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सालासर बालाजी धाम – बालाजी की कथा, स्वरुप, भोग, दर्शन का समय

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सालासर बालाजी धाम – Shri Salasar Balaji Dham Mandir

संकट मोचन हनुमान जी हर किसी का संकट हर लेते हैं। माना जाता है कि जो भी भक्त संकट में भगवान हनुमान को याद करता है, उसके सारे कष्ट बजरंगबली हर लेते हैं। राम दूत हनुमान पर भक्तों को विश्वास है कि अगर उनका आशीर्वाद उनके साथ है तो उन्हें किसी भी मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ेगा। आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां हनुमान जी दाढ़ी मूंछ में स्थापित हैं।

राजस्‍थान के चुरू ज‌िले में हनुमान जी का एक प्रस‌िद्ध मंद‌िर है जो सालासर बालाजी के नाम से जाने जाते हैं। राजस्थान का सालासर धाम मेलों की नगरी है। यहाँ सिद्धपीठ बलाजीमंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं का प्रत्येक शनिवार, मंगलवार व पूर्णिमा को मेला लग जाता है। चैत्र, आश्विन और भाद्रपद महीनों में शुक्लपक्ष की चतुर्दशी व पूर्णिमा को तो विराट मेले लगते हैं। सालासर के हनुमानजी श्रद्धालुजनों में ‘ श्रीबालाजी ‘ नाम से लोकप्रिय है। हनुमान जयन्ती आदि के मेलों के अवसर पर विशेष दर्शन हेतु देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्त श्रीसालासर-बालाजीधाम की ओर चल पड़ते हैं

Salasar Balaji

श्री सालासर बालाजी की कथा

श्री सालासर बालाजी के सालासर धाम में स्थापित होने की एक प्राचीन कथा है जो ईस्वी सं १७५४ (संवत १८११) की है। नागौर (राजस्थान) के असोटा गाँव में गिंठाला (जाट गौत्र) जाट किसान अपने खेतों में जुताई का काम कर रहा था। जब किसान का हल किसी ठोस वस्तु से टकराया तब उस किसान ने निचे खोद कर देता तो वहाँ पर उसे एक हनुमान जी की मूर्ति दिखाई दी।

जब किसान ने खाना देने आई अपनी पत्नी को वह मूर्ति दिखाई तो किसान की पत्नी ने उसे अपनी साड़ी से साफ़ किया और अपने घर ले आये। खेत में हनुमान जी की मूर्ति मिलने की खबर पुरे गाँव में फैल गयी। वहीँ आसोटा गाँव के ठाकुर को एक सपना आया जिसमे उन्हें निर्देश मिले की खेत में मिली हनुमान जी की मूर्ति को वे सालासर गाँव में भेज दे जहाँ पर उनका परम भक्त “मोहनदास” जी रहते थे। इसी रोज श्री मोहनदास जी महाराज भी अपने सपने में बालाजी को देखते हैं।

जब मोहनदास जी ने अपने सपने में बालाजी के आने और मूर्ति के विषय पर असोटा गांव के ठाकुर को सन्देश भेजा तो वे चकित रह गए की कैसे उन्हें इस मूर्ति के विषय में पता चला। गांव के ठाकुर के कहने पर बालाजी की मूर्ति को सालासर के लिए बैल गाडी में रखकर भिजवा दिया गया। मान्यता है की आज भी मंदिर में उस बैलगाड़ी को सुरक्षित रखा गया है। भक्त मोहनदास जी ने ही यहाँ पर बालाजी के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की और यहीं पर मोहनदास जी का धूणा है जिसमे अखंड जोत प्रज्वलित है।

श्री सालासर बालाजी का स्वरूप

बालाजी के दर्शन की प्रतीक्षा में लड्डू, पेड़ा, बताशा, मखाना, मिश्री, मेवा, ध्वजा-नारियल आदि सामग्री हाथ में लिए लम्बी घुमावदार कतार में खड़े दर्शनार्थी बारी आने पर ज्यों ही मन्दिर में प्रवेश करते हैं, बालाजी की भव्य प्रतिमा का दर्शन कर भावमुग्ध हो जाते हैं। अद्भुत स्वरूप है बालाजी का जो अन्यत्र अलभ्य है। सिन्दूर से पुती मूलप्रतिमा पर वैष्णव सन्त की आकृति बनी है। माथे पर ऊर्ध्वपुण्ड्र तिलक, झुकावदार लम्बी भौंहें, घनी दाढ़ी-मूंछें, कानों में कुण्डल, एक हाथ में गदा और दूसरी में ध्वजा और दर्शकों के हृदय की गहराई तक झाँकती सुन्दर आँखें ; यह है बालाजी का विलक्षण स्वरूप। प्रतिमा का मूलरूप तो कुछ और ही था। उसमें श्रीराम और लक्ष्मण हनुमानजी के कन्धों पर विराजमान थे। बालाजी का यह वर्तमान रूप तो सन्तशिरोमणि मोहनदासजी की देन है।

बालाजी ने मोहनदासजी को सर्वप्रथम दर्शन एक वैष्णव सन्त के रूप में ही दिए थे। बालाजी का स्वभाव ही ऐसा है, सर्वप्रथम दर्शन वेश बदलकर ही देते हैं। गोस्वामी तुलसीदासजी को कोढ़ी के वेश में उनके दर्शन मिले थे। भगवान श्रीराम से मिले तो विप्रवेश में। मोहनदासजी के हृदय में प्रथम दर्शन का प्रभाव कुछ ऐसा पड़ा कि वह उनके मन-मस्तिष्क में स्थायी रूप से अंकित हो गया। उन्हें ध्यानावस्था में भी उसी रूप में दर्शन होते। बार- बार देखे गये उस रूप में इतनी अनन्यनिष्ठा हो गयी कि उन्हें दूसरा कोई रूप स्वीकार ही नहीं था। बालाजी तो भक्त की मनचाही करते हैं। उनकी अपनी कोई इच्छा होती ही कहाँ है, सो बालाजी ने भी भक्त की पसन्द का रूप धारण कर लिया। सालासर में यही उनका स्थायी रूप बन गया है।

श्री सालासर बालाजी का मुख्य भोग

बालाजी भी कम कौतुकी नहीं हैं। वे बोले- जब रूप प्रथम दर्शन वाला है तो भोग भी प्रथम दर्शन वाला ही होना चाहिए। बचपन में मोहनदासजी जब रुल्याणी के बीड़ (गोचरभूमि) में गायें चरा रहे थे तब बालाजी ने उन्हें सर्वप्रथम दर्शन एक वैष्णव सन्त के रूप में दिए थे। उस समय मोहनदासजी ने उन्हें मोठ-बाजरे की खिचड़ी भोग के लिए अर्पण की थी, जो माँ ने दोपहर के भोजन के लिए उनके साथ भेजी थी। सन्तवेशधारी बालाजी ने बड़े चाव से उस खिचड़ी को पाया था। प्रेम से अर्पित उस खिचड़ी का स्वाद वे भूले नहीं थे। बालाजी प्रेम के ही तो भूखे हैं। केवल प्रेम से ही भक्ति के क्षेत्र में प्रवेश मिलता है। प्रेम का स्पन्दन तरंग की भांति आराध्य के हृदय को स्पर्श तथा प्रभावित करता है। मोहनदासजी द्वारा अर्पित मोठ-बाजरे की वह खिचड़ी सालासर के बालाजी का स्थायी भोग बन गयी। वह परम्परा आज भी कायम है। मेवा-मिष्ठान्न के साथ बालाजी की तृप्ति के लिए मोठ-बाजरे की खिचड़ी का विशेष भोग जरूर लगाया जाता है। भक्त और इष्टदेव का यह भावनात्मक संबंध ही सालासर के बालाजीधाम की विलक्षण विशेषता है।

श्री सालासर बालाजी दर्शन टाइम – Salasar Balaji Temple Timing

श्री सालासर धाम मंदिर खुलने और कपाट बंद होने का समय निम्न प्रकार से है।

  • मंदिर खुलने का समय –सुबह 04 बजे
  • मंदिर के बंद होने का समय – रात्रि 10 बजे

श्री सालासर बालाजी आरती टाइम – Salasar Balaji Temple Aarti Timing

श्री सालासर बालाजी की आरती का समय निम्न प्रकार से रहता है।

  • सालासर बालाजी मंगल आरती : -सुबह 05 बजे।
  • सालासर बालाजी राज भोग समय – सुबह 10. 30 बजे।
  • राजभोग आरती – प्रातः 11 बजे (प्रत्येक मंगलवार को )।
  • धूप और मोहनदास जी की आरती- सांय 06 बजे।
  • बालाजी की आरती : सांय 07.30 बजे
  • बाल भोग आरती – रात्रि 08 .15 बजे
  • सालासर बालाजी शयन आरती- रात्रि 10 बजे।

कैसे पहुंचे श्री सालासर धाम

श्री सालासर धाम बालाजी के मंदिर में पहुंचने के कई माध्यम उपलब्ध हैं। यदि आप स्वंय के वाहन से सालासर धाम आना चाहते हैं तो यह मंदिर सभी प्रमुख राजमार्गों से जुड़ा हुआ है। बीकानेर जयपुर मार्ग पर लक्ष्मणगढ़ से आप इस मंदिर के लिए जाने वाली सड़क का इस्तेमाल कर सकते हैं। सुजानगढ़ से आप सीधे सालासर धाम पंहुच सकते हैं। रेल मार्ग में आप सीकर, जयपुर आदि स्थानों का चयन कर सकते हैं। नजदीकी हवाई अड्डा सांगानेर एयर पोर्ट, जयपुर है जो लगभग १८० किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

सालासर से नजदीक रेलवे स्टेशन

सुजानगढ़ 25 कि.मी., रतनगढ़ 45 कि.मी., सीकर 55 कि.मी., डीडवाना (वाया गनेडी) 42 कि.मी., डीडवाना वाया सुजानगढ़ 75 कि.मी., लक्ष्मणगढ़ 32 कि.मी., जयपुर 175 कि.मी.

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