Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

सप्तवार व्रत क्यों किये जाते है ? क्या है हर दिन का अपना अलग महत्व, व्रत उपवास की दृष्टि से

Uncategorized

सप्तवार व्रत क्यों ?

कलियुग में जब पापकर्मो की अत्यधिक वृद्धि होने लगी और पुण्य क्षीण हुए, तब पुण्यार्जन के लिए अनेक प्रकार के व्रतों को करने का प्रचलन तेजी से बढा़ और वे लोक-जीवन में प्रसिद्ध हो गए। प्रत्येक वार के व्रत का अपना महत्व है तथा सभी व्रतों का फल बहुत प्रभावशाली सिद्ध होता है।

रविवार व्रत

इस व्रत के देवता भगवान सूर्य महान तेजस्वी व बली है, को प्रसन्न करने के लिए यह व्रत किया जाता है, उनके प्रसन्ना होने पर व्रती को संसार के समस्त सुख प्राप्त होते है। रविवार के व्रत को करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। उत्तम स्वास्थ्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है, कुछ आदि त्वचा के विकारों से मुक्ति मिलती हैं, सांसारिक कष्टों से छुटकारा मिल जाता है, समस्त पाप नष्ट हो जाते है और घर में सदा ऋद्धि-सिद्धि का वास होता हैं।

यह व्रत आश्वित मास के शुक्लपक्ष के अंतिम रविवार से प्रारंभ करना शुंभ माना गया है। इसे बारह, तीस या पूरे एक वर्ष के बावन व्रतों की संख्या में करना चाहिए। इस व्रत का उद्यापन माघ मास की सप्तमी को करने का विधान बतलाया गया है।

सोमवार व्रत

अखंड सौभाग्य, संतान-प्राप्ति एवं निर्धनता दूर करने के लिए विशेषकर स्त्रियां इस व्रत को करती हैं भविष्य पुराण में लिखा है कि पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ और व्रत हैं, वे सब इस सोमवार के व्रत की सोलहवीं कला को भी नहीं पा सकते। जो सोमवार को भगवान शिव का अर्जन करते है, उनके लिए इस लोक और परलोक में कुछ भी दुर्लभ नही है। इस दिन जो दान, होम, व्रत और जप किया जाता है, वह भगवती पार्वती और भगवान शिव की प्रसन्नता का कारण बनता है। इस व्रत के करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

उज्जवल भविष्य, कीर्ति, मान, प्रतिष्ठा आदि मिलती है। निःसंतान को संतान तथा निर्धनों को धन की प्राप्ति होती है। सारे भय दूर होकर दुखों का अंत हो जाता हैं। इसकें करने से सौभाग्यवती स्त्रियों का सुहाग अखंड़ रहता है।

शांति और शीतलता के प्रतीक चंद्रमा इस व्रत के देवता है। यह व्रत मानसिक अशांति व हृदय की चंचलता को दूर करके हृदय को शांति प्रदान करता है और नेत्र पीडा़ व अन्य रोगों का शमन करता हैं। श्रद्धा-भक्ति व विधि-विधान से चंन्द्रमा का पूजन करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती हैं यह व्रत श्रावण, चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, कार्तिक और मार्गशीर्ष में शुक्ल्पक्ष के प्रथम सोमवार से प्रारंभ करना चाहिएं। यह व्रत कम से कम दस की संख्या में अवश्य करना चाहिए। अच्छा तो यह है कि इसे जिस मास में आरंभ करें, उसी मास में समाप्त भी करें।

अखंड़ सौभाग्य तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति के लिए सोलह सोमवार का व्रत करने का विधान है। शिवमहापुराण के अनुसार सोलह सोमवारों का व्रत रखने वाले भक्त को भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा प्राप्त होती हैं यह व्रत सर्वमनोकामना की प्राप्ति के लिए किया जाता है। इस व्रत को विधि-विधानपूर्वक करने से व्रती भगवान शिव की कृपा अवश्य ही होती है। हृदया में सात्विक भाग जाग्रत होेते है तथा बुद्धि निर्मल हो जाती है, भक्ति की भावना बढती है, मन के कुविचारों का शमन होता है, सांसरिक आधि-व्याधियों से छुटकारा मिल मुक्ति मिलती है। इस व्रत को किसी भी शुक्लपक्ष के सोमवार से आरंभ किया जा सकता है।

मंगलवार व्रत

अनिष्ट निवारण, शौर्य, साहस की प्राप्ति और शत्रुओं के दमन के लिए यह व्रत क्रिया जाता है। इस व्रत के देवता मंगल देव है, जो सब प्रकार के भयों को नष्ट करने वाले हैं इसलिए इस दिन का व्रत करने वाले व्यक्ति के सभी अनिष्ट दूर हो जात है। उसकी दरिद्रता मिट जाती है और रक्त-विकार जैसी व्याधियों का नाश हो जाता है तथा पुत्र, धन, धर्म, अर्थ, काम, सुख एवं राज्य की प्राप्ति होती हैं ।

लगातार इक्कीस सप्ताह तक व्रत करने से मंगल का दोष और उसकी पीडा़ से मुक्ति मिलती हैं। इस दिन महाबली हनुमान का जन्मदिन होने के कारण मंगल-व्रत करने से हनुमानजी अपने भक्त की समस्त समस्याओं का निराकरण कर देते हैं।

व्रती के आधिदैविक, आधिदैहिक और आधिभौतिक- तीनों ताप नष्ट होते हैं और सद्गति की प्राप्ति होती हैं। बुद्धि का विकास और शारीरिक बल प्राप्त होता है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करना चाहिए। इस व्रत का प्रारंभ सूर्य उत्तरायण होने के कारण के किसी मास के शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से करके कम से कम इक्कीस और पूर्ण फल प्राप्ति के लिए पैंतालिस व्रत करने का विधान हैं इस दिन तांबे के पात्रा में मसूर की दाल भरकर याचक को दें।

बुधवार व्रत

शांति, स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि एवं विद्या-बुद्धि के निमित्त यह व्रत किया जाता हैं इस व्रत के देवता बुध हैं जो विधा, वाक्पटुता और बुद्धि को प्रभावित करते हैं इन्हें ग्रहों का राजकुमार भी कहते है।

बुधदेव को प्रसन्न करने हेतू उनका व्रत, पूजन और उपवास करने से विद्या बुद्धि, उत्तम स्वास्थ्य, हृदय को शांति, सुख-समृद्धि और मनोंवांछित फल की प्राप्ति होती है। बुध ग्रह की पीडा़ का शमन व अशुभ दशा शुभ हो जाती हैं इस व्रत को करने से रोग-शोक से मुक्ति मिलती है। इस दिन जन्मा पुत्र बडा़ प्रतापी और बुद्धिमान होता है, जो अपने पिता के असंभव कार्यों को भी सहज ही संभव बना देता हैं

जो मनुष्य एक सौ अट्ठाईस बुधवार के व्रतों को विधि-विधान के साथ श्रद्धा और विश्वास से पूर्ण करता है, वह बुधदेव की कृपा से बुद्धिमान और प्रत्येक कार्य को करने में प्रवीण होता है तथा इस लोक के सभी ऐश्वर्य भोगता है और अंत में वह देवलोक को प्राप्त होता हैं।

इस व्रत का प्रारंभ किसी शुक्तपक्ष के प्रथम बुधवार से या विशाखा नक्षत्र वाले बुधवार से करना चाहिए।

बृहस्पतिवार व्रत

यह व्रत नवग्रहों में सबसे बड़े, शक्तिशाली और देवताओं के गुरू बृहस्पति देव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से न केवल बृहस्पति वरन् सभी ग्रह प्रसन्न होते है।

बृहस्पति की प्रसन्नता से धन, वैभव, मान-सम्मान, यश, पद, विद्या, बुद्धि तथा पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति होती है। व्रत के प्रभाव से गृह धन-धान्य से भरा-पूरा रहता है और सभी कार्य सुगमता से पूरे हो जाते है। गुरु के विषम दोषों को दूर करने तथा समस्त पापों को नष्ट करने में यह व्रत प्रभावशाली हैं।

इस महापुण्यदायक, कल्याणकारी व्रत को करने से हृदय का परिष्कार, परिमार्जन होता है और श्रेष्ठ एवं पावन भावनाओं का विकास होता है। जो लोग इस व्रत को करतेे है, व्रत की कथा को पढते या सुनते हैं, उनके सब पापों का अंत हो जाता हैं। इस व्रत का प्रारंभ किसी शुक्ल पक्ष के प्रथम बृहस्पतिवार (गुरूवार) से करना चाहिए।

शुक्रवार व्रत

यह व्रत मनोकामना-सिद्धि, ग्रह-शांति एवं पुत्र की दीर्घायु के निमित्त यह व्रत किया जाता है। इस व्रत को शुक्र ग्रह की शांति के लिए भी किया जाता है। इस व्रत की अनुकूलता से व्यक्ति विद्वान, श्रेष्ठ वक्ता, राजनेता एवं सफल उद्योगपति बनता हैं इसके अतिरिक्त वह विद्या-बुद्धि, धन-धान्य से परिपूर्ण रहते हुए सुखी जीवन जीता है।

उल्लेखनीय है कि शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरू हैं जो सौंदर्य, तेजस्विता, सौभाग्य, समृद्धि व कामशक्ति को नियंत्रित करते हैं। शुक्रवार का व्रत शुक्र ग्रह की शांति के अलावा समस्त मनोकामनाओं की प्राप्ति, हृदय की शांति और विध्न-बाधाओं को दूर करने के लिए भी किया जाता है।

इस व्रत को भगवती लक्ष्मी जी का भी माना गया है, लेकिन कालांतर में यह संतोषी माता के व्रत के रूप में ही अधिक प्रसिद्ध है और प्रचलित हो गया है। इसलिए इसे प्रायः संतोषी माता का व्रत ही कहा जाता हैं। शास्त्रों में संतोषी माता को उमा का ही रूप बताया गया हैं। इस प्रकार यह दुर्गा जी की पूजा-आराधना का व्रत हैं। इस व्रत का आरंभ किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से करके इकतीस व्रत करने का विधान है।

शनिवार व्रत

यह व्रत शनिदेव को मनोनुकूल बनाने, बाधाएं दूर करने एवं ग्रहदशा शमन के लिए तथा शनिदेव की प्रसन्नता के लिए किया जाता है।

जब शनिदेव कुपित होते है, तो प्रायः सभी कार्यो मे विघ्न पैदा होने लगता है तथा प्रसन्न होने पर अपार सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त अधूरे कार्य पूरे होेते है। बिगडे़ काम आसानी से बन जाते हैं तथा गृह में सुख और शांति का सामा्रज्य स्थापित होता है। जो लोेग शनिवार का व्रत पूर्ण श्रद्धा-भक्ति और विश्वास से करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट होकर उन्हें अभीष्ट की प्राप्ति होती हैॅं शनिदेवा की पूजा, अर्चना करने से वे आसानी से प्रसन्न होकर अपने भक्तो की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। राहु-केतु प्रकोप से भी उनकी सुरक्षा करते है।

यह व्रत किसी भी मास मे शुक्लपक्ष के प्रथम शनिवार से प्रारंभ किया जा सकता है,लेकिन श्रावण मास के तीसरे शनिवार से आरंभ करने का अधिक महत्व बताया गया है। इस व्रत का प्रभाव अतिशीघ्र देखने मे आता हैं।

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00