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श्री श्री रविशंकर जी बायोग्राफी – Shari Ravishankar ji Biograohay
श्रीश्री रविशंकर जी आध्यात्मिक गुरू हैं। सदा मुस्कुराते हुए शांति और शालीनता से बात करनेवाले श्रीश्री रविशंकर ‘सुदर्शन क्रिया’ के जरिये आर्ट ऑफ लिविंग का प्रशिक्षण देते हैं और जरूरत पड़ने पर प्राकृतिक आपदाओं में आगे बढ़कर पीड़ितों को हर संभव मदद पहुंचाते हैं। रविशंकर जी का जन्म 13 मई 1956 को तमिलनाडु के पापनासम में हुआ था। उन्होंने मात्र चार साल की उम्र में श्रीमद्भागवत कथा को कंठस्थ कर लिया था। उनके पिता वेंकट रत्नम पेशे से व्यापारी थे
। बालक शंकर को आध्यात्मिक संस्कार माँ श्रीमती विशलाक्षी से मिला। रविवार के दिन पैदा होने के कारण उनका नाम पहले रवि रखा गया, बाद में शंकराचार्य के प्रति पारिवारिक आस्था के कारण वह रविशंकर कहलाने लगे। रविशंकर जी बचपन से ही छुआछूत के विरोधी थे। वह जब नौ साल के थे तो उनके घर में दादी के आदेश के कारण गायों की देखभाल करने वाले स्वामीनाथन को घर में प्रवेश की इजाजत नहीं थी। रविशंकर जी स्वामी नाथन के घर पहुंच गए और उनके बच्चों के साथ खाना खाया और उनके साथ घूमने भी जाने लगे। उनकी आध्यात्मिक रूचि को देखते हुए पिता ने उन्हें महर्षि महेश योगी के पास भेजा। बहुत जल्दी रविशंकर ने अपनी विद्वता से महेश योगी का दिल जीत लिया।
भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित शहर शिमोगा में श्री श्री रवि शंकर १० दिन के लिए मौन में चले गए| उसके उपरांत जन्म हुआ सुदर्शन क्रिया का, जो एक शक्तिशाली श्वास प्रणाली है| समय के साथ सुदर्शन क्रिया आर्ट ऑफ़ लिविंग की मुख्य केंद्र बिंदु बन गयी|
श्री श्री रवि शंकर ने आर्ट ऑफ़ लिविंग की स्थापना एक अंतर्राष्ट्रीय, लाभ निरपेक्ष, शैक्षिक एवं मानवतावादी के तौर पर की| इसके शिक्षात्मक और आत्मविकास सम्बन्धी कार्यक्रम तनाव मिटाने और कुशल मंगल की भावना उत्पन्न करने के शक्तिशाली साधन प्रदान करते हैं| ये प्रणालियाँ केवल किसी ख़ास जन समुदाय को ही नहीं आकर्षित करतीं, बल्कि, ये विश्वव्यापी रूप से, समाज के हर स्तर पर प्रभावशाली सिद्ध हुई हैं|
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सन १९९७ में उन्होंने आई ए एच वी – मानवी मूल्यों की अंतर्राष्ट्रीय समिति – स्थापित की, आर्ट ऑफ़ लिविंग के साथ मिल कर चिरस्थायी विकास योजनाओं को समन्वित करने, मानवीय मूल्यों को विकसित करने और द्वंद्व समाधान करने के लिए| भारत, अफ्रीका, और दक्षिण अमेरिका के ग्रामीण समुदायों में में इन दोनों संस्थाओं के स्वयंसेवक संपोषणीय प्रगति की अगवाई कर रहे हैं, और ४०,२१२ गाँव तक पहुँच चुके हैं|
रवि शंकर कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है जो दोनों को जोड़ती है। इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वे इस बात पर भी जोर देते हैं कि ध्यान के अलावा दूसरे लोगों की सेवा भी इंसान को करनी चाहिए। वे विज्ञान और आध्यात्म को एक-दूसरे का विरोधी नहीं, बल्कि पूरक मानते हैं। वे एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयत्न कर रहे हैं जिसमें रहने वाले लोग ज्ञान से परिपूर्ण हो ताकि वे तनाव और हिंसा से दूर रह सकें। 2001 में जब आतंकवादियों ने विश्व व्यापार संगठन पर हमला किया तो आर्ट आफ लिविंग फाउंडेशन ने पूरे न्यू यार्क के लोगों के निशुल्क तनाव को दूर करने के कोर्स करवाया।
इस संस्था ने कोसोवो में युद्ध से प्रभावित लोगों के लिए सहायता कैम्प भी लगाया। इराक में भी संस्था ने 2003 में युद्ध प्रभावित लोगों को तनाव मुक्ति के उपाय बताए। इराक के प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर श्री श्री रवि शंकर ने इराक का दौरा किया और वहां के शिया, सुन्नी तथा कुरदिश समुदाय के नेताओं से बातचीत की। 2004 में पाकिस्तान के उन नेताओं से भी मिले जो विश्व शांति स्थापना के पक्षधर थे। संसार ने जब सुनामी को देखा तो संस्था के लोग मदद के लिए वहां भी खड़े थे। दुनिया भर के कैदियों के उत्थान के लिए भी संस्था निरंतर कार्य करती रहती है।