लेख सारिणी
सूर्य उपासना – Surya Upasana –
सूर्य पूजा : आदिकाल से ही भगवान सूर्य की पूजा होती चली आ रही है। सूर्य समस्त लोकों में ऊर्जा के केन्द्र माने गए हैं। सूर्यदेव को प्रत्यक्ष देवता माना गया है क्योंकि उनके दर्शन हमें प्राप्त होते हैं। मान्यता है की सूर्य उपासना करने से रोगों से मुक्ति मिलती है। प्रत्यक्ष देवता सूर्य की उपासना शीघ्र ही फल देने वाली मानी गई है। जिनकी साधना स्वयं प्रभु श्री राम ने भी की थी। विदित हो कि प्रभु श्रीराम के पूर्वज भी सूर्यवंशी थे। भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र सांब भी सूर्य की उपासना करके ही कुष्ठ रोग दूर कर पाए थे। ज्योतिष में सूर्य को आत्म का कारक ग्रह माना गया है। आइए जानते हैं सूर्य उपासना का महत्व और मंत्र, लाभ और नियम।
सूर्य उपासना विधि – Surya Upasana Vidhi
सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के लिए स्नान के बाद पवित्री धारण कर पूर्वाभिमुख हो आचमन करके दो बार मार्जन और तीन बार अभ्युक्षण कर भगवान सूर्य की विभिन्न पुष्पों से पूजा करें। गायत्री मंत्र बोलते हुए सूर्य भगवान को गुग्गुल की धूप दें। अर्घ्य देने से पूर्व सूर्यार्थ्य का विनियोग दें। (मार्जन = भूल, दोष आदि का परिहार, अभ्युक्षण = सिंचन, छिड़काव)
अर्घ्य देने के लिए एक ताम्बे के पात्र में जल लेकर उसमें रक्तचन्दन, कुमकुम और लाल फूल डालें। अर्घ्य देते समय दोनों पैरों का अग्रभाग बराबर हो और एक एड़ी उठाए हुए खड़े रहकर अर्घ्य दें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि अर्ध्य ऐसी जगह दें, जहां लोगों के पैर न पड़ें। अच्छा तो यह है कि किसी बर्तन या थाली में अर्घ्य दें तथा अर्घ्य देने के बाद उस जल को किसी पेड़- पौधे में डाल दें।
सूर्य उपासना मंत्र – Surya Upasana Mantra
अर्घ्य देते हुए भगवान सूर्य का ध्यान करते हुए सूर्य उपासना मंत्र बोलें –
एहि सूर्य! सहस्त्रांशों! तेजोराशे! जगत्पते ।
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर।।
जो लोग यह मंत्र नहीं बोल सकते वह ‘ॐ सूर्याय नमः या ॐ सूर्यनारायणाय नमः’ का उच्चारण करते हुए अर्घ्य दें। इस बात का ध्यान रखें कि सूर्याय का सही समय तो सूर्योदय से तथा सूर्यास्त से तीन घड़ी बाद तक का है। यदि किसी कारणवश इसमें विलम्ब हो जाए, तो प्रायश्चित स्वरूप गायत्री मंत्र से एक अर्घ्य दें-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ भूभुर्वः स्वः ॐ ||
सूर्य उपासना का महत्व
सूर्य को आदित्य भी कहा जाता है। समस्त वेदों, उपनिषदों तथा पुराणों में भगवान आदित्य को साक्षात् परब्रह्म के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है। इनके बारे में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था ‘आदित्य ही मंत्रमय है। आदित्य ही तीनों लोकों और चौदह भुवनों के स्वामी हैं। विद्वानों का मानना है कि सूर्य उपासना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका लाभ हाथों-हाथ मिलता है। यह अनुभव आप सूर्य को जल चढ़ाकर स्वयं ही ले सकते हैं।
सूर्य पूजा की विधि – Surya Pooja Vidhi
एक ताम्बे के लोटे में जल भरकर उदय हो रहे सूर्य को धीरे- धीरे अर्घ्य दें। ऐसा करने पर आपको लगेगा कि आपके माथे में से गर्म भाप निकलकर वातावरण में विलीन हो रही है। शास्त्रों में किसी भी पूजन या कार्य आरम्भ करने पर सर्वप्रथम गणेशजी का स्मरण करने को कहा है। अतः “ॐ सिद्ध गणपतये नमः” का उच्चारण करें। इसके पश्चात् अपने बाईं ओर गुरु की पूजा करें। यदि गुरू नहीं हो तो भगवान शिव की पूजा करें। दाहिनी ओर गणेश की पूजा करे। जिस देव की पूजा की जा रही है। उसे अपने सामने रखें। यहां पर भगवान सूर्य की तस्वीर या मूर्ति अपने सामने रखें। अब आप संकल्प लेकर पूजा आरम्भ करें
सूर्य पूजा सामग्री
आसन समर्पण के लिए 5 फूल, स्वागत के लिए 6 फूल, पाद्य के लिए जल, जिसमें दूब, श्यामा घास, कमल या अपराजिता, जलपात्र एवं जल जिसमें गंध, पुष्प, यव या जौ, दूब, चार तिल, लाल चन्दन, लाल कनेर के पुष्प आचमनो में जल, जिसमें जायफल, लौंग का चूर्ण, कांसे के पात्र में मधुपर्क हेतु घी, शहद और दही, स्नान के लिए जल, दो वस्त्र, आभूषण, गंध द्रव्य जैसे चन्दन, अगरबती, कपूर, पुष्प, गुग्गुल की धूप, नैवेद्य के लिए भोजन, दूर्वा और अक्षत, रूई एवं कपूर’ युक्त दीपक, सूर्य यंत्र या सूर्य भगवान की तस्वीर।
यह सारी सामग्री एकत्र करके पूजा आरम्भ करें। सर्वप्रथम दाएं हाथ में जल लेकर अपने और समस्त सामग्री के ऊपर छींटे दें तथा यह मंत्र बोलें –
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मेरत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचि ।।
मंत्र बोलने के पश्चात् दाहिने हाथ में पुनः जल लेकर निम्न मंत्र बोलते हुए जल धरती पर डालें।
ॐ पृथ्वित्वया धृतालोका देवि त्वं विष्णुनाधृता।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।
इसके बाद निम्न मंत्रों से आचमन करें
ॐ केशवाय नमः । ॐ नारायणाय नमः | ॐ माधवाय नमः
फिर हाथ धोकर दाहिने हाथ में जल, अक्षत तथा पुष्प लेकर विनियोग करें। सूर्य कवच एवं सूर्य देव के मंत्रों का उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य दें।
सूर्य पूजा मंत्र – Surya Puja Mantra
सूर्य देव का वैदिक मंत्र
ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च । हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
सूर्य तांत्रोक्त मंत्र
ॐ घृणि: सूर्यादित्योम, ऊँ घृणि: सूर्य आदित्य श्री, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम:, ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:।।
सूर्य प्रार्थना मंत्र
ग्रहाणामादिरादित्यो लोक लक्षण कारक:। विषम स्थान संभूतां पीड़ां दहतु मे रवि।।
सूर्य उपासना का लाभ – Surya Upasana Ke Fayde
सूर्य को जल अर्पित करने, मंत्रों का जाप करने और सूर्य को नमस्कार करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, वैभव और पराक्रम की प्राप्ति होती है।सूर्य उपासना में आप गायत्री मंत्र का भी जाप कर सकते हैं गायत्री मंत्र को रविवार का विशेष मंत्र माना गया है. इससे जातक की कुंडली में सूर्य प्रबल होता है। रविवार का व्रत किसी भी ग्रह की शांति के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। नवग्रहों के राजा सूर्यदेव की पूजा का बहुत महत्व है।
सूर्य पूजा के नियम
सूर्य देवता की विधि विधान से पूजा करने के कई नियम हैं. सूर्योदय से पहले आपको बिस्तर छोड़ देना चाहिए. इसके बाद स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए. इस दौरान सूर्य देवता के मंत्रों का जाप करना चाहिए. रविवार को सूर्य देव की विशेष पूजा होती है. रविवार को व्रत रखकर सुबह और संध्या को सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए. इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं.