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त्रैलंग स्वामी वाराणसी Trailanga Swami Varanasi

परम चेतना को उपलब्ध संतों के विषय में कुछ भी कहना आपको अपनी अपूर्णता का भली प्रकार भान करा देता है । ऐसा दुस्साहस की आप असीम को सीमा में बांधने का प्रयास करें । फिर मैं या मेरे जैसे अनेक चेतना के तल पर थोड़े ही जीते हैं । हमारा जीवन तो मन से संचालित हैं । त्रैलंग स्वामी के बारे में जानकारी काफी आनंददायक रही । इनकी महिमा से यदि आप को परिचित भी नहीं करवा पाया तो ये भी एक तरह से अन्याय ही होगा और यदि थोड़ा भी सफल हुआ तो ईश्वर में आसक्त अनेक संतों की साधना को बल मिलेगा । ऐसा जानकार स्वामीजी के जीवन के कुछ अंश आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ । त्रुटियों के लिए आप सभी के ह्रदय में विराजमान परमात्मा से क्षमा प्रार्थी हूँ ।


शमशान को ही बना लिया तपस्थली

त्रैलंग स्वामी Trailanga swami नृसिंह राव और विद्यावती के घर १६०१ को अवतरित हुए । बचपन से ही इनके हाव भाव इनके समक्ष अन्य बच्चों से भिन्न थे । आरम्भ में तो माता पिता को भी इस बात का भान नहीं था, परन्तु समय व्यत्तीत्त होने के साथ साथ उन्हें भी ज्ञात हो गया की यह बालक साधारण नहीं है । माँ पूजा में बैठती तो यह बालक भी माँ के साथ ही पूजा घर में आँखें मूँद कर बैठे रहता । इनकी माँ के देहांत के पश्चात् त्रैलंग स्वामी ने शमशान को ही अपनी तपस्थली बना लिया । करीब २० वर्षों की साधना के बाद इन्होने भृमण करना शुरू किया और नेपाल होते हुए वाराणसी आ पहुंचे । करीब १५० वर्ष वाराणसी में व्यतीत करने के पश्चात् पौष माह की एकादशी १८८१ को स्थूल देह को त्याग कर ब्रह्म तत्व में पूर्णतया विलीन हो गए ।

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बनारस के चलते फिरते शिव…. त्रैलंग स्वामी TRAILANGA SWAMI ( THE WALKING SHIVA OF BANARAS )

त्रैलंग स्वामी Trailanga swami को बनारस का चलता फिरता शिव कहा जाता है । ३०० पौंड का भारी भरकम शरीर होने के बावजूद खाना कभी कभार ही खाते थे । बनारस के लोगों ने अनेकों बार देखा की ये जल में उतर गए लेकिन फिर कई दिनों तक बाहर ही न आये । अनेकों बार इन्हें जल में ही ऊपर ऊपर बिना हिले डुले पड़े हुए देखा जा सकता था । स्वामी भीषण गर्मी के दिनों में मणिकर्णिका घाट की धूप से तप्ती शिलाओं पर निश्चल बैठे रहते थे । उनके इस प्रकार की जीवन शैली उनके कई अनुयाइयों को परेशानी में डाल देती थी । ऐसे में वे अपने साधकों से कहते की सभी प्राणियों का जीवन ईश्वरीय चेतना से ही संचालित है । आप इच्छाशक्ति द्वारा जीवन को जैसे चाहें संचालित कर सकते हैं ।

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जब त्रैलंग स्वामी को जेल में डाल दिया गया

त्रैलंग स्वामी (Trailanga swami) पूर्ण दिगंबर की तरह नग्न रहा करते थे । कहते हैं की उन्हें अपनी नग्नावस्था का तनिक भी भान नहीं होता था । एक बार इसी वजह से एक अंग्रेज जज ने उन्हें जेल में डलवा दिया । परन्तु जब वह जेल के निरिक्षण को आया तो उसने देखा की स्वामी जी तो जेल की छत पर टहल रहे हैं । यह देख जब जज ने जेलर को फटकार लगाई तो जेलर ने उत्तर दिया की स्वामी जी को उनकी इच्छा के बगैर जेल में रखना किसी के भी बुते के बाहर है । वे जब चाहे जेल के बाहर आ जाते हैं और ताला ज्यों का त्यों लगा रहता है । जज को ऐसे उत्तर की उम्मीद न थी । अब उसी जज ने स्वामी जी को फिर से जेल की कोठरी में डलवा दिया और ताला लगवाकर कोठरी के सामने एक संतरी को भी बैठा दिया । कुछ ही समय बीता था की स्वामी जी फिर से जेल की छत पर टहलने लगे । ऐसी कई घटनाओं की वजह से स्वामी त्रैलंगीरी पुलिस का सरदर्द बने हुए थे ।

विष पिलाने वाले नास्तिक को किया कष्टमुक्त

त्रैलंग स्वामी जितनी आवश्यकता ही उतनी ही बात किया करते थे । अधिकतर तो मौन ही रहते थे । वे कभी मांगकर नहीं खाते थे । कई कई दिनों तक भोजन नहीं करते । यदि कोई प्रेम से उनके लिए कुछ ले आता तो सहर्ष ग्रहण कर लेते थे । एक बार एक नास्तिक ने बाबा को एक बाल्टी चूना घोलकर पीने को दे दिया जो देखने में गाढ़े दहीं जैसा प्रतीत हो रहा था । नास्तिक जानता था की स्वामी जी को प्रेम से यदि कुछ दे दो तो वह ग्रहण कर लेते हैं । स्वामी जी ने तो उसे पी लिया किन्तु जो कुछ वह स्वामी जी के साथ घटता देखना चाहता था वह स्वयं उसके साथ घटने लगा । दर्द से कराहते नास्तिक ने बाबा से अपने प्राण बचाने की प्रार्थना की तो बाबा ने उसे ठीक कर दिया । बाबा ने कहा की हम सभी का जीवन एकाकार है, यदि मैं ये नहीं जानता तो इस चूने के घोल ने मुझे मार ही डाला होता । अब तो तुमने कर्म का देवी अर्थ समझ लिया है, अत: फिर कभी किसी के साथ ऐसा मत करना । कहते हैं बाबा के ऐसा कहते ही नास्तिक की छटपटाहट समाप्त हुई और वह कष्ट से मुक्त हो गया ।

कहीं कहीं पर ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं की त्रैलंग स्वामी, लाहिड़ी महाशय व् रामकृष्ण परमहंस के समकालीन रहे हैं ।

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