लेख सारिणी
नवरात्र के दौरान यौन संबंध – Sex During Navratri ?
नवरात्र को नौ दिनों का हिंदू धर्म में बड़ा महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों में आध्यात्मिक उर्जा का विकास करना सहज होता है। इसकी वजह यह मानी जाती है कि माता आदि शक्ति इन 9 दिनों में अपने नौ रूपों के साथ धरती पर निवास करती हैं। इसलिए आदिकाल से ये 9 दिन शक्ति उपासना के दिन माने जाते हैं। साधु संतों से लेकर देवी-देवता और सामान्य मनुष्य भी माता की आराधना करते हैं। शास्त्रोंं का हवाला देते हुए पंडितजन कहते हैं कि इस दौरान सात्विक भोजन करना चाहिए और वासना रहित होकर साधना करें। आइए जानें इनके पीछे क्या धार्मिक मान्यताएं हैं और इस दौरान यौनाचार्य क्यों वर्जित माना गया है।
नवरात्र के दौरान यौनाचरण क्यों नहीं ?
आध्यात्मिक नजरिए से देखा जाए तो अगर आपके घर में नवरात्र की पूजा होती है तो इन दिनों में यौन संबंध बनाने से बचना चाहिए। क्योंकि हम पूरे पवित्र मन से मां की पूजा करते हैं, अगर हम यौन संबंधों के बारे में सोचेंगे तो मां की पूजा से मन विचलित होगा जिससे साधना अपूर्ण होगी और इस अवसार का लाभ पाने से वंचित रह जाएंगे।
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धर्म भी और विज्ञान भी
नवरात्र के दौरान व्रत रखने की भी मान्यता है। घर में आप या आपका जीवनसाथ कोई व्रत रखता है तो यौनाचरण के कारण उनका व्रत भंग हो सकता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से व्रत के कारण शरीर में उर्जा की कमी होती है जिससे यौनाचरण के लिए साथी मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार नहीं होता है। इसलिए इन दिनों संयम रखने की बात को धर्म से जोड़कर देखा जाता है।
इसलिए नवरात्र में संयम है जरूरी
धार्मिक दृष्टिकोण यह भी कहता है कि नवरात्र के दिनों में जब माता धरती पर रहती हैं तो सभी स्त्रियों में उनका अंश मौजूद होता है। यही वजह है कि इस समय सुहागन महिलाओं की भी पूजा की जाती है और उन्हें सुहाग सामग्री देने की परंपरा है। इसलिए भी नवरात्र के दौरान संयम और ब्रह्मचर्य पालन को जरूरी माना गया है।
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नवरात्र के दौरान संयम पालन का यह भी है वैज्ञानिक कारण
साल को दोनो नवरात्र आश्विन और चैत्र के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है। आश्विन नवरात्र के साथ शीत ऋतु का आगमन होता और चैत्र नवरात्र के साथ ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता है। इस तरह नवरात्र ऋतुओं का संक्रमण काल है। ऋषि-मुनियों ने आने वाले मौसम के लिए शरीर को तैयार करने के लिए और रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित करने के लिए शरीर को विकार मुक्त बनाने के लिए कहा है। इसके लिए नौ दिनों में व्रत और साधना का विधान बनाय गया है ताकि शरीर मौसम परिवर्तन से आहार-विहार में हो रहे परिवर्तनों को समझ सके। इसलिए नवरात्र के दौरान व्रत और यौनाचरण से बचने के लिए कहा गया है।