रविदास (रैदास) की जीवनी (Sant Ravidas ji Biography)
रविदास भारत के एक महान संत, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले, अनुयायी, सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिये अपने महान कविता लेखनों के जरिये संत रविदास ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिये।
संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग रही है जिससे जनमानस पर इनका अमिट प्रभाव पड़ता है। प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों तथा मतों के अनुयायी निवास करते रहे हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रविदास का नाम अग्रगण्य है।
रविदास चमार जाति के थे। आज भी कई लोग चमार जाति वालो से दुरी बनाये रहते है, परन्तु वो लोग ये समझते नहीं की चमार किसे कहते है। चमार उसे कहते है जिसे चमड़े की अच्छी परख होती है। जैसे चौबे उसे कहते है जो चारो वेदों का ज्ञान रखता हो। हिंदी में पीएचडी जिसने की उसे डॉ. की उपाधि मिल जाती है। उसी प्रकार यह सभी जाति है। यह जाति एक उपाधि है ऐसा समजिये।
संत रविदास जी का जन्म, माता पिता का नाम
रैदास नाम से विख्यात संत रविदास का जन्म सन् १३८८ में बनारस में हुआ था। लेकिन इनके जन्म को लेकर बहुत मदभेद है, कुछ लोग के अनुसार सन् १३९८ तो कुछ सन् १४५९ में कहते है। गुरू रविदास जी का जन्म काशी में हुआ था। जिसे आज वाराणसी के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम कलसा देवी है। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक ज्ञान प्राप्त किया था। जूते बनाने का काम उनका पिता व्यवसाय था और उन्होंने इसे सहर्ष अपनाया। वे अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे।
प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें कभी कभी मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे क्रोधी रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से बहार दिया। रविदास जी पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग ईमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
कहते हैं मीरा के गुरु रैदास ही थे, मीराबाई रैदास को अपना गुरु मानते हुए कहती हैं –
‘गुरु मिलिया रैदास दीन्ही ज्ञान की गुटकी।’संत रविदास जी के गुरु कौन थे?
संत रविदास व संत कबीर के गुरु भाई थे क्योंकि उनके भी गुरु स्वामी रामानन्द थे। अर्थात संत कबीर और संत रविदास के गुरु एक थे रामानन्द।
यह भी जरूर पढ़े –
- वेद और वैदिक परम्पराओ के ज्ञाता स्वामी दयानंद सरस्वती
- भगवान शंकर के अवतार आदि शंकराचार्य
- जानिये महात्मा महर्षि भृगु के बारे मैं
संत रविदास जयंती
भारत में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने के पूर्ण चन्द्रमा दिन पर हर साल संत रविदास की जयंती या जन्म दिवस को मनाया जाता है। जबकि, वाराणसी में लोग इसे किसी उत्सव या त्योहार की तरह मनाते है। २०१८ (६४१st) – ३१ जनवरी (बुधवार)
रैदास के प्रसिद्ध पद
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा॥
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा॥
रैदास के प्रसिद्ध दोहे
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं।
तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि।।
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा।
दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।।
यह भी जरूर पढ़े –
- तुलसीदास जी – Tulsidas Ji Ka Jeevan Parichay
- वाल्मीकि – Valmiki ji Biography
- स्वामी विवेकानन्द – Swami Vivekananda Biography in hindi
उनके कुछ और दोहे हैं-
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा. वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा.
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै. तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै.
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं. तैसे ही अंतर नहीं हिन्दुअन तुरकन माहि.
हिंदू तुरक नहीं कछु भेदा सभी मह एक रक्त और मासा. दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा.
हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस. ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास.