भारत सांस्कृतिक विरासत की प्रशंसा समस्त संसार करता है। इसकी संस्कृति को विस्तार देने में यहाँ के तीज-त्योहारों का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान प्राचीन समय से रहा है।
अलग-अलग धर्म-संस्कृतियों के मिलाप से भारत के त्योहार अपने आप में सबसे अलग लोगों के लिए आकर्षण का कारण बनते है।
राखी का त्यौहार (Raksha Bandhan Festival) इन सभी भारतीय त्योहारों में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्राचीन काल से इस उत्सव को भारत में भाई-बहन के प्यार के प्रतीक के रूप में मनाया जाता आ रहा है।
एक भाई-बहन के बीच की बॉन्डिंग का महत्त्व सभी रिश्तों में सबसे अनोखी एवं खास होती है, जिसे शब्दों में वर्णित करना किसी के लिए भी आसान नहीं होगा।
भाई-बहनों के बीच का रिश्ता अपनी असाधारण समर्पण एवं प्रेम तथा रक्षा के वायदे से जुड़ा होता है तथा इसे दुनिया के हर हिस्से में महत्व दिया जाता है।
हालांकि जब भारत की बात आती है, तो यह रिश्ता और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि भाई-बहन के प्यार के लिए समर्पित “रक्षा बंधन” नामक एक त्यौहार मनाया जाता है।
इस त्यौहार को विशेष रूप से भारत में हिंदू धर्म के लोग मनाते है। भारत के आलावा नेपाल में भी इसे भाई -बहन के बीच प्यार के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
रक्षा बंधन का त्यौहार श्रावण के महीने में हिंदू चंद्र-सौर कैलेंडर की पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त महीने में आता है।
यह समय भारत में वर्षा ऋतू का होता है, जिससे इसकी महत्ता और बढ़ जाती है,क्योंकि इस दौरान ज़्यादातर भारतीय स्त्रियां अपने ससुराल से मायके आती है।
अपनी सखी सहेलियों के साथ मिलकर सावन के झूलों,मेहँदी, सावन के गीतों,विभिन्न पकवानों का स्वाद लेती है। लम्बे समय के उपरांत बहिन के मायके आने पर भाई भी उस पर अपना सम्पूर्ण प्रेम न्योछावर करते हैं।
भाई बहिन के इसी प्यार को एक रक्षा सूत्र के साथ उसके भाई द्वारा इसकी आजीवन रक्षा का वादा किये जाने के प्रतीक के रूप में रक्षा बंधन को मनाने की प्रथा भारत की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा बन गयी है।
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Raksha Bandhan Meaning | रक्षा बंधन का अर्थ
यह त्योहार दो शब्दों से मिलकर बना है , “रक्षा” एवं “बंधन।” संस्कृत शब्दावली के अनुसार रक्षा का अर्थ है “सुरक्षा की गाँठ” वहीँ “बंधन” का अर्थ है बांधने की क्रिया।
अतः रक्षा बंधन का शाब्दिक अर्थ हुआ रक्षा का बंधन या सम्बन्ध जिसे एक भाई अपनी बहन के साथ आजीवन निभाने के वादे के साथ उसके साथ बांध जाता है।
इस त्यौहार को केवल रक्त-सम्बन्धो में ही भाई बहन नहीं मानते बल्कि चचेरे,ममेरे भाई बहन भी एक दुसरे के साथ मनाते है।
मुंहबोले भाई बहिन भी रक्षा बंधन के पवित्र त्यौहार को मनाकर एक दुसरे के साथ सदैव के लिए रक्षा सूत्र में बंध जाते हैं।
भारत के विभिन्न धर्मों में रक्षा बंधन का महत्व
मुख्यतः इस त्यौहार को भारत में हिन्दू मान्यता में विश्वास करने वाले लोग ही मनाते है. लेकिन अन्य धर्म एवं जातियों के लोग भी इस त्योहार की पवित्रता के कारण इसको मनाते हैं।
जैन धर्म – इस त्यौहार को जैन समुदाय द्वारा भी धूमधाम से मनाया जाता है। जैन मंदिरों में जैन पुजारी भक्तों को रक्षा सूत्र के धागे देते हैं।
जिन्हें जैन अनुयायी एक दुसरे को बांधकर अपने धर्म एवं संस्कृति की रक्षा करने का वादा एक दुसरे के साथ करते हैं।
सिख धर्म- भाई-बहन के प्यार को समर्पित यह त्योहार सिखों द्वारा “रखड़ी” या राखी के रूप में मनाया जाता है। सिख धर्म के अनुयायी अपने गुरु के साथ अपनी प्रतिबद्धता के रूप में भी इसे मनाते हैं।
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Story | रक्षा बंधन उत्सव का इतिहास
रक्षा बंधन का त्यौहार मानाने की प्रथा सदियों पहले भारत में शुरू हुई। इस विशेष त्यौहार के उत्सव से संबंधित कई कहानियां इतिहास में प्रचलित हैं।
प्राचीन हिन्दू पुराणों एवं ग्रंथों,किस्से कहानियों के द्वारा हमें इस त्यौहार के इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन इस त्यौहार को कब से भारत में मनाया जा रहा है। इसकी सटीक जानकारी इससे प्राप्त नहीं हो सकती।
1. भविष्य पुराण की प्राचीन कथा के अनुसार एक बार देवताओं एवं राक्षसों के बीच भयंकर युद्ध हुआ था। भगवान इंद्र- आकाश, बारिश तथा आकाशीय तड़ित के प्रमुख देवता हैं, वह देवताओं की ओर से युद्ध लड़ रहे थे।
कथानुसार राजा बलि ने राक्षसों की ओर से युद्ध की कमान संभाल रखी थी तथा उनके द्वारा देवताओं को कड़ी टक्कर प्रदान की गयी।
वह युद्ध लंबे समय तक जारी रहा और निर्णायक अंत पर नहीं आया। यह देखकर, इंद्र की पत्नी सची भगवान विष्णु के पास गई, उन्होंने उन्हें सूती धागे से बना एक पवित्र कंगन दिया।
साची ने वही धागा अपने पति भगवान इंद्र की कलाई के चारों ओर बांध दिया। अंततः इंद्र ने राक्षसों को हराया तथा अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया।
त्योहार के पहले के उद्धरण में इस पवित्र धागे का वर्णन ताबीज के रूप में किया गया था, जो महिलाओं द्वारा प्रार्थना के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जब उनके पति युद्ध पर जाते थे, तो वह उनको यह धागा बांधती थी।
उस दौरान यह त्यौहार सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते की पहचान के रूप में ही सीमित नहीं था,बल्कि हर व्यक्ति एक दुसरे की रक्षा के प्रतीक के रूप में इसको बांधता था।
2. भागवत पुराण एवं विष्णु पुराण के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राक्षस राजा बलि से तीनों लोकों को जीत लिया, तो उन्होंने राक्षस राजा से महल में उनके पास रहने के लिए कहा।
भगवान ने अनुरोध स्वीकार कर लिया तथा राक्षस राज के साथ रहना शुरू कर दिया। हालांकि भगवान विष्णु की पत्नी देवी लक्ष्मी अपने मूल स्थान बैकुंठ लौटना चाहती थीं।
इसलिए उन्होंने राक्षस राज बाली की कलाई के चारों ओर राखी बांधी और उसे अपना भाई बना लिया। तब राक्षस राज ने देवी लक्ष्मी से उपहार मांगने को कहा।
वापसी उपहार के बारे में पूछने पर, देवी लक्ष्मी ने बाली से अपने पति को उनके घर में रहने की शर्त से मुक्त करने और उन्हें बैकुंठ लौटने के लिए कहा।
बाली देवी लक्ष्मी के अनुरोध पर सहमत हो गया जिसकी वजह से भगवान विष्णु अपनी पत्नी, देवी लक्ष्मी के साथ अपने स्थान पर लौट आए।
3. ऐसा कहा जाता है कि भगवान गणेश के दो पुत्र शुभ और लाभ इस बात से निराश थे कि उनकी कोई बहन नहीं थी। उन्होंने अपने पिता से एक बहन मांगी। गणेश नारद मुनि के समझने पर इसके लिए राज़ी हो गए।
इस तरह भगवान गणेश ने दिव्य ज्वाला के माध्यम से संतोषी मां की रचना की तथा रक्षाबंधन के अवसर पर भगवान गणेश के दो पुत्रों को उनकी बहन मिली।
4. महाभारत की एक कथा के आधार पर, पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को राखी बांधी, जबकि कुंती ने महाकाव्य युद्ध से पहले पोते अभिमन्यु को राखी बांधी।
5. राखी को लेकर एक अन्य किंवदंती कहती है, कि मृत्यु देवता, यम 12 वर्षों की अवधि के लिए अपनी बहन यमुना के पास नहीं गए, जिससे वह अंततः बहुत दुखी हो गए।
गंगा की सलाह पर यम अपनी बहन यमुना से मिलने गए, जो बहुत खुश होती है और अपने भाई, यम का आतिथ्य सत्कार करती है। इससे यम प्रसन्न हुए तथा उन्होंने यमुना से उपहार मांगने को कहा ।
उसने अपने भाई को बार-बार देखने की इच्छा व्यक्त की। यह सुनकर यम ने अपनी बहन यमुना को अमर कर दिया, ताकि वह उसे बार-बार देख सके।
यह पौराणिक वृत्तांत “भाई दूज” नामक त्योहार का आधार बनता है, जो भाई-बहन के रिश्ते पर आधारित है। हर दिवाली एवं होली के पश्चात् ये त्यौहार मनाने की प्रथा शुरू हुई।
रक्षाबंधन मनाने के कारण
रक्षा बंधन का त्यौहार भाइयों एवं बहनों के बीच एक दूसरे की रक्षा के कर्तव्य के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। ताकि वह एक दुसरे के साथ आजीवन बने रहें।
यह त्यौहार उन पुरुषों और महिलाओं के बीच किसी भी प्रकार के भाई-बहन के रिश्ते का उत्सव मनाने के लिए है, जो जैविक या रक्त सम्बन्ध से भाई बहन हैं।
इस दिन एक बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है और उसकी समृद्धि, स्वास्थ्य और कल्याण की प्रार्थना की करती है।
बदले में भाई उपहार देता है और अपनी बहन को किसी भी नुकसान से तथा हर परिस्थिति में बचाने का वादा करता है। यह त्योहार दूर के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों या चचेरे भाइयों के भाई-बहन के बीच भी मनाया जाता है।
पूर्वजो की आत्मा की प्रसन्नता के लिए भारत में मनाये जाने वाले पर्व को जानने के लिये पितृ पक्ष (Pitru Paksha) पर जाये।
रक्षाबंधन की पूजा एवं अन्य तैयारियां
राखी के दिन बहन अधिकतर अपने भाई के घर राखी बांधने जाती है, किन्तु कोई समस्या होने पर भाई भी कई बार बहन के यहां जाकर राखी बंधवाते हैं।
इस दिन बहनें सुबह जल्दी उठकर समस्त नित्यकर्मों से निवृत्त हो नहा धोकर नए वस्त्र धारण कर अपने भाई को राखी बांधने के लिए तैयार हो जाती हैं।
भारत के त्योहारों में सबसे रंगोंभरा त्यौहार है। होली जिसमे भारत की रंगबिरंगी छठा देखते ही बनती है। होली उत्सव को अधिक गहराई से जानने के लिए Holi अवश्य पढ़े।
होली के सामान ही पति पत्नी के प्रेम के त्यौहार करवा चौथ को भी जानने के लिये प्यार भरा करवा चौथ (karva chauth) पढ़े।
रक्षा बंधन की थाली
इस त्यौहार में सबसे महत्वपूर्ण पूजा की थाली होती है। इसमें भाई को टीका करने के लिए रोली, चावल एवं दीपक के साथ ही सुन्दर राखी तथा मिठाई रखी जाती है।
ध्यान रहे, कि भाई को टीका करने के लिए थाली में जटा वाला नारियल तथा रुमाल अवश्य रखा जाए। साथ ही अक्षत के चावल अटूट होने चाहिए।
टीके की थाली में तांबे के लोटे में जल रखना शुभ माना जाता है ,किन्तु यदि उपलब्ध न हो तो स्टील का लोटा भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
राखी बांधने का तरीका
राखी बांधते समय यदि भाई बहिन कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें तो इस त्यौहार की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है।
राखी बांधते समय हमेशा लकड़ी के पाट, कुर्सी पर बैठकर ही राखी बंधवाना चाहिए। जहाँ तक हो सके। ज़मीन पर लकड़ी के पाट पर बैठकर ही भाई राखी बंधवाये।
हमेशा राखी बांधते समय बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर तथा भाई का मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए। इस स्थिति को अत्यंत शुभ माना जाता है।
इस प्रक्रिया में सबसे पहले बहन अपने भाई को रोली से टीका करें। टीका करने के लिए पहले अनामिका अंगुली में रोली लगाकर भाई के मस्तक पर भौहों के बीच बिंदी लगाएं जहां से टीका शुरू होगा।
तत्पश्चात बिंदी को अंगूठे की सहायता से ऊपर की ओर फैला दें, जिससे टीके का आकार बन जाये। ध्यान रहे रोली में न तो अधिक पानी मिलाएं न ही अधिक।
अंगूठे व तर्जनी अंगुली से अक्षत ( चावल ) उठाकर टीके पर चिपका दें। इसमें तीन, पांच, सात या ग्यारह चावल चिपकते है, जिसे शुभ माना जाता है।
उसके बाद भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधें ,यह राखी साधारण धागे या चांदी/ सोने की बनी हुई हो सकती है। किन्तु असली महत्व आपके प्रेम का होता है।
उसके बाद नारियल पर रोली से टीका लगाकर उस पर रुमाल या कोई भी उपहार रखकर भाई के हाथ में दें। भाई हमेशा दोनों हाथ से नारियल पकड़े।
उसके बाद बहन अपने भाई को मिठाई खिला कर उसका मुहं मीठा कराये तथा भाई भी बदले में बहन को मिठाई खिलाकर आशीर्वाद दे।
बहन को अपने भाई की तीन बार बलैयां लेना चाहिए तथा भाई को जीवन में उन्नति, प्रगति एवं सदैव खुश रहने की शुभकामना देना चाहिए ।
बलाइयां लेने के लिए बहन अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को भाई की कनपटी के पास टच करके फिर अपनी कनपटी के पास टच करें।
उसके बाद दीपक वाली थाली से भाई की आरती उतारें। भाई अपनी बहन को उपहार रूपये आदि अपनी श्रद्धा अनुसार दें। बहन को अपने हाथ से मिठाई खिलाएं। हमेशा सुख दुःख में साथ निभाने का वादा करें।
रक्षा बंधन के मिष्ठान एवं पकवान
इस त्यौहार को इसमें बनने वाले विशेष मिष्ठान एवं पकवानों द्वारा भी जाना जाता है,जैसे उत्तर भारत में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में घेवर बनाया जाता है।
इसके अलावा इन्दरसे, मीठी पूरियां, सेवैंया, खीर, कचौड़ी, भजिये इत्यादि बनाये जाते है। बहने बड़े प्रेम से अपने भाई की पसंद के व्यंजन बना कर उस खिलाने में अपना सौभाग्य समझती हैं।
होली होलिका दहन महोत्सव के सामान ही गणेश उत्सव (ganesh chaturthi), दुर्गा पूजा (Durga Puja), नवरात्री (navratri) और गरबा (garba) की भी चमक धमक देखने लायक होती है। अधिक जानने के लिए उपरोक्त लिंक पर क्लीक करे एवम सम्पूर्ण विवरण प्राप्त करे।
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