Loading...

299 Big Street, Govindpur, India

Open daily 10:00 AM to 10:00 PM

16 संस्कारों में पहला संस्कार – गर्भाधान संस्कार

Uncategorized

गर्भाधान संस्कार – श्रेष्ठ संतान के लिये विधिनुसार करें गर्भाधान

संस्कार का अर्थ संस्करण, परिष्करण, विमलीकरण अथवा विशुद्धिकरण से लिया जाता है। हिंदू धर्म में जातक के जन्म की प्रक्रिया आरंभ होने से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक कई संस्कार किये जाते हैं। पहला संस्कार गर्भधान का माना जाता है तो अंतिम संस्कार अंत्येष्टि संस्कार होता है। इस प्रकार मुख्यत: सोलह संस्कार निभाये जाते हैं। इन संस्कारों का महत्व इस प्रकार समझा जा सकता है कि जिस तरह अग्नि में तपा कर सोने को पवित्र और चमकदार बनाया जाता है उसी प्रकार संस्कारों के माध्यम से जातक के पूर्व जन्म से लेकर इस जन्म तक के विकार दूर कर उसका शुद्धिकरण किया जाता है। पहला संस्कार गर्भधान का माना जाता है। इस लेख में हम इसी संस्कार के बारे में बताने वाले हैं। तो आइये जानते हैं गर्भधान संस्कार का महत्व और इसकी विधि।


क्या है गर्भधान संस्कार – Garbhadhan Sanskar

हिंदू धर्म के सोलह संस्कारों में यह पहला संस्कार माना जाता है। इसी के जरिये सृष्टि में जीवन की प्रक्रिया आरंभ होती है। धार्मिक रूप से गृहस्थ जीवन का प्रमुख उद्देश्य और प्रथम कर्तव्य ही संतानोत्पत्ति माना जाता है। सृष्टि का भी यही नियम है कि मनुष्यों में ही नहीं बल्कि समस्त जीवों में नर व मादा के समागम से संतानोत्पत्ति होती है। लेकिन श्रेष्ठ संतान की उत्पत्ति के लिये हमारे पूर्वज़ों ने अपने अनुभवों से कुछ नियम-कायदे स्थापित किये हैं जिन्हें हिंदू धर्म ग्रंथों में देखा भी जा सकता है। इन्हीं नियमों का पालन करते हुए विधिनुसार संतानोत्पत्ति के लिये आवश्यक कर्म करना ही गर्भधान संस्कार कहलाता है। मान्यता है कि जैसे ही पुरुष व स्त्री का समागम होता है जीव की निष्पत्ति होती है व स्त्री के गर्भ में जीव अपना स्थान ग्रहण कर लेता है। गर्भाधान संस्कार के जरिये जीव में निहित उसे पूर्वजन्म के विकारों को दूर कर उसमें अच्छे गुणों की उन्नति की जाती है। कुल मिलाकर गर्भाधान संस्कार बीज व गर्भ संबंधी मलिनता को दूर करने के लिये किया जाता है।

यह भी पढ़े – 16 संस्कारों में पहला संस्कार – गर्भाधान संस्कार

गर्भाधान संस्कार की विधि – Garbhadhan Sanskar

स्मृतिसंग्रह में गर्भाधान के बारे में बताते हुए लिखा गया है कि –

निषेकाद् बैजिकं चैनो गार्भिकं चापमृज्यते।

क्षेत्रसंस्कारसिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम्।।

इसका अर्थ है कि विधि विधान से गर्भाधान करने से अच्छी सुयोग्य संतान जन्म लेती है। इससे बीज यानि शुक्राणुओं संबंधी पाप अर्थात दोष नष्ट हो जाते हैं व गर्भ सुरक्षित रहता है। यही गर्भाधान संस्कार का फल है।

हिंदूओं में उत्तम संतान की प्राप्ति के लिये गर्भधान संस्कार किया जाना अत्यावश्य माना गया है। इसके लिये सर्वप्रथम तो संतति इच्छा रखने वाले माता-पिता को गर्भाधान से पहले तन व मन से स्वच्छ होना चाहिये। तन और मन की स्वच्छता उनके आहार, आचार, व्यवहार आदि पर निर्भर करती है। इसके लिये माता पिता को उचित समय पर ही समागम करना चाहिये। दोनों मानसिक तौर पर इस कर्म के लिये तैयार होने चाहिये। यदि दोनों में से यदि एक इसके लिये तैयार न हो तो ऐसी स्थिति में गर्भाधान के लिये प्रयास नहीं करना चाहिये। शास्त्रों में लिखा भी है –

आहाराचारचेष्टाभिर्यादृशोभिः समन्वितौ ।

स्त्रीपुंसौ समुपेयातां तयोः पुतोडपि तादृशः ।।

यानि स्त्री व पुरुष का जैसा आहार और व्यवहार होता है, जैसी कामना रखते हुए वे समागम करते हैं वैसे गुण संतान के स्वभाव में भी शामिल होते हैं।

गर्भाधान कब करें ?

संतान प्राप्ति के लिये ऋतुकाल में ही स्त्री व पुरुष का समागम होना चाहिये। पुरुष पर-स्त्री का त्याग रखे। स्वभाविक रूप से स्त्रियों में ऋतुकाल रजो-दर्शन के 16 दिनों तक माना जाता है। इनमें शुरूआती चार-पांच दिनों तक तो पुरुष व स्त्री को बिल्कुल भी समागम नहीं करना चाहिये। इस अवस्था में समागम करने से गंभीर बिमारियां पैदा हो सकती हैं। धार्मिक रूप से ग्यारहवें और तेरहवें दिन भी गर्भाधान नहीं करना चाहिये। अन्य दिनों में आप गर्भाधान संस्कार कर सकते हैं। अष्टमी, चतुर्दशी, पूर्वमासी, अमावस्या आदि पर्व रात्रियों में स्त्री समागम से बचने की सलाह दी जाती है। रजो-दर्शन से पांचवी, छठी, सातवीं, आठवीं, नौंवी, दसवीं, बारहवीं, चौदहवीं, पंद्रहवीं और सोलहवीं रात्रि में गर्भाधान संस्कार किया जा सकता है। मान्यता है कि ऋतुस्नान के पश्चात स्त्री को अपने आदर्श रूप का दर्शन करना चाहिये अर्थात स्त्री जिस महापुरुष जैसी संतान चाहती है उसे ऋतुस्नान के पश्चात उस महापुरुष के चित्र आदि का दर्शन कर उनके बारे में चिंतन करना चाहिये। गर्भाधान के लिये रात्रि का तीसरा पहर श्रेष्ठ माना जाता है।

गर्भाधान कब न करें ?

मलिन अवस्था में, मासिक धर्म के समय, प्रात:काल, संध्या के समय, मन में यदि चिंता, भय, क्रोध आदि मनोविकार हों तो उस अवस्था में गर्भाधान संस्कार नहीं करना चाहिये। दिन के समय गर्भाधान संस्कार वर्जित माना जाता है मान्यता है कि इससे दुराचारी संतान पैदा होती है। श्राद्ध के दिनों में, धार्मिक पर्वों में व प्रदोष काल में भी गर्भाधान शास्त्रसम्मत नहीं माना जाता।

‘गर्भाधान’ से पूर्व संकल्प व प्रार्थना करें –

‘गर्भाधान’ वाले दिन प्रात:काल गणेशजी का विधिवत पूजन व नांदी श्राद्ध इत्यादि करना चाहिए। अपने कुलदेवता व पूर्वजों का आशीर्वाद लेना चाहिए। ‘गर्भाधान’ के समय गर्भाधान से पूर्व संकल्प व प्रार्थना करनी चाहिए एवं श्रेष्ठ आत्मा का आवाहन कर निमंत्रित करना चाहिए। ‘गर्भाधान’ के समय दंपति की भावदशा एवं वातावरण जितना परिशुद्ध होगा, श्रेष्ठ आत्मा के गर्भप्रवेश की संभावना उतनी ही बलवती होगी।
यह भी पढ़े – 

Written by

Your Astrology Guru

Discover the cosmic insights and celestial guidance at YourAstrologyGuru.com, where the stars align to illuminate your path. Dive into personalized horoscopes, expert astrological readings, and a community passionate about unlocking the mysteries of the zodiac. Connect with Your Astrology Guru and navigate life's journey with the wisdom of the stars.

Leave a Comment

Item added to cart.
0 items - 0.00