हिंगलाज माता – Hinglaj Mata
हिंगलाज माता को एक शक्तिशाली देवी माना जाता है जो अपने सभी भक्तों के लिए मनोकामना पूर्ण करती है। जबकि हिंगलाज उनका मुख्य मंदिर है, मंदिरों के पड़ोसी भारतीय राज्य गुजरात और राजस्थान में भी उनके लिए समर्पित मंदिर बने हुए हैं। मंदिर को विशेष रूप से संस्कृत में हिंदू शास्त्रों में हिंगुला, हिंगलाजा, हिंगलाजा और हिंगुलता के नाम से जाना जाता है। देवी को हिंगलाज माता (मां हिंगलाज), हिंगलाज देवी (देवी हिंगलाज), हिंगुला देवी (लाल देवी या हिंगुला की देवी) और कोट्टारी या कोटवी के रूप में भी जाना जाता है।
हिंगलाज माता मंदिर पाकिस्तान में – Hinglaj Mata Mandir Pakistan
हिंगलाज माता मंदिर, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सिंध राज्य की राजधानी कराची से 120 कि॰मी॰ उत्तर-पश्चिम में हिंगोल नदी के तट पर ल्यारी तहसील के मकराना के तटीय क्षेत्र में हिंगलाज में स्थित एक हिन्दू मंदिर है। यह इक्यावन शक्तिपीठ (51 Shakti Peeth) में से एक माना जाता है और कहते हैं कि यहां सती माता के शव को भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से काटे जाने पर यहां उनका ब्रह्मरंध्र (सिर) गिरा था जिसका बखान हिंगलाज पुराण के साथ-साथ वामन पुराण, स्कंदपुराण में किया गया है।
हिंगलाज माता मंदिर – Hinglaj Mata Mandir
मंदिर एक छोटी प्राकृतिक गुफा में बना हुआ है। जहाँ एक मिट्टी की वेदी बनी हुई है। देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। बल्कि एक छोटे आकार के शिला की हिंगलाज माता के प्रतिरूप के रूप में पूजा की जाती है। शिला सिंदूर (वर्मीमिलियन), जिसे संस्कृत में हिंगुला कहते है, से पुता हुआ है, जो संभवतया इसके आज के नाम हिंगलाज का स्रोत हो सकता है। हिंगलाज के आस-पास, गणेश देव, माता काली, गुरुगोरख नाथ दूनी, ब्रह्म कुध, तिर कुण्ड, गुरुनानक खाराओ, रामझरोखा बेठक, चोरसी पर्वत पर अनिल कुंड, चंद्र गोप, खारिवर और अघोर पूजा जैसे कई अन्य पूज्य स्थल हैं।
हिंगलाज माता की कथा – Hinglaj Mata Story
महाशक्ति पीठ की स्थापना के सम्बन्ध में तंत्र चूड़ामणि से ज्ञात होता है की राजा दक्ष की कन्या सती जिनके पति भगवान शिव थे राजा दक्ष का भगवान शिव से भ्रमवंश मनमुटाव हो गया इस पर दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन रख उसमे समस्त देवताओं और अपने सम्बन्धियों को इस अवसर पर निमंत्रण दिया । यज्ञ में रूद्र का कलश स्थापित नहीं किया गया । जब इस यज्ञ की सूचना सती को मिली तो उसने शिव को यज्ञ में सम्मिलित होने का आग्रह किया किन्तु शिव इससे इंकार कर गए ।
लेकिन सती अपने माता पिता के घर चली आई उससे जब किसी ने सम्मानपूर्वक बातचीत नहीं की तो उसके स्वाभिमान को गहरी ठेस पहुँची उसने तत्काल ही यज्ञकुण्ड में अपने को समर्पित कर दिया । जब इसकी सूचना भगवान शिव को मिली तो उन्होंने क्रोधित होकर वीरभद्र एवं अपने गणों को यज्ञ भंग करने की आज्ञा दे डाली, शिव गणों ने यज्ञ भंग कर राजा दक्ष का सिर काट कर यज्ञकुण्ड में दाल दिया ।
अनन्तर भोलेनाथ सती शव अपने कन्धे पर डालकर इधर उधर भ्रमण करने ललगे तब भगवान विष्णु चक्र द्वारा सती के शरीर के 52 टुकड़े कर दिए जहाँ से अंग अलग अलग दिशाओं स्पर्श हुए वहां अलग अलग शक्तिपीठों स्थापना हुई । भगवती सती का ब्रंहरंध्र हिंगलाज आकर गिरा था । भगवती की मांग हिंगलू (कुमकुम) से सुशोभित थी इसलिए हिंगुलाज कहलाता है ।
शक्ति पीठो का रहस्य
कश्मीर में सती का गला गिरने से वह वरहादेवी शक्ति पीठ बना, हिमालय में जीभ गिरने से ज्वालामुखी माता शक्ति पीठ, कलकत्ता में अंगुली गिरने से कालिका माता और कन्याकुमारी में पीठ गिरने से भद्रकाली शक्ति पीठ के नाम से पूजित हुई इस प्रकार जहा जहा भगवती के अंग गिरे वहां 52 स्थानों पर अलग अलग नामों से वह पूजी जाती है । तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठ का उल्लेख हुआ है जिन्हें महापीठ कहते हैं । कल्याण के तीर्थांक में 51 शक्तिपीठों और देवी भागवत में अष्टोत्तर शत (108) दिव्य शक्ति धाम का विवरण मिलता है ।
हिंगलाज माँ के 11 धाम
श्री करणी कथामृत से ज्ञात होता है कि आद्य शक्ति हिंगलाज के मुख्य एकादश धाम है। कांगड़ा की ज्वालामुखी, असम की कामख्या, मुदरा की मीनाक्षी, दक्षिण में कन्याकुमारी, गुजरात में अम्बाजी, मालवा की कालिका, वाराणसी की विशालाक्षी, गया की मंगलादेवी, बंगाल सुन्दरी और नेपाल की गुहयेश्वरी। हिंगुलालय सहित इन 11 रूपों में भगवती हिंगलाज पूजा ग्रहण करती है । शक्तिपीठ के बावन स्थानों में बावन भैरव भी निवास करते है । हिंगुलालय का भैरव भीमलोचन है ।
हिंगलाज माता मंदिर वैभव
शास्त्रों में माँ का अंग, आधार, वास, वर्ण, पहनावा आदि हिंगुल रंग के बताये गए है। हिंगलाज देवी के मन्दिर का दर्शन करने मात्र से ही कष्टों का निवारण क्षण भर में दूर हो जाता है, लेकिन यह तभी संभव है जब आपने देवी के मन रुपी मन्दिर को अपने ह्रदय में समाहित कर लिया हो । शक्तिपीठ हिंगलाज के मन्दिर में माँ हिंगलाज की प्रतिमा एक गुफानुमा स्थान पर स्थित है । गुफा के अन्तिम भाग में माता का सिन्दुर वेष्टित पाषाण पाट लालवस्त्र से आच्छादित है।
प्राकृतिक रूप से शयनमुद्रा का आकार लिए माँ के शीश और नेत्र के दर्शन होते है । माँ के इस दरबार में लाल चुनड़िया देवी के शरीर को ढके है। सोने एवं चाँदी के छत्र उनकी महिमा का यशगान कर रहे है । देवी के निमित्त लाल चूनड़ी,चूड़ियाँ, काजल, छत्र, इत्र आदि श्रृंगारिक वस्तु अर्पित की जाती है। गुफा के बाहर शक्ति का प्रतीक त्रिशूल लगा है। पूजित पाषाण पाट के नीचे गर्भ गुफा है । जिसमे स्नान करके कटिवस्त्र धारण कर यात्रीयुगल वामभाग से गुफा में घुटनों के बल प्रवेश करते है और दक्षिण भाग से बाहर निकलते है। इसे माई स्पर्श करना कहते है ।
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चांगला खांप के मुसलमान करते है हिंगलाज देवी की पूजा
ज्ञातव्य है कि हिंगलाज देवी की पूजा अर्चना चांगला खांप के मुसलमान करते है । जो चारणों से मुसलमान बने थे । वे अपने को चारण मुसलमान ही कहते हैं । हिंगलाज देवी की पूजा चांगला खांप की ब्रह्मचारिणी कन्या द्वारा होती है । इसलिए वह चांगली माई कहलाती है । चांगली माई साक्षात शक्ति स्वरूपा ही मानी जाती है । चांगली माई अपना हाथ नई कन्या के सिर पर रख कर नई चांगली माई तय करती है और उसे माँ की ज्योति जलाने का आशीर्वाद देती है ।
भारत में हिंगलाज माता के मंदिर – Hinglaj Mata Mandir In India
भारत में हिंगलाज के कई मन्दिर स्थित है । कुछ मन्दिरों का नामोल्लेख इस प्रकार है –
- बाड़मेर जिले के सिवाना तहसील में छप्पन की पहाड़ियों में कोयलिया गुफा हिंगलाजमाता का प्रसिद्ध मन्दिर स्थित है ,यहाँ के पुजारी पुरी सन्यासी है ।
- सीकर जिले में फतेहपुर के दक्षिण में राष्ट्रिय राजमार्ग के निकट एक ऊँचे टीले पर महात्मा बुद्ध गिरी की मढ़ी है । कुछ सीढ़ियां चढ़कर ऊंचाई पर विशाल द्वार है जहाँ अग्रभाग में हिंगलाज माता का मन्दिर है यहाँ प्रज्वलित अखण्ड ज्योति श्रद्धालुओं की आस्था को बढाती है । गिरी सन्यासी माता के पुजारी है ।
- चुरू स्थित बीदासर ग्राम में नाथों के अखाड़े में देवी का पुराना मन्दिर स्थित है ।
- अजमेर जिले अराई से पूर्व में पहाड़ी पर माता का मन्दिर स्थित है ।
- जैसलमेर स्तिथ लोद्रवा ग्राम में हिंगलाज माता का प्राचीन मन्दिर स्थित है जो अब अब भूमिगत हो गया है।अब सीढ़ियाँ उतर कर नीचे जाना पड़ता है ।
- जैसलमेर नगर के घड़सीसर जलाशय के मध्य एक गोल टापू पर हिंगलाज की साळ है । जैसलमेर के पुष्करणा समाज में माता का बड़ा इष्ट है ॥
- हरियाणा की सीमा पर बलेशवर के पर्वत पर माँ का प्राचीन मन्दिर स्थित है महराष्ट्र में गढ़ हिंगलाज एक तीर्थ स्थल है ।