कथानकों द्वारा प्रकाश डाला गया है।

 मार्कण्डेय पुराण के पांच भाग

पहला भाग- पहले भाग में जैमिनी ऋषि को महाभारत के सम्बन्ध में चार शंकाएं हैं, जिनका समाधान विन्ध्याचल पर्वत पर रहने वाले धर्म पक्षी करते हैं।

दूसरा भाग- दूसरे भाग में जड़ सुमति के माध्यम से धर्म पक्षी सर्ग प्रतिसर्ग अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति, प्राणियों के जन्म और उनके विकास का वर्णन है।

तीसरा भाग- तीसरे भाग में ऋषि मार्कण्डेय अपने शिष्य क्रोष्टुकि को पुराण के मूल प्रतिपाद्य विषय- सूर्योपासना और सूर्य द्वारा समस्त सृष्टि के जन्म की कथा बताते हैं।

चौथा भाग- चौथे भाग में ‘देवी भागवत पुराण’ म् वर्णित ‘दुर्गा चरित्र’ और ‘दुर्गा सप्तशती’ की कथा का विस्तार से वर्णन है।

पांचवां भाग- पांचवें भाग में वंशानुचरित के आधार पर कुछ विशेष राजवंशों का उल्लेख है।

महाभारत 

‘महाभारत’ के सम्बन्ध में पूछे गए चार प्रश्नों के उत्तर में धर्म पक्षी बताते हैं कि श्रीकृष्ण के निर्गुण और सगुण रूप में राग-द्वेष से रहित वासुदेव का प्रतिरूप, तमोगुण से युक्त शेष का अंश, सतोगुण से युक्त प्रद्युम्न की छाया, रजोगुण से युक्त अनिरुद्ध की प्रगति विद्यमान है। वे समस्त चराचर जगत् के स्वामी हैं और अधर्म तथा अन्याय का विनाश करने के लिए सगुण रूप में अवतार लेते हैं।

द्रौपदी के पांच पतियों से सम्बन्धित दूसरे प्रश्न के उत्तर में वे बताते हैं कि पांचों पाण्डव देवराज इन्द्र के ही अंशावतार थे और द्रौपदी इन्द्र की पत्नी शची की अंशावतार थी। अत: उसका पांच पतियों को स्वीकार करना पूर्वजन्म की कथा से जुड़ा प्रसंग है। इस प्रकार बहुपतित्व के रूप को दोष रहित बताने का विशेष प्रयास किया गया है।

तीसरा प्रश्न महाबली बलराम द्वारा तीर्थयात्रा में ब्रह्यहत्या के शाप के संबंध में था उसके विषय में धर्म पक्षी बताते हैं कि मद्यपान करने वाला व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है। बलराम भी मद्यपान के नशे में ब्रह्महत्या कर बैठे थे। मद्यपान का दोष सच्चे पश्चाताप से दूर किया जा सकता है और ब्रह्महत्या के शाप से मुक्ति मिल सकती है।

चौथा प्रश्न, द्रोपदी के अविवाहित पुत्रों की हत्या की शंका के उत्तर में धर्म पक्षी सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की सम्पूर्ण कथा का वर्णन करते हैं। राजत्याग करके जाते राजा हरिश्चन्द्र और उनकी पत्नी शैव्या पर विश्वामित्र का अत्याचार देखकर पांचों विश्वदेव विश्वामित्र को पापी कहते हैं। इस पर विश्वामित्र उनको शाप दे डालते हैं। उस शाप के वशीभूत वे पांचों विश्वदेव कुछ काल के लिए द्रोपदी के गर्भ से जन्म लेते हैं। वे शाप की अवधि पूर्ण होते ही अश्वत्थामा द्वारा मारे जाते हैं और पुन: देवत्व प्राप्त कर लेते हैं।

मदालसा 

इस प्रसंग के द्वारा और भार्गव पुत्र सुमति के प्रसंग के माध्यम से पुनर्जन्म के सिद्धान्त का बड़ा सुन्दर चित्रण ‘मार्कण्डेय पुराण’ में किया गया है। साथ ही इस पुराण में नारियों के पतिव्रत धर्म को बहुत महत्त्व दिया गया है। मदालसा का आख्यान नारी के उदात्त चरित्र को उजागर करता है। मदालसा अपने तीन पुत्रों को उच्च कोटि की आध्यात्मिक शिक्षा देती है। वे वैरागी हो जाते हैं। तब शव्य के लिए चिन्तित पति के कहने पर वह अपने चौथे पुत्र को धर्माचरण, सत्संगति, राजधर्म, कर्त्तव्य परायण और एक आदर्श राजा के रूप में ढालती है। इस प्रकार उसके कथानक से माता की महत्ता, अध्यात्म, वैराग्य, गृहस्थ धर्म, राजधर्म, राजधर्म, कर्त्तव्य पालन आदि की अच्छी शिक्षा प्राप्त होती है।

सृष्टि का विकास क्रम 

सृष्टि के विकास क्रम में पुराणकार ब्रह्मा द्वारा पुरुष का सृजन और उसके आधे भाग से स्त्री का निर्माण तथा फिर मैथुनी सृष्टि से पति-पत्नी द्वारा सृष्टि का विकास किया जाना बताते हैं। इस पुराण में जम्बू, प्लक्ष, शाल्मलि, कुश, क्राँच, शाक और पुष्कर आदि सप्त द्वीपों का सुन्दर वर्णन किया गया है। सारी सृष्टि को सूर्य से ही उत्पन्न माना गया है। सूर्य पुत्र वैवस्वत मनु से ही सृष्टि का प्रारम्भ कहा गया है। इस पुराण में सूर्य से सम्बन्धित अनेक कथाएं भी हैं।

दुर्गा चरित्र और दुर्गा सप्तशती की कथा में मधु-कैटभ, महिषासुर वध, शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज आदि असुरों के वध के लिए देवी अवतारों की कथाएं भी इस पुराण में प्राप्त होती हैं। जब-जब आसुरी प्रवृत्तियां सिर उठाती हैं, तब-तब उनका संहार करने के लिए देवी-शक्ति का जन्म होता है।

पुराणों की काल गणना में मन्वन्तर को एक इकाई माना गया है। ब्रह्मा का एक दिन चौदह मन्वन्तरों का होता है। इस गणना के अनुसार ब्रह्मा का एक दिन आज की गणना के हिसाब से एक करोड़ उन्नीस लाख अट्ठाईस हज़ार दिव्य वर्षों का होता है। एक चतुर्युग में बारह हज़ार दिव्य वर्ष होते हैं। ब्रह्मा के एक दिन में चौदह मनु होते हैं। पुराणों की यह काल गणना अत्यंत अद्भुत है।

इस पुराण में पृथ्वी का भौगोलिक वर्णन नौ खण्डों में है। ऋषियों द्वारा यह काल गणना, पृथ्वी का भौगोलिक वर्णन तथा ब्रह्माण्ड की असीमता गूढ़ रूप में योग साधना की अंग हैं। ब्रह्माण्ड रचना शरीर में स्थित इस ब्रह्माण्ड के लघु रूप से सम्बन्धित ही दिखाई पड़ती है, जो अत्यन्त गोपनीय है।

मार्कण्डेय पुराण सुनने का फल

मार्कण्डेय पुराण सुनने से जीव के सारे पाप क्षय हो जाते हैं, धर्म की वष्द्धि होती है। माँ दुर्गा के इन चरित्रों को सुनने से धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। मनुष्य दीर्घजीवी होता है तथा संसार के समस्त सुखों को भोगकर माँ भगवती के लोक को प्राप्त करता है। सत्वगुणी ब्राह्मी शक्ति एवं महासरस्वती वाक् शक्ति में विराजमान रहती है जबकि रजोगुणी वैष्णवी देवी महालक्ष्मी मन की शक्ति है और तमोगुण रूद्र शक्ति महाकाली प्राण शक्ति है। ऐं हृी क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमः। इस मंत्र में ऐं महाकाली, हृीं महालक्ष्मी एवं क्लीं महासरस्वती का बीजमंत्र है। जिसका निरन्तर जाप करने से परम् सिद्धि की प्राप्ति होती है।

मार्कण्डेय पुराण करवाने का मुहुर्त

मार्कण्डेय पुराण कथा करवाने के लिये सर्वप्रथम विद्वान ब्राह्मणों से उत्तम मुहुर्त निकलवाना चाहिये। मार्कण्डेय पुराण के लिये श्रावण-भाद्रपद, आश्विन, अगहन, माघ, फाल्गुन, बैशाख और ज्येष्ठ मास विशेष शुभ हैं। लेकिन विद्वानों के अनुसार जिस दिन मार्कण्डेय पुराण कथा प्रारम्भ कर दें, वही शुभ मुहुर्त है।

मार्कण्डेय पुराण का आयोजन कहाँ करें?

मार्कण्डेय पुराण करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में मार्कण्डेय पुराण करवाने का विशेष महत्व बताया गया है – जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी – इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी मार्कण्डेय पुराण का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

मार्कण्डेय पुराण करने के नियम

मार्कण्डेय पुराण का वक्ता विद्वान ब्राह्मण होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। मार्कण्डेय पुराण में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।

मार्कण्डेय पुराण में कितना धन लगता है

इस भौतिक युग में बिना धन के कुछ भी सम्भव नहीं एवं बिना धन के धर्म भी नहीं होता। पुराणों में वर्णन है कि पुत्री के विवाह में जितना धन लगे उतना ही धन मार्कण्डेय पुराण में लगाना चाहिये और पुत्री के विवाह में जितनी खुशी हो उतनी ही खुशी मन से मार्कण्डेय पुराण को करना चाहिये।

‘‘विवाहे यादष्शं वित्तं तादष्श्यं परिकल्पयेत’’
इस प्रकार मार्कण्डेय पुराण सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00