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पुत्रदा या पवित्रा एकादशी : जानें, पूजा विधि और महत्व

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पुत्रदा एकादशी  – Pavitra Ekadashi Vrat Katha

सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा या पवित्रा एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 11 अगस्त 2019 ,रविवार  दिन को पड़ रही है। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है कि इस एकादशी का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस दिन जोड़े से पति और पत्नी जोड़े से व्रत रखते हैं और एक संतान के लिए भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।

जोड़े से इस एकादशी का व्रत करने से माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। साथ ही भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं क्योंकि सावन मास में इस एकादशी का व्रत किया जाता है। इस दिन आप शिवजी का अभिषेक जरूर करें। इस व्रत को केवल सावन माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाता है।

एकादशी का धार्मिक महत्व

शास्त्रों में बताया गया है कि जोड़े से इस एकादशी का व्रत करने से जातकों की गोद कभी सूनी नहीं रहती। उन्हें संतान सुख जरूर प्राप्त होता है। यह एकादशी सभी पापों को नाश करनेवाली होती है। धार्मिक मान्यता है कि इस एकादशी की कथा पढ़ने और सुनने से कई गायों के दान बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत में आप भगवान विष्णु और पीपल की पूजा करने का शास्त्रों में विधान है।

पौराणिक कथा

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने कामिका एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि श्रावण शुक्ल एकादशी (Shravana shukal ekadashi) का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।

श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! श्रावण शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए। मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है। अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए। इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है।

द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।

वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है। किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बांधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूं। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूं, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।

एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।

सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूंगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है। उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएं।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था। निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गांव से दूसरे गांव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है। ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।

लोमश मुनि कहने लगे कि श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी। लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब श्रावण शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया।

इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया। उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। इसलिए हे राजन! इस श्रावण शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा। अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें। इस कथा को पढ़ने तथा इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

एकादशी के दिन क्या करें और क्या ना करें

जो भी जातक पुत्रदा एकादशी का व्रत करता है, उसे सदाचार का पालन करना होता है। इस व्रत में वैष्णव धर्म का पालन करना होता है। इस दिन प्याज, बैंगन, पान-सुपारी, लहसुन, मांस-मदिरा आदि चीजों से दूर रहना चाहिए। दशमी तिथि से पति-पत्नी भगवान विष्णु का ध्यान करना चाहिए और मूली, मसूरदाल से परहेज रखना चाहिए। व्रत में नमक से दूर रहना चाहिए। साथ ही कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए।

इस तरह करें पूजा

पति-पत्नी दोनों सुबह स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। घर या मंदिर में भगवान का साथ में पूजन करें। पूजन के दौरान सबसे पहले भगवान के विग्रह को गंगाजल से स्नान कराएं या उस पर गंगाजल के छींटे दें, साथ ही पवित्रिकरण का मंत्र बोलते हुए खुद पर भी गंगाजल छिड़कें। इसके बाद दीप-धूप जलाएं और भगवान को टीका लगाते हुए अक्षत अर्पित करें। फिर भोग लगाएं। व्रत कथा का पाठ करें और विष्णु-लक्ष्मीजी की आरती करें। पुत्र प्राप्ति के लिए गरीबों में दान जरूर करें। भगवान से इस व्रत के सफलतापूर्वक पूरा होने के प्रार्थना करें।

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