कौल कामबस कृपिन बिमूढ़ा। अति दरिद्र अजसी अति बूढ़ा॥
तनु पोषक निंदक अघ खानी जीवत सव सम चौदह प्रानी॥
- वाम मार्गी: ऐसा व्यक्ति जो सारी दुनिया से उल्टा चले और जो हर चीज में कमी निकलता हो। जो परम्पराओं और समाज के नियम को ना मानता हो और केवल अपनी ही करता हो।
- कामी: ऐसा व्यक्ति जो सदा काम वासना के आधीन रहता हो। जैसे रावण ने काम के वश होकर माता सीता का हरण कर लिया।
- कंजूस: कृपण व्यक्ति जो केवल धन संचय में लगा रहता हो। जो व्यक्ति लोक कल्याण के लिए दान देने से बचे और सारा धन केवल स्वयं के लिए ही सहेज कर रखे।
- अत्यंत मूढ़: ऐसा व्यक्ति जो मुर्ख हो और सही और गलत के बीच में अंतर ना कर सके। जिसके पास अपना विवेक ना हो और जो बिना सोचे समझे ना करने योग्य कार्य भी करे। जैसे रावण ने हित अहित का विचार किये बिना ही माता सीता का हरण कर लिया।
- अत्यंत दरिद्र: दरिद्रता को भी शास्त्रों में श्राप माना गया है। ऐसा व्यक्ति जो अत्यंत दरिद्र हो वो भी मृत ही है। इसका वास्तविक अर्थ ये है कि जो दरिद्र हो उसे दुत्कारना नहीं चाहिए क्यूंकि वो पहले से ही कठिन जीवन जी रहा है। यथा संभव उसकी सहायता करनी चाहिए।
- कलंकित: ऐसा व्यक्ति जो अपने कार्यों के कारण बदनाम हो। जो घर, समाज और राष्ट्र में कुख्यात हो वो भी मरे हुए के समान ही है क्यूंकि कोई भी उसका सम्मान नहीं करता।
- अत्यंत वृद्ध: अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मरे हुए के समान है किन्तु वो अक्षम और दूसरों पर आश्रित हो जाता है। उसकी शक्ति और बुद्धि दोनों अक्षम हो जाते हैं और परिवार वाले भी उसकी मृत्यु की कामना ताकि उसे उस कष्ट से मुक्ति मिल सके।
- सदा का रोगी: ऐसा व्यक्ति जो हमेशा किसी ना किसी रोग से ग्रस्त रहता हो वो भी मरे हुए के समान ही है। सदा व्याधि से घिरा व्यक्ति कभी जीवन का कोई आनंद नहीं उठा सकता और स्वयं ही मुक्ति की कामना करने लगता है।
- सदा का क्रोधी: सदैव क्रोध में रहने वाले की मति भ्रष्ट हो जाती है और वो सही और गलत में अंतर नहीं कर पाता। छोटी छोटी बात पर क्रोधित होने वाला व्यक्ति कभी प्रसन्न नहीं रहता और उसका मन कभी भी उसके वश में नहीं रहता। वो दूसरों से अधिक स्वयं का ही अहित करता है।
- विष्णु विमुख: जो व्यक्ति श्रीहरि से विमुख रहता हो उसके जीवन का भी कोई महत्त्व नहीं है क्यूंकि श्रीहरि ही भवसागर से तारने वाले हैं। विष्णु द्रोही का कभी भी हित नहीं हो सकता और संसार में कोई भी उसकी रक्षा नहीं कर सकता। जिस प्रकार विष्णु द्रोही होने कारण रावण भी अंततः मृत्यु को प्राप्त हुआ।
- वेद और संतों का विरोधी: जो व्यक्ति वेदों और संतों का अपमान करता है उसका भी कल्याण नहीं हो सकता। वेद और संत दोनों समाज को सही मार्ग में ले जाने वाले हैं और उसका विरोध कर कोई भी सुरक्षित नहीं रह सकता।
- केवल अपना ही पोषण करने वाला: ऐसा व्यक्ति जिसके जीवन का लक्ष्य केवल अपने ही शरीर का पोषण करना हो उसके जीवन का भी कोई मूल्य नहीं है। ऐसे व्यक्ति सदैव सोचते हैं कि हर चीज पहले उन्हें ही मिल जाये। वे कभी भी किसी का कल्याण नहीं कर सकते और ना ही उनका कभी कल्याण हो सकता है।
- पर निंदक: जो सदैव दूसरों की निंदा करता हो उसका कोई भविष्य नहीं होता। ऐसे व्यक्ति सदैव दूसरों में दोष देखते हैं और स्वयं के दोषों को समझ कर उसका निवारण करने में असमर्थ रहते हैं।
- पाप की खान: जो व्यक्ति सदैव पाप कर्म में लिप्त रहता हो और पाप के कर्म से अपने परिवार का पालन करता हो वो भी कभी सुखी नहीं हो सकता। जो व्यक्ति अपने श्रम से कमाए गए धन से अपना और अपने परिवार का पोषण ना करता हो वो मृत ही है।