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मेष लग्न की सम्पूर्ण जानकारी

ज्योतिष, लग्न

मेष लग्न वाले जातक के गुण

मेष लग्न के जातक शारीरिक रूप से कुछ गोलाई लिए हुए होते हैं। अधिकांशतः देखा गया है कि मेष लग्न में जन्मे जातक अपनी उम्र से कम नज़र आते हैं। मेष लग्न के जातक स्वभाव से उग्र परन्तु शीघ्र ही दूसरों पर प्रसन्न हो जाते हैं। प्रकृति से भ्रमण शील परन्तु घुटनों से रोग ग्रस्त होते हैं। आप अत्यधिक क्रोधी तथा अपना कार्य चतुरता से निकलवाने में निपुण होते हैं। किसी भी विषय पर वाद-विवाद करने से आप नहीं हिचकिचाते हैं। मेष लग्न के जातक दूसरों के समक्ष अनावश्यक दिखावा करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं।

मेष लग्न के जातक साहसी तथा अभिमानी होते हैं। अपने से की गयी विपरीत बात को मेष लग्न के जातक कतई पसंद नहीं करते। ऐसे जातक जल से भय खाने वाले, अल्पभोजी, वायावर एवं चपल होते हैं। अपने परिश्रमी तथा पराक्रमी स्वभाव के कारण मेष लग्न के जातक अपने जीवन में मनवांछित मान-सम्मान एवं प्रतिष्ठा पाते हैं। आपमें स्वाभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी होती है, इसलिए कहीं भी जाने पर आप उचित सम्मान की लालसा रखते हैं।

मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातक प्रायः घुमन्तु किस्म के व्यवसाय करते हैं। उदाहरणार्थ- फेरी लगाने वाले, ट्रेवलिंग, सेल्समेन आदि। धार्मिक विचारों में मेष लग्न के जातकों का दृष्टिकोण भिन्न होता है। आप शक्ति के उपासक होते है। अपनी बात के धनी एवं शर्त के कट्टर होते हैं। मेष लग्न के जातक प्रायः किसी झगडे में पड़ना नहीं चाहते हैं परन्तु यदि कोई भी बात इनको पसंद ना आए तो सामने वाले को सबक सिखाये बिना नहीं मानते।

विषयसूची

मेष लग्न वाले जातक के गुणमेष लग्न में ग्रहों के प्रभावमेष लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभावमेष लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभावमेष लग्न में मंगल ग्रह का प्रभावमेष लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभावमेष लग्न में बुध ग्रह का प्रभावमेष लग्न में बृहस्‍पति ग्रह का प्रभावमेष लग्न में शनि ग्रह का प्रभावमेष लग्न में राहु ग्रह का प्रभावमेष लग्न में केतु ग्रह का प्रभावमेष लग्न में ग्रहों का फलमेष लग्न में मंगल ग्रह का फलमेष लग्न में शुक्र ग्रह का फलमेष लग्न में बुध ग्रह का फलमेष लग्न में चंद्र ग्रह का फलमेष लग्न में सूर्य ग्रह का फलमेष लग्न में बृहस्पति ग्रह का फलमेष लग्न में शनि ग्रह का फलमेष लग्न में राहु ग्रह का फलमेष लग्न में केतु ग्रह का फलमेष लग्न में धन योगमेष लग्न में रत्नमेष लग्न में मूंगा रत्नमेष लग्न में मोती रत्नमेष लग्न में माणिक रत्नमेष लग्न में पुखराज रत्न

मेष लग्न में ग्रहों के प्रभाव

मेष लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव

मेष लग्न में मन का स्वामी चंद्र चतुर्थ भाव का अधिपति (चतुर्थेश) होता है, एवम यह जातक के माता, भूमि भवन, वाहन, चतुष्पद, मित्र, साझेदारी, शांति, जल, जनता, स्थायी संपति, दया, परोपकार, कपट, छल, अंतकरण की स्थिति, जलीय पदार्थो का सेवन, संचित धन, झूंठा आरोप, अफ़वाह, प्रेम, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह को अभिव्यक्त करता है। जन्‍मकुंडली अथवा दशाकाल में चंद्रमा के कमजोर / बलशाली होने से ऊपर बताये गये विषयों के सुख दुख की प्राप्ति होती है। इन सब के लिये चंद्र्मा के साथ साथ अन्य ग्रहों की युति एवम दॄष्टि का भलिभांति अध्ययन कर लेना चाहिये।

मेष लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

प्रकाश फ़ैलाने वाला सूर्य पंचम भाव का स्‍वामी (पंचमेश) होता हैजातक के बुद्धि, आत्मा, स्मरण शक्ति, विद्या ग्रहण करने की शक्ति, नीति, आत्मविश्वास, प्रबंध व्यवस्था, देव भक्ति, देश भक्ति, नौकरी का त्याग, धन मिलने के उपाय, अनायस धन प्राप्ति, जुआ, लाटरी, सट्टा, जठराग्नि, पुत्र संतान, मंत्र द्वारा पूजा, व्रत उपवास, हाथ का यश, कुक्षी, स्वाभिमान, अहंकार को अभिव्यक्त करता है। जन्‍मकुंडली या दशाकाल में सूर्य की अच्छी बुरी स्थिति अनुसार ही इन फ़लों की न्यूनाधिकता रहती है। भलिभांति सूर्य की स्थिति का अध्ययन करके इन बातों का जातक कितना लाभ ले सकेगा, यह पता लगता है। सूर्य बली हो तो अच्छे फ़लों में वृद्धि होती है और कमजोर सुर्य इन फ़लों में कमी उत्पन्न करता है।

मेष लग्न में मंगल ग्रह का प्रभाव

मंगल प्रथम और अष्ठम भाव का स्वामी होता है। यह लग्नेश होने के नाते जातक के रूप, चिन्ह, जाति, शरीर, आयु, सुख दुख, विवेक, मष्तिष्क, व्यक्ति का स्वभाव, आकृति और संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधि होता है। मेष लग्न में अगर मंगल बलशाली हो तो समस्त कुंडली में शुभ फ़ल अधिक प्राप्त होते हैं, बलवान और शुभ मंगल फ़लों में वॄद्धिकारक होता है जबकि कमजोर मंगल इन फ़लों में न्यूनता पैदा करता है।

लग्नेश के साथ साथ मेष लग्न में मंगल अष्ट भाव का प्रतिनिधि यानि अष्टमेश भी होता है। अष्टमेश होने नाते मंगल, व्याधि, जीवन, आयु, मॄत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्र यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, गुह्य स्थान, जेलयात्रा, अस्पताल, चीरफ़ाड आपरेशन, भूत प्रेत, जादू टोना, जीवन के भीषण दारूण दुख इत्यादि का भी प्रतिनिधि है। इन समस्त फ़लों के बारे में मंगल की स्थिति का अध्ययन करके ही जाना जा सकता है। मेष लग्न में मंगल लग्नेश होकर अष्टमेश है इसलिये उसे अष्टमेश होने का दोषी नही माना जाता, अगर मंगल शुभ और बलि हो तो मेष लग्न में शुभ फ़लों की अतिशय वॄद्धि ही करता है। अशुभ अथवा नीच, कमजोर होने से किंचित अशुभ फ़ल भी प्रदान करता है।

मेष लग्न में शुक्र ग्रह का प्रभाव

शुक्र द्वितीय और सप्‍तम भाव का स्‍वामी होता है, यहां शुक्र की स्थिति का भलिभांति अध्ययन कर लेना चाहिये। क्योंकि शुक्र यहां द्वितियेश होने के नाते धन और कुटुंब का प्रतिनिधि है और सप्तमेष होने से जीवन के एक प्रमुख भाव यानि विवाह का भी प्रतिनिधि है।

कुल, आंख (दाहिनी), नाक, गला, कान, स्वर, हीरे मोती, रत्न आभूषण, सौंदर्य, गायन, संभाषण, कुटुंब एवम विद्या के मामले यहां द्वितियेश होने के कारण शुक्र के अधीन है, बलि और शुभ प्रभाव वाला शुक्र इन फ़लों में वॄद्धि करेगा और हीनबलि व कमजोर शुक्र इन मामलों में न्यूनता प्रदान करेगा।

लक्ष्मी, स्त्री, कामवासना, मृत्यु मैथुन, चोरी, झगडा अशांति, उपद्रव, जननेंद्रिय, व्यापार इत्यादि के मामले मेष लग्न में सप्तमेष होने के नाते शुक्र के अधीनस्थ होते हैं। शुभ और बलवान शुक्र इन फ़लों में अतिशय शुभ फ़लकारी होता है और कमजोर और पाप प्रभाव वाला शुक्र इन मामलों में न्यूनता देता है।

मेष लग्न में बुध ग्रह का प्रभाव

बुध, मेष लग्न में तृतीय भाव का स्‍वामी यानि तॄतीयेश होता हैयहां बुध नौकर चाकर, सहोदर, प्राकर्म, अभक्ष्य पदार्थों का सेवन, क्रोध, भ्रम लेखन, कंप्य़ुटर, अकाऊंट्स, मोबाईल, पुरूषार्थ, साहस, शौर्य, खांसी, योग्याभ्यास, दासता इत्यादि का प्रतिनिधि होता है। शुभ और बलवान बुध यहां शुभ फ़लों का वॄद्धिकारक होता है जबकि कमजोर और पाप प्रभाव वाला बुध इन फ़लों में कमी और अशुभता प्रदान करता है।

मेष लग्न में बृहस्‍पति ग्रह का प्रभाव

बृहस्‍पति नवम भाव का स्‍वामी यानि नवमेश होता हैइस लग्न मे धर्म, पुण्य, भाग्य, गुरू, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ यात्रा, भक्ति, मानसिक वृत्ति, भाग्योदय, शील, तप, प्रवास, पिता का सुख, तीर्थयात्रा, दान, पीपल इत्यादि का प्रतिनिधि वॄहस्पति यानि गुरू होता है। शुभ और बलवान वॄहस्पति की स्थिति मेष लग्न के जातको को वर्णित फ़लों की अतिशय शुभकारक प्राप्ति करवाता है जबकि हीनबलि और पाप प्रभाव वाला गुरू जैसा शुभ ग्रह भी इन फ़लों को देने में असमर्थ होता है।

मेष लग्न में शनि ग्रह का प्रभाव

शनि दशम (दशमेश) और एकादश भाव (एकादशेश) का अधिपति होता हैदशमाधिपति होने के नाते राज्य, मान प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, प्रभुता, व्यापार, अधिकार, हवन, अनुष्ठान, ऐश्वर्य भोग, कीर्तिलाभ, नेतॄत्व, विदेश यात्रा, पैतॄक संपति इत्यादि का प्रतिनिधि होता है। एवम एकादश भाव का प्रतिनिधि होने के नाते लोभ, लाभ, स्वार्थ, गुलामी, दासता, संतान हीनता, कन्या संतति, ताऊ, चाचा, भुवा, बडे भाई बहिन, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, बेईमानी इत्यादि विषय का प्रतिनिधि होता है।
बलि और शुभ प्रभाव वाला शनि उपरोक्त विषयगत फ़लों में शुभ और कमजोर व पाप प्रभाव वाला शनि अशुभ फ़ल प्रदान करता है।

मेष लग्न में राहु ग्रह का प्रभाव

राहु षष्ठ भाव का अधिपति यानि षष्ठेश होता हैरोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, शंका, पीडा, ननिहाल, असत्य भाषण, योगाभ्यास, जमींदारी वणिक वॄति, साहुकारी, वकालत, व्यसन, ज्ञान, कोई भी अच्छा बुरा व्यसन इत्यादि के फ़लों का दायित्व राहु पर होता है। अगर राहु शुभ प्रभाव युक्त हो तो शुभ फ़ल प्राप्त होते हैं और अशुभ प्रभाव वाले राहु की वजह से अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

मेष लग्न में केतु ग्रह का प्रभाव

केतु बारहवें भाव का अधिपति यानि द्वादशेश होता हैनिद्रा, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मूर्छा, कुत्ता, मछली, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग ऐश्वर्य, लम्पटगिरी, परस्त्री गमन, व्यर्थ भ्रमण इत्यादि विषयों का दायित्व केतु पर होता है। अगर केतु शुभ प्रभाव युक्त हो तो अत्यंत शुभ प्राप्त होते हैं और अशुभ और पाप प्रभाव युक्त केतु के अतिशय अशुभ फ़ल प्राप्त होते हैं।

स्मरण रहे कि युं तो जन्मकुंडली के सभी ग्रह अपनी शुभता अशुभता का फ़ल जीवन पर्यन्त ही देते रहते हैं किंतु अपनी दशा अंतर्दशा में संपूर्ण रूप से प्रभावी होकर शुभ अशुभ फ़लों के दाता बनते हैं।

मेष लग्न में ग्रहों का फल

मेष लग्न में मंगल ग्रह का फल

मेष लग्न की कुंडली में मंगल 1, (लग्न) भाव का स्वामी तथा 8,  भाव का स्वामी है क्यूँकि मंगल की दो राशियाँ होती हैं – मेष राशि (१) तथा वृश्चिक राशि (8)l लग्न भाव का स्वामी होने के कारण यह कुंडली का सबसे पहला योग कारक ग्रह माना जाता है lयदि मंगल देव जन्म लग्न कुंडली के 3, 4, (नीच राशि 6, 8, तथा 12, भाव में बैठे हैं तो मंगल देव अपने बलाबल के अनुसार अशुभ फल देंगे क्योँकि यहां वह गलत भाव में पड़े होने के कारण अपनी योगकारकता खो देते हैं lयदि मंगल देव जन्म लग्न कुंडली के 1, 2, 4, 5, 7, 9, 10, तथा 11,  भाव में पड़े हैं तो मंगल देव अपनी क्षमतानुसार अपनी दशा/अंतर में शुभ फल देते हैं lयदि मंगल 3, 4, (नीच का), 6, 8, तथा 12, भाव में पड़े हैं तो उसका दान व पाठ करके उनकी अशभता को कम किया जा सकता है lइस लग्न कुंडली में मंगल विपरीत राज योग में नहीं आते क्योँकि वह लग्नेश भी है l विपरीत राजयोग के लिए लग्नेश का शुभ व बलि होना अनिवार्य है l

मेष लग्न में शुक्र ग्रह का फल

मेष लग्न की कुंडली में 2, तथा 7, भाव का स्वामी शुक्र देव माने जाते हैं l क्यूँकि शुक्र देव की दो राशियाँ होती हैं – वृष राशि (2) तथा तुला राशि (7) जोकि कुंडली के दूसरे तथा सातवें भाव में लिखी हैं Iअष्ठम से अष्ठम थ्योरी अनुसार शुक्र देव इस लग्न कुंडली में मारक ग्रह बनते हैं lइस लग्न कुंडली का मारक ग्रह होने के कारण शुक्र किसी भी भाव में पड़ा हो अपनी दशा-अन्तरा में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देगा lशुक्र यदि 2, और 7, भाव (स्वः राशि) में बैठा हो तो यह ग्रह सिर्फ अपने भावो के लिए शुभ होता है lइस लग्न कुंडली में शुक्र का रत्न हीरा व ओपल कभी भी धारण नहीं किया जाता है क्योँकि शुक्र इस कुंडली का मारक ग्रह है lमेष लग्न वाले जातक शुक्र की दशा/ अंतर्दशा में शुक्र का दान कर सकते हैं जिससे शुक्र का मारकेत्व या अशुभ फल कम हो जाता है l

मेष लग्न में बुध ग्रह का फल

मेष लग्न की कुंडली में 3, तथा 6, भाव का स्वामी बुध देवता माने जाते हैं l जो की इस लग्न कुंडली में अति मारक ग्रह हैंlइस लग्न कुंडली में बुध अति मारक ग्रह होता है इसलिए यह किसी भी भाव में सदा अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देता है lबुध यदि 6, तथा 8, भाव में विपरीत राजयोग की स्थिति में आ जाए तो शुभ फलदायक भी हो सकता है l परन्तु इसके लिए मंगल का शुभ होना अनिवार्य है lबुध ग्रह का रत्न पन्ना, मेष लग्न वाले जातक को किसी भी कीमत पर नहीं पहनना चाहिए क्योँकि वह इस कुंडली का रोगेष है lजब भी जातक की बुध की दशा-अन्तरा चलती है तीसरा तथा छठा भाव सक्रीय हो जाता है साथ में बुध देव जहाँ बैठे है जहाँ देख रहे है उस भाव को भी सक्रीय कर देते है I बुध देवता इस कुंडली में शत्रु गृह है इसलिए तीसरे भाव से फिजूल की मेहनत, मित्रों से मन मुटाव, कठिन परिश्रम, छोटे भाई/बहिनो को दिक्कत परेशानी बड़ा देते है तथा छठे भाव से रोग (त्वचा से सम्बंधित), कर्जा, शत्रु, लड़ाई झगड़ा, मानसिक तनाव, दुर्घटना के योग, चोट लगना, कोर्ट केस जैसे हालत सक्रीय कर देते हैं l साथ ही साथ जहाँ बैठे होंगे उस भाव से सम्बन्धित परेशानी भी सक्रीय कर देते हैं lइस लग्न की कुंडलियों में सदा ही बुध देवता के दान किये जाते हैं l

मेष लग्न में चंद्र ग्रह का फल

चंद्र देव इस लग्न कुंडली में 4, भाव के स्वामी होने के कारण एक योग कारक ग्रह माने जाते हैं l3, 6, 8,  तथा 12,  भाव में चंद्र देव उदय अवस्था में अपनी क्षमतानुसार अशुभ फल देते हैं l क्यूँकि इन भावों में बैठ कर चंद्र देवता अशुभ हो जाते हैं और शत्रु ग्रह की भाँति फल देते हैं, जिस तरह एक साधु संत शराब के ठेके पर जाकर बैठे तोह उसे अशुभ माना जाता है क्यूँकि समाज का कोई भी जातक उस साधु को अच्छा नहीं समझेगा ऐसे साधु को और पैसे मिलेंगे तोह वह साधु और ज्यादा गलत हरकत करेगा I इसलिए इन भावों  3, 6, 8, तथा 12, में बैठे चंद्र देवता का मोती भूल कर भी धारण न करें क्यूँकि मोती धारण करने से शरीर में उसका अशुभ प्रभाव और अधिक बढ़ जायेगा जिससे आपकी परेशानियों में 3-4 गुना वृद्धि हो जाएगी Iअस्त अवस्था में चन्द्रमा इस लग्न कुंडली में किसी भी भाव में पड़ा हो तो उसका रत्न, मोती धारण किया जाना चाहिए lयदि चन्द्रमा 3, 6, 8, तथा 12, भाव में उदय अवस्था मे हो तो उसकी अशुभता को कम करने के लिए उसके दान करने चाहिएl उसका रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए l1, 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11,भाव में पड़े चंद्र देव अपनी दशा -अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फल देंगे l

मेष लग्न में सूर्य ग्रह का फल

सूर्य देव इस लग्न कुंडली में पंचमेश (पांचवें भाव के स्वामी) हैं इसलिए सूर्य देव इस कुंडली में योग कारक हैं lतीसरे, छठे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में सूर्य देव अशुभ फल देते हैं lतीसरे, छठे,आठवें, सातवें  (नीच राशि ) और बारहवें भाव में जब सूर्य पड़ा है तो उसके दान करके और सूरज को जल देकर उसकी अशुभता को कम किया जाता है lयदि शुभ घरो में सूर्य देव पड़े हो और उनका बल कम है अर्थात बलहीन है तो उनका रत्नमाणिक पहनकर उनका बल बढ़ाया जाता है lपहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, नवम, दशम, और एकादश भावमें स्थित सूर्य देव अपनी दशा – अंतर्दशा में अपने बल के अनुशार शुभ फल देते हैं l

मेष लग्न में बृहस्पति ग्रह का फल

बृहस्पति इस लग्न कुंडली में नौवें तथा 12, वें भाव के स्वामी है l इसलिए भाग्येश हैं औरयोग कारक  ग्रह माने जाते हैं lबृहस्पति यदि इस लग्न कुंडली में तीसरे, छठें, आठवें, दसवें और बारहवें भाव में हैंतो वह अशुभ होतें हैं l इन घरो में पड़े होने के कारण बृहस्पति के दान करके उनकी अशुभता को दूर किया जाता है l दसवें भाव में वो अपनी नीच राशि में होते हैं lइस लग्न कुंडली में बृहस्पति यदि छठें, आठवें व 12 वें में बैठें हैं और विपरीत राजयोग में हैं तो शुभ फल देंगे l परन्तु इसके लिए लग्नेश मंगल का शुभ व बलि होना अनिवार्य है lयदि बृहस्पति देवता सूर्य के साथ 11, से कम अन्तर में बैठे हैं तो बृहस्पति देवता अस्त हो जाते हैं। अस्त अवस्था में बृहस्पति कुंडली के किसी भी भाव में बैठे हैं तो उनका रत्न पुखराज अवश्य धारण करें I अस्त होने की वजह से ग्रह की किरणें हमारे शरीर पर नहीं पड़ती हैं इसलिए योगकारक ग्रह को अशुभ नहीं माना जाता है (अस्त अवस्था में) lपहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नवम और एकादश भाव में विराजमान बृहस्पति अपनी दशा अन्तरा में अपनी क्षमता अनुसार शुभ फलदेंगे l

मेष लग्न में शनि ग्रह का फल

शनि इस लग्न कुंडली में दो अच्छे घरों के मालिक और लग्नेश मंगल के अतिशत्रु हैं l इसलिए एक सम ग्रह हैं l शनि देव अपनी स्थित के अनुसार अच्छा या बुरा देंगे lदूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें, 11, वें भाव में शनि देव अपनी दशा – अन्तरा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फलदेंगे lपहले भावमें शनि देव नीच राशि में होने के कारण अशुभ फल देंगे lपहले, तीसरे, छठे, आठवें और 12, वें भाव में पड़े शनिदेव का दान और पाठ करके उनकी अशुभता दूर की जाती हैं lअच्छे घरो 2, 4, 5, 7, 9, 10, 11, में यदि शनि देव सूर्य के साथ अस्त हो गए हों या बलहीन हो गए हों तो उनका रत्न नीलम पहना जाता है l

मेष लग्न में राहु ग्रह का फल

राहु की अपनी कोई राशि नहीं होती है l अपने मित्र की राशि और शुभ भाव 1, 2, 4, 5, 7, 9, 11, में बैठकर वह शुभ फल देता है lइस कुंडली में राहु देवता यदि दूसरे, सातवें, दसवें और 11वें भाव में हैं तो वह शुभहोंगे क्योँकि ये उनकी मित्र राशि हैं lपहले, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, आठवें (नीच राशि), नौवें (नीच राशि) और 12वें भाव में राहु देवता अशुभ फल देंगे lराहु का रत्न गोमेद कभी भी किसी जातक को नहीं डाला जाता है l

मेष लग्न में केतु ग्रह का फल

केतु ग्रह की अपनी कोई राशि नहीं होती है l अपने मित्र की राशि व शुभ भाव में वह शुभ फल देते हैं lइस कुंडली में पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, छठे, आठवें, और 12 वें भाव में मारक होते हैं lसातवें और नौवें, दसवें व 11 वें भाव में वें अच्छा फल देंगे l नौवें भाव में उनकी उच्च राशि होती हैं और वह अपनी क्षमताअनुसार फल देंगे lकेतु का रत्न लहसुनिया कभी भी किसी जातक को नहीं पहनना चाहिए l 

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मेष लग्न में धन योग

मेष लग्न में जन्म लेने वाले जातकों के लिए धनप्रदाता ग्रह शुक्र है। धनेश शुक्र की शुभाशुभ स्थिति से, धन स्थान से संबंध जोड़ने वाले ग्रह की स्थिति से एवं धन स्थान पर पड़ने वाले ग्रहों की दृष्टि संबंध से जातक की आर्थिक स्थिति, आय के स्रोत तथा चल-अचल संपत्ति का पता चलता है। इसके अलावा भाग्येश बृहस्पति एवं लग्नेश मंगल की अनुकूल स्थितियां मेष लग्न वालों के लिए धन, एश्वर्य व वैभव को बढ़ाने मैं सहयोग करती हैं। वैसे मेष लग्न के लिए शनि, बुध और शुक्र अशुभ फलदायी होते हैं। गुरु व रवि शुभ फलदायी होते हैं।

शुभ युति – शनि + गुरु
अशुभ युति – मंगल + बुध
राजयोग कारक – रवि, गुरु, चन्द्र

मेष लग्न में बृहस्पति कर्क राशि या धनु राशि में हो तो जातक अल्प प्रयत्न  से ही खूब धन कमाता है। धन के मामले में ऐसा व्यक्ति भाग्यशाली कहलाता है।मेष लग्न में शुक्र वृष, तुला या मीन राशि का हो तो व्यक्ति धनाध्यक्ष होता है। जीवन भर लक्ष्मीजी उसका साथ नहीं छोड़ती।मेष लग्न में मंगल एवं शुक्र परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो अर्थात मंगल वृष या तुला राशि में हो तथा शुक्र मेष या वृश्चिक राशि में हो तो जातक स्वयं के पुरुषार्थ से धनवान बनता है।मेष लग्न में शुक्र एवं शनि परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा व्यक्ति महाभाग्यशाली होता है।मेष लग्न में सूर्य सिंह का पंचम भाव में हो तथा लाभ स्थान में कुंभ का गुरु हो तो जातक महाधनी होता है।मेष लग्न में मंगल, शनि, शुक्र और बुध इन चार ग्रहों की युति हो तो जातक अति धनवान होता है।मेष लग्न में सूर्य पंचम में हो लाभ भाव में शनि, चंद्रमा या गुरु में से कोई भी ग्रह हो तो व्यक्ति महालक्ष्मीवान होता है।मेष लग्न में मंगल यदि सूर्य, शुक्र और चंद्रमा से युत या दृष्ट हो तो व्यक्ति महाधनी एवं भाग्यशाली होता है।मेष लग्न में मंगल, शुक्र, गुरु तथा शनि अपनी अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो जातक करोड़पति होता है।मेष लग्न में मंगल दशम भाव में भाग्येश शनि पांचवे भाव में हो तो जातक लक्षाधिपति बनता है।मेष लग्न में शुक्र आठवें भाव में हो और सूर्य यदि लग्न भाव को देखता हो, तो ऐसे व्यक्ति को भूमि में गड़े हुए धन की प्राप्ति होती है अथवा लाटरी से रुपया मिल सकता है।मेष लग्न में चन्द्र से गुरु केन्द्रस्थ हो अर्थात (1,4,7,10) वे भाव में हो तो जातक धन एवं भूमि का स्वामी होता है।मेष राशि लग्न की कुंडली में सूर्य स्वराशि का हो एवं गुरुचंद्र की युति ग्यारहवे भाव में हो तो जातक अतिलक्ष्मीवान होता है।मेष लग्न में लग्नेश मंगल त्रिकोण भाव में हो अर्थात (5,9) भाव में हो तथा शुक्र ग्यारहवे भाव में हो तो लक्ष्मीयोग होता है।मेष लग्न में लग्नस्त शुक्र हो और उसे सभी शुभ ग्रह देखते हो तो गजपति योग बनता है। ऐसा जातक महापराक्रमी, धनवान, गुणवान एवं प्रभावशाली होता है।मेष लग्न में दूसरे घर का स्वामी शुक्र पंचम भाव में एवं पांचवे भाव का स्वामी सूर्य दूसरे भाव में हो तो ऐसा जातक विशेष धनवान होता है।मेष लग्न में सुखेश चंद्रमा व लाभेश शनि यदि नवम स्थान में हो तथा नवम भाव मंगल से दृष्ट हो तो व्यक्ति को अनायास गुप्त धन की प्राप्ति होती है।मेष लग्न में धनेश शुक्र अष्टम भाव में एवं अष्टमेश मंगल धन स्थान में परस्पर स्थान परिवर्तन करके बैठे हो तो ऐसा जातक गलत तरीके जैसे- जुआ, सट्टा से धन कमाता है।

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मेष लग्न में रत्न

रत्न कभी भी राशि के अनुसार नहीं पहनना चाहिए, रत्न कभी भी लग्न, दशा, महादशा के अनुसार ही पहनना चाहिए।

लग्न के अनुसार मेष लग्न मैं जातक मूंगा, मोती, माणिक, और पुखराज रत्न धारण कर सकते है।लग्न के अनुसार मेष लग्न मैं जातक को हीरा, पन्ना या नीलम रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए।

मेष लग्न में मूंगा रत्न

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मूंगा धारण करने से पहले – मूंगे की अंगूठी या लॉकेट को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान कराकर मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।कौनसी उंगली में मूंगा धारण करें – मूंगे की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।मूंगा कब धारण करें – मूंगा को मंगलवार के दिन, मंगल के होरे में, मंगलपुष्य नक्षत्र को या मंगल के नक्षत्र मृगशिरा नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र या धनिष्ठा नक्षत्र में धारण कर सकते है।कौनसे धातु में मूंगा धारण करें – मूंगा रत्न तांबा, पंचधातु या सोने मे धारण कर सकते है।मूंगा धारण करने का मंत्रॐ भौं भौमाय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।ध्यान रखे मूंगा धारण करते समय राहुकाल ना हो।नेचुरल और सर्टिफाइड मूंगा खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

मेष लग्न में मोती रत्न

Real Pearl with Lab Certificate – Moti

मोती धारण करने से पहले – मोती की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।कौनसी उंगली में मोती धारण करें – मोती की अंगूठी को कनिष्का उंगली में धारण करना चाहिए।मोती कब धारण करें – मोती को सोमवार के दिन, चंद्र के होरे में, चंद्रपुष्य नक्षत्र में, या चंद्र के नक्षत्र रोहिणी नक्षत्र, हस्त नक्षत्र, श्रवण नक्षत्र में धारण कर सकते है।कौनसे धातु में मोती धारण करें – चांदी में मोती रत्न धारण कर सकते है।मोती धारण करने का मंत्रॐ चं चन्द्राय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।ध्यान रखे मोती धारण करते समय राहुकाल ना हो।नेचुरल और सर्टिफाइड मोती खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

मेष लग्न में माणिक रत्न

Ruby - 3.22 Carat - GFE01104 - Image 4 Natural Lab Certified Ruby – Manik

माणिक धारण करने से पहले – माणिक की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।कौनसी उंगली में माणिक धारण करें – माणिक की अंगूठी को अनामिका उंगली में धारण करना चाहिए।माणिक कब धारण करें – माणिक को रविवार के दिन, रवि के होरे में, पुष्यनक्षत्र को, या सूर्य के नक्षत्र मघा नक्षत्र, पूर्वा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, उत्तरा फ़ाल्गुनी नक्षत्र, पुष्यनक्षत्र को में धारण कर सकते है।कौनसे धातु में माणिक धारण करें – तांबे, पंचधातु या सोने में माणिक धारण कर सकते है।माणिक धारण करने का मंत्रॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।ध्यान रखे माणिक धारण करते समय राहुकाल ना हो।नेचुरल और सर्टिफाइड माणिक खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

मेष लग्न में पुखराज रत्न

Yellow Sapphire - 4.48 Carat - GFE07043 - Image 3 Natural Lab Certified Yellow Sapphire – Pukhraj

पुखराज धारण करने से पहले – पुखराज की अंगूठी या लॉकेट को शुद्ध जल या गंगा जल से धोकर पूजा करें और मंत्र का जाप करके धारण करना चाहिए।कौनसी उंगली में पुखराज धारण करें – पुखराज की अंगूठी को तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए।पुखराज कब धारण करें – पुखराज को गुरुवार के दिन, गुरु के होरे में, गुरुपुष्य नक्षत्र को, या गुरु के नक्षत्र पुनर्वसु नक्षत्र, विशाखा नक्षत्र, पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में धारण कर सकते है।कौनसे धातु में पुखराज धारण करें – सोने में या पंचधातु में पुखराज रत्न धारण कर सकते है।पुखराज धारण करने का मंत्रॐ बृ बृहस्पतये नम:। इस मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए।ध्यान रखे पुखराज धारण करते समय राहुकाल ना हो।नेचुरल और सर्टिफाइड पुखराज खरीदने के लिए यहाँ क्लिक करें या संपर्क करें 08275555557 पर सुबह 11 बजे से रात 8 बजे के बीच।

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सावधान रहे – रत्न और रुद्राक्ष कभी भी लैब सर्टिफिकेट के साथ ही खरीदना चाहिए। आज मार्केट में कई लोग नकली रत्न और रुद्राक्ष बेच रहे है, इन लोगो से सावधान रहे। रत्न और रुद्राक्ष कभी भी प्रतिष्ठित जगह से ही ख़रीदे। 100% नेचुरल – लैब सर्टिफाइड रत्न और रुद्राक्ष ख़रीदे, अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें

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