लेख सारिणी
नामकरण संस्कार – Namkaran Sanskar
हिन्दू धर्म में 16 संस्कार बताए गए हैं, जिनमें नामकरण संस्कार पांचवां है। यह दो शब्दाें ‘नाम’ व संस्कृत के शब्द ‘करण’ यानी बनाना या रखने के संयोजन से बना है। कुछ लोग इसे ‘पालनारोहन’ भी बोलते हैं। संस्कृत में ‘पालना’ का मतलब झूले और ‘रोहन’ का अर्थ बैठाने से होता है। इस दौरान शिशु का नाम रखा जाता है। जन्म के बाद यह शिशु का सबसे पहला संस्कार होता है। हालांकि, इससे पहले जातक्रम संस्कार भी होता है, लेकिन अब यह इतना प्रचलन में नहीं है। यही कारण है कि माता-पिता, घर के अन्य सदस्यों व रिश्तेदारों के लिए नामकरण संस्कार का दिन खास होता है।
नामकरण संस्कार का महत्व – Naamkaran Sanskar Importance
वैसे तो दुनिया के मशहूर नाटककार शेक्सपियर ने कहा था कि नाम में क्या रखा है लेकिन वे इस बात से अनभिज्ञ हो सकते हैं कि नाम ही है जिससे आपकी पहचान होती है। भारतीय समाज में हिंदू धर्म के अनुयायियों की काफी संख्या है। हिंदू धर्म में हर जातक के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किये जाते हैं इन्हीं में से एक नामकरण भी है। चूंकि नाम से ही पहचान जुड़ी होती है, नाम ही है जिसे कमाया जाता है यानि प्रसिद्धि पाई जाती है नाम ही है जो बदनाम होता है। कर्म तो सभी करते हैं अपने-अपने हिस्से के कर्म करते हैं।
लेकिन नाम के अनुसार ही कर्मों की पहचान होती है जिनके प्रताप से जातक अच्छे व बुरे रूप में नाम कमाता है। जो कुछ खास नहीं करता वह गुमनाम भी होता है। इसलिये नाम सोच समझकर रखा जाना जरुरी होता है। हिंदूओं में इसे पूरे धार्मिक प्रक्रिया के तहत विधि विधान से रखा जाता है। नाम रखने की इस प्रक्रिया को ही नामकरण संस्कार कहा जाता है। नामकरण संस्कार के महत्व को स्मृति संग्रह में लिखे इस श्लोक से समझा जा सकता है –
आयुर्वेदभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुदृष्टं मनीषिभि:।।
इसका अर्थ है कि नामकरण से जातक की आयु तथा जातक के तेज में वृद्धि होती है साथ ही अपने नाम, अपने आचरण, अपने कर्म से जातक ख्याति प्राप्त कर अपनी एक अलग पहचान कायम करता है।
नामकरण संस्कार विधि – Naamkaran Sanskar Vidhi
- इस दिन माता-पिता नहाकर नए वस्त्र पहनते हैं और शिशु को भी नहालकर नए कपड़े पहनाए जाते हैं।
- फिर माता-पिता बच्चे को अपनी गोद में लेकर हवन स्थल पर बैठते हैं।
- इसके बाद पंडित हवन करने के बाद बच्चे की कुंडली बनाते हैं।
- कुंडली के अनुसार बच्चे की जो राशि होती है, उसके हिसाब से एक अक्षर का चयन किया जाता है।
- माता-पिता अपने शिशु के लिए इसी अक्षर से शुरू होता नाम रखते हैं। आजकल लोग पहले ही कुंडली बनवाकर अक्षर पता कर लेते हैं और उसी के अनुसार पहले से कोई अच्छा नाम सोच लेते हैं।
- पूजा आदि के बाद माता-पिता कान में बच्चे का नाम बोलते हैं और फिर एक-एक करके पूरे स्नेह के साथ सभी सदस्य व रिश्तेदार बच्चे को अपनी गोद में लेते हैं और उसे उसके नाम से पुकारते हैं।
- कुछ समुदायोंं में इस दौरान पांच विवाहिता महिलाओं को शामिल किया जाता है और उन्हीं की उपस्थिति में विधि-विधान से पूजा आदि की जाती है।
नामकरण संस्कार कब और क्यों किया जाता है – Naamkaran Sanskar Kyu
यह संस्कार बच्चे के पैदा होने के 10 दिन बाद किसी शुभ मुहुर्त पर किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि शिशु के नाम प्रभाव उसके व्यक्तित्व व आचार-व्यवहार पर पड़ता है। अच्छा नाम उसे गुणकारी व संस्कारी इंसान बनने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए, नाम हमेशा अर्थपूर्ण होना चाहिए। साथ ही नामकरण संस्कार के दिन शिशु को नई पहचान मिलती है, जिससे उसे जीवन भर पहचाना जाता है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में नामकरण संस्कार का अपना महत्व है।
नामकरण संस्कार कहां किया जाता है – Naamkaran Sanskar Kaha Kare
ऐसा कुछ निश्चित नहीं है कि नामकरण संस्कार कहां किया जाना चाहिए। इसलिए, कोई घर में करता है, तो कोई मंदिर में। हर कोई अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार इसे करता है। इतना जरूर तय है कि इसे जहां भी किया जाए, वो जगह साफ-सुथरी होनी चाहिए। वैसे, मंदिर को नामकरण संस्कार के लिए शुभ और शुद्ध स्थान माना जाता है, लेकिन अगर आप इसे घर में करते हैं, तो पहले घर की अच्छी तरह साफ-सफाई जरूर करें। आजकल तो लोग इसके लिए पंडाल लगाकर या होटल बुक करके भव्य रूप से करते हैं।
नामकरण संस्कार पूजा के लाभ –
- नामकरण संस्कार से आयु एवं तेज में वृद्धि होती है।
- शिशु का भविष्य उज्जवल बनता है।
- जन्म नक्षत्र के अनुसार नाम रखने से शिशु के भविष्य में आने वाली परेशानियां दूर होती हैं।
- इस पूजा से शिशु के लम्बी उम्र का आशीर्वाद मिलता है।
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