वृश्चिक लरषि का स्वामी मंगल, चिन्ह बिच्छू, तत्व जल , जाती ब्राह्मण, स्वभाव स्थिर, लिंग पुरुष व् ईष्ट देव गणेश भगवान् हैं । कालपुरुष कुंडली में ये आठवें घर को दिखती है । वृश्चिक लग्न में लग्न व् छठे भाव की स्वामिनी बनती है । इन तथ्यों के आधार पर हम इस राशि के जातक के बारे में जानने का प्रयास करेंगे ।
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वृश्चिक लग्न के जातक का व्यक्तित्व व् विशेषताएँ। Vrishchik Lagn jatak – Scorpio Ascendent
राशि स्वामी मंगल पहले व् छठे भाव का स्वामी है और कालपुरुष कुंडली में वृश्चिक राशि को आठवां स्थान प्राप्त है जो जीवन में संघर्ष, शत्रुओं से आमना सामना दिखता है । राशि स्वामी मंगल है जो की देवताओं का सेनापति है तो ऐसे जातक मुश्किलों , शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेते हैं । जल तत्व होने से ये जातक प्रायः शांत रहते है । जाती ब्राह्मण व्द ईष्ट देव गणेश होने से जातक नॉलेज सीकर होता है । वृश्चिक राशि का चिन्ह बिच्छू दर्शाता है की ऐसे तो ये जातक शांत रहते हैं लेकिन ज़रा सा खतरे का आभाव होने पर पूरी शक्ति से प्रहार करते हैं । बिच्छू ज़हरीला होता है, ऐसे ही वृश्चिक राशि के जातक भी मन में बात रखने वाले होते हैं और मौका आने पर अपना प्रभाव दिखाते हैं । ऐसे जातक अधिकतर पीछे से प्रहार करते हैं व् दुशमन को सँभालने का मौका नहीं देते हैं । कभी कभार तो इनके शत्रुओं को जानकारी भी नहीं मिल पाती की उनके साथ कौन शत्रुवत व्यहार कर रहा है ।
वृश्चिक लग्न के नक्षत्र Vrishchik Lagna Nakshatra :
वृश्चिक राशि भचक्र की आठवें स्थान पर आने वाली राशि है । राशि का विस्तार 210 अंश से 240 अंश तक फैला हुआ है । विशाखा नक्षत्र के चौथे चरण , अनुराधा नक्षत्र के चारों चरण , ज्येष्ठा नक्षत्र के चारों चरण के संयोग से वृश्चिक लग्न बनता है ।
लग्न स्वामी : मंगल
लग्न चिन्ह : बिच्छू
तत्व: जल
जाति: ब्राह्मण
स्वभाव : स्थिर
लिंग : पुरुष संज्ञक
अराध्य/इष्ट : हनुमानजी
वृश्चिक लग्न के लिए शुभ/कारक ग्रह – Ashubh Grah / Karak grah Vrishchik Lagn – Scorpio Ascendant
ध्यान देने योग्य है की यदि कुंडली के कारक गृह भी तीन, छह, आठ, बारहवे भाव या नीच राशि में स्थित हो जाएँ तो अशुभ हो जाते हैं । ऐसी स्थिति में ये गृह अशुभ ग्रहों की तरह रिजल्ट देते हैं ।
मंगल :
लग्नेश होने से कुंडली का कारक गृह बनता है ।
गुरु :
द्वितीयेश , पह्मेश है , साथ ही लग्नेश मंगल का अति मित्र है । अतः वृश्चिक लग्न में गुरु एक कारक गृह होते हैं ।
चंद्र :
नवमेश होने से इस लग्न कुंडली में कारक गृह बनता है ।
सूर्य :
दशमेश होने से इस लग्न कुंडली में एक कारक गृह बनता है ।
शनि :
तृतीयेश , चतुर्थेश होने व् लग्नेश मंगल का अति शत्रु होने से इस लग्न कुंडली में सम ग्रह बने हैं ।
वृश्चिक लग्न के लिए अशुभ/मारक ग्रह – Ashubh Grah / Marak grah Vrishchik Lagn – Scorpio Ascendant
शुक्र :
सप्तमेश व् द्वादशेश है । अतः कुंडली का मारक गृह बनता है ।
बुद्ध :
इस लग्न कुंडली में बुद्ध अष्टमेश , एकादशेश होता है । अतः मारक बनता है ।
वृश्चिक लग्न के लिए शुभ रत्न । Auspicious Gemstones for Scorpio Ascendant
वृश्चिक लग्न कुंडली में लग्नेश मंगल, द्वितीयेश व् पंचमेश गुरु , नवमेश चंद्र व् दशमेश सूर्य के रत्न मूंगा , पुखराज , मोती व् माणिक धारण किया जा सकता है । साथ ही कुछ विशेष परिस्थितियों में तृतीयेश व् चतुर्थेश शनि का रत्न नीलम भी धारण किया जा सकता है । लेकिन नीलम धारण कब और कितने समय विशेष के लिए किया जायेगा इसकी जानकारी किसी योग्य ज्योतिषी से लेना न भूलें । अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं , क्योंकि शनि सम गृह होने के साथ साथ लग्नेश मंगल का अति शत्रु भी है । किसी भी कारक या सम गृह के रत्न को भी धारण किया जा सकता है , लेकिन इसके लिए ये देखना अति आवश्यक है की गृह विशेष किस भाव में स्थित है । यदि वह गृह विशेष तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है या नीच राशि में पड़ा हो तो ऐसे गृह सम्बन्धी रत्न कदापि धारण नहीं किया जा सकता है । कुछ लग्नो में सम गृह का रत्न कुछ समय विशेष के लिए धारण किया जाता है , फिर कार्य सिद्ध हो जाने पर निकल दिया जाता है । इसके लिए कुंडली का उचित निरिक्षण किया जाता है । उचित निरिक्षण या जानकारी के आभाव में पहने या पहनाये गए रत्न जातक के शरीर में ऐसे विकार पैदा कर सकते हैं जिनका पता लगाना डॉक्टर्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है ।
ध्यान देने योग्य है की मारक गृह का रत्न किसी भी सूरत में रेकमेंड नहीं किया जाता है , चाहे वो विपरीत राजयोग की स्थिति में ही क्यों न हो ।
कोई भी निर्णय लेने से पूर्व कुंडली का उचित विवेचन अवश्य करवाएं । आपका दिन शुभ व् मंगलमय हो