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राधा अष्टमी – राधा जी को प्रसन्न करने से मिलती है श्री कृष्ण की कृपा

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राधाष्टमी – जानिए क्या है इसका पुण्यफल व्रत पूजा विधि और कथा  

Radha Ashtami – अगर आप श्रीकृष्ण की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको राधाजी की पूजा करनी होगी। राधारानी के पूजन के बिना कृष्ण की कृपा मिल ही नहीं सकती है, क्योंकि भगवान कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी राधारानी कही जाती हैं, इसलिए राधाजी की कृपा पाने का सबसे पवित्र पर्व राधाष्टमी के अलावा कौन सा हो सकता है…. भाद्रपद माह में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के 15 दिन बाद शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है। राधा अष्टमी का त्योहार श्री राधा रानी के प्राकट्य उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

शास्त्रों में श्री राधा, कृष्ण की शाश्वत शक्तिस्वरूपा एवम प्राणों की अधिष्ठात्री देवी के रूप में वर्णित हैं अतः राधा जी की पूजा के बिना श्रीकृष्ण जी की पूजा अधूरी मानी गयी है। श्रीमद देवी भागवत में श्री नारायण ने नारद जी के प्रति ‘श्री राधायै स्वाहा’ षडाक्षर मंत्र की अति प्राचीन परंपरा तथा विलक्षण महिमा के वर्णन प्रसंग में श्री राधा पूजा की अनिवार्यता का निरूपण करते हुए कहा है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्री कृष्ण की पूजा का अधिकार नहीं रखता।

अतः समस्त वैष्णवों को चाहिए कि वे भगवती श्री राधा की अर्चना अवश्य करें। श्री राधा भगवान श्री कृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी हैं, इसलिए भगवान इनके अधीन रहते हैं। यह संपूर्ण कामनाओं का राधन (साधन) करती हैं, इसी कारण इन्हें श्री राधा कहा गया है।

राधाष्टमी व्रत विधि – Radha Ashtami Vrat Vidhi

  • राधाष्टमी के दिन व्रत रखने का भी प्रावधान है।
  • राधाष्टमी का विधिपूर्वक पूजन करने के लिए सबसे पहले प्रातकाल स्नानादि के बाद निवृत्त हो जाए।
  • अपराह्म के समय राधारानी की पूजा करना श्रेष्ठ समय होता है।
  • इस दिन पूजास्थल को 5 रंगों के मंडप से सजाएं, फिर कमलयंत्र बनाएं और कमल के बीचोबीच दिव्यासन पर श्री राधा कृष्ण की युगलमूर्ति पश्चिमाभिमुख कर इस मंत्र के साथ स्थापित करें।

हेमेन्दीवरकान्तिमंजुलतरं श्रीमज्जगन्मोहनं नित्याभिर्ललितादिभिः परिवृतं सन्नीलपीताम्बरम्।
नानाभूषणभूषणांगमधुरं कैशोररूपं युगंगान्धर्वाजनमव्ययं सुललितं नित्यं शरण्यं भजे।।

  • इसके बाद राधा रानी को पंचामृत से अभिषेक कराएं और फिर उनका ऋंगार करें।
  • अभिषेक कराने के बाद उन्हे मंडप के भीतर मंडल के बीच मिट्टी या तांबे का शुद्ध बर्तन रखें। उस पर 2 वस्त्रों से ढकी हुई राधाजी की धातु की बनी हुई प्रतिमा को स्थापित करें।
  • इसके पश्चात् पुष्पमाला, वस्त्र, पताका और विभिन्न प्रकार के मिष्ठानों से राधारानी की स्तुति करें।
  • इसके बाद राधा रानी से प्रार्थना इस श्लोक के साथ करें – मात मेरी श्री राधिका पिता मेरे घनश्याम। इन दोनों के चरणों में प्रणवौं बारंबार।। राधे मेरी स्वामिनी मैं राधे कौ दास। जनम-जनम मोहि दीजियो वृन्दावन के वास।। श्री राधे वृषभानुजा भक्तनि प्राणाधार। वृन्दा विपिन विहारिणि प्रणवौं बारंबार।। सब द्वारन कूं छांड़ि कै आयौ तेरे द्वार। श्री वृषभानु की लाड़िली मेरी ओर निहार।। राधा-राधा रटत ही भव व्याधा मिट जाय। कोटि जनम की आपदा राधा नाम लिये सो जाय। राधे तू बड़भागिनी कौन तपस्या कीन। तीन लोक तारन तरन सो तेरे आधीन।।
  • इसके बाद श्री राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण की आरती करें।
  • इसके पश्चात पूरा उपवास करें अथवा एक समय भोजन करें।
  • दूसरे दिन श्रद्धानुसार सुहागिन स्त्रियों तथा ब्राह्मणों को भोजन कराएं व उन्हें दक्षिणा दें।
  • अष्टमी के दूसरे दिन विवाहित स्त्रियों को भोजन कराएं और नवमी के दिन मूर्ति दान करने के बाद स्वयं पारण करें।
  • कहा जाता है कि इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना और भी अधिक शुभ माना गया है।

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  5. राधा-कृष्ण विवाह

जो पुरुष अथवा नारी राधाभक्तिपरायण होकर श्री राधाजन्म महोत्सव करता है, वह श्री राधाकृष्ण के सान्निध्य में श्रीवृंदावन में वास करता है। वह राधाभक्तिपरायण होकर व्रजवासी बनता है। श्री राधाजन्म- महोत्सव का गुण-कीर्तन करने से मनुष्य भव-बंधन से मुक्त हो जाता है।

‘राधा’ नाम की तथा राधा जन्माष्टमी-व्रत की महिमा – जो मनुष्य राधा-राधा कहता है तथा स्मरण करता है, वह सब तीर्थों के संस्कार से युक्त होकर सब प्रकार की विद्याओं में कुषल बनता है। जो राधा-राधा कहता है, राधा-राधा कहकर पूजा करता है, राधा-राधा में जिसकी निष्ठा है, वह महाभाग श्रीवृन्दावन में श्री राधा का सहचर होता है।

श्री राधा भक्त के घर से कभी लक्ष्मी विमुख नहीं होतीं। जो मनुष्य इस लोक में राधाजन्माष्टमी -व्रत की यह कथा श्रवण करता है, वह सुखी, मानी, धनी और सर्वगुणसंपन्न हो जाता है। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक श्री राधा का मंत्र जप अथवा नाम स्मरण करता है, वह धर्मार्थी हो तो धर्म प्राप्त करता है, अर्थार्थी हो तो धन पाता है, कामार्थी पूर्णकामी हो जाता है और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त करता है। कृष्णभक्त वैष्णव सर्वदा अनन्यशरण होकर जब श्री राधा की भक्ति प्राप्त करता है तो सुखी, विवेकी और निष्काम हो जाता है।

राधा अष्टमी उद्यापन विधि – Radha Ashtami Udyapan Vidhi

  • राधा जी के व्रत के उद्यापन में एक सूप लिया जाता है।
  • उस सूप में श्रृंगार की सभी वस्तुएं रखी जाती है।
  • इसके बाद सूप को ढंक दिया जाता है और 16 दीए जलाए जाते हैं।
  • इसके बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है और लक्ष्मी जी को घर आने का निमंत्रण दिया जाता है।
  • अंत में श्रृंगार की सभी वस्तुओं को दान कर दिया जाता है।

राधा अष्टमी कथा – Radha Asthami Katha

राधा श्रीकृष्ण के साथ गोलोक में निवास करती थीं। एक बार देवी राधा गोलोक में नहीं थीं, उस समय श्रीकृष्ण अपनी एक सखी विराजा के साथ गोलोक में विहार कर रहे थे। राधाजी यह सुनकर क्रोधित हो गईं और तुरंत श्रीकृष्ण के पास जा पहुंची और उन्हें भला-बुरा कहने लगीं। यह देखकर कान्हा के मित्र श्रीदामा को बुरा लगा और उन्होंने राधा को पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप दे दिया। राधा को इस तरह क्रोधित देखकर विराजा वहां से नदी रूप में चली गईं।

इस शाप के बाद राधा ने श्रीदामा को राक्षस कुल में जन्म लेने का शाप दे दिया। देवी राधा के शाप के कारण ही श्रीदामा ने शंखचूड़ राक्षस के रूप में जन्म लिया। वही राक्षस, जो भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बना और देवी राधा ने वृषभानुजी की पुत्री के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। लेकिन राधा वृषभानु जी की पत्नी देवी कीर्ति के गर्भ से नहीं जन्मीं।

जब श्रीदामा और राधा ने एक-दूसरे को शाप दिया तब श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि आपको पृथ्वी पर देवी कीर्ति और वृषभानु जी की पुत्री के रूप में रहना है। वहां आपका विवाह रायाण नामक एक वैश्य से होगा। रायाण मेरा ही अंशावतार होगा और पृथ्वी पर भी आप मेरी प्रिया बनकर रहेंगी। उस रूप में हमें विछोह का दर्द सहना होगा। अब आप पृथ्वी पर जन्म लेने की तैयारी करें। सांसारिक दृष्टि में देवी कीर्ति गर्भवती हुईं और उन्हें प्रसव भी हुआ। लेकिन देवी कीर्ति के गर्भ में योगमाया की प्रेरणा से वायु का प्रवेश हुआ और उन्होंने वायु को ही जन्मदिया, जब वह प्रसव पीड़ा से गुजर रहीं थी, उसी समय वहां देवी राधा कन्या के रूप में प्रकट हो गईं।

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